सनत जैन
जल जीवन मिशन, जो ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। यह योजना भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की पर्याय बन गई है। हाल ही में प्रकाशित रिपोर्टों मे इस योजना की खामियों और भ्रष्टाचार की लूट को उजागर किया है। जिससे स्पष्ट है, इस महत्वाकांक्षी योजना के पीछे सरकारी तंत्र का प्रचार-प्रपंच और कर्ज के धन मे भारी लूट और आम लोगों की बर्बादी छिपी हुई है। इस योजना के तहत केंद्र सरकार ने राज्यों को 8,957.50 करोड़ रुपये जारी किए। इसके बावजूद परियोजना आधी अधूरी है। राज्यों ने केंद्र सरकार से अतिरिक्त 3,200 करोड़ रुपये की मांग की है।
पूर्व में आवंटित धन का सही उपयोग नहीं हो पाया। पानी नहीं है लेकिन पाइपलाइन डल गई। खेतों में पाइप लाइन डाल दी गई ठेकेदार और अधिकारियों ने जल जीवन मिशन में भारी लूट की है। जहां हर घर में पानी देने की बात कही जा रही थी। जहां योजना लागू कर दी गई है। वहां 50 फीसदी घरों में भी नल जल के कनेक्शन नहीं किए जा सके हैं। यह इस बात का संकेत करता है, कि सरकारी विभागों और ठेकेदारों के बीच मिलीभगत से योजना के सरकारी धन का भ्रष्टाचार के रूप में दुरुपयोग हुआ है। योजना की धीमी प्रगति और असफलता के पीछे कई कारण हैं। गांवों में सही सर्वेक्षण न होना, पाइपलाइन बिछाने में देरी, जलश्रोतों की अनुपलब्धता जैसी कई समस्याओं ने इस योजना को जटिल बना दिया। जहां पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है, वहां गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया गया। अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही से स्पष्ट है, 5,546 योजनाओं की डीपीआर तैयार है, इनमें अधिकांश योजनाओं को शुरू करने में देरी हो रही है। इस देरी के पीछे प्रशासनिक औपचारिकताएं और भ्रष्टाचार प्रमुख कारण है।
यह स्थिति सिर्फ वित्तीय अनियमितताओं की ओर इशारा नहीं करती, बल्कि यह भी दिखाती है कि सरकार की प्राथमिकताएं प्रचार और दिखावे तक ही सीमित हैं। योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव सरकारी लूट का सबसे बड़ा उदाहरण है। सरकार को चाहिए कि वह इस योजना में हो रहे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की गहन जांच कराए। भ्रष्टाचार और लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करना चाहिए। जनता के पैसे का सही उपयोग सुनिश्चित हो। विश्व बैंक और अन्य योजनाओं से कर्ज लेकर जल जीवन मिशन की योजना शुरू की गई थी। इसमें गांव-गांव में हर नागरिक तक शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो, यह सुनिश्चित किया गया था। लेकिन यह योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। अब ग्राम पंचायत और नगरीय निकायों को बोला जा रहा है वह अपने आर्थिक संसाधनों से इस योजना को चालू करें। पंचायत और नगरीय निकाय खुद आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। ऐसी स्थिति में वह इस योजना के खर्च को बर्दाश्त करने की स्थिति में ही नहीं है। बिजली का बिल चुकाने की भी उनकी हैसियत नहीं है। जल जीवन मिशन जैसे कार्यक्रम तभी सफल हो सकते हैं, जब वे ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ लागू हों। जिन लोगों के लिए यह योजना तैयार की गई है। उनको इसका लाभ किस तरह से मिल सकता है। केंद्र सरकार, राज्य सरकार, नगरीय एवं ग्रामीण संस्थाओं की जिम्मेदारी भी तय की जानी चाहिए थी। जल स्रोत और बिजली उपलब्धता पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत थी। पाइपलाइन कहीं से कहीं डाल दी गई। इसका कोई प्लान तैयार नहीं किया गया, जिसके कारण यह योजना शुरू होने के पहले ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ चुकी है। हर घर नल योजना का केंद्र एवं राज्य सरकार ने प्रचार बहुत किया लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में 10 फीसदी लोगों के पास भी शुद्ध पेयजल नहीं पहुंचा है। यह योजना की हकीकत है। पंचायत और नगरीय निकायों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। हर घर तक पानी पहुंचाने के लिए बिजली और अन्य उपकरणों के रख-रखाव मे होने वाले खर्च की जिम्मेदारी राज्य और केंद्र सरकार को उठाना होगी। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो जो पाइपलाइन बिछाई गई है। हर घर में शुद्ध पेयजल पहुंचाने की जो योजना शुरू की गई है, वह कागज तक सिमट कर रह जाएगी। जल जीवन मिशन में जो भ्रष्टाचार किया गया है तथा योजना को सही तरीके से लागू नहीं करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों पर केंद्र एवं राज्य सरकार को कठोर कार्रवाई भी करनी होगी। तभी यह योजना सफल हो सकती है।