क्या डीजीपी अशोक जुनेजा समेत आईपीएस अफसर आनंद छाबड़ा, अभिषेक माहेश्वरी और आरिफ शेख कांग्रेसी कार्यकर्ता है*
विजया पाठक,
एडिटर, जगत विजन
पिछले विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता में आई भूपेश बघेल की सरकार पहले दिन से ही अपनी कार्यशैली को लेकर चर्चाओं में है। एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ की आम जनता राज्य में फैले भ्रष्टाचार, चोरी, डकैती, लूटपाट से तो परेशान थी ही, अब राज्य में एक नई समस्या ने आमद दे दी है। राज्य की जनता के बीच फैले इस अंसतोष के भाव को राज्य के मुखिया भूपेश बघेल भी अब तक नहीं परख पाए हैं। दरअसल पूरा राज्य छत्तीसगढ़ में पदस्थ आईपीएस और आईएएस अफसरों की रौबदारी से परेशान है। जिन अफसरों को जनता की सेवा और उन्हें हर तरह की समस्याओं के निजात दिलाने के लिए पदस्थ किया गया है वहीं अफसर अब जनता के लिए कांटे बनते जा रहे हैं। पूरे राज्य के अंदर कोई भी आमजन खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है। लेकिन जनता के वोटों से जीतकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज भूपेश बघेल को इस बात की कोई चिंता ही नहीं। आलम यह है कि अफसर खुद मिलकर भूपेश बघेल की सरकार को चलाने में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं।
अपने मूल कर्तव्यों को भूले अफसर
अखिल भारतीय स्तर की परीक्षा को पास करने के बाद अफसर बने राज्य के ये अधिकारी अपने मूल कर्तव्यों और जनता की सेवा करने का भाव पूरी तरह भूल चुके हैं। मुख्यमंत्री पद पर बैठे नाकाबिल भूपेश बघेल और उनकी सरकार को चलाने के लिए अब मुख्यमंत्री बघेल को इन अफसरों का सहारा लेना पड़ रहा है। ये अफसर बेखौफ होकर सत्ताधारी दल के किसी जिम्मेदार पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगे हैं। यह पहला अवसर है जब राज्य में अखिल भारतीय स्तर के अफसरों को इस तरह से कार्य करते देखा जा रहा है। यह अफसर सत्ताधारी दल के नेताओं के लिए चाटूकार हो गए हैं। यही नहीं स्थिति ऐसी हो गई है कि नेता बोले तो यह उठकर बैठ जाते हैं और नेता के ही कहने पर खड़े हो जाते हैं। यह सभी अधिकारी अपने मूल कार्यों और कर्तव्यों को पूरी तरह से भूल चुके हैं।
जूनियर तय करते हैं वरिष्ठों की पोस्टिंग
किसी भी राज्य में अफसरों की पोस्टिंग और ट्रांसफर करने की जिम्मेदारी राज्य के वरिष्ठ अधिकारी, मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री के कंधे पर होती है। लेकिन छत्तीसगढ़ में बिल्कुल इसके उलट कार्यवाही चल रही है। राज्य के जूनियर अधिकारी अपने से वर्षों पुराने वरिष्ठ अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। यह सब इसलिए चल रहा है कि क्योंकि यह जूनियर अधिकारी राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का खुद को प्रतिनिधि समझते हैं और राज्य के मंत्रियों का भी इन अधिकारियों पर कोई जोर नहीं चल रहा है। ऐसे अफसरों को सत्ताधारी दल से मिल रही तरजीह के चलते ये अफसर सरकार के कमाऊ पुत के रूप में सुर्खियां बटोर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय के चुनाव हो या अन्य राजनैतिक कार्यक्रम या फिर देश किसी भी हिस्से में होने वाले विधानसभा चुनाव इसके लिए फंड इकट्ठा करने की जबावदारी दी है।
अंधेर नगरी चौपट राजा
आपने एक कहावत जरूरी सुनी होगी, अंधेर नगरी चौपट राजा। इसी कहावत की तर्ज पर ही राज्य में पूरी प्रशासनिक व्यवस्था को चौपट करने का कार्य किया जा रहा है। यह कार्य मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के इशारे पर हो रहा है। जानकारी के अनुसार राज्य के पूर्व डीजीपी एक वरिष्ठ और संवेदनशील अधिकारी हैं। लेकिन डीजीपी से मर्यादित पद पर बैठे एक अधिकारी का तबादला एक जूनियर आईपीएस अफसर के इशारे पर राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कर देते हैं। यही नहीं डीजीपी को हटाकर उनके स्थान अपने ही पसंदीदा व्यक्ति अशोक जुनेजा को राज्य के डीजीपी पद पर बैठा दिया। यह पहला और अंतिम केस नहीं है। ऐसे केस आए दिन राज्य में देखने को मिल रहे हैं जहां जूनियर अफसरों के इशारे पर तबादला, पोस्टिंग का खेल मुख्यमंत्री और उनके चहेते अफसर मिलकर खेल रहे हैं। आरीफ शेख एसएसपी रैंक का एक आईपीएस अधिकारी रहा है और एसीबी और ईओडब्ल्यू में सीनियर आईजी रैंक के अधिकारी को पदस्थ किया जाता है। इसी प्रकार महेश्वरी डीएसपी रैंक का है जिसको आऊट आफ प्रमोशन देकर एंटिलिजेंस में आनंद छाबड़ा के साथ और साईबर का प्रभारी बनाकर बैठाया गया है। और आनंद छाबड़ा आईजी रायपुर रेंज के साथ-साथ एंटेलीजेंस का प्रभारी का कार्य देख रहा है और सीनियर आईपीएस के रहते एवं पूर्व डीजीपी के ऊपर पुलिस व्यवस्था नहीं संभाल पाने का आरोप लगा, हटाकर जूनियर आईपीएस अशोक जूनेजा को डीजीपी का प्रभार दिया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि पूर्व डीजीपी इनके गलत कार्यों का समर्थन नहीं करते हुए गलत कार्य करने से मना कर दिया था। ठीक उसी प्रकार जैसे जीपी सिंह ने गलत कार्य करने और बात मानने से इंकार किया तो उसे आय से अधिक संपत्ति और देशद्रोह का आरोपी बनाकर अपराध दर्ज कर दिया गया है।
भ्रष्टाचार करने में मिला है अफसरों को तमगा
छत्तीसगढ़ में पदस्थ अफसरों को राज्य के अंदर भ्रष्टाचार करने पर तमगा मिला हुआ है। अफसरों ने राज्य के अंदर ऐसी लूट खसोट मचाई है कि आमजन पूरी तरह से हतप्रभ है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी अफसर सौम्या चौरसिया के घर पर आयकर विभाग की हुई छापेमार कार्यवाही ने अफसरों और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच के संबंधों को खोलकर रख दिया। पांच दिन तक चली छापेमार कार्यवाही में 150 करोड़ रुपए के लेनदेन के मामले सामने आए हैं। यही नहीं रायपुर में व्यक्तियों, हवाला डीलरों और व्यापारियों के एक समूह पर खोज पर की गई कार्य़वाही में भी विश्वसनीय इनपुट्स, खुफिया और शराब और खनन व्यवसाय से बड़ी बेहिसाब नकदी के सृजन के साक्ष्य मिले।
सीनियर अफसरों को भी देखना पड़ा नीचा
जानकारों के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य में एक पद डीजी इटेंलिजेंस का है। इस पद पर एक जूनियर आईजी आनंद छाबड़ा की नियुक्ति की गई। बताया जाता है कि छाबड़ा कांग्रेस पार्टी के काफी करीबी है और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विश्वसनीय भी। इसलिए इंटेलिजेंस जैसे प्रमुख और सीनियर पद पर एक नए और अनुभवहीन अफसर को बैठा दिया गया। मुख्यमंत्री बघेल ने छाबड़ा को इंटेलिजेंस की जिम्मेदारी सौंपने के लिए तत्कालीन डीजी इंटेलिजेंस रहे अफसर संजय पिल्ले को निशाना बनाया। सीनियर अफसरों को नीचा दिखाने का सिलसिला यही नहीं रूका और एक के बाद एक सीनियर अफसरों को चाटूकार जूनियर अफसरों ने अपने साजिश का शिकार बनाया। हाल ही में प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार सुनील नामदेव ने छाबड़ा सहित कई अधिकारियों के खिलाफ गंभीर शिकायतें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और केंद्र सरकार से की है। पुलिस पर आरोप है कि उसने पत्रकार सुनील नामदेव को सैनेटाईजर पिलाया था ताकि उसे मौत की नींद सुलाया जा सके। हालांकि एहसास होते ही सुनील नामदेवे ने घटना की जानकारी डाक्टर्स को दी। इस मामले में पुलिस से चार हफ्ते के भीतर एनचारआरसी ने एक्शन टेकन रिपोर्ट भी मांगी है। इंटेलिजेंस विंग में राज्य पुलिस सेवा के एक जूनियर डीएसपी अभिषेक माहेश्वरी को दोहरी पदोन्नति देते हुए डीआईजी स्तर के पद पर बैठा दिया गया है। माहेश्वरी की नियुक्ति इसलिए की गई क्योंकि वो मुख्यमंत्री बघेल के इशारे पर वैध-अवैध फोन टेंपिंग करने की जिम्मेदारी उठाए हुए हैं। इसलिए भूपेश बघेल सरकार ने इन्हें ईनाम के तौर पर डबल प्रमोशन देकर इस पद बैठाया।