पत्रलेखा चटर्जी
देश में विलासिता की वस्तुओं का बाजार फल-फूल रहा है! ग्लोबल कंसल्टेंसी किर्नी और लक्सासिया की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, एशिया प्रशांत क्षेत्र में दक्षिण पूर्व एशिया और भारत के विलासिता की वस्तुओं के सबसे आकर्षक बाजार बनने की उम्मीद है।
भारत जैसे जटिल देश में स्याह या सफेद जैसे दोहरे विकल्पों में फंसने का मतलब है मुद्दे से भटक जाना। हमारे जेहन में सबसे ऊपर एक सवाल है-भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति। भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति कैसी है? इसका उत्तर इस पर निर्भर करता है कि आप इसे किस संदर्भ में देख रहे हैं।
देश में विलासिता की वस्तुओं का बाजार फल-फूल रहा है! ग्लोबल कंसल्टेंसी किर्नी और लक्सासिया की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, एशिया प्रशांत क्षेत्र में दक्षिण पूर्व एशिया और भारत के विलासिता की वस्तुओं के सबसे आकर्षक बाजार बनने की उम्मीद है। दक्षिण पूर्व एशिया और भारत इस क्षेत्र में अगली प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार हैं, जो 2026 तक 7.6 अरब डॉलर की बाजार क्षमता तक पहुंच जाएगा, और 10 वर्षों के भीतर आकार में लगभग तीन गुना हो जाएगा।
वाणिज्यिक अखबारों का कहना है कि देश में महंगी कारों के ग्राहक युवा हैं, जो तेजी से उच्च गुणवत्ता वाली, परिष्कृत मॉडल की कारें खरीदना पसंद कर रहे हैं। भारत में विभिन्न ब्रांडों की महंगी कार खरीदने वालों की औसत आयु अब 30 वर्ष के आसपास है। खरीदार अक्सर प्रगतिशील पेशेवर और स्टार्ट-अप के संस्थापक होते हैं। लक्जरी कार निर्माता कंपनी मर्सिडीज बेंज अपनी सुपर लक्जरी और परफॉर्मेंस कारों, जैसे स्थानीय रूप से असेंबल की गई एस-क्लास, मेबैक और एएमजी की मांग में वृद्धि देख रही है।
इस साल की पहली छमाही में देश में महंगी स्विस घड़ियों का आयात एक साल पहले की तुलना में 21 फीसदी बढ़कर 9.85 करोड़ स्विस फ्रैंक या 933 करोड़ रुपये को पार कर गया। द स्वैच ग्रुप के स्वामित्व वाली कंपनी ब्रांड-राडो-उस लहर पर सवार होना चाहती है। कंपनी ने अधिक महिला लक्जरी खरीदारों को आकर्षित करने के लिए हाल ही में बॉलीवुड स्टार और ब्रांड एंबेसडर कैटरीना कैफ के साथ अनुबंध किया है। लगभग 30 ब्रांड बुटीक के साथ भारत में इसकी मौजूदगी और राजस्व, दोनों में वृद्धि हो रही है। यह सब निर्विवाद रूप से वर्ष 2023 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वास्तविकता का एक हिस्सा है। लेकिन यह हमें आम भारतीयों के जीवन के बारे में कुछ नहीं बताता है। यकीनन, हालिया मीडिया रिपोर्टें त्योहारी सीजन के दौरान उपभोक्ता खर्च में वृद्धि की ओर इशारा करती हैं। कार, टीवी, मोबाइल फोन, आभूषण, सौंदर्य प्रसाधन, चॉकलेट और शराब की बिक्री बढ़ गई है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि खपत में वृद्धि का एक प्रमुख कारण परिवारों द्वारा बढ़ती उधारी है। विशेषज्ञ बताते हैं कि बैंक ऋण बकाया के आंकड़ों से पता चलता है कि व्यक्तिगत ऋण एक साल पहले की तुलना में 30 प्रतिशत बढ़ गया है। अधिकांश बढ़ोतरी आवास ऋण में हुई है, लेकिन क्रेडिट कार्ड बकाया में वृद्धि सहित अन्य ऋण में वृद्धि भी मजबूत रही है।
हमारे देश में युवाओं की आबादी सबसे ज्यादा है, लेकिन रोजगार की क्या स्थिति है, इस पर भी गौर करना प्रासंगिक होगा। बंगलूरू स्थित अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट- ‘स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2023 : सोशल आइडेंटिटीज ऐंड लेबर मार्केट आउटकम’ के अनुसार, 25 वर्ष से कम आयु के लगभग 42 फीसदी स्नातक कोविड-19 महामारी के बाद बेरोजगार रहे, जबकि वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद रोजगार सृजन की गति कम हो गई। विश्व बैंक की भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रमुख अर्धवार्षिक रिपोर्ट- ‘इंडिया डेवलपमेंट अपडेट’ अर्थव्यवस्था से संबंधित समग्र आशावाद को उजागर करते हुए चिंता के कुछ क्षेत्रों को चिह्नित करती है। विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि वास्तविक ग्रामीण मजदूरी स्थिर हो रही है और महिलाओं तथा ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों के लिए नौकरियां घटती जा रही हैं। शहरी श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) में इस वर्ष थोड़ा सुधार हुआ है। हालांकि, महिलाओं के लिए डब्ल्यूपीआर में वृद्धि मुख्य रूप से अवैतनिक कार्यों में महिलाओं की हिस्सेदारी में वृद्धि से प्रेरित है।
आने वाले महीनों में त्योहारी खर्च और उसके बाद अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर सरकारी खर्च से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का प्रभाव भी है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है, हालांकि भारत कई अन्य देशों की तुलना में ज्यादा लचीला रहा है। प्रतिकूल वैश्विक वातावरण अल्पावधि में चुनौतियां पैदा करता रहेगा। उच्च वैश्विक ब्याज दरें, भू-राजनीतिक तनाव और सुस्त वैश्विक मांग के कारण मध्यम अवधि में वैश्विक आर्थिक विकास का धीमा होना तय है।
कंसल्टेंसी फर्म डेलॉइट की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है, ‘भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं और वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी से निपटना निस्संदेह आसान नहीं होगा। भारत को अपने विकास को गति देने के लिए अपनी घरेलू मांग, विशेष रूप से निजी उपभोग और निवेश खर्च पर निर्भर रहना होगा। निजी उपभोग के मोर्चे पर भारत के पक्ष में जो बात काम करती है, वह है इसके उपभोक्ता आधार का आकार, बढ़ती आय और इसकी युवा आबादी की आकांक्षाएं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है।’ लेकिन महंगाई को लेकर चिंता बरकरार है। खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतें, विशेषकर दालों और अनाजों की कीमत में दोहरे अंक की वृद्धि चिंताजनक है। पश्चिम एशिया की अस्थिर स्थिति को देखते हुए तेल की कीमतें और बढ़ सकती हैं। खाद्य और ईंधन की कीमतों के चलते मुद्रास्फीति ऊंची रहने की आशंका है। दूसरे देशों की अर्थव्यवस्थाओं के असर के चलते मुख्य कीमतें बेशक अभी स्थिर हैं, लेकिन भूलना नहीं चाहिए कि वे भारतीय रिजर्व बैंक की वांछित सीमा के ऊपरी हिस्से में हैं, ऐसे में, मुद्रास्फीति के नियंत्रण से बाहर होने की आशंका तो है ही।
इन सबका मतलब है कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर आशाजनक संकेत भले हो, लेकिन हमें किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए, न ही चुनावी बयानबाजी पर आंख मूंदकर यकीन करना चाहिए, जिनका शोर आने वाले दिनों में और बढ़ेगा। एक आम नागरिक के रूप में हमें जमीनी वास्तविकता पर ध्यान देना चाहिए, अपनी आंखें खुली रखनी चाहिए और सामान्य लोगों से बातें करके खुद फैसले लेने चाहिए।