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इस देश में एक ही रंगीला है….दूसरे की कल्पना करना ही जुर्म

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राकेश अचल

हम तेजी से एक देश,एक निशान,एक विधान ,एक नेता ,एक भगवान की और आगे बढ़ रहे हैं ,इसीलिए हमें इस देश में रंगीला भी एक चाहिए । दूसरा कोई रंगीला हम बर्दाश्त नहीं कर सकते,फिर चाहे वो श्याम रंगीला हो या राम रंगीला। इस देश में एक ही रंगीला है। दूसरे की कल्पना करना ही जुर्म है । राष्ट्रद्रोह है।
वाराणसी के श्याम रंगीला को कल तक कोई नहीं जानता था,लेकिन आज पूरा देश जान गया है। श्याम रंगीला हास्य कलाकार है। हमारे यहां हास्य कलाकारों को पहले जोकर ,बाद में विदूषक और अब कॉमेडियन कहा जाता है। कॉमेडियन श्याम रंगीला बनारस से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहते थे ,लेकिन उनका नामांकन खारिज हो गया है। उन्होंने वाराणसी से पर्चा भरा था. जांच के बाद श्याम रंगीला का पर्चा खारिज हो गया।
नामांकन रद्द होने के बाद उन्होंने कहा कि ‘वाराणसी से नहीं लड़ने देंगे यह तय था, अब साफ हो गया। दिल जरूर टूट गया है, हौंसला नहीं टूटा है.। श्याम रंगीला की तरह 32 और लोगों के नामांकन पात्र ख़ारिज कर दिए। जिला निर्वाचन अधिकारी की मजबूरी थी कि वो ऐसा करे । यदि न करता तो उसकी छुट्टी हो जाती। बाकी का तो पता नहीं लेकिन श्याम रंगीला के नामांकन को लेकर देश में अच्छी प्रतिक्रिया नहीं आयी है।
बनारस में माननीय मोदी जी को हराना फिलहाल किसी के बूते की बात नहीं है । कांग्रेस के अजय राय की भी नहीं ,फिर भी राय लगातार तीसरी बार माननीय मोदी जी के सामने खड़े हुए हैं। जिला निर्वाचन अधिकारी का बस नहीं चलता अन्यथा वो राय साहब का नामांकन भी उसी तरह ख़ारिज कर देता जिस तरह सूरत में हुआ ,जिस तरह खजुराहो में हुआ। जहाँ नामांकन रद्द नहीं हो सकता वहां सत्तारूढ़ दल प्रतिद्वंदी पार्टी के उम्मीदवार को खरीद लेता है या नाम वापस करा लेता है।
रंगीला यदि चुनाव लादते तो कोई आसमान नहीं टूट जात। रंगीला की तरह अन्य 32 लोग भी यदि मोदी जी के खिलाफ खड़े रहते तो भी आसमान को नहीं टूटना था लेकिन मोदी जी का दिल जरूर टूट जाता । जिला निर्वाचन अधिकारी को बनारस में ज्यादा से ज्यादा ईवीएम लगना पड़ती । मुमकिन है कि मोदी जी का नाम मशीन में पहले -दूसरे नंबर के बजाय सबसे नीचे होता। यदि ऐसा होता तो मुमिकन है कि मतदाता मोदी जी के कमल निशान तक पहुँच ही न पाता। रंगीला का दिल तोड़ने का काम निर्वाचन अधिकारी ने दिल पर पत्थर रखकर किया है। आखिर अघोषित राजाज्ञा भी तोकोई चीज होती है।
मैंने कल ही कहा था कि आज के लोकतंत्र में आम आदमी के लिए चुनाव लड़ने का कोई अवसर नहीं बचा है । करोड़,दस करोड़ नहीं बल्कि हजारों करोड़ के मालिक ही अब चुनाव लड़ते है ,लड़ सकते हैं। श्याम रंगीला जैसों को ये अधिकार नहीं है और यदि है तो उसे आसानी से छीना जा सकता है। श्याम रंगीला में इतनी कूबत नहीं है कि वो बनारस के जिला निर्वाचन अधिकारी के फैसले के खिलाफ किसी बड़ी अदालत का दरवाजा खटखटाये। श्याम रंगीला को चुप होकर घर ही बैठना पडेगा। यदि वो जिद करेगा तो उसे कॉमेडी करने से भी रोक दिया जाएगा ,क्योंकि कॉमेडी करने पर भी एकाधिकार माननीय का है। वे देश के सबसे बड़े स्टेंडअप कमेडियन हैं। उनकी भाव मुद्राएं क्रूज पर साक्षात्कार देते समय अलग और रैली में अलग होती हैं। उनका अभिनय बहुआयामी है। ,उनके कपडे सब हास्य बोध करते हैं।
जिस देश में एक निशान,एक विधान,एक जुबान ,एक खानपान का सपना देखा जा रहा हो उस देश में श्याम रंगीला चुनाव कैसे लड़ सकता है ?माननीय के खिलाफ चुनाव लड़ने से रंगीला को केवल सुर्खियां मिलतीं ,दुर्भाग्य से सुर्ख़ियों पर भी माननीय का एकाधिकार कहिये या कॉपी राइट कहिये, है। आम आदमी को सुर्खी में रहने का भी अधिकार नहीं है। उसे केवल एक अधिकार प्राप्त है और वो है मताधिकार। गनीमत है कि एक दशक पुरानी सत्ता ने उससे उसका ये वाला मताधिकार नहीं छीना है। अभी तक सत्ता पक्ष की और से ये हौवा खड़ा नहीं किया गया है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आ गयी तो आपके मंगलसूत्र,मकान और भैंसों के साथ ही आपका मताधिकार छीन लिया जाएगा।
देश में एक जमाने में रंगीला की तरह बहुत से ऐसे नागरिक थे जो अपनी सांकेतिक उपस्थिति से चुनाव को रोचक बनाया करते थे । हमारे अपने शहर ग्वालियर में एक जमाने में धरतीपकड़ हुआ करते थे। अनेक चायवाले थे लेकिन उनके नामांकन को कभी किसी प्रतिद्वंदी नेता ने न ख़ारिज कराया और न उसके खड़े होना का बुरामाना ,लेकिन अब दुनिया ही नहीं हमारा देश भी बदल रहा है। रंगीला और धरतीपकड़ की भूमिका हमारे सत्तारूढ़ दल के नेता खुद निभा सकते हैं ,निभा रहे हैं। निभा इसलिए रहे हैं क्योंकि उनकी अपनी कोई विरासत नहीं है। इसलिए मजबूरी में भाजपा को भी उन्हीं ज्योतिषियों का सहारा लेना पड़ रहा है ,जिनका सहारा दूसरे लोग भी लेते हैं।
मै अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मैंने विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन मेरे प्रतिद्वंदी तबके सत्तारूढ़ दल के मंत्री बालेंदु शुक्ल ने मेरा नामांकन रद्द नहीं कराया। मुझे चुनाव लड़ने दिया। मुझे खरीदने की कोशिश नहीं की। मुझे धमकाने की कोशिश नहीं की । जिला निर्वाचन अधिकारी से कुछ नहीं कहा ,क्योंकि जब मैंने चुनाव लड़ा था तब मोदी युग नहीं था। शायद मोदी जी भी तब कहीं नहीं थे। यदि रहे भी होंगे तो उन्हें लोग श्याम रंगीला जितना भी शायद न जानते हों। इंदिरा गाँधी को रायबरेली से चुनाव हारने वाले राजनारायण जी भी समाजवादी राजनीति के श्याम रंगीला थे। एकदम फक्क्ड़ । बात-बात पर हंसाते थे ,खुद भी हसंते थे ,लेकिन राजनीति भी जमकर करते थे। मुझे लगता है कि भाजपा को श्याम रंगीला में कहीं राजनारायण के दर्शन तो नहीं हो गए।
बहरहाल श्याम रंगीला के साथ जो हुआ ,वो नहीं होना चाहिए था । चुनाव लड़ने वाले किसी भी नागरिक के साथ नहीं होना चाहिए। यदि ऐसा हो रहा है तो इसके लिए देश और लोकतंत्र शर्मिंदा है। गनीमत है कि हम भारत में रहते हैं ,स्लोवाकिया में नहीं। हालाँकि हम स्लोवाकिया की तरह अपने ही अनेक नेताओं के कत्ल के आरोपी रहे हैं। ईश्वर करे कि देश में कभी कोई सिरफिरा पैदा न हो। फिर हमारे नेताओं के जिस्म छलनी न हों। ये सुनिश्चित करने के लिए हमें श्याम रँगीलाओं को संरक्षण देना होगा । उन्हें चुनाव लड़ने का मौक़ा देना होग। अन्यथा लोकतंत्र को लोकतंत्र कहने में संकोच होगा। अठारहवीं लोकसभा के लिए हो रहे मतदान के बाकी के चरणों में निर्वाचन अधिकारी किसी की कठपुतली न बनें। किसी को चुनाव लड़ने से जानबूझकर न रोकें। क्योंकि अभी इस देश में एक निशान है,एक संविधान है। एक किसान है ,एक जवान है। समृद्ध अतीत है और संभावनाओं से भरा भविष्य है। वर्तमान कैसा है वो आपके सामने है ही ।

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