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औरतों के साथ अपराधों में सिर्फ 30 परसेंट अपराधियों को ही सजा मिल पाती है?

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,मुनेश त्यागी 

          आफताब द्वारा श्रद्धा की हत्या करने के बाद महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर एक सकारात्मक चर्चा हो रही है। यहीं पर सवाल उठता है कि आखिर लिव इन रिलेशन में उनके भागीदार और उनके मां-बाप द्वारा अपनी बच्चियों की हत्या क्यों कर दी जाती है? इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

       अगर महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि औरतों के साथ अपराधों में सिर्फ 30 परसेंट अपराधियों को ही सजा मिल पाती है, बाकी के 70% बरी हो जाते हैं। तीन में से एक महिला घरेलू हिंसा की शिकार है। 18 अट्ठारह से 49 आयु की 32% महिलाएं भावनात्मक हिंसा की शिकार हैं। घरेलू हिंसा के केवल 14% मामले ही सामने आते हैं। इन कारणों की वजह से बहुत सारे प्रेमी पुरुष परिस्थितियों से बेखौफ हो जाते हैं और वे बेझिझक अपनी प्रेमिका महिला की हत्या करने तक पहुंच जाते हैं।

      इस प्रकार हम देख रहे हैं कि जैसे लगभग पूरा माहौल ही औरतों के खिलाफ हो गया है। काफी वर्ष पहले सुशील शर्मा ने अपनी प्रेमिका नैना साहनी की हत्या करने के बाद उसके टुकड़े टुकड़े करके तंदूर में डालकर  फूंक दिया था। 2010 में राजेश ने अपनी पत्नी अनुपमा गुलाटी के 70 टुकड़े करके, उनको फ्रिज में रख दिया और बाद में एक-एक करके उन्हें जंगलों में फेंक दिया।

       इसी तर्ज पर आफताब ने अपनी प्रेमिका श्रद्धा के 35 टुकड़े करके फ्रिज में रख दिए और एक-एक करके उन्हें दिल्ली के जंगलों में फेंक दिया। इसी तरह के हमलों में एक पिता ने अपनी बेटी के पांच टुकड़े करके जंगलों में फेंक दिया। एक पति ने अपनी पत्नी को इसी तरह मार डाला। इस तरह की घटनाएं लगभग रोज प्रकाश में आ रही हैं। मगर यहीं पर सवाल उठता है कि मीडिया और समाचार पत्रों में औरत विरोधी अपराधों के इतने मामले आने के बाद भी औरतें इन जहरीले संबंधों में क्यों फंसी रह जाती हैं? और वे इनसे बाहर क्यों नहीं आ पाती? हमें इन कारणों की पड़ताल करनी होगी।

      सबसे पहला कारण है कि इस तरह के मामलों में प्रेमी पुरुष द्वारा अपनी प्रेमिका औरतों का ब्लैकमेल किया जाता है। कई बार औरतों पर इनमें इन पुरुषों का बहुत ज्यादा प्रभाव होता है और कई बार यह प्रेमी आत्महत्या करने जैसी बात कह कर, अपनी महिला मित्रों को ब्लैकमेल करते हैं और ऐसा कहकर वे अपनी प्रेमिकाओं को डरा देते हैं जिस कारण वे समय से उनका कारगर विरोध नहीं कर पातीं।

     इसका दूसरा कारण है कि हमारे समाज में आज भी सोच, मानसिकता, नजर और नजरिया पितृसत्तात्मक बना हुआ है। प्रेम जाल में फंसी औरतें यह महसूस करने लगती हैं कि पुरुष के सुरक्षा कवच के बिना वे समाज में जिंदा नहीं रह सकती और इस प्रकार इन जहरीले संबंधों को सहन करती रहती हैं।

     तीसरा कारण यह है की ये प्रेमी महिलाएं और प्रेम का शिकार महिलाएं ऐसा सोच भी नहीं सकती हैं कि उनके प्रेमी पुरुष उनके साथ हत्या जैसी बात सोच भी सकते हैं। प्रेम के जाल में फंसी महिलाओं को यह उम्मीद रहती है कि हिंसा, मारपीट, दुरुपयोग और गाली-गलौज के  बाद भी उनका प्रेमी पुरुष बदल जाएगा और वे इस उम्मीद में रहती हैं कि एक दिन उनका प्रेमी बदल जाएगा और सब कुछ ठीक हो जाएगा ऐसे मामलों में कई प्रेमी प्यार का दिखावा करते हैं और वे पति या प्रेमी पुरुष द्वारा उनकी पर्याप्त क्षतिपूर्ति का पूरा आश्वासन पाकर उनसे समझौता कर लेती हैं और उम्मीद करती हैं कि एक दिन यह सारा अनिष्ट दूर हो जाएगा और उनका दुरुपयोग करने वाला भागीदार सुधर जाएगा।

     चौथा कारण है कि इस प्रेम जाल में फंसी हुई लड़कियां और औरतें अपने फैसले को लेकर, प्यार करने के अपने फैसले को लेकर किर्तव्यविमूढ हो जाती हैं और वे  इस दुविधा में फंस जाती है कि इन संबंधों को छोड़ें या नहीं छोड़ें और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

      पांचवा कारण है की महिलाएं अपने प्रेमी की हिंसा और दुरुपयोग को यह समझकर सहन कर लेती हैं कि वह किसी ठोस कारण की वजह से हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहा है और कई बार पुरुष अपनी पितृसत्तात्मक सोच की वजह से यह सोचता है कि अपने संबंधों को सुधारने के लिए अपनी प्रेमिका महिला के साथ हिंसा और मारपीट तक भी की जा सकती है।

     छटा कारण यह है कि कई सारी महिलाएं अपने संबंधों को बनाने से पहले इस बात का अंदाजा नहीं लगा पातीं कि उनका प्रेमी उन्हें गाली गलौज करेगा, उनके साथ मारपीट करेगा उनका गला घोट देगा और अंततः उनकी हत्या कर देगा।

      सातवां कारण है कि इन संबंधों में फंसी हुई कई महिलाएं पुरुषों के प्यार की गिरफ्त में फंस जाती हैं और वे यह समझ कर अपने बचाव में कोई कदम नहीं उठाती कि समाज, हमारे दोस्त, रिश्तेदार और परिवार वाले इस बारे में क्या कहेंगे? इसलिए हमें इन विपरीत परिस्थितियों में भी इस तरह के जहरीले संबंधों को निभाना पड़ता है और समझौता कर लेना होता है।

     आठवां कारण है कि परिवार, समाज, लज्जा, बच्चे, आशा और डर की वजह से, वे यह सोच लेती हैं कि आने वाला कल सुखद होगा और इन सब कारणों की वजह से वे अपने शैतान पार्टनर के साथ, इन जहरीले संबंधों को बनाए रखने के लिए बाध्य हो जाती हैं।

     नौवां कारण है कि वे इन बुरे संबंधों को इस कारण नहीं छोड़ पाती कि इस सब के बारे में उनका दिमाग सही रूप से काम नहीं करता और वह अपना हौसला खो बैठती हैं और अच्छे बुरे का सही फैसला नहीं कर पातीं।

      इन लगातार उग रहे जहरीले संबंधों को खत्म करने के लिए हमारे समाज की मानसिकता को बदलने की भी जरूरत है। हमें इसकी शुरुआत अपने घर से, अपने परिवार से करनी पड़ेगी। अपने लड़के और लड़कियों को उचित पालन-पोषण देना होगा। इसके लिए समाज भी अंधा, गूंगा और बहरा होकर नही रह सकता। समाज को भी एक सकारात्मक पहल करनी पड़ेगी, हजारों साल पुरानी पितृसत्तात्मक सोच का खात्मा करने पड़ेगा।

     इसी के साथ साथ हमें अपनी न्यायिक प्रक्रिया को सुधारना पड़ेगा, उसमें तेजी लानी पड़ेगी। अपनी पुलिस व्यवस्था को तेज और चुस्त-दुरुस्त करने की सबसे ज्यादा जरूरत है और इसी के साथ साथ इन शैतान पुरुषों में खौफ पैदा करने के लिए यह जरूरी है कि इस तरह के मामलों के निपटारे में तेजी लाने के लिए दिन प्रतिदिन के हिसाब से न्यायालय अपना काम करें और ऐसे संबंधों में रोज सुनवाई करके एक महीने के अंदर इन शैतान दरिंदों को सख्त से सख्त सजा दे और इन्हें आजीवन कारावास की सजा दें और इनकी तमाम संपत्ति को हड़प लेना चाहिए।

      इसके लिए समाज, दोस्तों, रिश्तेदारों और माता पिता के साथ साथ प्रेमी महिला की भी जिम्मेदारी है कि वह अपने माता-पिता से और उसके माता-पिता, अपनी बच्चियों से संपर्क बनाकर रखें। अगर महिला बालिग है तो मां-बाप का यह कर्तव्य है कि वे उसके फैसले का आदर करें, सम्मान करें। इसी के साथ साथ  सभी लड़कियां अंधी भावनाओं में बहने से बचें और अंत में अपने पार्टनर को जांच परख कर ही अपना घनिष्ठ मित्र, दोस्त या जीवन साथी बनाएं। तभी जाकर और ऐसा करके ही इन जहरीले संबंधों से बचा जा सकेगा।

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