डॉ.अभिजित वैद्य
विगत कुछ वर्षों से विश्व पर अनेक आपत्तियाँ आ रही हैं l इनमें से कुछ आपत्तियाँ राजकीय अस्थैर्य, देश की
सत्ता पर आनेवाले हुक्मशाही विचारधारा तथा भ्रष्ट नेताओं के कारण तो कुछ आपत्तियाँ बढ़ती हुई दायी
प्रवृत्ति तथा धर्मांधता के कारण आ गई है l कुछ आपत्तियाँ पुतिन जैसे शासकों ने युक्रेन पर लाद देने से तो
कुछ वैश्विक गरमी के कारण आ रही है l विश्व को अब हमेशा अकाल, तूफान तथा बाढ़ का सामना करना
पड़ रहा है l इसके कारण लाखों लोग विस्थापित हो रहे हैं l इसका बहुत ही प्रतिकूल परिणाम विश्व की
आर्थिक व्यवस्था पर हो रहा है l पर्यावरण में परिवर्तन एक सबसे बड़ा संकट है, जिसका आकलन विश्व को
होकर उसपर मार्ग निकालने की सोच ही रहे थे तब कोरोना जैसी महामारी आकर टकराई l इस महामारी
ने कम-से-कम २ करोड़ लोगों की जान ली l आम जनता की जिंदगी की उथलपुथल हुई और विश्व के
करीबन चार-पांच करोड़ लोगों को निर्धन बनाया l वास्तव में कोविड आने से पहले विश्व की निर्धनता घट
रही है ऐसा नजर आ रहा था l विश्व की आर्थिक विषमता अब कम होगी ऐसी अपेक्षा लग रही थी l लेकिन
कोविड की महामारी आई और गत २५ वर्षों में पहली बार विश्व निर्धनता तीव्र गति से बढ़ने लगी ऐसा
दिखाई दिया l जीवनावश्यक चीजों के दाम बढ़ने लगे, शिक्षण, आरोग्य, कपड़ा, उपभोग्य चीजें तथा यात्रा
आदि सब महँगे होने लगे l विश्व में खास तौर पर गरीब देशों में भूखे लोगों की संख्या तीव्र गति से बढ़ने
लगी l करोडो लोग बेकार होने लगे l लोगों का जीना मुश्किल हो गया l
२०२२ में विश्व बैंक ने घोषित किया कि विश्व की ऊँची कोटि की गरीबी २०३० तक नष्ट करने का
उद्देशीय अब सफल नहीं होगा l विश्व की एक तिहाई अर्थव्यवस्था मंदी की ओर चलती रहेगी l विश्व के दस
देशों में से नौ देशों के मानवी विकास की गति विरुध्द दिशा से होने लगेगी, अनेक देश कंगाल होंगे l विश्व में
यह सब हो रहा है और दूसरी ओर विश्व की अमीरी शीघ्र गति से बढ़ रही है l लेकिन मजे की बात ऐसी है
की यह अमीरी दिनों दिन चुटकी भर अति अमीर लोगों के हाथो में जा रही है l महामारी आई और विश्व
की आर्थिक विषमता गहराई और बढ़ गई l बढ़ती हुई आर्थिक विषमता सामजिक विषमता भी बढ़ाती है
इसे हमें नहीं भूलना चाहिए l यह कड़वा सच ‘ऑक्सफॅम’ नामक संस्था द्वारा जनवरी-२०२३ में प्रसिध्द
किए हुए जागतिक अहवाल ने सामने लाया है । इसका उपहासात्मक शीर्षक है ‘सर्व्हाव्हल ऑफ़ दी रिचेस्ट’,
‘अमीरों का डटे रहना’ l अर्थात विश्व की इस महामारी में अमीर लोग कैसे डटे रहे? इस शीर्षक के नीचे
ऑक्सफॅम ने उपशीर्षक के रूप में उपाय भी बताया है ‘हाउ वी मस्ट टॅक्स दी सुपर रिच नाऊ टू फाइट
इनइक्वालिटी’, ‘विषमता के विरुध्द लड़ने के लिए अब हमें बड़े अमीरों पर किस तरह के लगान लगाने
चाहिए’ l
ऑक्सफॅम के विश्लेषण के अनुसार २०२० सालों से केवल एक प्रतिशत अति अमीर लोगों के पास विश्व की
दो तिहाई संपत्ति संकलित है l ९०% जनता में से एक व्यक्ति के पास जब एक डालर की संपत्ति जमा होती
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है तब विश्व के अरबों में से एक अरब व्यक्ति के पास १.७ मिलियन डॉलर्स अर्थात पौने चौदाह करोड़ रुपये
इतनी संपत्ति जमा होती है l पूरा विश्व महाभयंकर संकट का सामना कर रहा था l विश्व के ज्यादातर देश
लॉकडाउन से घिरे हुए थे l उद्योग-धंधे बंद थे, करोडो लोग बेरोजगार हो रहे थे l इस कालावधि में ऐसा
होने लगा l इसी दरमियान अनाज, जीवनावश्यक चीजें, ईंधन तथा दवाइयों के दाम बढ़ते रहे, महामारी
का सामना करने के लिए सरकार द्वारा फेका पैसा जो मूलतः जनता का है, और इनमें से होनेवाला मुनाफा
केवल अमीर लोगों के पास जाता रहा ऐसा चमत्कार होता रहा l अर्थात बढ़ती हुई संपदा अर्थशास्त्र के झूटे
‘पाझर सिधांत’, (ट्रिकल-डाउन थिअरी) के अनुसार नीचे-नीचे रिसती हुई जनता की और नहीं गई अपितु
ऊँपर चढ़कर अमीर लोगों के पास बडी मात्रा में संपादित होने लगी l संपत्ति की ऊँपरी दिशा की ओर
बढ़नेवाली यात्रा २०३० तक बड़े अमीरों को और अधिक अमीर बनाएगी और गरीबों को गरीबी की खाई
में ढकेल देकी l यह विषमता अनेक दृष्टी से विश्व को बन नहीं पडनेवली है l अतः संपदा की यह चढ़ रुक
जाना अत्यंत आवश्यक है l विश्व की इस भयानक स्थिति को सम्मुख रखकर ऑक्सफॅम शांत नहीं बैठे अपितु
उन्होंने इस अहवाल पर उपाय भी सुझाए है l ये उपाय कोनसे है? यह देखने से पहले ऑक्सफॅम के अहवाल
की भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में जो टिप्पणी की है उसे पढ़ना आवश्यक है l
मूलतः हमारा देश गत अनेक हजार वर्षों से सामाजिक एवं आर्थिक विषमता के कारण खोखला बना हुआ है
l कंपू अर्थव्यवस्था तथा क्रोनी कॅपॅटिलझम को सर पर बिठाकर आए हुए मोदीजी और उसमें उनकी इस
नीति की मदद हेतु आई हुए महामारी l २०१९ की महामारी के बाद अर्थव्यवस्था के निम्न स्तर के ५०
प्रतिशत लोगों की संपत्ति खरोंचकर लेने की गति अधिक बढ़ गई है l २०२० में ५०% लोगों के पास देश की
कुल संपदा से ३% से भी कम संपदा शेष रह गई l इसके विरुध्द उच्च स्तर के ३०% वर्ग कि ओर ९०% से
अधिक संपदा संपादित होने लगी l इसमें से ८०% संपत्ति उच्च स्तर के केवल १०% लोगों के हाथ में आ गई
l अर्थात देश की कुल संपत्ति की तुलना में ७२% संपत्ति उच्च स्तर के १०% लोगों के पास जमा हुई l इसमें
से ६२% संपदा उच्च वर्ग के ५% लोगों के पास तथा ४०.६% संपत्ति उच्च स्तर के अति अमीर लोगों के
हाथों में आ गई l विश्व के सबसे ज्यादा निर्धन करीबन २३ करोड़ लोग भारत में है l हमारे देश में २०२०
में १०२ अरबपति लोग थे l २०२२ में यह आँकड़ा १६६ तक पहुँच गया l भारत के १०० अति अमीर
लोगों के पास ५४.१२ लाख करोड़ रुपयों की संपत्ति है l इसमें से सबसे उच्च स्तर के १० लोगों के हाथों मे
२७.५२ लाख करोड़ रुपयों की संपदा है l इस १० अति अति अमीर लोगों की संपत्ति में २०२१ से ३२.८%
से वृध्दि हुई l निम्न स्तर के ज्यदातर लोगों को निर्धन बनाकर देश की संपदा में वृध्दि हो रही है l सुलतानी
पध्द्ती से की हुई नोटबंदी और स्वैरता से लागू किए हुए जीएसटी ने आम लोगों का जीवन बडी मात्रा में
कठिण कर दिया l और इसमें हररोज बढनेवाली महँगाई तथा बेरोजगारी की वृध्दि हो गई l
इस बढ़नेवाली भयानक विषमता को प्रतिबंध करने की पूरे विश्व को आवश्यकता है l विषमता को जन्म
देनेवाली किसी भी प्रकार की अर्थव्यवस्था निरोगी नहीं होती, स्वच्छ ही नहीं होती और नैतिक भी नहीं
होती l कोई भी अरबपति बेहद कष्ट या असीम बुध्दि से उकताई हुई संपत्ति से धनवान नहीं होता अपितु
राज्यव्यवस्था, अर्थव्यवस्था, कानून तथा प्रसिध्दि माध्यमों का इस्तेमाल करके अपनी संपत्ति बढाकर उच्च
स्तर पर जाता है l सत्ताधारी लोगों से मिलीभगत करके कानून को अंगूठे पर मारकर उसकी यात्रा होती है l
ऑक्सफॅम को और एक बात नजर आई l विश्व के पर्यावरण का नुकसान करने में महान अमीर लोगों का
सबसे बड़ा हाथ होता है l आम इन्सान की तुलना में अरबपति लोग करोडो गुना अधिक कार्बन पर्यावरण में
फ़ैलाने के लिए जिम्मेदार होते हैं l साथ ही ऐसे अमीर लोग पर्यावरण के बारे में न सोचते हुए केवल ज्यादा
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मुनाफा प्राप्त करने हेतु प्रदूषण को जिम्मेदार जो उद्योग है उसमें बडी मात्रा में निवेश करते हैं l अरबपतियों
का हमेशा बढ़नेवाली संपत्तियों की राशी एक निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया होती है l इस प्रक्रिया को कैसे
रोकना है इसपर गंभीरता से सोचने की पूरे विश्व को आवश्यकता आ पड़ी है l ऑक्सफॅम के मतानुसार इस
पर केवल एकमात्र ही उपाय है – बहुत बड़े अमीर लोगों पर मजबूत लगान लगाना l विश्व ने २०३० तक
इन अरबपतियों की संपदा एवं संख्या पचास प्रतिशत घटाने पर ध्यान देना चाहिए l इसके लिए सबसे पहले
विश्व की संपत्ति का ज्यादातर हिस्सा हथियानेवाले उच्च स्तर के १% लोगों पर तथा उनके उद्योगधंदे पर
लगान लगाना चाहिए l लेकिन पूरे विश्व में इसके विपरीत हो रहा है l आर्थिक सहयोग तथा विकास
संघटना इस जागतिक संघटना के जो ३८ देश हैं उसमें १९८० में अमीर लोगों पर जो ५८% लगान था वह
अब ४२% तक नीचे आ गया है l शेष १० देशों में वह ३१% है l उसमें ही १०० से अधिक देशों में
पूँजीवादी मुनाफे पर (कैपिटल गेन्स) लगान केवल १८% है वास्तव में उच्च स्तर के १% अमीर लोगों की
असली आय प्रत्यक्ष काम की अपेक्षा पूँजीवादी नफे में से आती है l विश्व के केवल तीन देश काम में से प्राप्त
नफे की अपेक्षा पूँजीवादी नफे पर ज्यादा लगान लगाते है l विश्व के अरबपति अत्यल्प लगान भरते हैं l
अरबपति इलॉन मस्क प्रत्यक्षरूप में ३.२% तो जेफ़ बेझोस १% से कम कर भरते हैं l विश्व के अनेक छोटे
व्यवसायिक ३०-४०% कर भर देते हैं l वास्तव में उच्च स्तर के १% लोगों पर कम-से-कम ६०% कर
लगाना चाहिए l संपत्ति कर तथा वारिस कर भी खास तौर पर गरीब देशों में बहुत ही कम मात्रा में लागु
किया जाता है l अत्यंत बड़े रईस लोगों की कर मात्रा केवल २ से ५% भी बढाई गई तो विश्व की आय में
प्रतिवर्ष १-७ ट्रिलियन डॉलर्स की वृध्दि होगी जिससे कम-से-कम २०० करोड़ लोग निर्धनता से बाहर आ
जाएँगे l
विश्व की इस पार्श्वभूमि पर भारत कि इसके बारे में क्या स्थिति है इसे देखना आवश्यक है l भारत की
गरीबी १९९१ के बाद कम होने लगी l २००४ से २०१० की कालावधि में नियोजन आयोग नुसार ग्रामीण
इलाके की गरीबी ४१.५% से ३३.८% तक तो शहरी इलाके की गरीबी २५.७% से २०.९% तक नीचे आ
गई l २०१० साल के बाद देश की निर्धनता में फिर से वृध्दि होनी लगी l २०२२ के जागतिक विषमता
अहवाल के अनुसार भारत विषमताग्रस्त देशों की सूची में ऊँचे स्थान पर है l देश की ७०% जनता आरोग्य,
पोषक आहार जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित है l हर साल देश के १.७ करोड़ लोगों की मृत्यु केवल
इसी कारण हो रहि है l वर्ष २०२० में देश के ५०% लोगों का उत्पन्न, राष्ट्रिय उत्पन्न की तुलना में १३%
था और उनके पास राष्ट्रिय संपत्ति का केवल ३% हिस्सा था l इस गरिबि की सबसे ज्यादा हानि महिलाओं
को – खासतौर पर निम्नवर्ग की महिलाओं को पहुँचती है l बेरोजगारी, दरिद्रता जैसी वजह से २०२१ में
प्रतिदिन ११५ मजदूर आत्महत्या करते थे l और उसी स्थति में निर्माण हुई महँगाई तथा बढ़नेवाली करोंकी
मात्रा में वृध्दि हो रही थी l यह सब हो रहा था और दूसरी ओर भारतीय उद्योगपति बहुत अमीर हो रहे थे l
गौतम अदानी की संपत्ति महामारी के दरमियान आठ गुना बढ़ गई l उसके बाद अक्तूबर २०२२ में यह
संपत्ति दुगुना होकर करीबन १०.९६ लाख करोड़ तक पहुँच गई और तीन दशक पूर्व स्कूटर पर घूमनेवाली
तथा केवल शालेय शिक्षा प्राप्त की हुई यह हस्ति विश्व की सबसे रईस हस्ति बन गई l अंबानी भी इसे
अपवाद नहीं है l पूनावाला समूह की संपदा २०२१ में ९१% से बढ़ गई l शिव नदार, राधाकृष्ण दमानी,
कुमार बिर्ला की भी संपत्ति २०% से बढ़ गई l भारत में केवल १२ महिलाएँ करोड़ों की मालकिन है l उन
सभी की कुल संपत्ति ३.८५ लाख करोड़ इतनी ही है जो १६६ भारतीय अरबपतियों की कुल संपत्ति की
तुलना में केवल 0.४% ही है l अमिरी में भी महिलाएँ पीछे ही हैं l भारतीय अमीर लोगों में आरोग्य क्षेत्र में
३२ करोड़पति व्यवसायिक हैं l
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जब यह सब हो रहा था तब सरकार क्या कर रही थी ? जब मोदीजी सत्ता में आएँ तब उनकी सरकार ने
आज तक बड़े रईस लोगों को १२ लाख करोड़ रुपयों की सहूलियत दी है l २०२०-२१ इस एक वर्ष में एक
लाख करोड़ रुपयों से अधिक सहूलियत की खैरात की गई l यह रक्कम इसके पूर सरकार ने गरीब लोगों के
लिए शुरू की हुई मनरेगा प्रावधान से अधिक है l भारत की निम्न स्तर की ५०% जनता उनकी उत्पन्न की
तुलना में १०% रईस लोगों की अपेक्षा छह गुना अप्रत्यक्ष रूप में कर भरती है l अन्न तथा अन्यान्य चीजों के
माध्यम से आनेवाले करों में से ६४.३% कर निम्न स्तर की ५०% जनता की ओर से इकठ्ठा होता है l इसी
वर्ग से करीबन दो तिहाई में से ४०% जनता की ओर से एक तिहाई और उच्च स्तर के १०% रईस लोगों से
केवल ३% से ४% जीएसटी देश की तिजोरी में जमा होता है l
यह कूटनीति रोकने का उपाय कौनसा है ? इसके लिए ऑक्सफॅमने फिर एकबार अति रईस लोगों पर बडी
मात्रा में कर लगाने का मार्ग सुझाया है l अरबपति लोगों पर केवल ३% संपदा कर लागू किया तो उसमें से
प्राप्त उत्पन्न राष्ट्रिय आरोग्य मिशन को तीन सालों तक राशी कि पूर्ति कर सकती है l अमीरी के सबसे ऊपर
जो १० अरबपति है उनपर ५% कर लगाया गया तो आदिवासियों के आरोग्य की पाँच साल तक प्रावधान
कर सकता है l गत कुछ दशक हम और देश की अनेक संघटनाएँ सार्वजनिक आरोग्य सेवा हेतु जीडीपी के
कम-से-कम ५% प्रावधान की माँग कर रही है l यह प्रवधान ३% तक बढ़ाने के लिए एक लाख करोड़ रुपयों
की आवश्यकता है l सबसे ऊँचे स्तर के १०० अरबपतियों पर केवल २% महसूल जारी करने से भी यह
सहज संभव हो सकता है l केंद्र सरकार पुरस्कृत शिक्षा योजना हेतु शिक्षण विभाग की ओर से २०२२-२३
के लिए ५८,५८५ करोड़ रुपयों की माँग की थी l प्रत्यक्षरूप में उनके हाथ में केवल ३७,३८३ करोड़ रुपए
ही मिल गए l सबसे रईस दस अरबपतियों पर केवल १% ज्यादा महसूल लागू किया तो कमी पूरी हो
सकती है l यही महसूल अगर ४% किया गया तो दो सालों के लिए पूरी रकम का प्रावधान हो सकता है l
देश के जो बच्चे शालाबाह्य हैं अगर उन्हें फिरसे शिक्षणव्यवस्था में सम्मिलित कराकर उन्हें उच्च स्तर की
शिक्षा देनी होगी तो १.४ लाख करोड़ रुपयों की आवश्यकता है । उच्च स्तर के १०० अरबपतियों पर २.५%
या १० अरबपतियों पर ५% कर लागू किया तो यह संभव है l नई राष्ट्रिय शिक्षा नीति प्रस्ताव में स्कूली
बच्चों के लिए नाश्ता तथा दोपहर का भोजन देने की सूचना की थी l केंद्र ने इस सूचना को पूरी तरह से
दुतकार दिया l इसके लिए आवश्यक ३१,१५१ करोड़ रूपए उपलब्ध करना संभव नहीं ऐसा सरकार की
ओर स्पष्ट किया गया l १०० अरबपतियों पर २% महसूल लागू किया तो प्राप्त रक्कम में से यह योजना ३.५
साल तक जारी रहेगी l प्राथमिक शालाओं में शिक्षकों के रिक्त स्थानों की पूर्ति करने के लिए २०४०.३
करोड़ रूपयों की आवश्यकता है l १० अरबपतियों पर १% कर लागू किया तो १३ वर्षों का या १००
अरबपतियों पर १% महसूल लागू किया तो २६ सालों के लिए आर्थिक प्रावधान हो सकता है l
ऑक्सफॅम ने पूरा अभ्यास करके सादर किया हुआ यह भी वास्तव में हडबडा करनेवाला है l १४० करोड़
लोगों के इस देश में केवल १०० अरबपतियों पर अत्यल्प मात्रा में कर लागू किया तो देश की अनेक मूलभूत
समस्याएँ आसानी से सुलझ सकती है l इसलिए शासन की ओर से अति अमीर लोगों पर केवल १% कर
लागू करना चाहिए l इसमें अरबपति, करोडपति तथा लखपति ऐसा अधोगामी क्रम लगा सकते हैं l दूसरी
ओर गरीबों पर महसूल जो बोझ लगाया है उसे भी हलका करना आवश्यक है l खास तौर पर जीवनावश्यक
तथा शिक्षा से संबंधित चीजों का जीएसटी कम करना चाहिए l उसकी भरपाई दूसरी ओर सुख-आराम जैसी
चीजों पर कर बढ़ाकर कर सकते हैं l जो कर सकते है उसे करना चाहिए था लेकिन प्रत्यक्ष रूप में शासन
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अदानी नामक भस्मक रोगी सैतान को जन्म देने में व्यस्त थी l सत्ता पर आने के लिए जिन लोगोंकी हवाई
जहाजों का इस्तेमाल किया गया उन व्यक्तियों की एहसानों की अदानी केवल मूल धन से दुगुना नहीं अपितु
करोडो गुना करना आवश्यक है l सत्ता एवं संपत्ति की जब अभद्र युति होती तब अदानी जैसे उद्योगपति पैदा
होते हैं l लेकिन सत्ता की सीढी बननेवाला यह उद्योगपति यह सीढी चढ़कर सिंहासन पर विराजमान
शहंशाह की मदद से नैतिकता के सारे बंधन उठाकर फेंक देता है और बेफिक्री से संपत्ति के महल खड़े करते हैं
l ऐसी इमारत की बुनियाद कभी भी मेहनत, सचोटी या विश्व का परिवर्तन करनेवाला संशोधन नहीं होता l
ऐसी इमारत खड़ी करते समय यह धनवान राष्ट्र की अर्थात जनता की संपत्ति ‘ओम स्वाहा’ करता रहता है l
सत्ताधारी लोग भी इस यज्ञ में जनता की आहुति देते रहते हैं l सत्ता एवं संपत्ति हाथ में हाथ मिलाकर एक
दूसरे को सँभालकर आगे चलकर रहते हैं l लेकिन इस बात को हमें नहीं भूलाना चाहिए की संपदा एवं सत्ता
के ऐसे महलों की बुनियाद कभी भी टूट सकती है l हमारे देश में ऐसा ही हुआ l बीबीसी के वृत्त-चित्र से
सत्ता तथा हिंडेनबर्ग के अहवाल से इमारत में बारूद भर दिया l असीम सत्ता हाथ में होने के कारण बीबीसी
के वृत्त-चित्र पर पाबंदी लगाना संभव हुआ l हिंडेनबर्ग अहवाल को रोकना असंभव था l एक छोटी – पाँच
लोगों की कंपनी ने दो साल निरंतर प्रयास करके पूरे विश्व को हैरान करनेवाली अदानी की जड़ उखाड़ दी
और केवल तीन साल में विश्व के दूसरे स्थान पर रईस बने इस व्यक्ति का साम्राज्य पत्तों की महल की तरह
ढह गया l अदानी के सार्वभौम सत्ता को सुरुंग लगानेवाला हिंडेनबर्ग अहवाल जिस कंपनी ने प्रसिद्ध किया
उस कंपनी का युवा संपादक था नॅट अँडरसन l नॅट अँडरसन ने कनेक्टिकट विश्वविद्यालय से अंतराष्ट्रीय
व्यवसाय की पदवी प्राप्त की l जन्म से ज्यू तथा बचपन से ही बागी l बचपन से ही उसने कर्मठ ज्यू धर्मगुरुओं
को यह समझाने का प्रयास किया था कि बुक ऑफ़ जेनेसिस आधुनिक सिध्दांत के अनुसार कालबाह्य है l
२००४-०५ में उसने इस्त्रायल की रुग्णवाहिका की प्रणाली में काम किया l तदनंतर उसने अनेक निवेशी
कंपनियों में अनुभव प्राप्त किया और ‘क्लॅरिटी स्प्रिंग’ नामक अर्थसेवा देनेवाली कंपनी अमरिका में स्थापित
की l २०१८ में उन्होंने अमरिका में ही ‘हिंडेनबर्ग संशोधन’ संस्था स्थापित की l अर्थविश्व में जो गोलमाल
होता है उसकी खोज करके उसपर गहरा और निष्पक्ष संशोधन करना यह इस कंपनी की विशेषता है l यह
कंपनी पूरे विश्व में प्रसिध्द हुई इसलिए की इस कंपनी द्वारा अमेरिकन वाहन सम्राट कंपनी निकोल का
पर्दाफाश करने के कारण l निकोला कंपनी तंत्र के बारे में झूठा दावा कर रही है ऐसा हिंडेनबर्ग ने सम्मुख
रखा l अमरिका ने इन आरापों की जाँच की ओर सच साबित होने पर निकोला का संस्थापक ट्रेव्होर मिल्टन
को धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया l अमरिका स्थित विन्स फायनान्स कंपनी की चीन में जो संलग्न
कम्पनियाँ हैं उनकी मक्कारिया सबके सम्मुख रखी l जीनियस ब्रांडस, चायना मेटल रिसोर्सेस युटीलायझेशन,
एससी वॉर्क्स, प्रेडिकटीव्ह टेक्नॉलॉजी ग्रुप, एचएफ फूड्स, स्माइल डायरेक्ट क्लब, ब्लूम एनर्जी, यांगत्झे
रिव्हर पोर्ट अँड लॉजिस्टिक्स, हेल्थ सायन्सेस, अॅफ्रिया, रायट ब्लॉकचेन्स, पोलॅरिटी टीइ, ऑफ्को हेल्थ्स,
पर्शिंग गोल्ड जैसी अनेक बडी अनेक कंपनियों के काले व्यवहारों के बारे में चालाकी के बारे में आवाज उठाई
और इसमें से कुछ ध्वस्त हो गई या उन्हें खुलेआम माफ़ी माँगनी पड़ी और संचालकों को इस्तीफे देने पड़े l
इनमें से बहुत सारी कंपनियाँ अमरिकन हैं और अँडरसन स्वयं अमरिकन नागरिक है l ऐसा होने पर भी
अमरिकन जनता ने उनपर राष्ट्रद्रोह का आरोप नहीं लगाया था या किसी उद्योग समूह ने देश के पीछे छुपने
की बेशरमी नहीं की l हिंडेनबर्ग का कहना है की अर्थविश्व में आनेवाली अनेक विपत्तियाँ मानवनिर्मित होती
है l इसके पीछे अनेक बड़े तथा सुप्रतिष्ठ लोग होते है, जो वास्तव में गुनाहगार होते हैं l सत्ता का वरदहस्त,
संपदा की मदद से संविधान, प्रशासन, न्यायव्यवस्था तथा प्रसार माध्यमों को झुकाने की प्राप्त ताकत और
इन सभी माध्यम से प्राप्त प्रसिध्दि का कवच के कारण ये लोग समाज को, देश को तथा जनता को फँसाकर
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बड़े हो जाते हैं l ऐसे गुनाहगारों की खोज करके उनका पर्दाफाश कराना और अर्थविश्व पर गिर पड़नेवाली
आपत्ति दूर करना हिंडेनबर्ग का मुख्य उद्देश हैं l
जर्मन हवाई कंपनी ने गुब्बारे में हवा भरने के तंत्रज्ञान का उपयोग करके एक बड़ा हवाई जहाज
तैयार किया l जर्मनी के पूर्व राष्ट्रप्रमुख सेनानी पॉल हिंडेनबर्ग का नाम इस हवाई जहाज को दिया गया l
१९३६ में इस बिरले हवाई जहाज ने यात्रियों को लेकर अमेरिका के कुल १० चक्कर काँटे l ६ मई १९३७
को इस हवाई जहाज ने जर्मनी के फ्रँकफरट से ३६ यात्रियों तथा ६१ कर्मचारियों को लेकर हवा में उडान
भरी और अमरिका के न्यू जर्सी में एक हवाई अड्डे पर उतरते समय उसे आग लग गई और गिर गया l इस
हादसे में कुल ३५ लोगों की मृत्यु हो गई l जो जीवित बचे वे पूरी तरह से जल चुके थे l यह हादसा लूटपाट
की वजह से हुआ ऐसा कंपनी का दावा था लेकिन यह कभी भी सिद्ध नहीं हुआ l हवा मदद से उड़नेवाला
गुब्बारे जैसा यह यात्रियों का हवाई जहाज यह कल्पना भले ही बहुत अच्छी लगती है लेकिन इसका
तंत्रज्ञान अभी भी परिपक्व नहीं इसकी रचना भी सदोष है ऐसा इशारा अनेक लोगोंने दिया था फिर भी
लोगों की जान धोखे में डालकर यह कंपनी उसका हवाई जहाज ऊँची-ऊँची जगहों पर उडान लगाती रही
और अनेक लोगों की जान लेकर ही रही l
हिंडेनबर्ग हवाई यात्री गुब्बारे की घटना मानवी समाज को एक सबक है l अतः नॅट अँडरसनने अपनी कंपनी
का नाम ‘हिंडेनबर्ग’ ऐसा रखा l मानवनिर्मित दुर्घटना की कडवी याद और उसे टालने का प्रयास l उसने
केवल अपना लक्ष्य अर्थविश्व किया l अदानी नामक अल्पशिक्षित उद्योग की ज्यादा जानकारी जिसे नहीं
ऐसी व्यक्ति का भाग्य मोदीजी गुजरात के मुख्यमंत्री होने पर खुल गया और वे देश के प्रधानमंत्री बनने पर
और बडी मात्रा में खुल गया l पूरा विश्व तथा हमारा देश कोविड की महामारी का सामना कर रहा था तब
गत तीन वर्षों में इस इन्सान की संपत्ति ८०% बढ़कर वह देश का नहीं अपितु विश्व की दूसरे स्थान की अति
रईस हस्ति बन गई l जब देश लॉकडाउन में था तब यह इन्सान सार्वजनिक संपत्ति का एक-एक घटक –
बंदरगाह, हवाईअड्डा, रेल आदि मामूली दाम में खरीद रहा था l विविध बैंक उसे बहुत ही कम ब्याजदरों से
हजारों करोड़ रुपयों का कर्ज देती थी l उसकी हजारों-करोडो रुपयों के कर्ज माफ़ किए जाते थे l यह केवल
अदानी के बारे में नहीं होता था l इसके साथ साथ गत अनेक वर्षों में देश की जनता निर्धन हो रही थी l
तथा देश की कुल संपदा अदानी, अंबानी, तथा जिंदाल आदि चुटकीभर उद्योगपतियों के हाथ में इकठ्ठा हो
रही थी l लेकिन उसमें भी अदानी का हवाईजहाज बहुत ही ऊँची उडान ले रहा था l अत्यल्प कालावधि में
किसी व्यक्ति के हाथों में आने वाली संपदा उचित मार्ग से आने की संभावना बहुत ही कम होती है l
हिंडेनबर्ग का ध्यान शायद इसी कारण अदानी की ओर खिंचा गया होगा l दो साल के संशोधन के बाद
हिंडेनबर्ग ने यह अहवाल २४ जनवरी २०२३ को जाहिर किया और मानो बम ही गिरा l
कुल १७५ पन्नों के इस अहवाल पर नजर डाली तो इसके पीछे कितनी मेहनत है इसका अंदाजा आता है l
इस अहवाल के केवल सारांक्ष पर ही ध्यान दिया तो अदानी के अर्थ साम्राज्य की अनेक बातों का पर्दाफाश
होता है l गत अनेक दशकों से अदानी समूह शेअर बाजार के साथ खिलवाड़ कर रहा है और बदमाशी कर
रहा है l अदानी समूह के संस्थापक अध्यक्ष मोहोदय की संपदा करीबन १२० बिलिय डॉलर्स है और गत
तीन सालों में इस संपदा में १०० बिलियन डॉलर्स की वृध्दि हुई है l अदानी समूह की सात कंपनीयों की
शेअर्स में ८१९% से बढ़ोत्तरी होने के कारण यह सब हुआ है l वास्तव में ये कंपनियाँ जीतनी दिखाई गई
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उसकी अपेक्षा ८५% से कम है l इन सभी कंपनियों ने चाहे जैसे कर्ज उठाएँ है l इसके लिए बढ़कर दिखाए
हुए खुद के शेअर्स हामी के रूप में दिखाए हैं l इस सात में से पाँच कंपनियों की कुल संपत्ति की अपेक्षा कर्ज
का मूल्य अधिक है l अदानी के समूह के २२ संचालकों में से ८ सदस्य उनके परिवार के ही है l १७
बिलियन डॉलर्स के आर्थिक घोटाले के मामले में अदानी समूह की सरकार की ओर से चार बार पूछताछ हुई
है l अदानी परिवार के सदस्यों ने मॉरिशस, अरब अमिरात, कॅरिबियन द्वीप समूह जैसे करआश्रय ( टैक्स
हॅवन ) देशों में बोगस कंपनियाँ ( शेल कंपनीज ) खोल दी है l इन बोगस कंपनियों द्वारा झूठे कारोबार
दिखाई देते हैं और यहाँ का पैसा वहाँ लगा जा रहा है l गौतम अदानी के कनिष्ठ बंधू राजेश अदानी पर
केंद्रीय महसूल विभाग की ओर से २००४-०५ में हीरे व्यापार की हेराफेरी के मामले में आरोप लगाए थे l
इसके लिए उसे दुबारा गिरफ्तार ही किया था l यह व्यक्ति आज अदानी समूह की कार्यकारी संचालक है l
गौतम अदानी का साला समीर व्होरा को भी हीरे व्यापार के मामले में दोषी ठहराया था जो आज अदानी
के ऑस्ट्रेलिया शाखा का प्रमुख है l गौतम अदानी का ज्येष्ठ भाई विनोद अदानी पर विदेश में हेराफेरी करने
के आरोप केंद्रीय महसूल विभाग ने कईबार किए हैं l मॉरिशस में अदानी समूह से संलग्न ऐसी ३८ कंपनियाँ
यह आदमी नियंत्रित करता है l विनोद अदानी ने सायप्रस, अरब अमिरात, सिंगापूर तथा अनेक कॅरबियन
द्वीप में अपने पाँव फैलाए हैं l ये कंपनियाँ कागज पर काम करती है l उनके पास कर्मचारी नहीं है, दूरभाष
संच नहीं है तथा ऑनलाईन काम करने की सुविधा नहीं l ऐसा होने पर भी उनकी उथलपुथल करोडो रुपयों
की है l ये सभी कंपनियाँ अदानी समूह के सात पंजीकृत कंपनियों के साथ व्यवहार करती हैं l इसके इलारा
जैसी कंपनियों के संबंध केतन पारेख जैसे फरार आर्थिक गुनाहगार के साथ है l मोंटेरो जैसी कंपनी के संबंध
फरार हीरे व्यापारी के साथ है जिसके बेटे से विनोद अदानी के बेटी का विवाह हुआ l इस कंपनी ने अदानी
पॉवर्स नामक कंपनी में बहुत बड़ा निवेश किया है l सायप्रस स्थित कंपनी न्यू लिईना इन्वेस्टमेंट इस कंपनी
की ओर अदानी ग्रीन एनर्जी के ९५% शेअर्स है l न्यू लिईना संचालित की जाती है अमिकॉर्प कंपनी की ओर
से इस कंपनी ने अदानी को विदेश में अनेक बोगस कंपनियाँ शुरू करने के लिए मदद की है l यह कंपनी विश्व
के अनेक छोटे-मोटे घोटाले के लिए जिम्मेदार है l इस कंपनी के अदानी जैसे अनेक ग्राहक हैं l लोगों का पैसा
म्युच्युअल फंड जैसे फंड में जमा करके उसे हड़प करने का बड़ा काम यह कंपनी करती है l किसी धंधे के
निवेश का प्रवाह ‘डिलिव्हरी व्हॉल्यूम’ दिखता है l हिंडेनबर्ग के अनुसार अदानी के समूह के अनेक कंपनियों
की विदेश की शेल कंपनियों में निवेश ३०-४०% है l इसका अर्थ ऐसा है की अदानी समूह शेअर्स की बडी
मात्रा में हेराफेरी कर रहा है l केतन पारेख को मदद करने का आरोप अदानी पर २००७ में सेबी ने रखा था
l अदानी की स्वीय १४ संस्थाओं ने केतन पारेख नियंत्रित संस्थाओं में पैसा निवेश किया है यह दिखा दिया l
इसपर अदानी ने ऐसा खुलासा किया की मुंडा बंदर खरीद हेतु किया है l हिंडेनबर्ग को अदानी के असंख्य
व्यवहारों में अनेक बदमाशी, चोरी-छिपे और भारतीय संविधान का उलंघन नजर आया l इस अहवाल के
अंत में हिंडेनबर्ग अदानी को ८८ सवाल किए हैं l इस अहवाल में लिखा है की, भारत अनेक बुद्धिमान
व्यावसायिक, अभियांत्रिकी, और तंत्रज्ञ का देश है l भारत में जागतिक आर्थिक महासत्ता बनने की सुप्त शक्ति
है l लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था को इस तरह की उद्योगों ने गंभीर क्षति पहुँचाई है l भारत में
राज्यकर्ताओं तथा ऐसे शासन समर्थक उद्योगपतियों पर की हुई आलोचना बर्दाश्त नहीं कि जाती l
आलोचना करनेवाला सलाखों के पीछे चला जाता है या मारा भी जाता है l अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य की तबाही
होते समय ऐसे उद्योगपतियों के घोटालें की ओर देश का ध्यान नहीं l (यहाँ हिंदू-मुस्लिम द्वेष के बारे में
सुलगाई चिनगारी का भी उल्लेख चाहिए था ) विश्व के पूँजीवादी घोटालें में से यह एक सबसे बड़ा घोटाला
है l अदानी विश्व के इतिहास का बहुत बड़ा फरेबी का उद्योग गत अनेक दशकों से चला रहे हैं l
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यह अहवाल प्रसिध्द होने पर अदानी की इमारत गिरना शुरू हो गया l इसके कारण अदानी समूह में पैसा
निवेश की हुई जनता, स्टेट बैंक, एलआयसी जैसी सार्वजनिक संस्था तथा उन्होंने खरीद किए हुए
सार्वजनिक उद्योग ये सब संकट में आ गए l अदानी बरबाद होंगे लेकिन लाखों आम जनता को लेकर l खुद
को बचाने के लिए अदानी ने राष्ट्रभक्ति की झूल पहनने का भी प्रयास किया l हमें डर लग रहा है की
मोदीभक्ति को राष्ट्रभक्ति कहने वाले अंधभक्त अब मोदीजी के साथ अदानी का भी नाम जोड़ देंगे l सबसे
घिनौनी बात ऐसी है की इनके सी.इ.ओ. ने इस घटना की तुलना जलियानवाला बगीचे के हत्याकांड से की l
एक अंग्रेज अधिकारी के आदेश पर अंग्रेजों की फ़ौज में जो भारतीय सैनिक थे उन्होंने अपने ही लोगों पर
गोली चलाई l ठीक उसी तरह किसी एक अमरिकन कंपनी के अहवाल पर देश के लोग अदानी का बली दे
रहे हैं ऐसा उनका कहना है l हिंडेनबर्ग द्वारा पूछे गए ८८ सवालों के जवाब अदानी समूह आज तक नहीं दे
सका l अदालत में खिंची जानेवाली धमकी को – ‘जरुर खींचो’ इंतजार कर रहे हैं ऐसा करारा जवाब
हिंडेनबर्ग ने दिया l सच सवाल कुछ अलग ही है l अपने सभी विरोधकों की आवाज इडी, सीबीआय,
अदालत जैसे माध्यमों के आधार पर दबोच देने वाली सरकार के पास देश को फँसानेवाले अदानी के घोटालें
की ओर ध्यान देने के लिए समय नहीं है l इडी, सेबी आदि सभी ने अपनी सदविवेकबुध्दि सत्ता की चरणों में
गिरवी रखी है ऐसा दिखाई दे रहा है l शाहरुख़ के बेटे के मित्र के पास मामूली अमली पदार्थ मिल गया और
इस बात का अकांडतांडव करनेवाले सरकारी अधिकारी अदानी के बंदरगाह पर हजारों-करोडो रुपयों के
अमली पदार्थ मिलते हैं तब चुप बैठते हैं l अदानी ने यह सम्राज्य अपने जिस परममित्र की मदद से खड़ा
किया उनकी ओर से किसी प्रमाणिक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करना मुर्खता होगी l अन्य किसी देश में ऐसी
घटना होती तो वहाँ की सरकार गिर जाती l देश में बढ़ती हुई गरीबी तथा विषमता का कारण है अति
धनवान लोगों के हाथ में जमा होनेवाली संपत्ति l इनमें से अनेकों ने यह संपदा अवैध मार्ग से इकठ्ठा की है l
सरकार पर की हुई आलोचना अगर राष्ट्रद्रोह माना जाता है तो जनता के साथ की हुई इतनी बडी
धोखेबाजी राष्ट्रद्रोह कैसे नहीं हो सकती ? मोदी विरोध एवं हिंदुत्व विरोध का अर्थ राष्ट्रद्रोह नहीं तो
भारतीय जनता के साथ उस जनता को लोकशाही एवं स्वतंत्र प्रदान करनेवाले संविधान से द्रोह अर्थात
राष्ट्रद्रोह l करोडो लोगों का जीना हराम करनेवाला उद्योगपति राष्ट्र की प्रतिष्ठा पर धब्बा क्यों नहीं माना
जाता?
अदानी के जहाज को अंत में जलसमाधि मिलनेवाली है l मोदी बडी शांति से उसे डुबा देंगे या जनता की
मालमत्ता इस डुबते हुए जहाज को बचाने के लिए इस्तेमाल करेंगे l सामान्यतः घर में बैठकर विरोधकों का
चरित्र्य हनन करनेवाले भक्तगणों की फ़ौज अपना पैसा लेकर अदानी के डुबनेवाले जहाज को आधार देने
हेतु आगे आएँगे ऐसा बिना वजह महसूस हो रहा है l कुर्सी पर बैठकर ट्रोलिंग करना तथा खुद का पैसा लेकर
आगे आना इसमें जो फर्क है वह उन्हें अच्छी तरह से मालूम है l अदानी के उद्योगों में जनता की पसीने का
पैसा निवेश करनेवाली सार्वजनिक संस्थाओं की भी पूछताछ होनी चाहिए l
इन सभी गंभीर घटनाओं की पार्श्वभूमि पर आनेवाले अर्थसंकल्प अधिवेशन में खास डिझायनर की साड़ी
पहनकर आईं हुई अर्थमंत्री तथा कलात्मक शॉल पहनने वाले प्रधानमंत्री के चेहेरे पर की लकीरे थोड़ी भी
हिली नहीं थी l हमेशा की तरह आगामी चुनाव आँखों के सम्मुख रखकर निर्मलादीदी ने अर्थसंकल्प सादर
किया l उनकी प्रस्तुती जब जारी थी तब प्रधानमंत्री जी ने कम-से-कम सौ बार अचंभित होकर मेज बजाई l
हमेशा की तरह अंकों का निकम्मा खेल दिखाया और आरोग्य, शिक्षण, महंगाई, बेरोजगारी जैसे बुनियादी
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प्रश्नों को सफतौरपर नजर अंदाज किया l लेकिन इसमें से एक बात शायद अनेक लोगों की नजर से छुटी है l
वो है ३७% से २५% पर घटाया हुआ कॉर्पोरेट कर !