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रोयें तो आंसू भी कम पड़ जाए : क्या राजनीतिक सरपरस्तों के खिलाफ हो सकेगी कार्यवाही

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जौरा-(जगदीश शुक्ला)– सन्नाटा तोड़ती एंबुलेंस के सायरन की आवाज बेशुमार आंसू अपनों से सदैब के लिए बिछड़ने गमजदा चीत्कार और गांव गलियों में पसरा सन्नाटा। इस सन्नाटे के बीच कब किसकी मौत की नई खबर फिर से इस सन्नाटे को तोड़ दे इस बात की दहशत अभी भी लोगों के जेहन में जिंदा है। जल स्तर पर जन सतह पर सवाल यह भी सिर उठा रहा है कि क्या महज आला अधिकारियों को बलि का बकरा बना कर पीड़ित परिवारों को इंसाफ दिया जा सकता है। लोगों का मानना है कि जब तक अवैध शराब शराब के कारोबारियों के राजनीतिक सरपरस्तों को कार्यवाही की जद में नहीं लिया जाता तब तक पीड़ित परिवारों के आंसू पौंछने का काम कदाचित अधूरा ही रहेगा।
छैरा गांव में अर्से से मौत का कारोबार कर रहे अबैध शराब विक्रेताओं ने गांव सहित अंचल भर के दर्जनों पीड़ित परिवारों की जिन्दगी में गम एवं आंसुओं का फलसफा दर्ज कर दिया है। अबैध जहरीली शराब का सेवन करने बालों की मौत का आकड़ा दो दर्जन को छू चुका है। इसके बाबजूद अभी प्रशासनिक अमला एवं पुलिस इस खौफनाक कारोबार के असल गुनहगार तक नहीं पहुंच सकी है। संदेह जताया जा रहा है कि कानून के लंबे हाथ मौत के कारोबार के असल गुनाहगारों की गिरेबान तक शायद ही पहुंच पाए। इसके पीछे तारक यही दिया जा रहा है के आखिर सियासत दारों से सीधे जुड़े इन चेहरों के खिलाफ कार्यवाही करने की हिमाकत आखिर कौन करेगा। वह भी तब जब मौत की संवेदनाओं के बीच सभी दलों के राजनेता बड़े हादसे के बावजूद राजनीतिक नफा नुकसान के गणित में उलझे हैं। आशंका यही है कि यह मामला भी अन्य मामलों की तरह राजनीतिक बयान बाजी जांच एवं अधिकारियों पर गाज गिरा कर निपट जाएगा। समय की गर्द जमते ही सब कुछ पहले जैसा ही हो जाएगा।फिर इस सबके बीच पीड़ित परिवारों को इंसाफ दिलाने का मामला लंबित रह जाएगा। जहरीली शराब का सर्वाधिक असर छैरा गांव के पास मानपुर गांव के लोगों ने भुगता है। जहरीली शराब के इस मातम में कई परिवारों की खुशियां छीनी हैं। कई मासूमों के सिर से सरपरस्ती की छांव उठ चुकी है। 27 वर्षीय दीपेश किरार की दास्तान भी कुछ ऐसी ही गमजदा है। मजदूरी कर अपना गुजारा कर रहे दीपेश किरार की 25 वर्षीय विधवा मनीषा का भविष्य क्या होगा यह कोई नहीं जानता। उसकी मासूम 3 वर्षीय बेटी अंशुका एवं दुधमुही पिया तो अभी सिर्फ अपनी तोतली जुबान से पापा शब्द ही निकाल पाती थी।दोनों बेटियों की मासूम आंखें अभी भी अपने पापा की राह देखती रहीं हैं। माना शराब पीना उनका गुनाह था लेकिन उनका या गुनाह इतना बड़ा भी नहीं कि जिसकी सजा मौत हो। मौत की पीड़ा का दंश झेल रहे अन्य परिवारों की दास्तान भी इससे जुदा नहीं है। कानून के लंबे कहे जाने वाले हाथ इस मामले के नस्ल गुनहगारों तक पहुंच सकेंगे इसमें भी सभी को संदेह हैं। अबैध शराब एवं जुए के कारोबार की इस प्रयोग स्थली पर सत्ताधीशों की यह मेहरबानी आखिर कब तक जारी रहेगी इस सवाल का स्पष्ट जवाब भी अभी घटना के चौथे दिन तक धुंध एवं कुंहासे से घिरा है। घटना के चार दिन बाद पुलिस अमले द्वारा गांव में मौजूद अवैध शराब की धरपकड़ करने के बजाय उस पर पर्दा डालने की कोशिश एवं घटना से पूर्व पुलिस विभाग के निकटस्थ एवं शीर्षस्थ अधिकारियों द्वारा कारोबार की पूरी जानकारी होने के बावजूद उसके खिलाफ प्रभावी कार्यवाही करनी से आखिर जिसने रोका था। सवाल का जवाब नहीं मिलने तक पीड़ित परिवारों को इंसाफ मिलने की उम्मीद बहुत कम ही है।

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