डॉ. विकास मानव
मन (mind) का सम्बन्ध चित्त, हृदय यानी आत्मा (soul) से है जबकि मस्तिष्क (brain), शरीर (body) का एक अंग है।
मन (mind) में विचार (thoughts), चेतना (consciousness), ज्ञान (intellect), इच्छाएं (desires), अनुभव (experience), अनुभूतियाँ (cognition) और भावनाएं (feelings) होती है जबकि मस्तिष्क (brain), शरीर के विभिन्न अंगो को तंत्रिका तंत्र (nervous system) द्वारा सूचनाएं पहुँचाने वाला यंत्र (device) है।
वास्तव में मन और मस्तिष्क उसी तरह होते है जिस तरह सूक्ष्म शरीर (psychic body) और स्थूल शरीर (physical body) होते है। अतः हम कह सकते है कि मन सूक्ष्म शरीर का भाग है और मस्तिष्क स्थूल शरीर का भाग है।
हर मनुष्य में दो दिल (hearts) होते हैं। पहला भौतिक ह्रदय (physical heart) जो दिन – रात शरीर में खून की आपूर्ति करता है. दूसरा आत्मिक ह्रदय (spiritual heart) जो मनुष्य के दयालु, करुण, कठोर और प्रेमी होने का प्रतीक है व भाव संवेदना से ओत प्रोत है।
भौतिक ह्रदय पर मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं होता। यदि स्वास्थ्य के नियमों का उलंघन किया गया तो ब्लड प्रेशर का अनियंत्रित होना तय है या शरीर का शुगर बढ़ा तो हार्ट अटैक आना तय है।
आत्मिक ह्रदय पर मनुष्य चाहे तो नियंत्रण कर सकता है, किन्तु अधिकांश मनुष्यों में यह भी नियंत्रण से बाहर होता है। यह जो दूसरा ह्रदय है इसी को मन कहा जा सकता है। यह कोई physical form में नहीं होता बल्कि अनुभव का विषय है। प्रकृति में आकाश में विचरण कर रहे शब्दादी विचारों को अपनी प्रकृति अनुसार ग्रहण करता है।
मन, शरीर के साथ आत्मा के अभिव्यक्ति (expression) का माध्यम है जबकि मस्तिष्क, भौतिक जगत के साथ आत्मा के कर्म करने का साधन है।
मस्तिष्क के अलग – अलग भाग होते है जो मनुष्य के विभिन्न अन्तः स्त्रावी ग्रंथियों को नियंत्रित करते है। शरीर के विभिन्न भागों में सूचनाओं का आदान – प्रदान करते है।
मस्तिष्क तभी तक क्रियाशील रहता है जब तक शरीर में चेतना है। जैसे शरीर से चेतनाअर्थात आत्मा निकली तो सब समाप्त।
यह चेतना ही है जो मन और मस्तिष्क को जोडती है। यह चेतना ही है जो भौतिक ह्रदय को आत्मिक ह्रदय से जोड़ती है। इसी चेतना को आत्मशक्ति, प्राण उर्जा, दम आदि नामों से जाना जाता है।
जो अंतर आत्मा और शरीर में होता है ठीक वही अंतर मन और मस्तिष्क में होता है।
जिस तरह आत्मा, शरीर नहीं बल्कि शरीर का धारण करने वाला है; उसी तरह मन भी मस्तिष्क नहीं बल्कि मस्तिष्क का धारक है।
अर्थात जो कुछ भी आप देखते है, सोचते है, विचार करते है, इच्छा करते है, अनुभव करते है आदि आदि, यह सब मन को होता है किन्तु स्मृति (memory) के रूप में मस्तिष्क में संग्रहित (store) होता रहता है।
ध्यान रहे मन, आत्मा से अलग नहीं है, किन्तु एक भी नहीं है ? यह साधना का विषय है। आप क़ुछ भी मत दें, सिर्फ़ खुद को मुझे दें : जो चाहें अनुभव करें. जो चाहें लें. मुझे आपसे क़ुछ नहीं चाहिए. मुझे आप चाहिए.