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मैंआज भी उसका हूं और वो मेरी

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चलूंगी न आपके साथ
वहां
जहां आसमान झुकता है ज़मीन पर
और हरेक मौसम रहता है
सूखे से महफ़ूज़
जहां बारिशों का डेरा है
और है जाड़ों की गुनगुनी धूप की छुअन

चलूंगी न आपके साथ
कहा था उसने

अपने अंदर समेटते हुए
कई जेठ की उदास दुपहरी
अपने आंचल के कोर में
गिरह बांधते हुए
कई अचल सिक्कों की नेमतें
कहा था उसने
अस्ताचल धूप की किरणों में
ढूंढते हुए सुबह

मैं भी एक धोखे को जीते हुए
दे रहा था धोखा
मालूम था मुझे मेरी सरहदें
लेकिन, मजबूर था
उल्फ़त के आगे

उसका चलने में
और मेरे चलने में फ़र्क़ था

और एक दिन
चली गई वो
मेरी सरहदों के पार

मुझे इंतज़ार तो है
लेकिन, यक़ीन नहीं है

फिर भी
इस कहानी का अंजाम
वैसा नहीं है
जो तुम्हारे ज़ेहन में है

मैं
आज भी उसका हूं
और वो मेरी

मेरी…

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