Site icon अग्नि आलोक

अमर वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई

Share

,मुनेश त्यागी

    17 जून 1858 को भारत वर्ष की एक महान वीरांगना, क्रांतिकारी, रणनीतिकार, संगठनकर्ता, प्रतिबद्ध, अनुशासित और परम योगिनी महारानी लक्ष्मी बाई वीरगति को प्राप्त हुई थी और इसी के साथ छोड़ गई थी अपनी अमिट छाप देश पर प्राण न्योछावर करने का जज्बा और प्रतिकूल परिस्थितियों में लड़ने का अद्भुत हौसला।

     अपनी मौत के साथ ही दे गई थी देदीप्यमान सबक ,,,,,,देश, समाज और भारतीय जन के लिए और उन पर मर मिटने का सबक। कुछ लोग महारानी पर आरोप लगाते हैं कि लक्ष्मीबाई केवल झांसी के लिए लड़ रही थी और 1857 की भारतीय प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की पहली जंग से उनका कोई लेना-देना नहीं था। यह मान्यता और मत सरासर गलत है, एकदम निराधार और बेबुनियाद है। 

      संग्राम के दूसरे नेताओं की तरह लक्ष्मीबाई के भी लक्ष्य थे। स्वराज, भारत की आजादी, ब्रिटिश दासता से मुक्ति, अंग्रेजी साम्राज्य का विनाश, फिरंगियों के अत्याचार, लूट और शोषण-सर्वनाश  से जनता और देश को निजात दिलाना, आजाद आदमी  की तरह मरना और जीना और भारतीय जनता के स्वाभिमान की रक्षा करना।

     उनकी लड़ाई मात्र झांसी के वास्ते नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष की जनता की खातिर थी।इस संग्राम के बाद महारानी लक्ष्मीबाई भारत  के इतिहास की सबसे बड़ी बहादुर और क्रांतिकारी नायिका बनकर उभरी जो अत्याचारों के समक्ष झुकना, दबना और समर्पण करना और हार मानना नहीं बल्कि लड लड़कर, बलिदान और त्याग करके अपना सर्वस्व स्वाहा करके अपना उद्देश्य  प्राप्त करना सिखा गई ।

       वह जोश, साहस और बलिदान का मार्ग प्रशस्त कर गई। वह हिंदुस्तान की आगे आने वाली पीढ़ियों को मुक्तिमार्ग  दिखा गई और पूरी दुनिया और भारतीय कौम के लिए एक मिसाल बन गई, कभी न बुझने मिटने वाली मशाल और मिसाल।

        अपने मिशन में वह किस तरह लगन शील और प्रतिबद्ध थी कि रानी ने पूरी झांसी के मर्दों औरतों युवक-युवतियों को तैयार किया,उनमें देश पर मिटने का जज्बा पैदा किया, औरतों मर्दों को एक मिशन की खातिर लड़ना सिखाया और उनका अद्भुत समन्वय किया। हर मोर्चे पर औरतें मर्दों का साथ देती,  गोला बारूद तैयार  करती, उन्हें युद्ध के मोर्चे तक पहुंचाती और तोपें चलाती।

      उसने औरतों को घर के बाहर निकाला। उन्हें पर्दे घूंघट की गुलामी से बाहर निकाला,भारतीय घुटन भरी परंपराओं को राष्ट्रीय मुक्ति के अभियान में आडे  आने नहीं दिया। औरतों को परिस्थितियों का दास नहीं बल्कि उन पर काबू करना सिखाया। देश की खातिर उनके हाथों में तोप,  बंदूक, भाले  और तलवार थमायी। उन्हें बड़े पैमाने पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बनाया, देश और भारत भूमि के लिए लड़ना मरना और  सर्वस्व न्यौछावर करना सिखाया ।औरत मर्द को एक साथ लड़ना मरना सिखाया और उन्हें सीख दे गई कि घर की चारदीवारी में घुट घुट कर मरने से बेहतर है कि मैदान-ए-जंग में देश की खातिर अपने प्राणों की हंसते-हंसते आहुति देना।

       लक्ष्मीबाई सांप्रदायिक सद्भाव की अनुपम मिसाल हैं उन्होंने अपनी सेना में सभी जातियों और धर्मों के लोगों को शामिल किया उनकी सेना में ब्राह्मण, कांची, तेली, क्षत्रिय, कोरी ,महाराष्ट्री, बुंदेलखंडी, राजा महाराजा, पठान ,मुसलमान शामिल थे।उन्होंने अपनी दासियों को अपना सहयोगी बनाया। उनकी नायब जूही थी, जासूसी विभाग की प्रधान मोतीबाई थी, तो निजी सचिव मुंदर थी। उनके सदर दरवाजे  के रक्षक सरदार खुदाबख्श थे,तो खाने के तोपची गुलाम गौस खान, कर्नल रघुनाथ  सिंह और मोहम्मद जमा खान थे।

      महारानी ने साम्राज्यवाद का मुंह पकड़ा, उसकी चुनौती स्वीकार की, वह डरी नहीं, विचलित नहीं हुई, हार नहीं मानी, उसका आसान शिकार नहीं बनी। उन्होंने अपना सर्वस्व निछावर कर दिया,,, पति ,पुत्र, राज सब कुछ।वह  विश्व इतिहास की सर्वश्रेष्ठ नायिका बन गई और बेगम हजरत महल के साथ भारत की प्रथम स्वतंत्रता  संग्राम सेनानी बन  बैठी। वह  आज भी इसी सिंहासन पर विराजमान है जो आगामी पीढियों का मार्गदर्शन करती रहेगी। उल्टी इसी महानता को लेकर उनके बारे में कवि ने लिखा था,,,

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।

      लक्ष्मीबाई देशवासियों को वतन की खातिर हंसते-हंसते मरना मिटना और सब कुछ बलिदान करना सिखा गयी। आजाद,  राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह, अश्फाक, बिस्मिल, सुभाष और आजाद हिंद सैनिकों ने लक्ष्मीबाई का हौसला जज्बा और मिसाल कायम की। वह हारी थकी ,निराश और उदास औरतों के लिए एक रोशनी है जो दबाव, अभाव और मजबूरियों के बोझ तले दबकर आत्मसमर्पण कर देती हैं और हालात का शिकार बनकर अपनी चेतना और जिस्म का सौदा कर बैठती हैं और  वैश्या, भोग्या,माल-वस्तु बन बैठती हैं।

      महारानी की दृढ  मान्यता थी कि यदि स्त्रियां दृढता और मजबूती का कवच पहन लें, अपने इरादे मजबूत कर ले, तो संसार का कोई भी पुरुष उन्हें लूट नहीं सकता, उनकी इज्जत से खिलवाड़ नही कर सकता। वे औरतों और मर्दों को लड़ना और अपने उद्देश्य के लिए संगठित होना सिखा गई,कायरो की तरह भागना नहीं, बल्कि तिल-तिल कर मरना, मिटना सिखा गई। भारतीय इतिहास की दुर्गा  का संपूर्ण व्यक्तित्व धर्मनिरपेक्ष, संघर्षी ,लड़ाकू ,जनतांत्रिक, सर्व समावेशी और अनुशासित था। भारतीय जन को, औरतों मर्दों को, मुक्ति के लिए इन गुणों को जिंदगी में उतारने की जरूरत है।

    हम वर्तमान समय को देखकर यह अवश्य कहेंगे की महारानी लक्ष्मी बाई जैसे हजारों लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत की जिस आजादी का सपना देखा था, यह वह भारत नहीं है। आज हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक और धर्मांधता को द्वारा भारत के संविधान पर, कानून के शासन पर गंभीर हमले जारी हैं। पूरे समाज में जैसे हिंदू मुस्लिम नफरत छाई हो और आजादी के बाद जनता को, किसानों को, मजदूरों को जो हक और अधिकार मिले थे, आज वर्तमान शासक और वर्तमान सरकार उन सबको छीनने पर आमादा है बल्कि हम तो यह कहेंगे कि उनमें से अधिकांश अधिकारों को छीन लिया है और लोगों को आधुनिक आधुनिक गुलाम बना दिया है। महारानी लक्ष्मीबाई की शहादत को, उनकी विरासत को कायम रखने के लिए और हमें अपने हक को अधिकारों को बचाने के लिए, आजादी की दूसरी लड़ाई के लिए तैयार रहना चाहिए।

       अपनी महान वीरांगना और महारानी लक्ष्मी बाई के लिए हम तो यही कहेंगे,,,,,,, 

    कुछ इस तरह चले दुनिया के साथ साथ

    गर  वो  नहीं  तो,   उनकी   दास्तां   चले।

             ,,,,मुनेश त्यागी

Exit mobile version