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*प्रसंगवश : शिवलिंग की प्रतीकात्मकता, यौनसाधना और सत्यानुभूति

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 डॉ. प्रिया मानवी

    _पार्वती की योनि में स्थापित शिवलिंग के प्रतीक का दर्शन अनूठा है.. शिवलिंग में सम्भोग से सत्य तक का पूरा दर्शन छुपा है. शिवलिंग में दो जान एक जिस्म से परे, ‘एक जान एक  एक ज़िस्म’ होकर अर्धनारीश्वर की यानी अद्वैत की अवस्था का पूरा मर्म छुपा है. शिवलिंग में आपकी आत्मा का पूरा आकार छिपा है। आपकी आत्मा की ऊर्जा एक वर्तुल में घूम सकती है, यह भी छिपा है।_

    जिस दिन आपकी ऊर्जा आपके ही भीतर घूमती है और आपमें ही लीन हो जाती है, उस दिन शक्ति भी नहीं खोती और आनंद भी उपलब्ध होता है। फिर जितनी ज्यादा शक्ति संगृहीत होती जाती है, उतना आनंद बढ़ता जाता है। और जल्दी ही एक घड़ी आ जाती है, जब आप बिना कुछ खोए, बिना कुछ दिए, बिना कुछ लगाए दांव पर, आनंद को पाते हैं। शिवलिंग से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतिमा पृथ्वी पर कभी नहीं खोजी गई।

अकारण आनंद जिस दिन मिलने लगता है–और यह जो अकारण आनंद की दशा है, इसको सच्चिदानंद कहा है–पूरे अस्तित्व के साथ संभोग शुरू हो जाता है। होना ही संभोग का रूप हो जाता है। आपका होना, श्वास लेना भी संभोग का स्वरूप हो जाता है।

     _भीतर श्वास गई और आनंद से भर जाता है। बाहर श्वास गई और आनंद से भर जाता है। फिर आनंद के लिए कुछ विशेष आयोजन नहीं करने होते। जो भी हो रहा है, वही आनंद हो जाता है। धूप में बैठे हैं और सूरज की किरणें चेहरे पर पड़ रही हैं, तो वहां भी आनंद हो जाता है। और आनंद संभोग जैसा हो जाता है। सभी आनंद का स्वभाव संभोग जैसा है।_

      हमने शंकर की प्रतिमा को, शिव की प्रतिमा को अर्धनारीश्वर बनाया है। शंकर की आधी प्रतिमा पुरुष की और आधी स्त्री की–यह अनूठी घटना है। 

 जो लोग भी जीवन के परम रहस्य में जाना चाहते हैं, उन्हें शिव के व्यक्तित्व को ठीक से समझना ही पड़ेगा। और सब देवताओं को हमने देवता कहा है, शिव को महादेव कहा है। उनसे ऊंचाई पर हमने किसी को रखा नहीं। उसके कुछ कारण हैं। क्योंकि उनकी कल्पना में हमने सारा जीवन का सार और कुंजियां छिपा दी हैं। 

       _अर्धनारीश्वर का अर्थ यह हुआ कि जिस दिन परमसंभोग घटना शुरू होता है, आपका ही आधा व्यक्तित्व आपकी पत्नी और आपका ही आधा व्यक्तित्व आपका पति हो जाता है। आपकी ही आधी ऊर्जा स्त्रैण और आधी पुरुष हो जाती है। है ही वैसा। और इन दोनों के भीतर जो रस और जो लीनता पैदा होती है, फिर शक्ति का कहीं कोई विसर्जन नहीं होता। लेकिन यह नामर्द से संभव नहीं होता. मिक्सप में कम से कम एक घंटे का लैंगिक ऐक्टिवनेश ज़रूरी होता है. यह केपेसिटी मेडिटेटिव सेक्स देता है. संबधित मेडिटेशन हमसे निःशुल्क सीखा जा सकता है._

अगर आप बायोलाजिस्ट से पूछें आज, तो वह राजी है। वे कहते हैं, हर व्यक्ति दोनों है, बाई-सेक्सुअल है। वह आधा पुरुष है, आधा स्त्री है। होना भी चाहिए, क्योंकि आप पैदा एक स्त्री और एक पुरुष के मिलन से हुए हैं।

     _तो आधे-आधे आप होना ही चाहिए। अगर आप सिर्फ मां से पैदा हुए होते, तो स्त्री होते; सिर्फ पिता से पैदा हुए होते, तो पुरुष होते। लेकिन आपमें पचास प्रतिशत आपके पिता और पचास प्रतिशत आपकी मां मौजूद है।_

   तो आप आधे-आधे होंगे ही। आप न तो पुरुष हो सकते हैं, न स्त्री हो सकते हैं–अर्धनारीश्वर हैं। 

        _बायोलाजी ने तो अब खोजा है इधर पचास वर्षों में, लेकिन हमने अर्धनारीश्वर की प्रतिमा में, आज से कम से कम पचास हजार साल पहले, इस धारणा को स्थापित कर दिया। और यह धारणा हमने कोई बायोलाजी, जीव-शास्त्र के आधार पर नहीं खोजी, यह हमने खोजी योगी के अनुभव के आधार पर।_

      क्योंकि जब ध्यानी इंसान भीतर लीन होता है, तब वह पाता है कि मैं दोनों हूं, प्रकृति भी और पुरुष भी; मुझमें दोनों मिल रहे हैं; मेरा पुरुष मेरी प्रकृति में लीन हो रहा है; मेरी प्रकृति मेरे पुरुष से मिल रही है; उनका आलिंगन अबाध चल रहा है; वर्तुल पूरा हो गया है। 

मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि आप आधे पुरुष हैं और आधे स्त्री हैं। आपका चेतन पुरुष है, आपका अचेतन स्त्री है। अगर आपका चेतन स्त्री का है, तो आपका अचेतन पुरुष है। और उन दोनों में एक मिलन चल रहा है। 

      _जगत द्वंद्व से निर्मित है, इसलिए आप दो होंगे ही। आप बाहर खोज रहे हैं स्त्री को, क्योंकि आपको भीतर की स्त्री का पता नहीं। आप बाहर खोज रहे हैं पुरुष को, क्योंकि आपको भीतर के पुरुष का पता नहीं।_

      इसीलिए, कोई भी पुरुष मिल जाए, तृप्ति न होगी, कोई भी स्त्री मिल जाए, तृप्ति न होगी। क्योंकि भीतर जैसी सुंदर स्त्री बाहर पाई नहीं जा सकती।

     _इसलिए समग्र प्रेम से पूर्ण और लम्बा संभोग ज़रूरी है. कम से कम इतना लम्बा तो अवश्य की नायिका बस बस कहती हुई बेसुध हो जाये._

   आपके पास, सबके पास, एक ब्लू-प्रिंट है। वह आप जन्म से लेकर घूम रहे हैं। इसलिए आपको कितनी ही सुंदर स्त्री मिल जाए, कितना ही सुंदर पुरुष मिल जाए, थोड़े दिन में बेचैनी शुरू हो जाती है, लगता है कि बात बन नहीं रही।

 अमूमन सभी प्रेमी असफल होते हैं : क्योंकि महज भौतिकता के तल पर बात बननी करीब-करीब असंभव है। 

वह जो प्रतिमा आप भीतर लिए हैं, वैसी प्रतिमा जैसी स्त्री या पुरुष आपको अगर कभी मिले, तो शायद वास्तविक तृप्ति हो सकती है।

   लेकिन वैसी स्त्री/पुरुष का आम तौऱ पर आपको कहीं मिलना नहीं होता है। उसके मिलने का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि जो भी स्त्री आपको मिलेगी, वह किन्हीं पिता और मां से पैदा हुई और उन पिता और मां की प्रतिछवि उसमें घूम रही है। आप अपनी प्रतिछवि लिए हुए हैं हृदय के भीतर। तो जो स्त्री मिले उसे अपनी आत्मा स्वीकारना होगा. इसी तरह जो पुरुष मिले उसे अपना सर्वस्व स्वीकारना होगा — अगर वह पौरुषहीन नहीं है तो.

      _जब आपको अचानक किसी को देखकर प्रेम हो जाता है, तो उसका कुल मतलब इतना होता है कि आपके भीतर जो प्रतिछवि है, उसकी ध्वनि किसी में दिखाई पड़ गई, बस। इसलिए पहली नजर में भी प्रेम हो सकता है, अगर किसी में आपको वह बात दिखाई पड़ गई, जो आपकी चाह है–चाह का मतलब, जो आपके भीतर छिपी स्त्री या पुरुष है–किसी में वह रूप दिखाई पड़ गया, जो आप भीतर लिए घूम रहे हैं, जिसकी तलाश है। बस इस अटैचमेन्ट को समग्र प्रेम और सशक्त संभोग के शिखर तक ले जाना होता है._

      [चेतना विकास मिशन)

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