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भारत दर्शन : हमारे कुछ ऎसे गांव, जो दुनिया में कहीं नहीं

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नीलम ज्योति

*(1). मलाणा – खुद का संविधान*

    हिमाचल प्रदेश के इस गाँव का खुद का अलग संविधान और नियम हैं। मनाली से ८३ किलोमीटर दूर पार्वती घाटी मे स्थित, मलाणा गाँव देश का एक रहस्यमयी गाँव है।

      इस गाँव के लोग खुद को सिकंदर के वंशज मानते है, और यह गाँव विश्व की सबसे पुरानी लोकशाही के रूप मे जाना जाता है। यह गाँव विश्वभर मे इसके चरस, गाँजा और भाँग के लिए मशहूर है।

     यहा की भाँग, विश्व की श्रेष्ठ भाँग के रूप मे जानी जाती है, जिसको लोग ‘मलाणा क्रीम’ कहते है । गाँव की मुख्य आय का स्त्रोत चरस और गाँजा ही है । यहा आपको छोटे छोटे बच्चे भी, यह बेचते हुए मिलेंगे । १७०० लोगों की बस्ती वाला यह गाँव देश परदेश के प्रवासियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

    इस गाँव के लोग ‘कनाशी’ नाम की भाषा बोलते है, जो पूरे विश्व मे सिर्फ इसी गाँव मे बोली जाती है ।गाँव के लोग, यह भाषा बाहर की किसी भी व्यक्ति को नहीं सीखाते । गाँव मे लोकतंत्र की बेहतरीन व्यवस्था है, गाँव के खुद के दो सदन है । जिसमे निचले सदन को ‘कनिष्थाँग’ और उच्च सदन को ‘जयेशथाँग’ कहते है।

     गाँव मे देश परदेश के प्रवासियों की आव-जाही रहती ही है, फिर भी गाँव के लोग उनसे ज्यादा बात नहीं करते और दूर ही रहते है।

*(2). पिपलांत्री : डेनमार्क के पाठ्यक्रम में*

       राजस्थान के उदयपुर से ७० किलोमीटर दूर ५१०० लोगों की बस्ती वाले इस गाँव को डेनमार्क के पाठ्यपुस्तक मे स्थान मिला है।

      गाँव के लोगों ने मिलकर इस गाँव का ऐसा विकास किया है की, देश परदेश के प्रवासियों को भी यहा रहने की इच्छा होने लगती है । ‘पानी,पेड़ और बेटी’ इस सूत्र को गाँव के लोगों ने आत्मसात किया हुआ है।

      एक समय था, जब गाँव के लोग अकाल, पानी की किल्लत, बेरोजगारी, संसाधनों का अभाव जैसी समस्या से परेशान रहते थे । मगर, साल २००५ मे आए नए युवा सरपंच श्री श्याम सुंदर पालीवाल ने इस गाँव की विकासयात्रा का प्रारंभ किया, उसके बाद से यह गाँव विकासयात्रा के पंथ पर आज भी निरंतर दौड़ रहा है।

       गाँव मे लोगों को बेटी के जन्म पर १११ पेड़ लगाने होते है । सिर्फ यही नहीं , लड़कियां बोझ न समझी जाएं, वो बड़ी होकर किसी के आगे हाथ न फैलाएं, इसलिए उनके जन्म के साथ ही इसका भी इंतजाम हो जाता है। सरकार ने भले ही आज लड़कियों के लिए तमाम योजनाएं शुरु कि हो लेकिन इस गांव में डेढ़ दशक से ये हो रहा है।

       बेटी के जन्म लेने पर उसके पिता से १० हजार रूपये लिए जाते है और उसमें गांव वालों की ओर से एकत्रित किए २१ हजार रुपये मिलाकर उस रकम को लड़की के नाम से खोले गए बैंक खाते में बीस वर्ष के लिए जमा कर देते है, ये पैसे बच्ची की पढ़ाई से लेकर उसके शादी-बारात में काम आते हैं।

      आज गाँव मे हजारों बीघे मे ग्वारपाठा की खेती होती है। गाँव मे लगभग २५००० से भी ज्यादा आमला के पेड़ है। कई विदेशी संशोधकों और संस्थाओ ने पिपलात्री गाँव की विकासयात्रा पर संशोधन किए है और डाक्यूमेंट्री फिल्मे भी बनाई है। हिन्दी मे भी इस गाँव पर पिपलांत्री नाम से ही फिल्म बनी है।

*(3). मावल्यान्नॉंग – भगवान का बगीचा*

         मेघालय. भारत और बांग्लादेश की सरहद के नजदीक ये मावल्यान्नॉंग गाँव बस हुआ है। इस गाँव को लोग ‘भगवान का बगीचा’ भी कहते है। यह गाँव अपने मातृवंश समाज और एशिया का सबसे स्वच्छ ग्राम होने के लिए जाना जाता है। साल २००३ मे डिस्कवरी इंडिया द्वारा इस गाँव को ‘एशिया के सबसे स्वच्छ गाँव’ उपाधि मिली है।

     स्वच्छ भारत अभियान तो हाल ही मे आया, मगर इस गाँव के लोगों के लिए स्वच्छता तो पीढ़ियों से चली आ रही है । यहा बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी लोग स्वच्छता के प्रति गंभीर है। गाँव के सभी मार्ग बिल्कुल स्वच्छ और बेदाग है,और मार्ग के दोनों तरफ फूल के पौधे है।

      पूरे गाँव मे आपको कुछ अंतर पर ही बांस से बनी कचरे की पेटी मिल जाएंगी । इस गाँव का साक्षरता दर भी पूरे १०० प्रतिशत है।

*(4). करचोंड़ –  लिव इन रिलेशनशिप ही धर्म*

      स्त्री-पुरुष सामाजिक बंधन मे बंधे बिना ही, साथ मे पति पत्नी की तरह रहे इस सिस्टम को लिव इन रिलेशनशीप कहा जाता है। यह सिस्टम आज तक हमारे सामाजिक जीवन मे पूर्णतया मान्य नहीं है। मगर सेलवास से ३० किलोमीटर दूर बसे करचोंड़ गाँव मे तो यह प्रथा कई साल से मान्य है।

      सामाजिक प्रसंगों मे एकदूजे से मिले युवक और युवती, अगर एक दूसरे को पसंद करते है, तो वे घर के बड़े लोगों की मंजूरी से साथ मे रह सकते है।

    _गाँव की जनसंख्या करीब ३००० है,उसमे बहुधा लोग आदिवासी है और अपने इस अनोखे रिवाज के साथ रहते है। ऐसा गाँव गुजरात मे है, यह आश्चर्य की बात तो है !_

*(5). कोडिन्ही – हर घर मे जुड़वा बच्चे*

        केरल मे स्थित कोडिन्ही गाँव को ‘जुड़वा बच्चों का गाँव’ के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण है की,गाँव मे ३५० से भी ज्यादा घरों मे जुड़वा बच्चे रहते है।

     इस गाँव मे आपको नवजात शिशु से लेकर ६० साल के बुजुर्ग तक जुड़वा मिल जाएंगे। इस गाँव मे हर १००० बच्चों मे से ४५ बच्चे जुड़वा होते है। गाँव के लोगों का मानना है की,यहा जुड़वा बच्चे के जन्म लेने की शुरुआत करीब ७० साल पहले हुई थी। पिछले १० साल से यह संख्या बढ़ती ही जा रही है।

      डॉक्टर भी इस गाँव मे इतने ज्यादा जुड़वा बच्चे पैदा होने का कारण नहीं खोज सके है।

*(6).तोतोपारा – तोतो की प्रजाति का एकमात्र केंद्र*

        भारत – भूटान सरहद (पश्चिम बंगाल) पर बसने वाले तोतो आदिवासी लोग आपको इस गाँव के अलावा पूरी दुनिया मे कही नहीं मिलेंगे।

    यह गाँव बिल्कुल सरहद पर बसा हुआ है,यहा तक की इस गाँव मे पानी की पाइपलाइन भी भारत के बदले भूतान से आती है। यहा की बहुत कम जमीन ही सपाट है, इसलिए तोतो प्रजा भी जमीन पर रहने की आदि नहीं है। यहा की मेहनती प्रजा पहाड़ी ढलान पर एकदूसरे से दूर बने लकड़ी के घरों मे रहती है।

     दुनिया के कोने कोने से मनुष्यशास्त्री इस प्रजा का अभ्यास करने तोतोपारा आते है।

*(7). मेंढ़ालेखा – पर्यावरणीय हकों से सज्ज प्रथम केंद्र*

        महाराष्ट्र. नक्सलियों से प्रभावित मेंढ़ा लेखा गाँव, बाकी गांवों से बहुत अलग है।

    २००६ मे जब ‘फॉरेस्ट राइट ऐक्ट’ लागू हुआ, तब मेंढ़ा लेखा देश का प्रथम ऐसा गाँव बना जहा ये अधिकार दिए गए। आदिवासियो का यह गाँव कानून के अंतर्गत पर्यावरणीय रूप से रक्षित है।

     इसके अलावा गाँव की एक और विशेषता है की,यहा गाँव का खुद का ही शासन है। वहा मुख्यद्वार पर ही बोर्ड लगाया गया है की, ‘दिल्ली और मुंबई मे हमारी ही सरकार है – मगर इस गाँव मे तो हम ही है सरकार’।

      उनलोगों को भारत सरकार से कोई भी आपत्ति नहीं है, मगर गाँव के आंतरिक सामाजिक निर्णय, उनके द्वारा नियुक्त सदस्यों की समिति ही लेती है।

*(8). पातालकोट : रामायणकाल से संबंध*

       मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से करीब 78 किलोमीटर दूर स्थित स्थान को पातालकोट के नाम से जाना जाता है। यहां 12 गांवों का समूह है जो सतपुड़ा की पहाड़ियों में है।

       पातालकोट में औषधियों का खजाना है। यहां भूरिया जनजाति के लोग रहते हैं। इतना ही नहीं यहां पर 3 गांव तो ऐसे हैं जहां सूर्य की किरणें भी नहीं पहुंच पाती हैं।

        ऐसे में यहां कड़ी धूप के बावजूद शाम जैसा लगता है क्योंकि ये गांव धरातल से लगभग 3000 फुट नीचे बसे हुए हैं। कहा जाता है कि इन गांवों में पहुंचना आसान नहीं है।

         पातालकोट के इन 12 गांवों में रहने वाले लोग बाहरी दुनिया से बिलकुल कटे हुए हैं। कहा जाता है कि यहां के लोग खाने-पीने की चीजें आस-पास ही उगा लेते हैं और केवल नमक ही बाहर से खरीद कर लाते हैं। हालांकि हाल ही में पातालकोट के कुछ गांवों को सड़क से जोड़ने का काम पूरा हुआ है।

*(9). शिंग्नापुर – ताला गैरज़रूरी, शनि की चौकीदारी*

    महाराष्ट्र के इस गांव में घर तो हैं, लेकिन किसी घर में दरवाजा नहीं लगाया जाता है.

        यहां आने वाले लोग खुले गेस्ट हाउस में ही रुकते हैं. ऐसी मान्यता है कि भगवान शनि इस गांव के रक्षक हैं. उनके होते हुए गांव में चोरी संभव नहीं है.

    यदि कोई चोरी करता भी है तो वह गांव से बाहर नहीं जा पाता. भगवान शनि दोषी पर अपना कहर बरपाते हैं. इस अनोखे गांव में देशभर के लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

*(10. मातुर- गूंजती है देववाणी*

      मातुर गांव कर्नाटका राज्य की शिमोगा जिले में है| यहां पर हर व्यक्ति देववाणी (संस्कृत) में बात करते हैं|

     गांव के सारे लोग बच्चे, बूढ़े, जवान, स्त्री, पुरुष संस्कृत में धाराप्रवाह बात करते हैं| यहां पर बच्चे प्रथम कक्षा से ही संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करते हैं|

    संस्कृत उनके लिए अनिवार्य विषय होता है| उनके लिए संस्कृत पढ़ना और बोलना एक गर्व का विषय है| देश- विदेश से जो लोग यहाँ संस्कृत सीखने आते है, उनसे कोई शुल्क नहीं लिया जाता.

*(11). माणा (Mana)- दरिद्रता निवारक*

      इस गांव मे प्रवेश से दूर होती है दरिद्रता. यह भारत-तिब्बत सीमा से (उत्तराखंड) लगा हुआ गांव है. बदरीनाथ से तीन किमी की दूरी पर स्थित यह गांव अपनी अनूठी परम्पराओं और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्द है।

      इस गांव का नाम भगवान शिव के भक्त मणिभद्र देव के नाम पर रखा गया है। मान्यता है कि यह गांव किसी भी तरह के श्राप से मुक्त है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को अपने पापों से मुक्ति मिल जाती है। वहीं आर्थिक तंगी का सामना कर रहे भक्तों को इस स्थिति से निजात मिलती है।

      इस गांव का संबंध पांडवों से भी है। माना जाता है कि पांडव इसी गांव से होकर स्वर्ग गए थे।

       समुद्र तल से लगभग 10,000 फुट की ऊंचाई पर माणा गांव में रडंपा जाति के लोग रहते हैं। यहां की आबादी बहुत कम है। यहां करीब 60 घर हैं जो लकड़ी से बने हुए हैं। यह क्षेत्र साल में करीब 6 महीने तक बर्फ से ढका रहता है।

     इस दौरान गांव में रहने वाले लोग चमोली जिले के गांवों में रहने के लिए चले जाते हैं। माणा में एक इंटर कॉलेज भी है जो 6 महीने माणा में जबकि 6 महीने चमोली में चलाया जाता है। अप्रैल-मई महीने में जब यहां बर्फ पिघल जाती हैं तो यहां हरियाली निकल आती है।

      माणा में मुख्य तौर पर आलू की खेती की जाती है। इसके अलावा माणा गांव अचूक जड़ी-बूटियों के लिए भी बहुत प्रसिद्द है। माणा गांव के आसपास व्यास गुफा, गणेश गुफा, सरस्वती मंदिर, भीम पुल, वसुधारा सहित कई दर्शनीय स्थल मौजूद हैं।

    (चेतना विकास मिशन)

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