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सबसे बड़ा पेपर लीक प्रधान देश बना भारत 

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मुनेश त्यागी

     पिछले कई दिनों से देश में पेपर लीक की खबरें छाई हुई हैं। पेपर देने वाले समस्त छात्र-छात्राओं और उनके परिवार वालों में बेहद बेचैनी व्याप्त हो गई है।मोदी सरकार के रोजगार मंत्री को पेपर लीक हुई कई परीक्षाओं को रद्द करना पड़ा है। पिछले दस सालों के मोदी सरकार में सतत्तर से ज्यादा पेपर लीक हुए हैं।इस प्रकार पेपर लीक मामलों में भारत सच में विश्व गुरु बन गया है।

      हमारे देश में परीक्षाओं पर परीक्षाएं जारी हैं,  मगर हमारे नौजवान बच्चों को नौकरियां नहीं मिल रही हैं। अब तो पूरे देश में पेपर लीक की घटनाएं हो रही हैं और इनमें हरियाणा, बिहार, गुजरात और मध्य प्रदेश ने सर्वोच्च स्थान हासिल कर लिया है। पेपर लीक के मामलों में 30-30, 40-40 लाख रुपए रिश्वत देने की खबरें आ रही हैं। इससे पहले परीक्षा में भ्रष्टाचार की चंद खबरें कभी-कभी आया करती थीं मगर अब तो पेपर लीक होने के मामलों ने सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं।

     पिछले 8-10 दिनों से पेपर लीक की खबरें पूरी मीडिया में छाई हुई हैं। इन्हें लेकर भारत की तमाम जनता में, छात्रों और नौजवानों में और जागरूक लोगों में बेचैनी छाई हुई है। वे सभी भारत के भविष्य को लेकर बेहद परेशान हैं। इन पेपर लीक घोटालों ने तो मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले को भी पीछे छोड़ दिया है। इस व्यापम घोटाले में आज तक सैकड़ों लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं, जिनमें दोषियों को आज तक भी समुचित और त्वरित सजा नहीं मिली है। वर्तमान पेपर लीक होने का यह भी एक मुख्य कारण है।

      वर्तमान केन्द्र ने सरकार ने इस सबसे ज्यादा बेचैन करने वाले मुद्दे पर जैसे चुप्पी साथ रखी है। पहले मोदी जी परीक्षा पर चर्चा करते थे, पर अब रिकॉर्ड ध्वस्त करने वाली पेपर लीक चर्चा पर चर्चा नहीं हो रही है और सारा देश पेपर लीक पर चर्चा की बाट जोह रहा है।

      वैसे विपक्षियों का यह कहना गलत है कि मोदी सरकार के सरकारी विभाग कुछ नहीं कर रहे हैं। अरे भाई, पेपर लीक ही सही, सरकारी विभाग कुछ तो कर रहे हैं, पैसा ले रहे हैं, अयोग्य परिक्षार्थियों को और आयोग लोगों को नौकरियां दे रहे हैं, भ्रष्टाचार का बाजार गर्म है, और यह मुद्दा सुर्खियों में छाया हुआ है। यह काम कोई छोटा काम है क्या?

     यहां पर नेशनल टेस्ट एजेंसी के अध्यक्ष प्रदीप जोशी के बारे में चर्चा करना बहुत जरूरी है। वह एनडीए के अध्यक्ष के रूप में ऑलराउंडर की भूमिका की पारी खेल रहा है, वह छक्कों और चौकों की बौछार कर रहा है। एनटीए का वर्तमान अध्यक्ष प्रदीप जोशी पहले एबीवीपी के अध्यक्ष था और बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सिफारिश पर एमपी, सीजी तथा यूपीएससी का अध्यक्ष रहा। इन्हीं के कार्यकाल में एमपी में विश्व विख्यात व्यापम घोटाला हुआ था।

      यहीं पर नौकरियों की स्थिति पर एक नजर डालना जरूरी है। कोलकाता में मुर्दाघर में “डोम” पदों की भर्ती में इंजीनियर और पोस्ट ग्रेजुएट आवेदक शामिल हुए, जिसमें मासिक वेतन ₹15000 है। मुर्दाघर के डोम के पद आवेदकों में 1000 इंजीनियर, 500 पोस्ट ग्रेजुएट, 220 ग्रेजुएट शामिल हुए और इनमें से 784 को लिखित परीक्षा के लिए बुलाया गया जिनमें 84 महिलाएं शामिल थीं। इसी प्रकार चपरासी के पदों के लिए भी पोस्ट ग्रैजुएट, इंजीनियर और पीएचडी जैसी डिग्रियां हासिल किए लोग आवेदन करते रहते हैं।

     यहां पर यह जानना भी जरूरी है की एनटीए 25 पब्लिक परीक्षाएं केवल 25 से भी काम स्थाई सदस्यों के द्वारा आयोजित करता है जो दूसरे विभागों से लिए गए हैं। उनके पास प्रशिक्षित और योग्य लोग नहीं हैं। बहुत सारा काम बाहरी लोगों से कराया जाता है। इसमें अयोग्य और लालची लोग भी घुस गए हैं। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस संस्था को फुल प्रूफ बनाएं ताकि विद्यार्थियों और मां-बाप का इसमें विश्वास बना रहे।

     सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती। पहले भी तो पब्लिक परीक्षाएं होती थीं, तब तो कोई पर्चा लीक नहीं होता था। अब क्या हो गया है? इसके लिए केवल और केवल सरकार जिम्मेदार है। इसके लिए किसी अन्य संस्था को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

     नौकरियों में हो रहे इन घोटालों के लिए केंद्र सरकार की नीतियां ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं।  केंद्र सरकार ने सभी नौकरियों को हड़प लिया है। जैसे उसने देश के फेडरल सिस्टम को गहरी चोट पहुंचाई है। केंद्र सरकार की नीतियां, राज्य सरकारों को संविधान के हिसाब से कार्य नही करने दे रही हैं।

    परीक्षाएं मुकम्मल तरीके से संपन्न न कराने के पीछे सरकार की एक साजिश काम कर रही है, वह यह है कि भारतीय संविधान के बुनियादी सिद्धांतों के अनुसार एससी, एसटी और ओबीसी के परीक्षार्थियों को आरक्षण देना पड़ेगा, इसलिए सही तरीके से परीक्षाएं ही मत कराओ और अपने जातिवादी, वर्णवादी और मनुवादी सोच के लोगों को अपने तरीके से नामचारे के लिए नौकरी पर रख लो। अगर यह जांच पूरी की जाए कि किन लोगों को नौकरियां मिली हैं तो पता चलेगा कि अधिकांश जातिवादी, वर्णवादी और मनुवादी संकीर्ण सोच के लोगों को ही नौकरियां पर रखा गया है, जो बिना किसी कानूनी संरक्षण के  विभाग अध्यक्षों के रहमों करम पर काम करने को बाध्य हैं और अब तो अधिकांश सरकारी विभागों में ठेका प्रथा के अनुसार कुछ कर्मचारियों को ही बिना किसी परीक्षा के अपनी मनमर्जी से काम पर रखा जा रहा है। स्थाई नौकरियां खत्म कर दी गई है और उन्हें न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता है और इनके खिलाफ आवाज उठाने वालों को तत्काल नौकरी से बाहर कर दिया जाता है, जिस कारण कोई भी कर्मचारी इन मनमानी नीतियों का विरोध करने की स्थिति में नहीं रह गया है।

      अब यहां पर यह जानना जरूरी है कि इन विपरीत परिस्थितियों में क्या हो? इसके लिए यह जरूरी है कि 1. केंद्र सरकार राज्यों को उनके काम करने दे, 2. नौकरियां राज्य केंद्र स्तर पर आयोजित ना कि जाकर राज्य स्तर पर आयोजित की जानी चाहिए, 3. नौकरियां और परीक्षाओं में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए जरूरी है कि इसमें केंद्र सरकार, विपक्षी पार्टियों को लेकर एक समिति बनाएं और इस समिति के तत्वाधान में समस्त पेपर लीक के मामलों की जांच होनी चाहिए, 4. जिन जिन परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं, उनकी फिर से निशुल्क परीक्षा होनी चाहिए और एक बार परीक्षा दे चुके परीक्षार्थियों से आने-जाने, खाने और ठहरने का खर्चा सरकार उठाए, 5. सरकार और विपक्षी पार्टियों की संयुक्त टीम की देखरेख में भविष्य की सभी परीक्षाएं आयोजित की जाएं, 6. पेपर लीक में शामिल सभी अधिकारियों, कर्मचारियों और अपराधियों को सख्त से सख्त आजीवन कारावास की सजा, तीन महीने के अंदर दी जाए, 7. पेपर लीक मामले में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों सख्ती से, बिना किसी देर और ढील के त्वरित न्याय करें और 8. परीक्षाओं में हो रही सभी काउंसलिंग पर तत्काल रोक लगाई जाए, और 9. इस बहुत ही महत्वपूर्ण संस्था में प्रशिक्षित, स्थाई और योग्य लोगों को नियुक्त किया जाए और तमाम तरह के भ्रष्टाचारियों और बेईमानी पूर्ण कदमों पर रोक लगाई जाए।

     आज भारत का भविष्य खतरे में है। देश की सरकार इस मामले में ढील दे रही है। वह पेपर लीक होने वाले मामलों में के तमाम दोषियों को तुरंत और सख्त सजा देने के लिए तैयार नहीं है। भारत की नौजवानी का भविष्य आज खतरे में है। देश की सारी विपक्षी पार्टियां, नौजवान और छात्र देशव्यापी संयुक्त संघर्ष द्वारा इस नौकरी विरोधी और घपलेबाज व्यवस्था के खात्मे के लिए एकजुट हों, क्योंकि जब तक मनुवादी शक्तियां राज्यों और केंद्र की सरकारों में बैठी हैं, तब तक भारत में नौजवानों और छात्रों का भविष्य गम्भीर खतरे में है।

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