अखिलेश अखिल
मणिपुर फिर से जलने लगा है। कई घर तबाह हो गए हैं और कई लोगों की जान भी पिछले चार दिनों के भीतर चली गई। जिस तरह से मणिपुर की नदियों में लाशें तैर रही हैं उससे तो साफ लगता है कि मणिपुर में रक्तपात चल रहा है। जो लाशें सामने आ रही हैं उसके बाद हंगामा शुरू होता है और जिन लोगों के लापता होने की खबर है उनके परिवार के लोग सरकार और दूसरे समुदाय को निशाना बना रहे हैं। इस निशाने में कुछ भी परहेज नहीं। जो सामने आया उसे मर दो की रणनीति अपनाई जा रही है। सरकारी तंत्र बेकार हो चला है और सरकारी तंत्र पर चरमपंथी संगठनों का कब्जा होता दिख रहा है। और यह सब पिछले पांच सौ दिनों से मणिपुर में चल रहा है।
जिस तरह का माहौल है और जिस अंदाज में मणिपुर को अर्धसैनिक बलों के हवाले किया जा रहा है उससे तो साफ़ हो गया है कि मणिपुर में अब राष्ट्रपति शासन निश्चित है। एक चुनी हुई सरकार का पतन होना निश्चित है और यह सब बीजेपी सरकर की वजह से ही संभव होता दिख रहा है। लेकिन इससे भी बड़ी बात तो यह है कि मणिपुर दो हिस्सों में बंट सकता है। कांग्रेस ने जिस तरह की बात को उजागर किया है उससे तो यही लगता है कि मणिपुर को इसलिए ही जलाया जा रहा है ताकि मणिपुर दो हिस्सों में बाँट जाए।
मणिपुर के वर्तमान मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को पहले अगर हटा दिया गया होता तो संभव था कि मणिपुर में इतनी वीभत्स हिंसा नहीं होती। लेकिन बीजेपी की केंद्र सरकार ने ऐसा नहीं किया और अब मणिपुर में चारों तरफ दहशत, हिंसा, आग और नफरत का मंजर है। इस मंजर में कब किसकी जान चली जाये और कितने घर तबाह हो जाए यह भला कौन जनता है?
यह पोस्ट लिखते समय ही मणिपुर को लेकर केंद्र सरकार हरकत में है। गृहमंत्री अमित शाह महाराष्ट्र चुनावी दौरे को रद्द करते हुए दिल्ली से मणिपुर को साध रहे हैं। मणिपुर में चप्पे -चप्पे पर सुरक्षा बलों की तैनाती अब बहुत कुछ कह रही है। संचार और यातायात के कई साधनों को बंद कर दिया गया और कह सकते हैं कि वहां खतरे के सायरन बज रहे हैं। देखते ही गोली मारो के आदेश चल रहे हैं। लेकिन चरमपंथी कहाँ रुकने वाले !
मणिपुर के कुछ इलाकों में जहां पर कर्फ्यू में ढील दी गई थी वहां दोबारा कर्फ्यू लगाया गया है। कुछ इलाकों में इंटरनेट की सेवा भी सस्पेंड की गई है। मणिपुर के बिश्नुपुर, इंफाल, जिरीबाम इलाकों में ज्यादा तनाव है। ऐसे में यहां फिर से कर्फ्यू लगाया गया है।
गौरतलब है कि मणिपुर की ताजा हिंसा जिरीबाम में पिछले दिनों अगवा किए गए एक ही परिवार की तीन महिलाओं और तीन बच्चों के शव शनिवार को असम-मणिपुर सीमा पर बरामद होने के बाद शुरू हुई है। आरोप है कि कुकी उग्रवादियों ने इनका अपहरण कर लिया था। इस नृशंस हत्याकांड के बाद नाराज मैतेई लोग सड़क पर उतर आए हैं और हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं। भीड़ ने शनिवार को राज्य के तीन मंत्री और छह विधायक के घरों का घेराव कर तोड़फोड़ की थी। मंत्रियों के घरों पर हमलों के बाद गुस्साई मैतेई भीड़ ने मणिपुर के सीएम के घर पर धावा बोलने की कोशिश की थी।
वैसे तो मणिपुर में कुकी-मैतेई के बीच चल रही हिंसा को लगभग 500 दिन हो गए। इस दौरान 237 मौतें हुईं, 1500 से ज्यादा लोग जख्मी हुए, 60 हजार लोग घर छोड़कर रिलीफ कैंप में रह रहे हैं। करीब 11 हजार एफआईआर दर्ज की गईं और 500 लोगों को अरेस्ट किया गया। याद रहे यह वह आंकड़ा है जिसे सरकार भी स्वीकार करती है लेकिन उन आंकड़ों के बारे में कोई भी कुछ नहीं कह सकता जिनकी मौत कई कारणों से हुई है। खबर के मुताबिक़ सैकड़ों लोग लापता बताये जा रहे हैं जबकि दर्जनों महिलाओं का कोई आता -पता नहीं है। महीनों से लगभग सभी स्कूल और कॉलेज बंद पड़े हैं। सड़क पर चलती भीड़ में कब तबाही मच जाए और कब किसकी जान चली जाए यह भी कोई नहीं जानता।
पिछले पांच सौ दिनों की हिंसक गाथा को ही पैबस्त किया जाए तो इस दौरान महिलाओं की न्यूड परेड, गैंगरेप, जिंदा जलाने और गला काटने जैसी कितनी घटनाएं हुई हैं, कहा नहीं जा सकता। मामला शीर्ष अदालत तक भी पहुंचा था लेकिन हुआ तो कुछ भी नहीं। प्रधानमंत्री देश और दुनिया की सैर जरूर करते रहे हैं लेकिन मणिपुर से वे क्यों आँख छुपा रहे हैं यह भी किसी को पता नहीं है। आज तक मोदी मणिपुर नहीं जा पाए। आम लोग भी मानते हैं कि अगर पीएम मोदी खुद जाकर मणिपुर का दौरा करते और लोगों से बातचीत करते तो संभव था कि मणिपुर शांत हो जाता।
कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मणिपुर इसलिए नहीं जा रहे हैं क्योंकि वहां की एक बड़ी आबादी से उन्हें विरोध का सामना करना पड़ सकता है। और बीजेपी को यह भी लग रहा है कि अगर मणिपुर पर कोई कार्रवाई होती है तो वहां राष्ट्रपति शासन लगाना ही अंतिम काम होगा और ऐसा बीजेपी चाहती नहीं है। अगर राष्ट्रपति शासन लग जाये तो एक राज्य बीजेपी के शासन से मुक्त हो जाएगा।
मणिपुर दो हिस्सों में बंटा है। पहाड़ी जिलों में कुकी हैं और मैदानी जिलों में मैतेई। दोनों के बीच सरहदें खिंची हैं, जिन्हें पार करने का मतलब है मौत। बता दें कि हालिया हिंसा के बाद मणिपुर में सिविल सोसायटी ग्रुप ने राज्य सरकार को 24 घंटे का अल्टीमेटम जारी कर सशस्त्र उग्रवादी समूहों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की मांग की है।
मैतेई नागरिक अधिकार समूह, मणिपुर इंटीग्रिटी समन्वय समिति के प्रवक्ता खुरैजम अथौबा ने कहा, “राज्यों के सभी प्रतिनिधियों और सभी विधायकों को एक साथ बैठकर इस संकट को जल्द से जल्द हल करने के लिए कुछ निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए।” “अगर वे मणिपुर के लोगों की संतुष्टि के अनुसार कोई फैसला नहीं लेते हैं, तो उन्हें लोगों के असंतोष का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। हमने भारत सरकार और मणिपुर सरकार को सभी सशस्त्र समूहों के खिलाफ कुछ निर्णायक कार्रवाई और सैन्य कार्रवाई करने के लिए 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया है।”
उधर मैतेई समुदाय के लोगों ने राज्य के दो मंत्रियों और चार विधायकों के घरों पर हमला कर दिया है। प्रदर्शनकारी विधायकों के घरों में घुस गए। उन्होंने पुलिस के ऊपर पथराव किया और कई जगह आगजनी की। असल मे मणिपुर के जिरीबाम इलाके में जिरी नदी में एक महिला और दो बच्चों के शव बहते हुए मिला था। इसके बाद से राज्य के कई जिलों में विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, जो अब हिंसक हो गया है।
पुलिस ने कहा कि जिरीबाम जिले में तीन लोगों की हत्या के लिए न्याय की मांग करते हुए प्रदर्शनकारी मणिपुर के कम से कम दो मंत्रियों और चार विधायकों के घरों में घुस गए। विधायकों के घरों पर भीड़ के हमलों के कारण इम्फाल पश्चिम प्रशासन को जिले में अनिश्चितकाल के लिए निषेधाज्ञा लागू करनी पड़ी। इसके अलावा घाटी के हिंसा प्रभावित पांच जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है।
इम्फाल पश्चिम जिले के सगोलबंद इलाके में आंदोलनकारी भाजपा विधायक आरके इमो के आवास के सामने इकट्ठा हुए और नारेबाजी की। गौरतलब है कि आरके इमो मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के दामाद हैं। प्रदर्शनकारियों ने तीन लोगों की हत्या के मामले में अधिकारियों से 24 घंटे के भीतर दोषियों को गिरफ्तार करने की मांग की है।
गौरतलब है कि पिछले हफ्ते कुकी समुदाय के उग्रवादियों ने एक थाने और सीआरपीएफ की चौकी पर हमला करने का प्रयास किया। इस दौरान मुठभेड़ में 10 संदिग्ध कुकी उग्रवादी मारे गए। उसके बाद खबर आई कि कुकी उग्रवादियों के हमले में गांव में मैतेई समुदाय के लोग मारे गए हैं और छह लोग राहत शिविर से लापता हैं। उनको अगवा कर लिए जाने की आशंका थी। माना जा रहा है कि जिरी नदी में बरामद शव उन्हीं छह लोगों में से तीन लोगों के हैं। अब माना जा रहा है कि अगले 24 घंटे में मैतेई समुदाय के आंदोलन और तेज होगा। तब हिंसा बढ़ सकती है।
मणिपुर हिंसा को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला है। खड़गे ने कहा कि भाजपा की डबल इंजन की सरकार में मणिपुर न तो सुरक्षित है और न ही एक रहा है। खड़गे ने भाजपा सरकार पर बंटवारे की राजनीति करने का गंभीर आरोप लगाया।
कांग्रेस अध्यक्ष ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर साझा एक पोस्ट में प्रधानमंत्री मोदी को संबोधित करते हुए लिखा कि ‘आपकी डबल इंजन की सरकार में न मणिपुर एक है और न ही सेफ है। मई 2023 से मणिपुर अकल्पनीय दर्द, बंटवारे और हिंसा से गुजर रहा है, जिससे इसके लोगों का भविष्य तबाह हो गया है। हम ये पूरी जिम्मेदारी से कह रहे हैं कि ऐसा लगता है कि बीजेपी जानबूझकर मणिपुर को जलते रहने देना चाहती है ताकि अपने बंटवारे की राजनीति को जारी रख सके।’
खड़गे ने कहा कि मणिपुर में बीजेपी सरकार पूरी तरह से असफल रही है और राज्य के लोग कभी भी इसके लिए भाजपा को माफ नहीं करेंगे। खड़गे ने लिखा कि ‘मणिपुर में 7 नवंबर से अब तक 17 लोगों की जान जा चुकी है और सीमावर्ती राज्य में हिंसा बढ़ती जा रही है। अगर आप भविष्य में मणिपुर का दौरा करते हैं तो राज्य के लोग कभी भी आपको न माफ करेंगे और न ही ये भूलेंगे कि आपने उनके साथ क्या किया।’
बता दें कि मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतेई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं और एसटी वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50 फीसदी है। राज्य के करीब 10 फीसदी इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई बहुल है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90 फीसदी इलाके में रहते हैं।
मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाए।
मैतेई मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्रायंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में एसटी वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा। यह भी बता दें कि मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 सीएम में से दो ही जनजाति से रहे हैं।