-सुसंस्कृति परिहार
पांच राज्यों में होने जा रहे चुनावों में मध्यप्रदेश महत्वपूर्ण है जहां लगभग 18 वर्षों से मुख्यमंत्री के रुप में मामा शिवराज विद्यमान हैं।उनकी कथित लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि मोदीशाह की जुगलजोड़ी हिल गई उन्हें भय सताने लगा कि कहीं संघ उन्हें अगला प्रधानमंत्री ना बना दे इसलिए दूसरी सूची जारी करते हुए उन्होंने उसमें मुख्यमंत्री पद के दावेदार दिग्गजों को मैदान में उतारा जिनके नाम मुख्यमंत्री के तौर पर सामने आते रहे हैं जिनमें नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, फग्गनसिंह कुलस्ते और प्रह्नलाद पटेल के नाम प्रमुख हैं वैसे सांसद गणेश सिंह सतना,सीधी से रीति पाठक और जबलपुर से राकेश सिंह भी विधानसभा चुनाव में झोंके गए हैं शायद दिल्ली के मोदी-शाह इस भ्रम में हैं कि उनका सांसद अपने संसदीय क्षेत्र की तमाम सीट जीत लेगा एवं यह जनता को बताएगा कि वह ही मुख्यमंत्री बनने वाला है। आपको अच्छे से ज्ञात है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से गद्दारी के बाद लगातार मुख्यमंत्री पद के लिए हसीन सपने देखते रहें।उनका तो चुनावी पत्ता ही काट लिया गया।उधर 2003 में भारी बहुमत से विजयी उमा भारती का नामलेवा कोई नहीं है।वे रूठ कर हिमालय की शरण में गई हुई हैं।इधर लगातार विधायक रहने का रिकार्ड बनाने वाले गोपाल भार्गव और उनसे तनिक पीछे चल रहे जयंत मलैया के नाम भी इस दौड़ में आते रहे हैं। किंतु मोदी-शाह मुख्यमंत्री इन सब कद्दावर नेताओं में से किसी को भी मुख्यमंत्री नहीं पसंद कर सकते उन्हें चाहिए गुजरात जैसा मुख्यमंत्री जी हुजूरी वाला।कुछ लोग तो यह मान रहे हैं इन सबको हराने का मोदी प्लान है ताकि 2024में नये रंगरूटों के साथ मनमानी कर सकें। मध्यप्रदेश में कांग्रेस आ रही है इसलिए इन घिसे-पिटे लोगों का खात्मा स्वत:हो जाएगा।
बहरहाल शिवराज हर हाल में सत्ता पाने की जी तोड़ कोशिश में लगे हैं किंतु जनता जनार्दन पिछली कांग्रेस सरकार गिराने वाले को गिराने प्रतिबद्ध नज़र आ रही है लगता है इस बार बड़े बड़े नेता भी अर्श से फर्श पर नज़र आएंगे। सबसे बड़ी बात है कि इन दिग्गजों के सामने जो मुकाबला करने जा रहे हैं वे आज के युवा महाबली इस मामले में है क्योंकि उनकी तादाद सबसे बड़े वोटरों में है।दूसरी बात ये कि इन तमाम नेताओं के काले पीले अध्यायों की संख्या उजागर हो चुकी है और जो अभी उनके सामने वे बिल्कुल धवल हैं और उनमें जोश और उत्साह है।
जैसा कि सर्वविदित है विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कोई भी सांसद तैयार नहीं था। नरेन्द्र सिंह तोमर तो मुरैना में घूम रहे थे किंतु अपने दिमनी विधानसभा में तभी पहुंचे जब नामीनेशन की तारीख आ पहुंची। वहां उनका मुकाबला रवीन्द्र सिंह तोमर से है जो वर्तमान में विधायक हैं। यहां के लोगों में जो मूलतः किसान हैं किसानों की उपेक्षा के कारण सख्त नाराज़ हैं जो बहुसंख्यक तोमर समाज से हैं। ब्राह्मण भी इस क्षेत्र में उनकी उपेक्षा से नाखुश हैं जबकि यह विधानसभा क्षेत्र उनके संसदीय क्षेत्र में शामिल है।
इंदौर-1 के बीजेपी प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय को उनके कई स्थानीय समर्थक ‘बॉस’ कहकर पुकारते हैं, तो इस सीट के मौजूदा कांग्रेस विधायक और उम्मीदवार संजय शुक्ला के लिए ‘संजू भैया’ का संबोधन इस्तेमाल किया जाता है।संजू भैय्या कैलाश विजयवर्गीय की तरह मंजे खिलाड़ी तो नहीं है किंतु वर्तमान विधायक हैं। विजय वर्गीय भाजपा महासचिव हैं। उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी जिसमें वे बुरी तरह परास्त हुए।कट्टर अक्खड़ संघी हैं बाॅस भले कहलाते हैं लेकिन अब वे कुछ खास नहीं है यहां उनकी जीत आसान नहीं।
तीसरे फग्गनसिंह कुलस्ते हैं जो कई बार के सांसद हैं और 33वर्ष बाद निवास विधानसभा से भाजपा के उम्मीदवार बनाए गए हैं उनका मुकाबला भी वर्तमान विधायक डॉ अशोक मर्सकोले से होगा। यहां भी सांसद होते हुए भी उन्होंने क्षेत्र में आदिवासी कल्याण की ओर ध्यान नहीं दिया ना ही लोगो के बीच मिले-जुले जो उनको क्षति पहुंचाएगा।
चौथे हैं प्रह्लाद पटेल जो दमोह संसदीय क्षेत्र से हैं क्षेत्र में मनोयोग से जितना बन पड़ा काम किया उन्हें उनके संसदीय क्षेत्र से टिकिट ना देकर गृहनगर नरसिंहपुर विधानसभा से टिकिट मिली हैं जहां से उनके भाई विधायक थे।यह सीट निकालना आसान नज़र आता है किंतु भाई के अन्तर्विरोध का सामना उन्हें करना पड़ेगा। वर्तमान विधायक उनके भाई जालम सिंह पटेल है।इसके अलावा उनका मुकाबला भी अपने भाई कांग्रेस के लाखन सिंह पटेल से होना है यदि दोनों भाई एकजुट हो जाते हैं तो प्रह्लाद की जीत मुश्किल होगी क्योंकि लाखन सिंह का पलड़ा वैसे भी भारी है। कांग्रेस आ रही है का जोर इस बार हर जगह की तरह नरसिंहपुर में बहुत है।अन्य तीन सांसद गणेश सिंह सतना से,रीति पाठक सीधी से और राकेश सिंह की स्थिति भी ठीक नहीं बताई जा रही है।भाजपा की एक महिला मंत्री अर्चना चिटनिस की स्थिति डांवाडोल है। वहीं सागर में रहली विधानसभा में भाजपा के सीनियर विधायक गोपाल भार्गव के सामने कांग्रेस की युवा नेत्री ज्योति पटेल का तेज दमक रहा है भार्गव कमज़ोर नज़र आ रहे हैं।उधर खुरई से रक्षा सिंह राजपूत भाजपा के एक और मंत्री भूपेंद्र सिंह पर बहुत भारी पड़ रहीं।सागर सीट पर निधि जैन अपने जेठ दो बार के भाजपा विधायक शेलेन्द्र जैन को सबक सिखाने की तैयारी में हैं।बीना में भी आसपास की महिलाओं की मजबूती का लाभ बीना में कांग्रेस की उम्मीदवार निर्मला सप्रे को मिलता नज़र आ रहा है। दमोह विधानसभा सीट पर जयंत मलैया पूर्व मंत्री को भाजपा ने टिकिट देकर लगता है अपनी जीत का ख्वाब देख रहे है । दमोह कांग्रेस का गढ़ रहा है । पिछले उपचुनाव में कांग्रेस के अजय टंडन ने 17हज़ार के अंतर से भाजपा को तब मात दी थी जब पूरा केबिनेट यहां धूनी रमाए बैठा था। टंडन फिर मैदान में हैं।आम लोगों का मत है कांग्रेस की सरकार आ रही है तो मलैया को क्यों जिताएं।इसी तरह कटनी जिले के अमीर विधायक नाम से जाने जाने वाले भाजपा विधायक संजय पाठक भी मुश्किल में फंसे दिखाई दे रहे हैं उन्हें विजयराघवगढ़ के ही नीरज सिंह बघेल चुनौती दे रहे हैं।ये चंद महत्वपूर्ण सीटों का अभी तक दिखाई देता दृश्य है आगे की परिस्थितियों में कितना कैसा परिवर्तन होगा ये अभी अंधेरे में है। बड़ी बात ये है कि भाजपा परस्पर एक दूसरे को निपटाने उतारु है कांग्रेस में भी सत्ता की ललक ने माहौल को कहीं कहीं बिगाड़ा है किंतु जनपक्ष जिस तरह भाजपा से बदला लेने की बात करता नज़र आ रहा वह बता रहा है कि भाजपा के सितारे मध्यप्रदेश में गर्दिश में हैं।