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जी 20 के वैश्विक मंच का सदुपयोग करने में नाकाम रहा भारत

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,मुनेश त्यागी 

        हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 की अध्यक्षता करने ग्रहण करने के बाद “एक पृथ्वी, एक कुटुंब, एक भविष्य” की थीम के इर्द-गिर्द एक घरेलू राजनीतिक प्रचार अभियान छेडने की बात की थी और ऐलान किया था कि जी-20 की भारत की अध्यक्षता “एकता की सार्वभौमिक भावना” को बढ़ाने का काम करेगी। इस मुद्दे को लेकर भारत के समस्त राजनीतिक दलों की एक बैठक भी की गई थी, मगर अभी तक एकता की सार्वभौमिक भावना को बढ़ाने का कोई कार्यक्रम, भारत की सरकार द्वारा, भारत की जनता के सामने पेश नहीं किया गया।

       यहीं पर मुख्य सवाल उठता है कि क्या भारत के प्रधानमंत्री ने उपरोक्त उद्देश्यों का ऐसा कोई कार्यक्रम तैयार किया है? जिससे कि जी-20 देश के प्रमुखों के सामने रखा जाता और पूरी दुनिया को एक संदेश जाता कि देखिए भारत, पूरे विश्व में अमन-चैन कायम करने के लिए और दुनिया की जनता के कल्याण के लिए एक प्रोग्राम रख रहा है। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ और अब यह कार्यक्रम सिर्फ देख दिखावा और औपचारिकता भर करने का एक मौका बनकर रह गया है।

       इस वैश्विक अवसर पर अधिकांश रूप से धन दौलत का प्रदर्शन ही किया जा रहा है, सोने चांदी के बर्तनों में खाना परोसा जाने की खबर है। भारत के लाखों लोगों के काम धंधे छीन कर उन्हें गरीबी, निर्धनता, बेरोजगारी और भुखमरी के ही दर्शन कराए जा रहे हैं, कई दिनों से लोगों का रोजगार बंद है, लाखों लोगों का दिल्ली आना-जाना बंद करके परिवहन व्यवस्था को पंगु बना दिया गया है।

      इस आयोजन पर 4100 करोड़ यानी 41 अरब से ज्यादा रुपए खर्च किए जा रहे हैं, जबकि इसी आयोजन में जर्मनी में करीब 600 करोड रुपए खर्च किए गए थे। यह बात ठीक है कि मेहमानों की खातिरदारी उम्दा तरीके से होनी चाहिए थी। पर जहां पर 80 करोड़ से ज्यादा जनता गरीबी का शिकार हो, भुखमरी का शिकार हो, दुनिया में सबसे ज्यादा बेरोजगार और अर्ध्द बेरोजगार हों, वहां पर इस तरह से पैसा बहाया जाना क्या उचित कहा जाएगा? पैसे की यह भयंकर बर्बादी करके आखिर क्या हासिल होने जा रहा है?

       यूएनओ प्रमुख ने दो दिन पहले ही चिंता जाहिर की थी कि दुनिया में युद्ध लगातार बढ़ते जा रहे हैं और पूरी दुनिया से अमन-चैन गायब हो गया है।कितना अच्छा होता कि भारत सरकार इन वैश्विक युद्धपिपासों और वैश्विक अमन-चैन के दुश्मनों की एक सूची तैयार करके, दुनिया के तमाम देशों के सामने पेश करती और वैश्विक अमन चैन के दुश्मनों की दुनिया के सामने पोल खोलती? 

        भारत को अगर वाकई में दुनिया के स्तर पर लगातार बढ़ रहे खतरों को इंगित करना था तो उसे उन सब मुद्दों को भी दुनिया के सामने लाया जाता ताकि दुनिया के लोग देख पाते कि आखिर दुनिया में युद्धों को कौन बढ़ावा दे रहा है? दुनिया के युद्धोन्मादी कौन है? कौन-कौन से देश हैं जो दुनिया में हथियारों को बनाने और बेचने में शामिल है? कौन-कौन से देश दुनिया में जलवायु और प्रदूषण का की समस्या को बढ़ावा दे रहे हैं और दुनिया में तमाम तरह के प्रदूषण फैला कर पानी, हवा और वैश्विक प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं और कौन कौन से देश दुनिया के अमन-चैन और सार्वभौमिक विकास के मार्ग में तरह-तरह के रोड़े अटकाने का काम कर रहे हैं?

        इस मौके का फायदा उठाकर भारत सरकार दुनिया को दिखाती कि किन-किन देशों के विश्व विरोधी कारनामों की वजह से यूएनओ जैसी जरूरी वैश्विक संस्था प्रभावहीन और बेकार होकर रह गई है? यूएनओ जैसी जरूरी वैश्विक संस्था को अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे पूंजीवादी देशों ने सभा और बर्बाद कर दिया है और अपनी वैश्विक लूट और वैश्विक प्रभुत्व को बरकरार रखने के लिए ये देश अधिकांश गरीब और अविकसित देशों को अपना गुलाम बनाए रखने की मुहिम को जारी रखना चाहते हैं?

       भारत सरकार को इस अत्यंत महत्वपूर्ण मौके का फायदा उठाकर, दुनिया के तमाम लुटेरे पूंजीवादी देशों को दुनिया के सामने नंगा करती कि कैसे इन तमाम वैश्विक लुटेरे देशों की वजह से दुनिया के अधिकांश देश और अरबों की संख्या में दुनिया के लोग गरीबी, शोषण, अन्याय, भेदभाव और जुल्मों सितम और युद्धों का शिकार बने हुए हैं? 

         भारत सरकार इसी बहुत महत्वपूर्ण मंच का फायदा उठाकर दुनिया के सामने एक समाजवादी विचारों का सर्व कल्याणकारी कार्यक्रम पेश करती और दुनिया के लोगों को दिखाती कि कैसे तत्कालीन यूएसएसआर, चीन, नॉर्थ कोरिया, वियतनाम, क्यूबा, वेनेजुएला, ब्राज़ील, बोलिविया जैसे देशों ने समाजवादी सिद्धांतों का इस्तेमाल करके अपने लोगों को तमाम बुनियादी सुविधाएं जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार उपलब्ध कराये और अपने देश से शोषण, गरीबी, अन्याय, भेदभाव, पिछडेपन और जुल्मों सितम का खात्मा कर दिया है? और कैसे इन समाजवादी देशों की सरकारों ने अपने लोगों के लिए कल्याणकारी कदमों का फायदा उठाकर उसका भला किया है और और कैसे इन सरकारों ने जातिवाद, वर्णवाद, नक्सलवाद, शोषण, जुल्मो-सितम और अन्याय का खात्मा किया है?

     भारत सरकार इस वैश्विक मंच का सदुपयोग करते हुए, पूरी दुनिया के सामने वह कार्यक्रम पेश करती कि जिससे पूरी दुनिया से शोषण, गरीबी, अन्याय, भेदभाव और पिछड़ेपन का खत्म हो जाता और कैसे एक वैश्विक अभियान के तहत पूरी दुनिया में सारी जनता को आधुनिक शिक्षा, आधुनिक स्वास्थ्य, रोजगार, जल, बिजली, भरपेट भोजन मिल पाता और पूरी दुनिया पिछडेपन को दूर करके सबके विकास में अति आवश्यक रास्ते पर आगे बढ़ पाती?

       मगर अफसोस! कि भारत की सरकार ने इस बहुत जरूरी मौके का सदुपयोग ना करके, वह अपनी विश्वबंधुत्व और वसुधैवकुटुंबकम कि सोच को आगे बढ़ाने में नाकाम ही रही है। कितना अच्छा होता कि भारत की इस सर्व कल्याणकारी मुहिम से दुनिया के तमाम गरीबों, शोषितों, उत्पीड़ितों और पिछड़ों का कल्याण होता, पूरी दुनिया से युद्धों का खत्म होता, पूरी दुनिया से हथियार निर्माताओं का खात्मा होता, और कैसे दुनिया अमन चैन और सर्व कल्याणकारी विकास के रास्ते पर आगे बढ़ पाती।

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