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एक अकेला विश्वगुरु:अब कितना भारी!

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सुसंस्कृति परिहार 

पूरी दुनियां में हिंदुस्तान का डंका बजाने वाला आज विश्वनाथ नगरी में फूट फूट कर रोते-रोते रह गया मन भारी तो हुआ पूरी नाटकीयता ओढ़ी गई पर जो लोग उसे रोते देखने की चाहत लिए थे वे निराश हो गए।उसने अपने को संभाल लिया किन्तु इस बीच जबान लड़खड़ा गई उन्होंने कह दिया -‘हो सकता है ,मेरी मां ने मुझे जन्म दिया हो।’वे क्या कह गए ,क्या वे वास्तव में संशय में हैं।आज उनकी मां यदि इसे सुनती तो निश्चित ही उसे कोसती ज़रुर। पूरा देश इस बात के लिए शर्मिंदगी महसूस कर रहा है।

वस्तुत:देखा जाए तो मूर्खता और धूर्तता के आवरण में जो संयोजन अभी तक चला वह अब फेल होता नज़र आ रहा है वास्तव में ईडी, ईवीएम और ईसी के तालमेल से अब तक बने तमाम समीकरण ढीले होते जा रहे हैं मीडिया का रुख भी बदलता नज़र आ रहा है साथ ही साथ सरकारी कर्मचारियों का साथ भी समाप्ति की ओर  है। बिकाऊ न्याय व्यवस्था पर लगे इल्जाम कमज़ोर पड़ रहे हैं । केजरीवाल का अग्रिम जमानत पर आना वह भी, सिर्फ चुनाव प्रचार हेतु मायने रखता है इसके पीछे यकीनन अदालत की सोची समझी रणनीति दिखाई दे रही है।उधर ज्योतिष शास्त्री भी डटकर एक अकेले को नेस्तनाबूद करने उतारु हैं सारे नक्षत्र प्रतिकूल बताने में लगे हैं। राममंदिर का आनन-फानन में किया प्राण-प्रतिष्ठा समारोह गले की हड्डी बना हुआ है। शंकराचार्यों की श्राप में भी  बुरी तरह फंसे हुए हैं सनातनी वैसे भी नाराज़ हैं।वह कैसे लोहा ले रहा है। उसके मांस , मछली, मंगलसूत्र और मुसलमान भारी पड़ गए हैं।

इतना सब होने के बावजूद अडानी अंबानी का कालाधन आटो भर भर कर राहुल गांधी घर भेजने पर राहुल का पलटवार उसे ले डूबेगा।जब सबसे मजबूत यार के ख़िलाफ़ यह कहा गया और सीधे अडानी का नाम लिया गया तो फिर बचता क्या है? राहुल सही कह रहे हैं जिसका नाम लेने पर मुझे संसद से निकाला गया जब उसका नाम इस छप्पन इंची ने लिया तो तय हो गया वह जा रहा है।एक कहावत है खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।उनके परम मित्रों  का साथ और स्वायत्त संस्थाओं के हाथ छूटते जा रहे हैं । इन लोगों ने हवा के अनुरूप पीठ कर ली है।जो भीड़ दिखती है वह छलावा है झूठा मजमा है ।भाजपा के अंदर ही अंदर बगावत की खौल है सच बात ये है कि चंद अंधभक्तों को छोड़कर माहौल में बड़ी तब्दीली देखी जा रही है। सोशल मीडिया और इनका आईटी सेल भी जख्मी पड़ा है।एक वजह जो दिखाई दे रही है वह यह है कि इंडिया गठबंधन का महत्वपूर्ण साथी कांग्रेस अपने घोषणापत्र की सिर्फ चर्चा नहीं कर रहा बल्कि उनके क्रियान्वयन के तरीके भी बता रहे हैं जो विश्वसनीय हैं दूसरी ओर मानसिक संतुलन खोता मदारी पशोपेश में हैं अब इशारे पर नाचने वाले तमाम लोग रुख बदल रहे हैं।उसके पास कहने को कुछ नहीं हैं।जो स्वाभाविक तौर पर यह दर्शा रहा है कि अब अच्छे दिन के लुत्फ उठाने वाले की हालत बदतर हो चुकी है वह मानसिक दिवालियापन का शिकार हो चुका है।जनता ने उसे हटाने की तैयारी कर ली है दूसरे चरण से आया बदलाव सातवें चरण तक और कितना गुल खिलाएगा।यह चार जून को सामने आ  जाएगा। अफ़सोसनाक यह है, एक अकेला सब पर भारी का दंभ बुरी तरह टूटने जा रहा है।

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