शशिकांत गुप्ते
मानव के जीवन की स्थिरता का मतलब होता है। मानव के जीवन का प्रत्येक पहलू से संतोष जनक हो। सिर्फ आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होने स्थिरता का प्रमाण नहीं है। हरएक मानव शारीरिक, पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षणिक,और मानसिक रूप से स्वस्थ हो तब जीवन स्थिर कहलाता है।
देश का हरएक मानव स्वस्थ रहेगा,तब कहीं देश मजबूत रहेगा।
जैसे किसी व्यक्ति की नौकरी स्थाई हो और उसे नोकरी में ना तो वेतन वृद्धि हो ना ही उसे पदोन्नति मिले तो उसे संतुष्टि कैसे मिलेगी। उल्टा यह तो उसकी योग्यता, गुणवत्ता,और क्षमताओं का शोषण ही तो है?
उक्त प्रश्न रोजगार प्राप्त लोगों के लिए है। जो बेरोजगार सड़क पर रोजगार प्राप्ति के लिए मांग रहें हैं, उनका तो भाग्य ही अधर में है।
इसीतरह बहुमत प्राप्त सरकार निश्चित समयावधि तक अपना कार्यकाल पूर्ण करती है। इसे स्थिर सरकार कह सकतें हैं। लेकिन सिर्फ सरकार स्थिर हो और देश में जनता की मूलभूत समस्याओं का अंबार लगा हो?
करोड़ो लोगों को मुफ्त राशन पर निर्भर रहना पड़ता हो? बेरोजगार युवाओं को रोजगार की मांग करते हुए प्रताड़ना मिलती हो?
देश के जनप्रतिनिधियों के सपूत विदेश में पढ़कर आने पर उनका सार्वजनिक गौरव होता है? तब यह सिद्ध हो जाता है कि, हमारे अपने देश में शिक्षा में बहुत खामियां है? क्या इस तरह सरकार की स्थिरता पर्याप्त है?
प्रत्येक वर्ष के हर माह में हम कोई न कोई दिन मनाते ही है। दिन भी विश्व स्तर पर मनाया जाता है।
एक दिन माँ का एक पिता का। और अपनी जननी और जनक का दिन मनाने हम सहर्ष अभिमान के साथ वृद्धाश्रम में जातें हैं? विभिन्न दिन मनाना सिर्फ औपचारिकता होती है।
हाल ही में विश्व पर्यावरण दिवस की गूंज सुनाई दी।
यदि हम प्रति दिन प्रत्येक व्यक्ति में मानवीयता जागृत दिवस मनाने लग जाएं तो अलग से किसी दिन को मनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी?
मानवीयता जागृत होने पर हमारा सोच पूर्ण रूप से लोकतांत्रिक हो जाएगा।
वर्तमान में सबसे बड़ा प्रश्न है। विचारों का मतलब Ideology का।
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में सक्रिय तकरीबन सभी राजनैतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र समाप्तप्राय है। इसी कारण प्रत्येक दल में व्यक्तिवाद हावी है।
लोकतांत्रिक प्रणाली के मूलभूत अधिकार जसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,मतलब वाणी की स्वतंत्रता। बहुत से लोग वाणी की स्वतंत्रता का भरपूर लाभ उठा रहें हैं।
वाणी विष वमन करने वाली नहीं होनी चाहिए। वाणी संत कबीरसाहब के द्वारा दोहे के माध्यम से दिए गए इस उपदेश जैसी होनी चाहिए।
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
औरन को शीतल करें, आपहुं शीतल होएं।।
हम तो श्रीरामभगवान के भक्त हैं।
प्रभु रामजी के स्मरण के महत्व को भी समझना जरूरी है।
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई गोपद सिंधु अनल सितलाई
भावार्थ – किसी भी कार्य को करने से पूर्व प्रभु श्रीराम जी का स्मरण करने से सफलता प्राप्त होगी. जो भी ऐसा करता है उसके लिए विष भी अमृत बन जाता है, शत्रु मित्र बन जाते हैं, समुद्र गाय के खुर के जैसा हो जाता है, अग्नि में शीतलता उत्पन्न हो जाती
है।
उपर्युक्त मुद्दों पर गम्भीरता से सोचने पर निष्कर्ष यही निकलता है, मानवीयता जागृत दिवस प्रतिदिन मनाया जाए।
शशिकांत गुप्ते इंदौर