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सुधार बनाम परिवर्तन?

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शशिकांत गुप्ते

इनदिनों हमारे, रहन-सहन के स्तर में सुधार हो रहा है। सुधार और परिवर्तन में बहुत अंतर है।

सुधार से बाह्य स्वरूप के श्रृंगार का बोध होता है। परिवर्तन प्रगतिशीलता को परिलक्षित करता है।

महात्मा गांधी ने समाज के कल्याण के लिए, सुधारवादी तरीके को त्याग कर परिवर्तनकारी तरीका अपनाया, 

परिवर्तन करना साहस का कार्य है। सुधार करना मतलब सडकों पर साधारण बारिश से होने वालें खड्डों को Patch work कर भरना, मतलब पैबंद लगाना।

परिवर्तन मतलब जीवन से सम्बंधित हर क्षेत्र में, अर्थात हर पहलू में,व्याप्त दकियानूसी मान्यताओं में अमूलचूल बदलाव करना।

इनदिनों हम सिर्फ सुधारवाद को अपना रहें हैं। साधरणतया हरकोई अपने रहन-सहन के स्तर को ऊंचा उठाने में अपने बाह्य स्वरूप को श्रृंगारित कर रहा है।

बोलचाल की भाषा में इसे Status symbol मतलब प्रतिष्ठा का प्रतीक कहतें हैं।

इसी मान्यता को आत्मसात करने के कारण हम कुत्ते को कुत्ता नहीं कहतें हैं,डॉगी (Doggy, Doggie) कहतें हैं।

पालतू कुत्ते को भी हम डॉगी ही कहतें हैं, फ़ालतू या सड़कछाप मतलब सड़क पर विचरण करने वालें श्वानों को भी Streets Dogs ही कहतें हैं

धर्मराज युधिष्ठिर के साथ उनका कुत्ता भी उनके साथ स्वर्ग गया ऐसा महाभारत की कथा में उल्लेख है। समस्त पशुओं में सिर्फ श्वान को स्वर्ग जाने सौभग्य प्राप्त हुआ है।

सम्भवतः इसीलिए श्वान ही वफादार होता है। लेकिन किसी वफादार को गलती से भी श्वान नहीं कह सकतें हैं? 

अपने देश में दानवीरों के द्वारा स्ट्रीट डॉग को भी दूध पिलाया जाता है और रोटी या बिस्कुट खिलाएं जातें हैं।

किसी जानकार ने बताया कि कुत्तों को दूध पिलाने और बिस्कुट या रोटी खिलाने से पुण्य मिलता है।

बहुत सी बार देखा जाता है कि, सड़क पर विचरण करने वाले कुत्तें दुपहिया वाहन चालको पर भोंकते हुए लपकते हैं। बहुत सी बार ये स्ट्रीट डॉग्स वाहन चालकों या पैदल चलने वालों को लबुरते है या उन्हें कांटतें भी हैं।

इस घटना पर एक दार्शनिक व्यक्ति का कहना है कि जो लोग दूध पिलातें हैं और रोटी या बिस्कुट्स ख़िलातें हैं। उन्हें पुण्य मिलता है। और जिनपर लपकते है या जिनको लबुरते हैं काटते हैं उनको उनके पापों की सजा मिलती है।

किसी व्यक्ति को कुत्ते की उपमा देकर अपमानित करना असंसदीय भाषा की परिभाषा में आता है नहीं यह बहस का विषय है?

 *समरथ को नहीं दोष गोसांई* इन पंक्तियों के भावार्थ को समझने की चेष्टा करें तो समर्थ व्यक्ति अपने विरोधी को किसी भी पशु या पक्षी की उपमा दे सकता है? समर्थ से तात्पर्य है,साम-दाम-दण्ड-भेद इन ‘अ’नीतियों का बख़ूबी इस्तेमाल करने में माहिर व्यक्ति?

उदारमना व्यक्ति हमेशा निम्न सूक्ति पर अमल करता है। 

*क्षमा वीरस्य भूषणनम।*

परिवर्तन आवश्यम्भावी है।

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