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स्त्रियों में कीर्ति मैं हूँ

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डॉ. गीता 

     अगर स्त्री में भी परमात्मा की झलक पानी हो तो वो कहाँ पायी जा सकेगी? “कीर्ति” में.  “कीर्ति “ का स्त्री से क्या सम्बन्ध है और “कीर्ति” क्या है?

      स्त्री को हम जब भी देखते हैं खासकर आज के युग में तो स्त्री दिखाई नहीं पड़ती. सिर्फ वासना दिखाई पड़ती है. स्त्री को हम देखते ही एक वासना के विषय की तरह. एक ऑब्जेक्ट की तरह, स्त्री को हम देखते ही ऐसे हैं जैसे बस भोग्य है. जैसे उसका अपना कोई अर्थ अपना कोई अस्तित्व नहीं.

       स्त्री को भी निरंतर एक ही ख्याल बना रहता है, वो भोग्य होने का उसका चलना, उसका उठना, उसका बैठना, उसके वस्त्र सब जैसे पुरुष की वासना को उद्दिपीत करने के लिए चुने जाते है.

   चाहे स्त्री को इस बात की सचेतनता भी न हो consciousness भी न हो के वो जिन कपड़ो को पहन कर रास्ते पर निकली है वो धक्के खाने का आमन्त्रण भी है.

     शायद धक्का खाके, छेड़े जाने वो नाराज भी हो. शायद वो चीख पुकार भी मचाये, शायद रोष भी जाहिर करे. लेकिन उसे ख्याल न आये कि इसमें उसका भी इतना ही हाथ है जितना धक्का मारने वाले का है.

      उसके वस्त्र उसका ढंग, उसके शरीर को सजाने और श्रृंगार की व्यवस्था अपने लिए नहीं मालूम पड़ती किसी और के लिए मालूम पड़ती है. इसलिए उसी स्त्री को घर में देखे उसके पति के सामने तब उसे देखकर विराग पैदा होगा. उसी स्त्री को भीड़ में देखें, तब उसे देखकर राग पैदा होगा.

      पति इसीलिए तो विरक्त हो जाते है. स्त्रियां उनको जिस रूप में दिखाई देती हैं, कम से कम उनकी स्त्रियां, पडोसी की स्त्रियों में आकर्षण बना रहता है.

 जब स्त्री भीड़ में निकलती है तब उसका दृष्टिकोण स्वयं को कामवासना का विषय मानकर चलने का होता है और दूसरे पुरुष भी उसको यही मानकर चलते है।

     “कीर्ति” का अर्थ है जिस स्त्री में ऐसी दृष्टि न हो, जिसको अंग्रेजी में कहते है “ऑनर”, जिसे उर्दू में कहते है “इज्जत”. “कीर्ति” का अर्थ है ऐसी स्त्री जो अपने को वासना का विषय मानकर नहीं जीती, जिसके व्यक्तित्व से वासना की झंकार नहीं निकलती.

     तब स्त्री को एक अनूठा सौन्दर्य उपलब्ध होता है वो सौंदर्य उसकी “कीर्ति ” है उसका यश है. आज वैसी स्त्री को खोजना बहुत मुश्किल पड़ेगा.

      कीर्ति एक आंतरिक गुण है, एक भीतरी सौन्दर्य, उस सौन्दर्य का नाम कीर्ति है जिसे देखकर वासना शांत हो उभरे नहीं. ये थोडा कठिन मामला है, लेकिन एक बात हम समझ सकते है अगर स्त्री वासना को उभार सकती है तो शांत क्यों नहीं कर सकती. जो भी उभार करने वाला बन सकता है, वो शांत करने वाला शामक भी बन सकता है।

अगर स्त्री अपने ढंगों से वासना को उत्तेजित करती है, प्रज्वलित करती है, तो अपने ढंगों से उस शांत भी कर दे सकती है.  वो जो शांत कर देने वाला सौन्दर्य है कि दूसरा व्यक्ति वासनातुर हो कर भी आ रहा हो. विक्षिप्त होकर भी आ रहा हो तो स्त्री की आँखों से उस सौन्दर्य का जो दर्शन है.

      उसके व्यक्तित्व से उसकी जो छाया और झलक है जो उसकी वासना पर पानी डाल दे, और आग बुझ जाए उसका नाम “कीर्ति” है.

     “कीर्ति” स्त्री के भीतर उस गुणवत्ता का नाम है जहाँ वासना पर पानी गिर जाता है. कीर्ति का अर्थ हुआ कि जिस स्त्री के पास बैठकर आपकी वासना तिरोहित हो जाए.  इसलिए हमने माँ को इतना मूल्य दिया, कीर्ति के कारण माँ को हमने इतना मूल्य दिया, मातृत्व को इतना मूल्य दिया, पुराने ऋषियो ने आशीर्वाद दिए है.

     बड़े अजीब आशीर्वाद कि दस तेरे पुत्र हो और अंत में तेरा पति तेरा ग्यारहवा पुत्र हो जाए. जब तक पति ही तेरा पुत्र न जाए तू जानना कि तूने स्त्री की परम गरिमा प्राप्त नहीं की.

      पति पुत्र हो जाए जिस आंतरिक गुण से जिस धर्म से उसका नाम “कीर्ति” है|

   कृष्ण कहते है स्त्रिओ में मैं “कीर्ति.” निश्चित ही बहुत दुर्लभ गुण है खोजना बहुत मुश्किल है , अभिनेताओं और अभिनेत्रियो के जगत में “कीर्ति” को खोजना बिलकुल मुश्किल है.

     मंच पर जो अभिनय कर रहे है वो तो कम् अभिनेता है उनकी नक़ल करने वाला जो बड़ा समाज है. इमीटेशन का वो सड़क पर चौराहों पर अभिनय कर रहे है. इस सदी में अगर सर्वाधिक किसी के गुणों को चोट पहुंची है तो वो स्त्री है. क्योंकि उसके किन गुणों का मूल्य है उसकी धारणा ही खो गयी है.

    “कीर्ति” का हम कभी सोचते भी नहीं होगे आप बाप होगे आपके घर में लड़की होगी आप ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि इस लड़की के जीवन में कभी कीर्ति का जन्म हो.

     आपने लड़की को जन्म दे दिया और आप उसमें अगर कीर्ति का जन्म नहीं दे पाए तो आप बाप नहीं है सिर्फ एक मशीन है उत्पादन की. लेकिन कीर्ति बड़ी कठिन बात है और गहरी साधना से ही उपलब्ध हो सकती है.

    जब किसी पुरुष में वासना तिरोहित होती है तो ब्रहमचर्य फलित होता है और जब किसी स्त्री में वासना तिरोहित होती है तो “कीर्ति” फलित होती है. “कीर्ति” काउंटर पार्ट है. स्त्री में कीर्ति का फूल लगता है फल लगता है जैसे पुरुष में ब्रहमचर्य का फूल लगता है। (चेतना विकास मिशन).

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