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गंगा पाप धोती तो नहाने वाले नष्ट हो जाते 

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  गंगा को भागीरथ नहीं लाये. गंगा मोक्षदायिनी नहीं है. कल के हमारे शोधलेख में आप प्रमाण सहित यह पढ़ चुके हैं.

      ~> डॉ. विकास मानव 

मुखं बिन्दुं कृत्वा कुकयुगमधस्तस्य तदाधो, हरार्धन ध्यायेद्यो हरामहिषी ते मन्मथकालम्.

स सद्यः संक्षोभं नयति वनिता इत्यतिलगु, त्रिलोकिमाप्यशु भ्रमयति रविन्दुस्तानयुगम्.

हमारी कोशिशें लगातार धरती नहीं छोड़नी पड़े इसकी होती हैं। गंगा नहायेंगे सिर्फ पाप धोएंगे, तीर्थ जाएंगे सिर्फ पाप धोएंगे। जब सभी पाप धुल गए, तो सिर्फ पुण्य ही शेष बचे हैं। तो फिर आपको मोक्ष नहीं मिल सकता है। 

    मोक्ष उसी को मिल सकता है जिसके पास न तो पाप हों न पुण्य हों। क्योंकि ईश्वर भारहीन है, ईश्वर आत्मा की परम शून्य अवस्था है। परमात्मा, ईश्वर, मोक्ष, ईश्वर होना, आकाश तत्व ये सभी एक ही अर्थ के शब्द हैं।      

     अतीत में ज्ञानियों द्वारा जरूरत के अनुसार आत्मा के मोक्ष होने के लिए ये प्रयोग किये गए हैं।

    ध्यान रहे, ब्रह्म, परम आत्मा की संतुलन अवस्था है यही कारण है वह हमेशा चिर स्थिर होती है। ईश्वर के पास न पाप हैं और न ही पुण्य हैं। अस्थिर होने का एक भी कारण नहीं है। जो लोग गंगा में पाप धोते हैं, ये धरती पकड़ लोग हैं, यहाँ से जाना ही नहीं चाहते हैं।

     बाते तो मोक्ष की ही करते हैं लेकिन किसी को मोक्ष चाहिए नहीं। फिर हम मरने के बाद इनकी हड्डियां गंगा पहुंचाते हैं। ये अलग बात है। 

*गंगा कितने पाप धोती है ?*

     यदि गंगा स्नान से सभी पाप धुल जाएं, तो सिर्फ पुण्य बचे, इससे तो पूरे शरीर में खिड़कियां-खिड़कियां ही बन जाएंगी। इसलिए कि तुम इतने पाप करते हो कि पूरी तरह पाप ही बन जाते हो. 

   इस ब्रह्मांड में एक भी जीव ऐसा नहीं है, जिसका शरीर सिर्फ पुण्य से बना हो। पाप और पुण्य ईंट, सीमेंट और रेत जैसे होते हैं। थोड़ा कम ज्यादा हो सकता है। जो रोगी है या फिर जो मरा है उसके शरीर में भी पुण्य मौजूद हैं। पशु, पक्षी, कीड़ा, कुत्ता, पेड़ इन सब में भी पुण्य होते हैं। आज तक कोई धर्मात्मा, परमात्मा, या महात्मा किसी के पाप नहीं काट पाया है।

भीष्म पितामह गंगा पुत्र थे। छह माह तीरों पर लटके रहे, घाव सड़ते रहे, और भी पता नहीं इन छह माह में कितनी दुर्दशा हुई होगी। 

     हमारे घाव पर तो एक मक्खी भी बैठ जाए तो कितनी तकलीफ होती है। भीष्म खुले आसमान के नीचे ठंड, गर्मी, बरसात में छह माह पड़े रहे। एक ऐसे पाप कर्म के लिए जो ठीक से उन्हें याद भी नहीं था। 

    हम अपने मस्तिष्क में उस घटना की कल्पना मात्र ही कर सकते है। भीष्म को इंतजार था सूर्य के उत्तरायण आने पर ही मोक्ष हो सकता है।

     गंगा पुत्र थे, गंगा ने क्यों नहीं धो दिए इनके सभी पाप। कर देतीं अपने बेटे को मुक्त ? अपना बेटा था कोई सौतेला तो नहीं था। हम सबका तो इतना करीब का कोई रिश्ता भी नहीं है गंगा से। लेकिन हम सब मरने के बाद हड्डियाँ गंगा में जरूर भेजते हैं मोक्ष के लिए।

      जिस समय भीष्म पितामह तीरों पर लेटे थे, घाव बह रहे थे, पीड़ा में थे| कृष्ण वहीं मौजूद थे। कृष्ण ने कहा भी था भीष्म से कि कुछ मांग लो। भीष्म पितामह ने कुछ नहीं मांगा था। क्योंकि भीष्म जानते थे, ये संसार तो दे सकते हैं, लेकिन मोक्ष नहीं दे सकते हैं। मोक्ष तो खुद कमाना पड़ता है.

     संसार मिलने का अर्थ है स्त्री, धन आदि, जो फिर से धरती से बांध देगा। मोक्ष का मार्ग बताया जा सकता है मोक्ष कभी किसी को दिया नहीं जा सकता है। मोक्ष का अर्थ होता है कुछ नहीं, क्योंकि ईश्वर कुछ नहीं ही है। तो मोक्ष में कुछ नहीं दिया जा सकता है। मोक्ष मिलना, जब कुछ भी नहीं मिला हो उसे कहते हैं मोक्ष का मिलना। 

     कर्म की पूंजी व्यक्ति की अपनी कमाई होती है। आपके कर्म है, आपने संग्रह किये हैं, आपको ही अपनी मर्जी से खर्च करने होंगे। जब सभी पूंजी समाप्त, तो हो गया मोक्ष। 

      सभी पूंजी का अर्थ है पाप और पुण्य दोनों समाप्त। ईश्वर के पास न पाप हैं और न ही पुण्य हैं, जब कुछ है ही नहीं तो जो बचा वो है शांति।

*एक और गंगा, जिसे वेदव्यास ने पैदा किया :*

   तातिल्लेखतनवीं तपनाशिवैश्वनरामयिं, निषाणां शाणाणामप्युपरि कमलानां तव कालम्।

महापद्मात्यं मृदितमालमयेन मनसा, महन्तः पश्यन्तो दधाति परमहलादलहरिम्।।

        महाभिषक ब्रह्मा के पार्षद है। पार्षद का अर्थ होता है ब्रह्मा के दरबार के सभासद हैं। गंगा ब्रह्म लोक जाती हैं। हवा चलती है, गंगा का साड़ी का पल्लू नीचे गिर जाता है, गंगा का सीना खुल जाता है। ब्रह्मा सहित सभी सभासद नजरें नीचे कर लेते हैं।लेकिन महाभिषक गंगा की छाती देख रहे हैं, गंगा महाभिषक को देख रही हैं।

       इस दृश्य की दिमाग में कल्पना करिए, ये दृश्य कई फिल्मों में देखा होगा। ब्रह्मा ने दोनों को श्राप दिया तुम दोनों का आचरण मनुष्यों जैसा है इस कारण से धरती पर जाकर मनुष्य बनकर जन्म लो। महाभिषक धरती पर प्रतीक के पुत्र शांतनु बनकर जन्म लेते हैं और गंगा, गंगा बनकर ही जन्म लेती हैं। 

    गाय घास खाती है और पौष्टिक दूध देती है, उसका गोबर भी बड़े काम आता है | मनुष्य हो अन्न खाते हो थोड़ा तो समझदारी की बातें कर लो। शांतनु द्वापर में गंगा के पति और भीष्म के पिता बनते हैं। शांतनु की मृत्यु भी हुई है, इस प्रकार से ये गंगा तो विधवा हो गईं।

      बड़ी अजीब सी बात है ब्रह्म लोक में हवा चलती है ! और ऐसी हवा चलती है, किस स्त्री का पल्लू नीचे गिर जाता है और ऐसी हवा चलती है कि ब्रह्मा के पार्षद और गंगा का चरित्र भी नीचे गिर जाता है। ये भी गौर करने जैसा है ये परम पावनी मोक्ष दायिनी गंगा हैं जो चलकर ब्रह्मा की सभा में गईं थीं।

      ये अलग बात है काशी में एक दशाश्वमेध घाट भी है जहां गंगा के ही तट पर ब्रह्मा घुटने के बल बैठे थे।वेद व्यास अभी जन्में हैं, कुछ हजार साल पहले, काशी हमेशा से है।

      कम से कम वेद व्यास की गंगा मोक्ष दायिनी गंगा तो नहीं ही है। अगर ये होती तो अपने बेटे भीष्म पितामह को क्यों मुक्त नहीं कर पाई ? 

      भीष्म ने खुद अपनी मां गंगा पर भरोसा नहीं किया। महाभारत से हर सनातनी परिचित है। भीष्म छह माह तीरों पर लेटे रहे। तीर उनके शरीर में घुसे हुए थे। शरीर से रक्त बहता रहा होगा, घाव सड़े भी होंगे। इस पूरे परिदृश्य को दिमाग में रखिए। हमारे किसी घाव पर एक मक्खी भी बैठ जाती है कितनी बेचैनी होती है ? 

      भीष्म अनगिनत घावों के साथ युद्ध मैदान के एक कोने में पड़े रहे होंगे। सूर्य के उत्तरायण आने का इंतजार करते हुए।  सूर्य जब उत्तरायण होगा तभी मुक्ति हो सकती है। कौन माँ होगी जो अपने बेटे को इस हालत में देखकर विचलित नहीं होगी ?

     लेकिन भीष्म पितामह ने छह माह से ज्यादा समय तक इस नरक देने वाली पीड़ा को भोगा। उन्होंने अपनी माँ पर भरोसा नहीं किया। अगर गंगा में मुक्ति देने की सामर्थ्य होती तो क्या वो अपने बेटे को मुक्त नहीं कर सकती थीं ? 

   भीष्म छह माह मुक्ति पाने के लिए ही तो इस नरक भोगते रहे थे। सूर्य उत्तरायण आएगा तब मुक्ति मिलेगी।

       वास्तव में इस दृष्टांत का जन्म काफी पहले जब मैं भारत भ्रमण कर रहा था, उस समय हुआ। एक गाँव में मैंने थोड़ा समय गुजारा, ये पूरा इलाका ब्राह्मण और राजपूत बाहुल्य है। एक महिला विधवा थी, उम्र भी बहुत नहीं थी। आर्थिक स्थिति भी बहुत खराब थी। गाँव में जब किसी के घर कोई शादी आदि का कार्यक्रम होता तो उसे काम के लिए बुला लिया जाता। बर्तन भांडे धोने आदि के काम के लिए, चार पाँच दिन कार्यक्रम के बाद कुछ रुपये दे दिए जाते थे |

     एक राजपूत परिवार में विवाह के बाद कोई कार्यक्रम था, शायद कथा थी। एक रिटायर्ड प्रिंसिपल मुझे भी ले गए, चलिए मानव जी | 

   कार्यक्रम शुरू ही हुआ था, वो विधवा महिला कुछ सामान लेकर आई। ब्राह्मण जो बुजुर्ग थे, उन्होंने टोका, शुभ कर्म में विधवा का होना ठीक नहीं है। निश्चय ही वो विधवा सामान रखकर चली जाती। लेकिन कोई कुछ समझता उससे पहले घर मालकिन ने उस विधवा को एक थप्पड़ जड़ दिया। घर के मालिक वहाँ मौजूद हैं, गाँव के कई बुजुर्ग लोग भी वहाँ थे।

     सभी के लिए बड़ी असहज स्थित बन गई। वो प्रिंसिपल साहब और कुछ बुजुर्ग वहाँ से उठकर जाने लगे। उसी समय पंडित जी ने हालात सम्हालते हुए कहा गंगा जल लाओ, थोड़ा गंगा जल छिड़क दो। मैंने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा, गंगा जल क्यों नर्मदा जल लाओ। गंगा तो खुद ही विधवा है। गंगा शांतनु की पत्नी रही हैं, शांतनु की मृत्यु के बाद गंगा तो विधवा हो गईं। 

    नर्मदा जल लाओ, नर्मदा पांच वर्षीय कन्या हैं और हमेशा अपने योग बल से पांच वर्षीय ही रहती है।  यदि नर्मदा जल घर में नहीं है तो, किसी को भेज दो, गाड़ी लेकर दो दिन में आ जाएगा फिर आगे का प्रोग्राम कर लेंगे।

      सभी का खून सूख गया। जो लोग जाने के लिए उठे थे वो फिर से बैठ गए। मैं थोड़ा नाराज हुआ जब एक महात्मा यहाँ मौजूद है तो क्यों गंगा-यमुना करना ? 

बिना गंगा जल के वो कार्यक्रम सम्पन्न हो गया। शाम को कुछ बुजुर्ग और वो पंडित जी, जहां मैं रहता था वहाँ आए। उन्होंने कहा आज आपने ऐसी बात कह दी, हमने कभी ऐसा सोचा ही नहीं था। आप बिल्कुल सही कह रहे हैं फिर गंगा को मुक्ति दायिनी क्यों कहते हैं ? 

      भागीरथ के साठ हजार पुरखे कपिल मुनि के श्राप के कारण प्रेत योनि को प्राप्त हो गए थे। उनकी मुक्ति के लिए भागीरथ तपस्या करके गंगा को धरती पर लाए थे। ध्यान रहे भागीरथ से दस पीढ़ी पहले, भागीरथ के ही एक पूर्वज हरिश्चंद्र गंगा के किनारे चांडाल का काम कर चुके है। 

       इसका अर्थ ये है भागीरथ के जन्म से पहले एक गंगा धरती पर मौजूद थी। वास्तव में ये वास्तविक गंगा है, जो सूर्य वंश के भी जन्म के पहले से ही धरती पर मौजूद है। हमारी वर्तमान गंगा तो सत्ययुग में भी मौजूद थी। सभी देवी देवता धरती पर ही मौजूद है। इन सभी के लिए किसी घोर तपस्या की जरूरत नहीं होती है। 

      भागीरथ की तीन पीढ़ियाँ गंगा को धरती पर उतारने में मर खप गईं थी। गंगा को धरती पर लाने के लिए इतनी घोर तपस्या की गई थी।गंगा को धरती पर लाने के लिए जब कोशिश की गई तो इसका अर्थ हुआ वो गंगा धरती पर नहीं रहती थीं। अन्य सभी देवता तो धरती पर ही रहते हैं। गंगा अवतरित हुई थी, इसका अर्थ हुआ उनका अवतरण सीधा ईश्वरीय सत्ता से हुआ था। 

     अवतार और जन्म दो शब्द हैं, जन्म योनि मार्ग से होता है। अवतार सीधा ईश्वर का होता है। गंगा अवतरित हुईं थीं। कपिल मुनि का श्राप इतना ज्यादा गहरा था, किसी देवी देवता या फिर उस समय तक कोई विधान लिखा ही नहीं गया था, जिससे श्राप से मुक्त हुआ जा सके। तो इन परिस्थितियों में सीधे ही आकाश से अर्थात सीधे ईश्वर से ही कुछ चाहिए था। 

     तो भागीरथ ने सीधे आकाश से ही गंगा का अवतरण करवाया था। इसीलिए कहा जाता है भागीरथ गंगा को धरती पर लाए थे, इसका अर्थ हुआ गंगा धरती पर नहीं रहती थी। लेकिन काशी की गंगा तो पहले से मौजूद थी | फिर?

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