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ख़बरों में झूठ चल सकता है तो विज्ञापन में सच क्यों चलना चाहिए ?

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रविश कुमार,

जब ख़बर में झूठ चल सकता है तो विज्ञापन में झूठ क्यों नहीं चल सकता ? जो समाज गोदी मीडिया के प्रोपेगैंडा को सच मान कर ख़बर देख रहा है उसे समाज विज्ञापन में झूठे प्रोपेगैंडा को सच मानना ही चाहिए. जो लोग यूपी सरकार के विज्ञापन की आलोचना कर रहे हैं उन्हें विज्ञापन की समझ नहीं है. बहुत बुरे दिन देखने के बाद भी लोगों का अच्छे दिन आएंगे पर यकीन बना हुआ है, यह विज्ञापन का जादू होता है.

जिस एजेंसी ने उत्तर प्रदेश के विज्ञापन में कोलकाता के फ्लाईओवर की तस्वीर का इस्तेमाल किया है, उसका पेमेंट बंद कर देना चाहिए लेकिन इसे मंज़ूरी देने वाले अफसर को प्रोन्नति दी जानी चाहिए. उसे विज्ञप्ति विभाग का प्रमुख बनाना चाहिए ताकि अख़बारों में छपने वाली विज्ञप्तियों में बदलाव आए. टेंडर के स्तर पर भी विकास का बवंडर रचा जा सके. विज्ञप्तियों को बड़ा करने से ख़बरों की जगह कम होगी और अख़बार वाले उसे ही ख़बर के रूप में पेश करेंगे कि टेंडर हो गया है. विकास भी हो जाएगा.

योगी जी को ट्रोल की परवाह नहीं करनी चाहिए. अगर बहुत टेंशन हो रहा है तो ट्विटर से ब्रेक लेकर कुछ दिनों के लिए इंस्टा पर चले जाना चाहिए. सारे लोग सोशल मीडिया पर यही करते हैं. यहां घिर जाते हैं तो वहां चले जाते हैं. इंस्टा पर बहुत सारे नेता अपने वीडियो में बैकग्राउंड म्यूज़िक लगाकर हीरो को विस्थापित कर रहे हैं.

विज्ञापन होता ही है आधा सच और आधा झूठ को सच में बदलने के लिए. इसमें कौन सी नई बात है. विज्ञापन ही तो था जिसने 2014 में ऐसे ऐसे सपने रचे जिनका पीछा आज तक लोग कर रहे हैं. ये जो थोड़े से लोग हैं जो आपके विज्ञापन में कोलकाता के फ्लाईओवर का फोटा निकाल कर मज़ाक उड़ा रहे हैं, उन्हें भारत और भारतीयता से कोई मतलब नहीं है.

मैंने हाल ही में योगी जी का एक वीडियो देखा है, जिसमें वे अफसरों से कह रहे हैं कि लटियन मीडिया की परवाह नहीं करते हैं. लटियन मीडिया को भारत और भारतीयता की समझ नहीं है.जबकि गोदी मीडिया ही लटियन मीडिया है. योगी जी ने लटियन के गोदी मीडिया को जो विज्ञापन दिया है, उसका पेमेंट रोक देना चाहिए. उनकी भारतीयता का इम्तहान लेना चाहिए. गोदी मीडिया बिना पैसे का ही विज्ञापन छापेगा. जब पुलिस और प्रत्यर्पण निदेशालय ED है तब विज्ञापन के पैसे क्यों दिए जा रहे हैं ? जो काम वे फ्री में कर सकते हैं, उसके लिए पैसे नहीं देने चाहिए.

इस प्रसंग से यह भी उजागर हुआ है कि गोदी मीडिया के संपादकों का स्तर कितना घटिया है. अख़बार के पहले पन्ने पर विज्ञापन छप रहा है, ज़रूर किसी की नज़र उसी वक्त गई होगी कि फ्लाईओवर तो कोलकाता की लगती है. इतने अख़बारों से कैसे चूक हो सकती है ? मेरी कांसपिरेसी थ्योरी यह है कि गोदी मीडिया के संपादकों ने जानबूझ कर छपने दिया ताकि योगी जी बदनाम हो जाएं.

हर अख़बार में छपने वाले विज्ञापन को कड़ी निगाह से परखा जाता है. पैसे का मामला होता है. कुछ गलत या कम छप गया तो पेमेंट नहीं मिलता है. अख़बार में ख़बर ग़लत छप जाती है, विज्ञापन ग़लत नहीं छपता है. योगी जी को अगर मुझ पर यकीन नहीं है तो किसी करीबी को बुला कर पूछ लेना चाहिए कि अख़बार में जब विज्ञापन छपता है तो उसे देखने की क्या व्यवस्था होती है. इसे व्यंग्य न समझें क्योंकि मैंने इन दिनों व्यंग्य लिखना कम कर दिया है.

2015 में पत्र सूचना कार्यालय PIB ने एक फोटो ट्विट किया था. प्रधानमंत्री मोदी चेन्नई के बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई सर्वेक्षण कर रहे थे. फोटोशॉप टेक्निक से शहर की कुछ और ही तस्वीर ट्विट कर दी गई. बाद में पकड़े जाने पर डिलिट कर दिया गया.

2017 में केंद्रीय गृह मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट में एक तस्वीर छप गई थी. लोग हैरान थे कि भारत पाकिस्तान सीमा को इस तरह रौशनी से सजा दिया गया है ! बाद में पता चला कि वह तस्वीर मोरक्को-स्पेन सीमा की थी. अब जब भारत के बोर्डर की जगह मोरक्को और स्पेन की सीमा की तस्वीर छप सकती है तो लखनऊ की जगह कोलकाता के फ्लाईओवर की तस्वीर क्यों नहीं छप सकती है ?

2017 में ही छत्तीसगढ़ के एक मंत्री राजेश मूणत ने वियतनाम के पुल की तस्वीर ट्विट कर दी थी. रमन सिंह सरकार के मंत्री राजेश मुनत ने रायगढ़ की केलो नदी पर शानदार पुल के बनने का दावा करते हुए जो फोटो ट्विट किया वो वियतनाम का निकला. ख़ूब वाहवाही हुई. जब सच्चाई सामने आई तो उन्होंने ट्विट डिलिट कर दिया.

फोटोशॉप के ज़रिए तस्वीरों का इस्तेमाल करना, पकड़ा जाना और फिर डिलिट करना विश्व गुरु भारत की अपनी ख़ास परंपरा है. गीता का उद्घोष है कि सत्य की विजय होती है. जब तक झूठ नहीं बोला जाएगा, सत्य की विजय किस चीज़ पर होगी ? तो सत्य की विजय होने के लिए किसी न किसी को झूठ बोलना ही होगा. जिस अफसर और एजेंसी ने ऐसा किया है उसने सत्य को विजयी होने का चांस दिया है. पकड़े जाने के बाद यही तो साबित हुआ है.

इन थोड़े से लोगों ने इस बात को लेकर योगी जी को ट्रोल नहीं किया कि उत्तर प्रदेश के अस्पतालों में बच्चों के लिए इलाज के लिए जगह नहीं है. बिना इलाज के बच्चे मर रहे हैं. हिन्दी अख़बारों के भीतरी पन्नों पर ऐसी तस्वीरें छपी हैं. ये थोड़े से लोग चाहते तो इस सच को उजागर करते लेकिन उन्हें सकारात्मक भूमिका निभानी नहीं आती. जिस दौर में ख़बरों में पढ़ने के लिए कुछ नहीं है, उस दौर में ये लोग विज्ञापन को गंभीरता से पढ़ रहे हैं.

योगी सरकार को मेरा सुझाव है कि विज्ञापन के लिए गोदी मीडिया को पैसे नहीं दिए जाने चाहिए. दूसरा कोलकाता की जगह मोरक्को, ढाका, क्योटो, कहीं की भी तस्वीर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. किसी अख़बार के संपादक की हिम्मत नहीं है कि विज्ञापन की सच्चाई छाप दे. जनता को जागरुक करना इस वक्त पत्रकारिता का सबसे बड़ा अपराध है। ऐसे अपराधियों को पकड़ने के लिए आयकर विभाग काम कर ही रहा है.

ख़बरों की समाप्ति के बाद विज्ञापनों की बारी आनी ही चाहिए. पत्रकारिता का यह स्वर्णिम दौर है. जो पत्रकारिता नहीं करेगा उसे पत्रकारिता का मान सम्मान मिलेगा और जो करेगा उसे आयकर विभाग का सम्मन मिलेगा. डाक्टरी किए बिना आप डाक्टर नहीं हो सकते लेकिन पत्रकारिता किए बग़ैर आप पत्रकार हो सकते हैं. जनता पैसे देकर अख़बार ख़रीदेगी और चैनल के पैसे देगी.

नोट : इस लेख को नहीं समझने के लिए विशेष योग्यता की आवश्यकता है. हिन्दी प्रदेश का होना बहुत ज़रूरी है.

 ‘प्रतिभा एक डायरी’ से

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