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कैसे प्रेम गीत में गाऊंँ?…. यथार्थ से टकराती मलैया की कविताएं

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 हरनाम सिंह

              सागर निवासी पी.आर. मलैया की कविताएं वर्ग विहीन समाज के लिए यथार्थ से टकराने की घोषणा है। प्राचीन प्रतीकों से युक्त कविताओं में कवि की दुविधा अनेक बार सामने आई है।

                 प्रेम नारायण रामदयाल मलैया के काव्य संग्रह कैसे “प्रेम गीत मैं गाऊँ?” का विमोचन प्रगतिशील लेखक संघ के अनूपपुर राज्य सम्मेलन में हुआ था। कविता संग्रह में हमारे समय की शायद ही कोई विसंगति, समस्या या मुद्दा बचा हो जिस पर कवि ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सवाल न उठाए हों। उनकी कविताओं में रूढ़ियां, शोषण, नैतिकता, भूख, देश विभाजन, श्रम, आपसी भाईचारा, सांप्रदायिकता, भीमा कोरेगांव, श्रमिकों की समस्याएं, किसान, नौजवान, गाय, भ्रष्टाचार, महिला उत्पीड़न, चुनाव, हिंसा, पर्यावरण, प्रदूषण, लोकतंत्र, श्रद्धा, संविधान, ईद, होली, 15 अगस्त मार्क्स, गांधी, विनोबा, जयप्रकाश नारायण, रोहित वेमुला, बसंत, वर्षा, बादल, पानी सभी कुछ है।

                 कविता *आओ जनजागृति फैलाएं* में कवि ने मानव विकास की हर मंजिल को छूते हुए समाजवादी समाज रचना का स्वप्न देखा है। *पुरखों की गौरव गाथा* में दोहरे आचरण को उजागर करते हुए कहा कि *छुआ गगन सिद्धांत क्षेत्र में और आचरण में पाताल…* कैसे स्वागत करूं कहो नववर्ष में बैचेन कवि पूछता है

 *सूझे नहीं उपाय प्रफुल्लित हो कैसे मन*

 *मैं हूं सतत उदास, करूं कैसे अभिनंदन*

 रक्षाबंधन कविता में कवि ने धरती और अंबर को भाई-बहन के प्रतीक से जोड़कर मौलिक बिंब रचना की है, जिसमें रवि खलनायक हैं।

                अनेक प्रगतिशील कविताओं के बीच *कवि था वह…* कविता में मलैया जी की दुविधा सामने आई है। वे साहित्यिक दल में न फंसने, किसी वाद का पिछलग्गू ने बनते हुए प्रकृति प्रेम की बात करते हैं। संभवत है यह कविता पुराने समय की रही हो।

               पुस्तक शीर्षक कविता *कैसे प्रेम गीत में गाऊँ* में भी  वे उसी पीड़ा से गुजरते हैं जिससे फैज और साहिर सहित अनेक रचनाकार गुजर चुके हैं। वही *मैं छोटा कवि कहलाऊं* कविता में कवि महाकाव्य के रचयिताओं, अलंकारों, से सजी रचनाओं, पौराणिक कथाओं से स्वयं को लोक वेदना का गायक बताते हैं, और वर्ग विहीन समाज के लिए यथार्थ से टकराने की घोषणा करते हैं।

                *कैसे कह दे जन गण मन में* रोहित वेमुला, पानसरे, दाभोलकर से लेकर कन्हैया कुमार के माध्यम से अच्छे दिनों पर सवाल उठाए गए हैं। *यह कैसा जनतंत्र हमारा* में मलैया जी कहते हैं *राज्य व्यवस्था बनी हुई है मौलिक अधिकारों की कारा…* कविता में वे प्रश्न करते हैं कि चुनावी छल, भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, सांप्रदायिकता, कब तक सहन की जाएगी।

 कविताओं में प्राचीन प्रतीकों बिंबो, शब्द संरचना की भरमार है। *गंगा की पावन लहरों सी… ऋषियों की पावन धरती… अर्जुन भीमों के झुके शीश… रावण कंसों की शैली सी… ब्रह्मचर्य पालन आठों याम करो… वामन पग सा अनुपम कौशल…* के रूप में उपयोग किया गया है।

               काव्य की भाषा प्रवाह मयी है किंतु वर्तमान में जब हिंग्लिश को ही हिंदी बताया जा रहा है, यही नहीं इस शैली का खुलकर उपयोग हो रहा है। ऐसे में मलैया जी की कविताओं के संस्कृत युक्त वाक्य युवा पाठकों  तक कितना पहुंच पांएगे कहना मुश्किल है।

           पुस्तक में चंद्रबिंदु के अतिरेक ने उसके सौंदर्य को प्रभावित किया है। कविता पुस्तकों की भीड़ में *कैसे प्रेम गीत में गाऊं* काव्यसंग्रह रुचि रखने वाले पाठकों की स्मृति में बना रहेगा इतना तो भरोसा किया जा सकता है।

 हरनाम सिंह

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