24 जनवरी। अडानी ग्रुप के लिए काला दिन बनकर आई। एक रिपोर्ट ने आसमान छूने को बेताब ग्रुप और इसके मुखिया गौतम अडानी के होश फाख्ता कर दिए। महज 10 दिनों में सबकुछ अचानक बदल गया। हिंडनबर्ग रिसर्च की इस रिपोर्ट में ग्रुप पर बड़े आरोप लगे। मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर अकाउंटिंग फ्रॉड तक। ग्रुप के भारी-भरकम कर्ज के बारे में पहले से ही चिंता जताई जाती थी। कई और बातों को लेकर भी सुगबुगाहट थी। लेकिन, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने इस सुगबुगाहट को घरेलू से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया। जो अडानी ब्लूमबर्ग बिलियनेयर्स इंडेक्स में 2 नंबर पर थे, वह कुछ ही दिनों में खिसककर 21वें पायदान पर पहुंच गए। अडानी समूह कोई मामूली ग्रुप नहीं है। एयरपोर्ट, पावर प्लांट से लेकर बंदरगाहों तक इसका निवेश है। कह सकते हैं कि यह ग्रुप देश के दिल की धड़कन है। देश में आने और यहां से बाहर जाने वाले तमाम सामान इस ग्रुप को छूते हुए निकलते हैं। दशकों से गौतम अडानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी रहे हैं। वह उन कुछ उद्योगपतियों में शुमार हैं जो मोदी सरकार के ग्रोथ एजेंडे को आगे ले जाने में उनका हमसाया बने हुए हैं। यह और बात है कि इन आरोपों से निवेशकों का भरोसा डिगा है। सिर्फ अडानी ग्रुप ही नहीं, इसकी जद में भारतीय बाजार और पूरा सिस्टम आता है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के दावों की जांच होने बाकी है। लेकिन, पहले ही इसने बहुत बड़ा नुकसान कर दिया है। सबसे बड़ा नुकसान ‘विश्वसनीयता’ को हुआ है।
यह संकट ऐसे समय खड़ा हुआ है जब चीन की अर्थव्यवस्था खुल रही है। इस संकट से बैंकों को भी बड़े नुकसान के आसार हैं। 24 जनवरी को जारी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने पूरे अडानी ग्रुप को हिला दिया है। अडानी ग्रुप भारतीय बुनियाद का हिस्सा है। ग्रुप का निवेश तमाम इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों में है। इनमें एयरपोर्ट, बंदरगाह, पावर प्लांट इत्यादि शामिल हैं। लगातार यह ग्रुप नए क्षेत्रों में अपने पंख पसारने को फड़फड़ा रहा है। उसके पास वह एक्पर्टाइज और एक्जीक्यूशन की ताकत है जो शायद सरकारी मशीनरी के पास नहीं है। अमेरिका की छोटी सी कंपनी की रिपोर्ट ने विशालकाय अडानी ग्रुप को लेकर शक पैदा कर दिया है। अपनी 100 पेज की रिपोर्ट से हिंडनबर्ग ने निवेशकों का भरोसा हिला दिया है। अडानी ग्रुप के शेयरों की पिटाई इसका सबूत है। यह बात सिर्फ अडानी ग्रुप तक नहीं सीमित है। देश का रेगुलेटरी फ्रेमवर्क भी शक के घेरे में आ गया है। विदेशी निवेशकों के मन में ढेरों सवाल हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से अडानी ग्रुप की मार्केट वैल्यू को 100 अरब डॉलर से ज्यादा का चूना लग चुका है।
मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर फ्रॉड तक के आरोप
हिंडनबर्ग ने बहुत से आरोप लगाए हैं। इसमें मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर फ्रॉड तक शामिल हैं। अडानी ग्रुप की तेज ग्रोथ को उसने कॉरपोरेट इतिहास में सबसे बड़ा घोटाला करार दिया है। अडानी ग्रुप ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। खुद अडानी ने टीवी पर सामने आकर निवेशकों के डर को शांत करने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि कंपनी के फंडामेंटल मजबूत हैं। बैलेंसशीट भी हेल्दी है। अपने एफपीओ टालने के फैसले के बाद वह सामने आए थे।
अडानी ग्रुप बंदरगाहों और हवाईअड्डों को चलाने वाला सबसे बड़ा प्राइवेट ऑपरेटर है। यह 33 फीसदी भारतीय एयर कारगो ट्रैफिक को कंट्रोल करता है। इसकी शिपिंग कैपेसिटी 24 फीसदी है। ग्रुप की रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्टों में 70 अरब डॉलर निवेश करने की योजना है। ग्रुप के लक्ष्य मोदी सरकार की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने से जुड़े हैं। ग्रुप की विस्तार योजनाओं में कर्ज का भी बड़ा हाथ है। इस पर करीब 1.6 ट्रिलियन रुपये का कर्ज है। अडानी ग्रुप सरकार की इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की योजना को पूरा करने में प्रमुख निवेशकों में से एक है। अडानी संकट इस योजना को पटरी से उतार सकता है।
बैंकों की भी सिट्टी-पिट्टी है गुम
अडानी संकट ने बैंकों की सिट्टी-पिट्टी भी गुम कर दी है। अडानी ग्रुप के शेयरों की पिटाई के साथ बैंकों के शेयर भी लुढ़के हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के शेयर 11 फीसदी गोता लगा चुके हैं। 27 जनवरी से 31 जनवरी के बीच विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारत से 2 अरब डॉलर निकाले हैं। भारतीय शेयरों में निवेशकों की दिलचस्पी साफ तौर पर घटी है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ नजदीकी के कारण विपक्ष ने भी पूरी ताकत से हल्ला मचाना शुरू कर दिया है। निवेशकों के लिए यह मैसेज निगेटिव जाने वाला है। इससे भारत के रेगुलेटरी फ्रेमवर्क पर सवाल बढ़ेंगे। ग्लोबल ग्रोथ इंजन के तौर पर भारत की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। निश्चित तौर पर अडानी ग्रुप का संकट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है।