अग्नि आलोक

हमारी निजी सूचनाएं कितनी सुरक्षित

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अरविंद कुमार मिश्रा

जैसे ही आप मोबाइल पर किसी ऐप को डाउनलोड करते हैं, वह आपसे फोन नंबर, ईमेल आईडी, जेंडर, उम्र जैसी कुछ पर्सनल सूचनाएं मांगता है। आपकी ओर से दी गई जानकारी से तमाम डिजिटल सेवाएं डिलिवर होती हैं। ठीक वैसे ही जैसे आपका फेसबुक, वट्सऐप और इंस्टाग्राम तभी एक्टिवेट होगा, जब इन एप्लिकेशन को फोटो गैलरी और कॉन्टैक्ट लिस्ट का एक्सेस मिले। आपकी पर्सनल सूचनाओं तक पहुंचने के लिए टेक्नॉलजी कंपनियां आपसे मंजूरी लेती हैं।

संदेह और आशंकाएं

सवाल है कि टेक, एंटरटेनमेंट कंपनियों और सरकारी एजेंसियों के पास जमा हमारी निजी सूचनाएं कितनी सुरक्षित हैं। हम कैसे जानें कि फलां सर्विस के लिए मांगी जा रही निजी जानकारियां कितनी और क्यों जरूरी हैं और यह भी कि एक मकसद के लिए ली गई ये जानकारियां दूसरे मकसद के लिए इस्तेमाल नहीं होंगी? इन्हीं सवालों के सही जवाब सुनिश्चित करने के लिए निजी कंपनियों और सरकार के पास मौजूद गोपनीय डिजिटल डेटा के इस्तेमाल को लेकर कानूनी ढांचा बनाने की कोशिश लंबे समय से जारी है। 3 अगस्त को केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट-2023 पेश किया।

डेटा प्रोटेक्शन बिल संसद में पेश किया जा चुका है, लेकिन इसकी कमजोरियों पर बहस जारी है।

प्राइवेसी के हक की लड़ाई टेक कंपनियों पर नकेल कसने के लिए है, ऐसा भी नहीं है। निजता के अधिकार की जंग तो सरकारी तंत्र के पास जमा सूचनाओं के दुरुपयोग की आशंका से ही शुरू हुई है।

बिल के अहम प्रावधान

क्या हैं एतराज

RTI में बदलाव

सरकार को आंतरिक सुरक्षा, महामारी, आतंकवाद जैसी स्थिति से निपटने के लिए मजबूत निगरानी तंत्र की दरकार होती है। ऐसे में कुछ विशेष सूचनाओं को वह आम आदमी के साथ साझा नहीं कर सकती। अभी RTI की धारा 8 (जे) ऐसे मामलों पर रोक लगाता है। इस परिस्थिति से निपटने के लिए डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल का मसौदा तैयार करने के लिए बनी जस्टिस बीएन कृष्णा समिति ने RTI एक्ट में संशोधन की सिफारिश की थी। डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट के लिए सरकार अब RTI में कुछ जरूरी बदलाव कर सकती है। सवाल उठ रहे हैं कि प्राइवेसी के नाम पर सूचना का अधिकार कहीं कमजोर तो नहीं हो जाएगा।

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