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*माध्यमिक परीक्षा : कितना इंसाफ़ होता है पढ़ने वाले बच्चों के साथ?*

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   धूर्तों, भ्रष्टाचारियों और नकल माफियाओं के वर्चस्व के चलते सबसे बड़ा अन्याय पढ़ने वाली मेधा के साथ होता है.

   सीतापुर (यूपी) के एक दिग्गज हैं. कई ब्रांचेज हैं उनकी पब्लिक इंटर कॉलेजेज की. बोर्ड परीक्षाओं में टीचर्स  को बाकायदा ऐंश्वरसीट दी जाती है. नहीं थामने वाले शिक्षक – शिक्षिका को जॉब से निकलवा दिया जाता है. बेरोजगारी का जमाना, मरता क्या नहीं करता.

    बात यहीं नहीं थमती. कापियों में नोट (रूपये) रखवाए जाते हैं, ताकी कॉपी चेक करने वाले कृपा करें. बोर्ड ऑफिस तक धन पहुंचाया जाता है. डीएम, एसडीएम, एसपी तो छोड़िये, मिनिस्टर तक पहुंच है उनकी.

   अच्छे रिजल्ट मिलने पर भयंकर पब्लिसिटी. कोई टॉप आया/आई तो महीनों तक उसको रथ पर बिठाकर जुलूसबाजी. भाई बिजनेस है, आगे और प्रोग्रेस.

     यह सूरत हर कहीं की है. जितनी बड़ी मछली, जितनी औकात : उतने सरंजाम. जब शिक्षालय ही ऐसे हों तो, कैसे संस्कार बच्चों को मिलेंगे.

     रात भर बच्चे जागते हैं, व्हाट्सप्प पर लीक हुआ पेपर रन करता है. यह अलग कहानी.

   परीक्षा के बाद कॉपी चेकर संबंधित सब्जेक्ट का स्पेसलिस्ट हो : यह भी जरूरी नहीं होता. मुंह में गुटखा चबाते, बीड़ी – सिगरेट पीते, नून – तेल -लकड़ी, राजनीति की बातें करते कॉपियां चेक की जाती हैं. ऐसे में कितना इंसाफ़ होता होगा अच्छे बच्चों के साथ : अंदाजा लगाया जा सकता है.

    जो बातें हमने लिखी हैं, उनका कोई सुबूत तो होता नहीं. ये सब करने वाले इतने शातिर होते हैं की सुबूत कोई इकट्ठा कर ही नहीं सकता. लेकिन यह सच जानता हर कोई है, आप भी.

     जब पूरी व्यवस्था ही सड़ चुकी हो, जब कड़े क़ानून बनाने और उनपे अमल करने में मिशनरी ही नाकाम हो तब किस पारदर्शिता की, किस इंसाफ़ की आशा की जा सकती है.

  (चेतना विकास मिशन)

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