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सीवरों में मरते सैकड़ों दलित बनाम भारतीय जातिवादी वैमनस्यता !

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निर्मल कुमार शर्मा

भारत सरकार ने पेयजल और स्वच्छता विभाग,सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय और आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय की एक संयुक्त परियोजना ‘मैकेनाइज्ड सेनिटेशन इकोसिस्टम या Mechanized Sanitation Ecosystem के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना ‘नमस्ते ’ तैयार की है जिसका उद्देश्य भारत में स्वच्छता संबंधी कार्य के दौरान शून्य मृत्युदर करना है ! इस सिस्टम का उद्देश्य यह भी है कि कोई भी स्वच्छता कर्मी मानव मल के सीधे संपर्क में नहीं आए। इसके अलावा आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने रखरखाव कार्यों के लिए आवश्यक मशीनरी और सफाईमित्रों जो सीवर रखरखाव और मल निकालने के कार्यों को करते हैं, के लिए मुख्य उपकरणों की किस्मों,सुरक्षा उपकरणों की सूची बनाई है। राज्यों की ओर से इसकी खरीद को आसान बनाने के लिए इसे सरकारी ई-मार्केटप्लेस पोर्टल या e-Marketplace Portal पर भी उपलब्ध करवाया गया है। इसका उद्देश्य यंत्रीकृत मलसफाई प्रणाली के लिए आवश्यक उपकरणों की पर्याप्त उपलब्धता करवाना है !

 इस देश में कल्याणकारी योजनाएं जमीन पर उतरती ही नहीं !

                 लेकिन अत्यंत दु :ख के साथ लिखना पड़ रहा है कि उक्त वर्णित सभी ताम-झाम और परियोजनाएं अभी भी भारत सरकार की फाइलों से नीचे उतरने की जहमत नहीं उठाई है,ताकि सीवर टैंकों में मरते गरीब सफाई कर्मचारियों के प्राणों की सुरक्षा करे !दूसरी तरफ भारत सरकार के ही शहरी कार्य राज्य मंत्री कौशल किशोर की ओर से लिखित रूप में उपलब्ध कराए गई जानकारी के अनुसार इसी देश में 2017 से 2021 तक कुल 330 मजदूरों की सीवर की सफाई के दौरान जान गई ! इन पांच साल में 2019 के दौरान सीवर की सफाई करते हुए सबसे अधिक 116 मजदूरों की मौत हुई ! इस देश में सीवर में घुस कर काम करने वाले सफाई कर्मचारियों की सर्वाधिक मौत कथित योगी गोरखपुर मठ के मठाधीश मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश राज्य में 47 लोगों की मौत हुई है !

 विश्व का कथित इकलौता ‘भारत महान ‘ !

                हमारा देश कई मायनों में वास्तव में महान है ! मसलन विश्व में यह इकलौता देश है जहाँ एक मानव इस दुनिया में सबसे दुर्गंधयुक्त दूसरे मानव द्वारा किए गए मल को अपने सिर पर रखकर उसे फेंकने ले जाता है ! और दूसरी तरफ सरकार के क्रूर मंत्रियों की तरफ से अत्यंत बेशर्मी से यह घोर अमानवीय व घृणित बयान दे दिया जाता है कि ‘जिसका जो काम है,वह कर रहा है इसमें गलत क्या है ?’उसी प्रकार ‘सभी प्राणी एक ही भगवान की संतान हैं ‘ की दिन-रात माला जपने वाले देश में जातिगत घृणा इतनी चरम पर है कि कथित नीची जाति माने जाने वाले गरीब लोगों को पहले से पूर्णतः जानकारी होने के बावजूद भी कि इन सीवरों में जानलेवा गैसें भरी हो सकतीं हैं,फिर भी उन गरीबों को बगैर किसी प्राणरक्षक उपकरणों के उन जानलेवा सीवरों में उतार कर उनकी सरेआम हत्या कर दी जाती है और यह कह कर यहाँ के शहरों के नगर निगम और सरकारें अपना पल्ला झाड़ लेतीं हैं कि ‘उन मजदूरों को हमने नहीं ठेकेदारों ने सीवर में उतारा था ! ‘

  ‘भारत महान ‘में अभी भी 160000 दलित स्त्रियां सिर पर मैला ढोतीं हैं ! 

          इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र के आंकड़ों के अनुसार इस देश के 12 राज्यों में अपने सिर पर मैला ढोने वाले लोगों की संख्या अभी भी तिरपन  हजार दो सौ छत्तीस 53236 है,इसके अतिरिक्त कथित तौर पर विकसित माने जाने वाले राज्य जैसे राज्य गुजरात के साथउत्तर प्रदेश,बिहार और जम्मूकश्मीर जैसे राज्यों में एक लाख साठ हजार,160000 कथित नीची जाति की गरीब महिलाएं अपने सिर पर मैला ढोने का काम अभी भी कर रहीं हैं ! 2017 के सरकारी आँकड़ों के अनुसार पिछले पाँच सालों में इस देश के विभिन्न राज्यों की सरकारों और नगर निगमों ने 1470 और सिर्फ देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 74 सफाई कर्मी गरीब दलित लोगों की बाकायदा जहरीली गैसों से भरे सीवर टैंकों में बगैर किसी सुरक्षा उपकरण के असुरक्षित हालात में उतारकर हत्या की जा चुकी है !

 अत्याधुनिक लिफ्ट बनाने वाले देश में इंटर साफ करनेवाली मशीन क्यों नहीं ?

            यक्ष प्रश्न यह भी है कि इसी देश में बन रही 45 मंजिली गगनचुंबी इमारत के ऊपर सेकेण्डों में चढ़ने के लिए अत्याधुनिक लिफ्ट बनाने वाली तकनीक है परन्तु दूसरी तरफ दस फुट गहरे,बदबूदार गटर में जाकर उसको सफाई कर देने वाली ऑटोमैटिक सफाई करने वाली मशीन या Automatic Cleaning Machine क्यों नहीं बनाई जा रही है ?

 सैकड़ों सफाई कर्मचारियों की मौत पर स्वत :संज्ञान Self Cognition क्यों नहीं ?  

             सबसे आश्चर्यजनक बात एक और भी है कि यहाँ की न्यायपालिका के बात-बात पर स्वतःसंज्ञान या Self Cognition लेने वाले न्यायमूर्ति लोग भी इन सीवर टैंको में इन क्रूर और अमानवीय सरकारों द्वारा हजारों की संख्या में जानबूझकर इन कथित नीची और भारतीय समाज में अंत्यज कहे जाने वाले गरीब लोगों की सरेआम हत्या करने पर भी स्वतः संज्ञान या Self Cognition लेने वाले अपने त्रिनेत्र या ज्ञान चक्षु या Trinetra or Eye of Wisdom को बंद क्यों कर लेते हैं ? यह समझ से बाहर की चीज है ! 

 जातिवादी वैमनस्यता वाले देश में इंसानियत सिरे से गायब !

          जातिवादी संकीर्णता और वैमनस्यता में जकड़े इस देश की हकी़कत,वास्तविकता और कटुसच्चाई यह है कि यहाँ भाईचारा,चेतना और स्वतःसंज्ञान भी अपनी जातियों की भलाई करने तक ही सीमित है ! यहाँ पैसे की भी कोई कमी नहीं है,क्योंकि इसी देश में धार्मिक आधार पर धर्मभीरु हिन्दुओं के वोट की फसल काटने के लिए कुँभ जैसे धार्मिक मेले के लिए 42अरब रूपये या 4200,0000000 रूपये,लाखों पेड़ों की बलि चढा़कर,पर्यावरण की अपूरणीय क्षति और वन्य जीवों के जीवन के अमूल्य जीवन की घोर उपेक्षा करते हुए सभी मौसम में खुली रहने वाली कथित धर्मस्थलों को जोड़ने वाली कथित सभी मौसम में खुली रहनेवाली चार धाम सड़क योजना या All Weather Char Dham Road Scheme बनाने पर एक खरब बीस अरब रूपये या 12000,0000000 रूपये,सरदार सरोवर में हजारों किसानों की जमीन को डुबोकर सदा के लिए उनकी रोजीरोटी छीनकर एक अनावश्यक पटेल की मूर्ति बनाने में तीस अरब रूपये या 3000,0000000 रूपये और इसी देश में रेलों में शौचालयों तक में पशुओं की तरह ठूंस कर मजबूरन यात्रा करने वाले गरीबों के देश में बुलेट ट्रेन या Bullet Train के लिए 11खरब रूपये या 11000,0000000 रूपये खर्च करने वाली सरकार का आर्थिक बजट इन सीवर में मरने मरने वाले गरीबों के लिए उचित संसाधन बनाने में आर्थिक स्थिति खराब हो जायेगी ! हकीकत यह है कि गटर या सीवर में मरने वाले लोग इस जातिवादी देश के सबसे कथित निचली श्रेणी की जाति के अन्त्यज और अछूत लोग हैं,जिनके स्पर्थ करने मात्र से,परछाईं तक से कथित उच्च जातियों और उनके मंदिरों में बैठे देवी-देवताओं के कथित तौर पर अपवित्र हो जाने का गंभीर खतरा हमेशा बना रहता है ! 

 भारतीय सुप्रीमकोर्ट की तल्ख टिप्पणी भी बेअसर !

             इसीलिए भारतीय सुप्रीम कोर्ट को भारतीय समाज की मानसिकता पर यह कठोर टिप्पणी करनी पड़ी कि, ‘दुनिया के किसी देश में भी लोगों को गैस चैंबर में मरने के लिए नहीं भेजा जाता है ! सरकारें उन्हें मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर क्यों नहीं उपलब्ध करातीं ? जिस दौर में हर छोटे-मोटे काम तकनीकों पर आधारित हो गए हैं ,उसमें गंदगी और जहरीली गैसों से भरे सीवर में उतरने के वक्त भी किसी मजदूर को मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर मुहैया नहीं कराया जाता है तो यह अभाव का नहीं, घोर लापरवाही या अनदेखी का नतीजा है ! आखिर संबन्धित महकमों का आज भी यह रवैया क्यों बना हुआ है ? इस देश को आजाद हुए सत्तर साल से भी ज्यादा समय हो गया है,लेकिन हमारे यहाँ जाति के आधार पर अभी भी भेदभाव होता है ! संविधान में अस्पृश्यता समाप्त करने के बावजूद सफाईकर्मियों के साथ हाथ तक नहीं मिलाया जाता है ! ‘ सुप्रीमकोर्ट की यह तल्ख टिप्पणी भारतीय जातिवादी कुव्यवस्था पर एक करारा तमाचा है फिर भी यहाँ की जातिवादी घृणा और वैमनस्यता से सिसकते इस समाज और यहां की सरकारों के कर्णधारों के दिलोदिमाग पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता ! यही भारतीय समाज की कटु ,कठोर और नग्न सच्चाई भी है !

-निर्मल कुमार शर्मा ‘गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक,सामाजिक, राजनैतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर स्वतंत्र,निष्पक्ष,बेखौफ,आमजनहितैषी,न्यायोचित व समसामयिक लेखन,संपर्क-9910629632, ईमेल – nirmalkumarsharma3@gmail.com

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