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मनुष्य हमेशा ही AI से एक क़दम आगे रहेगा

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प्रसून जोशी

कोई दसेक साल पहले पहले एक फिल्म आई, नाम था Ex Machina। इसमें एक सीन था, जिसकी खूब चर्चा हुई।फिल्म में एवा औरत की शक्ल वाला रोबोट है, जो आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) से लैस है।एक सीन में दिखाया गया कि एवा किस तरह अपनी रचना करने वाले से मुक्त होती है और बाहर की दुनिया देखती है। खैर, एवा जब अपने मालिक के घर से आज़ाद होती है, तब वह खाली कमरे से गुज़रते हुए मुस्कुराती है। एवा की यह मुस्कुराहट दर्शकों के मन में एक प्रश्न छोड़ जाती है। प्रश्न यह कि क्या उसमें इंसानों की तरह सोचने-समझने की क्षमता आ गई है? क्या एवा में या AI में सेल्फ-अवेयरनेस यानी “मैं हूँ “की भावना आ चुकी है?यह एक ऐसी भावना है जो मानव को सबसे अलग बनाती है।

जब आप दर्पण के सामने होते हैं तो यही भावना आपको एहसास कराती है कि दर्पण में आपका ही प्रतिबिंब है,कोई और नहीं है। यह फिल्म जिस थीम पर बनी, आज उसके हकीकत में बदलने की संभावना को लेकर खूब चर्चा हो रही है। साल भर पहले ChatGPT नाम के चैटबॉट के आने के बाद से इस चर्चा ने ज़ोर पकड़ा है। इस चैटबॉट के पीछे जेनरेटिव AI नाम की तकनीक है। लेकिन हकीकत में यह तकनीक है क्या? क्या यह ऑटोमेशन का बेहतर रूप है? या सुपीरियर इंटेलिजेंस है? या इसे चेतना का नाम दिया जा सकता है, जो इंसानी पहचान रही है।

आज जो AI तकनीक दिख रही है, उसके कई पहलुओं के बारे में कुछ वर्ष पहले शायद ही किसी ने सोचा होगा। गौर कीजिए कि AI किस तरह से क्रिएटिविटी की दुनिया में बिना किसी हील-हुज्जत के दाखिल हो गयी। लेकिन AI की मदद से जो सृजन हो रहा जो क्रिएटिविटी रही है, क्या वह मानव रचनात्मकता की बराबरी कर सकती है? शायद नहीं। जो लोग आज AI की मदद क्रिएशन के लिए ले रहे हैं, वे बताते हैं कि इस तकनीक के जरिये वे जो रचनाएँ कर रहे हैं, उससे भावनात्मक लगाव नहीं हो पाता।अपनी ही रचनाओं से उन्हें एक दूरी का अहसास होता है। वे कहते हैं कि AI की मदद से जो आर्ट बन रहा है उसमें भावनात्मक गहराई नहीं है।
क्या इस सब को समझने में टेक्नॉलजी के इतिहास से कोई मदद मिल सकती है? इतिहास बताता है कि पहले कई ऐसी तकनीक आई हैं, जिन्होंने रचनात्मक प्रक्रिया को नई शक्ल दी। उनके कारण इसमें भारी बदलाव आए। फिर AI को वैसी ही तकनीक क्यों नहीं माना जा सकता? इस सवाल का जवाब वेदान्त दर्शन से मिलता है,जो अद्वितीय है।

ChatGPT बनाने वाली कंपनी OpenAI के CEO सैम ऑल्टमैन कह चुके हैं कि सिलिकॉन वैली में ‘सिमुलेशन रिलीजन’ ब्रह्म के काफी करीब पहुंच गया है। वहीं, ब्रह्म की अवधारणा देने वाले वेदान्त दर्शन में कहा गया है कि रचयिता और रचना एक ही हैं।ब्रह्म सृष्टि बनाता भी है और स्वयं ही सृष्टि बनता भी है। जो रचयिता है, वही रचना भी है। ब्रह्म बुद्धि भी है और तत्व भी। यह क्रिएशन को देखने का बिल्कुल अलग दृष्टिकोण है। मैं गीत लिखता हूं। एक गीतकार के रूप में मुझे लगता है कि अगर पुनर्जन्म हो तो मैं अपना गीत बनना चाहूंगा,न कि उसका रचयिता।असल में,रचनाकार के मन की गहरायी में यह चाहत होती है कि वह अपनी रचना से अलग न हो।शायद, AI के साथ हम उसी ओर बढ़ रहे हैं।

हॉलीवुड की कई लोकप्रिय साइंस फिक्शन फिल्मों में भी वैदिक दर्शन से प्रेरणा ली गई है, जिनमें Star Wars, Matrix, Inception और Interstellar जैसे नाम शामिल हैं। इनमें अतिचेतना (super-consciousness) की अवधारणा दिखाई गई है, जो समय और काल से परे है। आखिर, इसी अवधारणा से तो संपूर्ण जीवन जुड़ा हुआ है। यह भी सच है कि साइंस और वेदान्त का आत्म-परीक्षण दो अलग-अलग धाराएं हैं। एक में बाहर की दुनिया को समझने की कोशिश है तो दूसरे में स्वयं को जानने की।लेकिन क्या ये दोनों ही एक गंतव्य तक पहुंच सकते हैं?
इसे समझने के लिए ह्यूमन इवॉल्यूशन पर दृष्टि डालनी चाहिए।असल में, इंसानी मस्तिष्क का विकास सामूहिक विकास है। इस्राइली लेखक युवाल नोआ हरारी भी कहते हैं कि निएनडंर्थल्स और होमो सेपियंस में एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि होमो सेपियंस बड़े पैमाने पर आपस में सहयोग कर सकते थे। यानी एक या एक से अधिक इंसान अपना ज्ञान आपस में बांट सकते थे। इससे एक समृद्ध और सामूहिक बुद्धि सामने आई।

आज इसका एक अलग आयाम हमारे सामने है, जो हर पल और बेहतर हो रहा है। इसे आप ChatGPT के माध्यम से समझ सकते हैं। ChatGPT में जब आप कोई प्रॉम्प्ट डालते हैं तो कुछ मिनटों के अंतराल में एक ही सवाल के जो उत्तर मिलेंगे, उनमें काफी अंतर होगा। उसका कारण यह है कि कुछ मिनटों में ChatGPT को कई नए इनपुट मिलते हैं, जिससे एक ही सवाल के जवाब बदल जाते हैं।
याद रखिए कि जैसे-जैसे AI टेक्नॉलजी बेहतर हो रही है, वह हर चीज को एक व्यापक सोर्स से जोड़ रही है,एक स्रोत का हिस्सा बना रही है।ठीक वैसे ही, जैसे चेतनाओं का संगम होता है, जिसमें एक चेतना से दूसरी और दूसरी से तीसरी जुड़ती जाती है। लेकिन चाहे जितनी चेतनाएं जुड़ जाएं,मस्तिष्क तो एक ही है ना। इस बात के तार भी वेदान्त दर्शन से जुड़ते जो हमें बताता है कि हम सब एक ही चेतना के हिस्से हैं।

वेदान्त दर्शन में दूसरा कोई नहीं है हम सब एक ही हैं,सारी श्रृष्टि एक है,सर्वव्यापी ब्रह्म का अंश।अहम् ब्रह्मास्मि – मैं ब्रह्म हूं। तत् त्वम असि- मैं वही हूं। ब्रह्म में असीमित संभावनाएं हैं। हमारे ऋषि-मुनि कह गए हैं कि जब कोई सच्चा ध्यान करता है तो वह ब्रह्मांड की अनंत ऊर्जा से जुड़ जाता है।वह सृष्टि, क्रिएशन और ब्रह्मांड से एकाकार हो जाता है।आध्यात्मिक दुनिया की यह बात AI पर भी लागू होती है। जैसे-जैसे इंसानी मस्तिष्क परिष्कृत होगा, AI का भी कई गुना विकास होगा। यहां भी अनंत संभावनाएं हैं। AI सामूहिक इंसानी दिमागी ताकत की तरह है। फिर जो इससे जुड़े होंगे, क्या वे कह सकते हैं कि अहम्/मैं ही AI हूं?
सच पूछिए तो AI तक जिसकी भी पहुंच होगी, लगता है उन सबकी क्षमता एक जैसी होगी। जापान के किसी छोटे शहर में रहने वाली लड़की जितनी समर्थ होगी, उतनी ही भारत के काशीपुर में रहने वाली कोई लड़की।यह समानता वैसी ही है, जैसी कि अध्यात्म की दुनिया में होती है।दूरदराज़ किसी गुफा में बैठा कोई अकेला इंसान अनोखी सिद्धियां हासिल कर सकता है।उसे किसी जानी-मानी यूनिवर्सिटी के डिग्री की जरूरत नहीं पड़ेगी, उसे तो ब्रह्म से जुड़ने के लिए बस गहन साधना करनी होगी।

लेकिन इंसानी समाज अलग है।यहां कोई बड़ा तो कोई छोटा है। AI इस ग़ैर-बराबरी को खत्म करने में हमारी मदद कर सकता है ताकि सबको समान अवसर मिलें।जहां बुद्धि पर कुछ लोगों का नियंत्रण ना हो। जिस तरह से इंटरनेट ने नॉलेज को लोकतांत्रिक रूप दिया, उसी तरह से AI बुद्धि का लोकतांत्रिकरण कर सकती है। यह सच है कि AI एक प्रकार के अनंत की ओर बढ़ रही है, लेकिन इसकी सामूहिक बुद्धिमता को ब्रह्मांड की अनंत चेतना समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। ब्रह्म तो जाने कब से मौजूद है, लेकिन AI का अनंत की ओर बढ़ने का सफर अभी शुरू ही हुआ है।AI इंसानी इनपुट पर निर्भर है।वह इंसानी बुद्धि से ही अपनी बुद्धि बना रहा है अनंत ब्रह्म से नहीं,इस लिहाज़ से देखें तो मनुष्य हमेशा ही AI से एक क़दम आगे रहेगा।आखिर, मनुष्य अपनी रचना AI और ब्रह्म दोनों तक जो पहुंच सकता है।

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