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देश में मुसलमान कैसे आर्थिक, शैक्षणिक और प्रशासनिक दायरे में हाशिए पर फेंक दिए गए

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डा. सिद्धार्थ

2006 में सच्चर कमेटी और 2007 में रंगनाथ मिश्र आयोग ने तथ्यात्मक तौर बहुत ही विस्तार से यह रेखांकित किया था कि देश में मुसलमान कैसे आर्थिक, शैक्षणिक और प्रशासनिक दायरे में हाशिए पर फेंक दिए गए हैं। हाशिए की इस स्थिति से देश की आबादी के 14.2 प्रतिशत (करीब 20 करोड़) मुसमलानों को बाहर निकालने कि कौन कहे, 2014 के बाद राजनीतिक प्रक्रिया से भी तेजी से उन्हें बाहर निकाला जा रहा है। कुछ स्तरों पर राजनीतिक तौर उन्हें बाहर फेंक दिया गया है और बचे-खुचे मामलों में उन्हें बाहर फेंकने की प्रक्रिया चल रही है। भारतीय राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की उनकी क्षमता को विभिन्न तरीकों से सीमित और प्रतिबंधित किया जा रहा है। 

यह कार्य निम्न तरीकों से किया जा रहा है-

भाजपा तो घोषित तौर पर मुसमलानों को राजनीतिक प्रक्रिया से बाहर कर रही है, मुस्लिम विरोधी हिंदुत्ववादी राजनीति का दबाव विपक्ष को भी प्रभावित कर रहा है। विपक्षी पार्टियां भाजपा की इन मुस्लिम विरोधी कारगुजारियों का पुरजोर विरोध बहुसंख्यक हिंदुओं के नाराज हो जाने के डर से नहीं कर रही हैं। वे स्वयं भी मुसलमानों का मुद्दा उठाने और उन्हें टिकट देने से बच रही हैं। यह स्थिति मुसमलानों को राजनीतिक प्रक्रिया से बाहर कर रही है।

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