अग्नि आलोक

ग्लोबल वॉर्मिंग से मानव प्रजाति के अस्तित्व पर आसन्न खतरा ! 

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निर्मल कुमार शर्मा ‘

वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी धरती पर छः बार हिमयुग आए हैं ,सबसे पुराना हिम युग 2.9 से 2.78 अरब साल पहले आया था. फिलहाल हम एक हिम युग से गुजर रहे हैं.जिसे काइनोजोइक –क्वार्टरनरी हिम युग या Cinozoic – Quarternary Ice Age कहते हैं ,यह हिमयुग 3.4 करोड़ साल पहले अंटार्कटिका या Antarctica में ग्लेशियर बनने से शुरू हुआ था,इन सभी छह हिमयुगों की अवधि 30 करोड़ से 3 करोड़ साल की थी, हिमयुग में समय, विस्तार और चरम तापमान अलग-अलग होते हैं,सबसे विस्तृत हिम युग काल को स्नोबॉल अर्थ Snowball Earth कहा जाता है जिसके बारे में माना जाता है कि यह करीब 70 करोड़ साल पहले भूमध्य रेखा तक पहुंच गई थी !

              वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के अनुसार लगभग 46.6 करोड़ वर्ष पहले मंगल ग्रह और बृहस्पति ग्रह के बीच से आया एक एस्टेरॉयड या क्षुद्रग्रह धरती के पास  किसी दूसरे एस्टेरॉयड से टकरा कर टूट गया था,इससे काफी मात्रा में धरती पर धूल और गर्मी आई,इस अध्ययन को करने वाले वैज्ञानिक फिलिप हेक Philip Heck ने बताया कि धरती पर हर साल अंतरिक्ष से 40 टन से भी ज्यादा धूल आती है, लेकिन उस समय धरती पर इस टक्कर की वजह से 4 लाख टन धूल आई और वह लाखों वर्षों तक हमारी धरती पर सूर्य की किरणों को पहुंचने से रोक दिया, इसीलिए यह हिमयुग आया, इससे इस धरती के समकालीन जीवन के कुछ बहुत ही न्यूनतम् जीवों को छोड़कर इस पर उपस्थित जीवन का लगभग विलोपन ही हो गया ! इसी प्रकार 6.6 करोड़ वर्ष पूर्व अंतरिक्ष से इस धरती पर गिरे एक महाविनाशक, एक महाविशालकाय अंतरिक्ष की चट्टान ने पहले इस धरती की छिपकली प्रजाति की सबसे विशालतम् प्रजाति डायनासोर और उसके बाद इस धरती पर उपस्थित 75 प्रतिशत तक जीवन को नष्ट कर दिया था ! ये महाविशालकाय अंतरिक्षीय चट्टान मैक्सिको की खाड़ी में गिरी थी जिसका प्रमाण वहां बना एक विशालकाय क्रेटर अभी भी दृष्टव्य है ! 

               लेकिन अब वर्तमान समय में इस धरती पर उपस्थित मनुष्य प्रजाति सहित समस्त जैवमंडल की विनाशलीला कराने के लिए स्वयं हम मनुष्य प्रजाति ही जिम्मेदार बनने कि अक्षम्य अपराधी बनने को अभिशप्त है ! मनुष्य जनित कृत्यों से ग्लोबल वार्मिंग या Global Warming से जलवायु परिवर्तन या Climate Change की दर इतनी तीव्र है कि उत्तरी ध्रुव स्थित आर्कटिक या Arctic में पिघलती बर्फ जल्दी ही दुनिया में महामारी का कारण बन सकता है,शोधकर्ताओं का कहना है कि आर्कटिक की बर्फ ने से वह नए वायरल महामारियों या Viral Pandemic के लिए “उपजाऊ जमीन या Fertile Land ” बन जाएगा और यह सब बहुत जल्दी भी हो सकता है ! वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए दुनिया को आगाह किया है कि अगली मानव प्रजाति को बहुत ही ज्यादा तबाही लानेवाली  महामारी किसी चमगादड़ या जानवर से नहीं, बल्कि दुनियाभर में पिघल रही बर्फ से आ सकती है !

           जलवायु परिवर्तन के लिए बहुत ही संवेदनशील आर्कटिक में ग्लेशियर उम्मीद से भी ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं !इससे वहां ऐसा हालात बन सकते हैं जो किसी वायरस संक्रमण के लिए आदर्श होते हैं, शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें ज्यादा समय नहीं लगेगा बल्कि यह महाविनाशक दौर बहुत जल्दी ही शुरू हो सकता है !

          जलवायु परिवर्तन या Climate Change को लेकर मौसम,जीवों की आवासीय क्षेत्र,मानव का स्वास्थ्य जो प्रदूषण आदि से पहले से ही प्रभावित हो रहे हैं, जैसे कई नुकसान गिनाए जा सकते हैं और कई तरह के शोध नए नुकसानों से परिचय भी करवा रहे हैं ! नए अध्ययन ने जलवायु परिवर्तन के कारण एक और खतरा दिखाया है, इस शोध के अनुसार अगर दुनिया इसी तरह गर्म होती रही और ग्लेशियर इसी तेजी से पिघलते या Melting of Glaciers रहे तो पूरा आर्कटिक परिक्षेत्र नए वायरल महामारियों या Viral Pandemic के लिए एक बहुत ही बेहतरीन स्थान बन जाएगा,ऐसे में इस दुनिया को जल्दी ही भविष्य के भयावहतम् रूप के इबोला,इन्फ्लूएंजा या सास्र कोव-2 के संक्रमण का जोखिम बेहद बढ़ जाएगा और ऐसा बहुत जल्दी ही होने को अभिशापित होगा !

             मिट्टी और अवसादों का अध्ययन

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         ग्लेशियर पिघलने से जमीन में करोड़ों वर्षों से सुषुप्तावस्था में रह रहे वायरस और बैक्टीरिया किस प्रकार फिर से सक्रिय होकर आक्रमण करने को तैयार हो रहे हैं इसके लिए शोधकर्ताओं ने आर्कटिक वृत्त के उत्तर में सबसे बड़ी झील लेक हेजन या Largest Lake Lake Hagen से मिट्टी और झील के अंदर मिले अवसादों का अध्ययन किया। यह फ्रेशवॉटर लेक कनाडा में स्थित है। इसमें मिलने वाले आरएनए और डीएनए को अब तक मिले वायरस से मैच किया गया। और उसमें पाए गए डीएनए और आरएनए के हिस्सों का अध्ययन कर वातारण में मौजूद वायरस के समूह की पहचान करने का प्रयास किया ! वैज्ञानिकों के अनुसार वायरस दुनिया के हर कोने में हैं !

वायरस फैलने की संभावना !

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            शोधकर्ताओं ने कम्प्यूटर एल्गॉरिदम या Algorithm का उपयोग कर उन वायरसों को जानवरों,पौधों और फफूंदों के संदर्भ में जोड़ने का प्रयास किया और वे यह पता लगाने में सफल रहे कि इनसे वायरस के फैलने की क्या संभावना है, यानि वायरस की नए होस्ट प्रजातियों में आने की और फैलने की संभावना क्या है जैसा कि पिछले वर्षों में सार्स कोव-2 या SARS Cove-2 जंगली जानवरों के जरिए इंसानों में फैल गई थी,और हजारों लोगों की असमय मृत्यु हो गई थी !

          ग्लेशियर पिघलने के कारण

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     वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह महत्वपूर्ण शोध सुप्रतिष्ठित पत्रिका  प्रोसिडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी बी : बायोलॉजिक साइंस या Proceedings of the Royal Society B: Biologic Science में प्रकाशित हुआ है जिसमें उन्होंने कहा है कि वायरस के प्रसार का बेहद खतरा ग्लेशियर के पिघलने से और भी बढ़ जाएगा ! जिसका कारण स्पष्टत : ग्लोबल वार्मिंग से घटित जलवायु परिवर्तन या Climate Change Caused by Global Earming ही है ! शोधकर्ताओं का कहना है की अगर जलवायु परिवर्तन ने वायरस फैलाने की क्षमता रखने वाली प्रजातियों में बदलाव किया तो वायरस फैलाने वाले इलाके उत्तर की ओर और खिसक सकते हैं !

           संक्रमण की ज्यादा संभावना

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         अपने शोधपत्र में  शोधकर्ताओं ने बताया कि उद्भव के लिहाज से वायरस के उन जीवों को संक्रमित करने की संभावना ज्यादा होती है जो फिलोजेनिटकली प्राकृतिक होस्ट या Phylogenetically Natural Host के ज्यादा करीब होते हैं,ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें संक्रमित करना और उनके अंदर अपने कॉलोनी विकसित करना इन खतनाक वायरसों के लिए बेहद आसान होता है !        वैज्ञानिकों  के अनुसार संक्रमण फैलने में तेजी की संभावना पिछले अध्ययनों में भी दर्शित हुए थे यथा कैसे खराब भूभाग रोगाणुओं, परजीवियों और अन्य जीवों को नए-नए तरीकों से साथ लाते हैं ! इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सुझाया कि ग्लेशियर से ज्यादा पानी पिघलने से इस बात की संभावना बढ़ा देगा कि वायरस ज्यादा से ज्यादा दूसरे जीवों में जाएं ! संक्रमण फैलने का जोखिम मिट्टी और झीलों के अवसाद में अलग-अलग हो जाता है,मिट्टी में ज्यादा ग्लेशियर पिघलने से संक्रमण का जोखिम एक बिंदु पर पहुंच कर कम होने लगता है, लेकिन अत्यंत दुखद रूप से झीलों के अवसादों में यह संक्रमण का खतरा बहुत तीव्र गति से बढ़ता हुआ ही पाया गया !

            जलवायु परिवर्तन के साथ आर्कटिक परिक्षेत्र के सूक्ष्म जैवमंडल की मेटाबोलिक गतिविधी भी खिसक रही है जिससे बहुत से पारिस्थितिकी तंत्र की प्रक्रियाएं प्रभावित होती हैं जिसमें रोगाणु का पनपना भी शामिल है,उच्च आर्कटिक यानि दुनिया का धुर उत्तरी परिक्षेत्र  दुनिया में जलवायु परिवर्तन के हिसाब से सबसे नाजुक इलाका है ! वहीं प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने से भी महामारी फैलने का खतरि और बढ़ गया है ! पर्यावरण संरक्षण वैज्ञानिकों के अनुसार  पर्यावरण संरक्षण करना ही एकमात्र विकल्प है जो हमें इस भयावहतम् खतरे से हमें बचाओ सकता है ! 

        वायरल स्पिलओवर या Viral Spillover 

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     एक ऐसी जटिल प्रक्रिया है,जिसमें वायरस को एक नया होस्ट या जैविक आधार मिलता है। होस्ट में मानव,जानवर,पेड़ – पौधे आदि कुछ भी हो सकता है ! वायरस होस्ट को संक्रमित करता है, जिससे महामारी फैलने की आशंका होती है। मिट्टी के जेनेटिक एनालिसिस या Soil Genetic Analysisसे पता चला है कि दुनिया में तेजी से बर्फ पिघलने के कारण  बहुत से अत्यंत घातक  वायरसों के फैलने का खतरा बहुत तीव्र ढंग से बढ़ गया है !

       वर्ष 2021में  33 अत्यंत घातक वायरस तिब्बत के ग्लेशियर में मिले…!

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               वर्ष 2021में एक अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने तिब्बत के उन जगहों से 33 अत्यंत घातक वायरसों की खोज की थी, जहां पिछले  15 हजार साल से बर्फ जमा था। इनमें से 28 वायरस एकदम नए थे,यानी इन्हें पहले कभी नहीं देखा गया था। ये सभी तिब्बत के ग्लेशियर से निकले थे। यह ग्लेशियर ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण पिघल गया है !

      शोध वैज्ञानिकों ने बताया है कि ग्लेशियर जैसे-जैसे पिघलेंगे, वैसे-वैसे इनके नीचे सुषुप्तावस्था में मौजूद वायरस बाहर आ जाएंगे और हम संपूर्ण मानवता और जैवमंडल को संक्रमित करेंगे। शोध में आर्कटिक के इलाके को इसलिए चुना गया क्योंकि यहां की बर्फ दूसरे बर्फीले इलाकों के मुकाबले ज्यादा रफ्तार से पिघल रही है। यहां का तापमान ज्यादा गर्म है और यहां वायरल स्पिलओवर या Viral Spilloverकी आशंका भी ज्यादा है।

        आखिर ग्लोबल वार्मिंग से बचाव में हमारा योगदान क्या हो ?

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         ग्लोबल वार्मिंग का सीधा मतलब है धरती का जरूरत से ज्यादा गर्म होते जाना, वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले 140 वर्षों में हमारी धरती का तापमान एक डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है !यह एक तरह से पृथ्वी का स्वास्थ्य खराब होने जैसा है !यदि धरती के तापमान में बढ़ोत्तरी इसी तरह चलती रही तो परिणाम बहुत ही खतरनाक हो सकते हैं । अपनी पृथ्वी को और अधिक प्रदूषित और गर्म होने से बचाने के लिए ईमानदारी से हम भी अपने स्तर पर कुछ ना कुछ निम्न लिखित तरह से योगदान दे सकते हैं-
             ज्यादा से ज्यादा पैदल चलें,यदि स्कूल या ऑफिस पास में ही है तो साइकिल से जाएं या पैदल ही जाएं,सार्वजनिक परिवहनका ही इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करें,सरकारों का भी यह अभीष्ट कर्तव्य है कि वह कार लाबी के दबाव से मुक्त होकर,आमजन को सार्वजनिक परिवहन यथा सुसज्जित बसें,ट्रामें,मेट्रो और रेल की अधिकतम् सुविधाएं मुहैय्या कराने की व्यवस्था करें,क्योंकि इससे प्रदूषण कम करने में बहुत अधिक मदद मिलती है,बल्बों की जगह एलईडी बल्बों का अधिकतम् प्रयोग करें,हर हाल में विद्युत की बचत करें, टेलीविजन अनावश्यक चालू न करें, वृक्षारोपण को ईमानदारी से कार्यान्वित किया जाय,केवल पेड़ लगाकर अपना कर्तव्य की इतिश्री न मानकर यह प्रतिज्ञा किया जाय कि हम उस नन्हें शिशु पौधे को तब तक रक्षण करेंगे,जब तक वह पूर्ण वयस्क पेड़ न बन जाए ! अपनी नदियों को नाला समझकर उन्हें कूड़ेदान न बनाएं, नदियों के किनारे यथेष्ठ संख्या में विद्युत शवदाह गृह बनाए जायं, एयरकंडीशन आदि में CHCLF2 के साथ R 22 जिसे, फ्रीओन भी कहा जाता है एयर- सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाली गैस है,जो हमारी रक्षक ओजोन छतरी को सबसे ज्यादा नुक्सान होती है,अब इन आत्मघाती गैसों की जगह किसी ऐसी गैस की खोज करनी होगी,जो वातानूकुलित करने का भी काम करें, लेकिन उससे हमारी रक्षा कवच ओज़ोन परत को भी नुकसान न हो !  

-निर्मल कुमार शर्मा ‘गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक,सामाजिक, राजनैतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर स्वतंत्र,निष्पक्ष, बेखौफ,आमजनहितैषी,न्यायोचित व समसामयिक लेखन,संपर्क-9910629632, ईमेल – nirmalkumarsharma3@gmail.com

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