अग्नि आलोक

मैं जुर्माना नहीं दूंगा. जुर्माना देने का अर्थ होगा मैं अपनी गलती कबूल कर रहा हूं-हिमांशु कुमार

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चंपारण में गांधी जी से जज ने कहा – ‘तुम्हें सौ रुपयों के जुर्माने पर छोड़ा जाता है.’ गांधीजी ने कहा – ‘मैं जुर्माना नहीं दूंगा.’
कोर्ट ने मुझसे कहा – ‘पांच लाख जुर्माना दो. तुम्हारा जुर्म यह है कि तुमने आदिवासियों के लिए इंसाफ मांगा.’
मेरा जवाब है – मैं जुर्माना नहीं दूंगा. जुर्माना देने का अर्थ होगा मैं अपनी गलती कबूल कर रहा हूं. मैं दिल की गहराई से मानता हूं कि इंसाफ के लिए आवाज उठाना कोई जुर्म नहीं है. यह जुर्म हम बार-बार करेंगे.
गांधी ने जी ने जेल जाना शान की बात बना दी थी. लोग हंसते-हंसते जेल जाते थे. बुजुर्ग बच्चे नौजवान सभी जेल जाते थे लाठियां खाते थे लेकिन अंग्रेजों के सामने झुकते नहीं थे. गांधी जी ने कहा था आप हमें पीट सकते हैं, गोली से उड़ा सकते हैं, जेल में डाल सकते हैं लेकिन गुलाम बना कर नहीं रख सकते आप हमें डरा नहीं सकते.
यही हम मौजूदा सरकार से कहना चाहते हैं – आप हमें जान से मार सकते हैं जेल में डाल सकते हैं लेकिन आप हमें डरा नहीं सकते. हम सच्चाई और इंसाफ के लिए लगातार काम करते रहेंगे. आखरी सांस तक आवाज उठाते रहेंगे. ना हम चुप होंगे, न काम बंद करेंगे, ना आपसे डरेंगे.

– हिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक

गुजरात नरसंहार को लेकर मुकदमा लड़ रही तीस्ता सीतलवाड़ को जेल भेजकर मोदी का कुत्ता सुप्रीम कोर्ट का जज यह समझता है कि वह जुर्माना और जेल में डालकर सच की आवाज को दबा सकता है, यही कारण है कि 16 आदिवासियों का नरसंहार करने वाली यह सरकार अपने पालतू कुत्ते सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा हिमांशु कुमार जैसे प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक पर जुर्माना और जेल की डर दिखाकर वह यह सोच रही है कि वह सच को दबा देगी और लोगों का मूंह बंद कर देगी.

मोदी का यह सुप्रीम कोर्ट का जज ए. एम. खानविलकर और जे. बी. पारदीवाला ने छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के गोमपाड़ में साल 2009 में 16 आदिवासियों के मारे जाने के मामले की जांच की मांग की याचिका को खारिज कर दिया है और प्रसिद्ध गांधीवादी हिमांशु कुमार समेत 12 अन्य सहयोगियों पर इंसाफ मांगने की जुर्म पर 5 लाख रुपया का जुर्माना 4 सप्ताह के अंदर जमा करने का आदेश दिया है.

इतना ही नहीं मोदी के इस पालतू कटखना कुत्ते ने जुर्माना जमा न करने की सूरत में जेल भेजने और इस कुत्तों ने छत्तीसगढ़ सरकार को निर्देश दिया है कि धारा 211 के तहत उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करें. विदित हो कि 2009 में सुकमा ज़िले के गोमपाड़ में पुलिसिया गुंडों के एक गिरोह ने 16 आदिवासियों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दिया और और एक मासूम बच्चे के हाथ की सभी ऊंगलियां काट डाला.

हिमांशु कुमार लिखते हैं –

‘उपरोक्त इस विडियो में मुचाकी सुकड़ी है. जिस मामले को हम सुप्रीम कोर्ट में लेकर आए उसमें इनके पति की भी हत्या की गई थी. पुलिस ने लाश को दफना दिया था. कभी लाश नहीं दी. उस वक्त इनका बच्चा घुटने घुटने चलता था. दो हजार अट्ठारह में पुलिस ने उस बच्चे को गोली से मार दिया जो मात्र 10 साल का था. यह वीडियो 2 महीने पुराना है.

‘सुप्रीम कोर्ट कह रही है कि मैं झूठ बोल रहा हूं इसलिए मुझ पर 5 लाख का जुर्माना लगाओ. इस महिला के पति की मौत एक हकीकत है. इसके बच्चे की मौत एक हकीकत है. सुप्रीम कोर्ट की हिम्मत है तो जांच करवा कर दिखाए. मेरे ऊपर जुर्माना लगाकर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी कायरता और कमजोरी दिखाई है.

‘हमें एक हिम्मतवाला सुप्रीम कोर्ट चाहिए जो भारत के लोकतंत्र की रक्षा कर सके. लोगों की जान की हिफाजत कर सके. हम ऐसे सुप्रीम कोर्ट के लिए लगातार लड़ेंगे. मेरी लड़ाई खुद को बचाने की लड़ाई नहीं है. यह भारत की न्याय व्यवस्था को लोकतंत्र को और लोगों के मानव अधिकारों को बचाने की लड़ाई है.’

इस दुर्दांत मामले को लेकर हिमांशु कुमार समेत 12 अन्य लोगों ने इस न्यायालय में न्याय की उम्मीद लिये एक याचिका दायर किये, जिसकी सुनवाई टलते-टलते 13 साल बीत गये और अब सुप्रीम कोर्ट ने न्याय मांगने वालों को ही दोषी बता दिया और 16 आदिवासियों की हत्या और एक मासूम के हाथ की सभी ऊंगलियों को काटने वाले पुलिसिया गिरोह को भगवान बता दिया.

हिमांशु कुमार बताते हैं कि –

‘मारे गए 16 आदिवासियों जिसमें एक डेढ़ साल के बच्चे का हाथ काट दिया गया था, के लिए इंसाफ मांगने की वजह से आज सुप्रीम कोर्ट ने मेरे ऊपर 5 लाख का जुर्माना लगाया है और छत्तीसगढ़ सरकार से कहा है कि वह मेरे खिलाफ धारा 211 के अधीन मुकदमा दायर करे. मेरे पास 5 लाख तो क्या 5 हजार रुपया भी नहीं है. मेरा जेल जाना तय है.

अपराध यह कि इंसाफ क्यों मांगा ? ‘जिस धज से कोई मकतल को गया वो शान सलामत रहती है. इस जान की कोई बात नहीं, यह जान तो आनी जानी है.’

मोदी के इस सुप्रीम न्यायालय ने जिस प्रकार न्याय की मांग को अवैध बता कर न्यायालय के दरवाजे लोगों के लिए बंद कर दिया है उसने माओवादियों के हाथों को ही मजबूत करने का कार्य किया है. भगत सिंह ने काफी पहले ही बता दिया था कि ‘अदालतें ढकोसला है’, सुप्रीम कोर्ट के जजों ने यह साबित कर दिया है.

चूंकि पीडितों के ‘न्याय की उम्मीद का दरवाजा न्यायालय को’ इस शासक वर्ग ने बंद कर दिया है इसलिए अब इस बात की पूरी संभावना है कि अब पीड़ित अपने न्याय के लिए माओवादियों का दरवाजा खटखटायेंगे और पीड़ित न्याय को हथियारों के दम पर हासिल करेंगे. अब यही सच बचा है, सारे आवरण धुल गये हैं.

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