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विकास के नहीं, विनाश के भंवर में फंसता भारत 

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मुनेश त्यागी 

    मोदी सरकार ने विकास के नारों को जैसे तिलांजलि ही दे दी है और मोदी के विकास के नारों पर विश्वास करके जिन लोगों ने मोदी को भारी बहुमत से सरकार में स्थापित किया था वे सारे के सारे लोग आज निराश, हताश और परेशान हैं। पिछले नौ वर्षों के मोदी शासन के द्वारा फैलाए जा रहे झूठ, प्रपंच, धर्मांधता के झूठे वादों की सांप्रदायिकता की बढ़ती संस्कृति और नफरत बढ़ाने वाले और हिंसक होते  प्रपंची बाबाओं से भारत की छवि बिगड़ रही है। समाज के इस विकृतिकरण और ऐसे विकृत समाज से डर लगने लगा है।

     मोदी ने सत्ता में आने से पहले जो वादे किए थे, उन्हें बाद में जुमले बता दिया गया। बाद में काला धन जुमला बन गया। आतंकवाद खत्म होगा, यह भी जुमला बन गया। किसानों की आय दुगनी होगी, यह भी जुमला बन गया। हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपए आएंगे, यह भी जुमला बन गया। भारत की अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर होगी, यह भी जुमला बन गया है। हर साल दो करोड लोगों को रोजगार मिलेगा, यह भी जुमला बन गया। रुपया डोलर के मुकाबले मजबूत होगा, यह भी जुमला बन गया। महंगाई पर वार भी जुमला बन गया है।

    नौ साल पहले मोदी ने सत्ता में आने से पहले भारत के बेरोजगार नौजवानों से वादा किया था कि वे सत्ता में आने के बाद प्रतिवर्ष दो करोड़ नौजवानों को रोजगार देंगे। मगर नौजवानों को रोजगार तो नहीं मिले, वे हताश और निराश ही होते रहे। पिछले दिनों संसद में एक सवाल के जवाब में जानकारी दी गई है कि पिछले 8 सालों में 22 करोड़ बेरोजगार नौजवानों ने नौकरी पाने के लिए अर्जियां  और प्रार्थना पत्र दिए हैं, मगर इनमें से केवल सात लाख बहत्तर हजार नौजवानों को ही नौकरी मिल पाई है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मोदी का नौजवानों को रोजगार देने का वायदा और नारा केवल एक जुमला बनकर ही रह गया है और यहां भी मोदी एक जुमलावीर ही बनकर रह गई है।

      भ्रष्टाचार खत्म होगा, यह भी एक जुमला बनकर रह गया है और विदेश नीति में परिवर्तन लाया जाएगा, यह भी एक जुमला बनकर रह गया है। देश में होने वाले आयात में दस प्रतिशत की कमी लाई जाएगी, यह भी एक जुमला बनकर रह गया है। ऐसा लगता है जैसे पिछले नौ साल में भारत में जुमलों की झड़ी लग गई है, जुमलो की बरसात हो रही है और सरकार को इन जुमलों की बरसात करने से कोई परेशानी नहीं हो रही है क्योंकि इन जुमलों  पर विश्वास करने वाले करोड़ों भक्त लोग सरकार के साथ हैं और ऐसे में उसे कोई डर नहीं लगता है और उसे इससे कोई परेशानी होने वाली भी नहीं है।

     भारतीय समाज में एक के बाद एक हमले जारी हैं। भाई को भाई से लगाया जा रहा है, बुर्का और हिजाब पर कोहराम मचाया जा रहा है, बुल्डोजर के नाम पर जनता को भड़काया जा रहा है, हनुमान और अजान के नाम पर हिंदू और मुसलमान को लड़ाया जा रहा है, जनता को मंदिर और मस्जिदों के नाम पर लड़वाया जा रहा है उनके अंदर विवाद पैदा किए जा रहे हैं और अब सरकार ने 2024 का चुनाव जीतने के लिए समान नागरिक संहिता लाकर हिंदू मुसलमान की नफरत की धुर्वीकरण की मुहिम को तेज कर दिया है और उन्हें एक दूसरे का दुश्मन बनाया जा रहा है। पूरे समाज में जैसे दो दुश्मन गुट बन गए हैं।

     असली सवाल यह है कि इन नौ सालों में हुआ क्या? कोई काला धन वापस नहीं आया? अब तो सरकार ने काले धन का नाम लेना ही छोड़ दिया है। जम्मू कश्मीर में आतंकवादी हमले आज भी जारी हैं और लाखों निर्दोष लोग कई कई सालों से जेल में बंद हैं, सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद भी उन्हें जेलों से रिहा नहीं किया जा रहा है। किसानों की आय दोगुनी होने के बजाय और घट गई है। उनको आज भी अपनी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है। लोगों के खाते में 15 लाख रुपए आने की बात की गई थी मगर इसके बजाय पिछले नौ सालों में उनके खाते खाली हो गए हैं।

    पांच ट्रिलीयन डॉलर की अर्थव्यवस्था का सपना, सपना बनकर रह गया है। दो करोड़ लोगों को रोजगार मिलना था, मगर सरकार की जनविरोधी नीतियों के कारण करोड़ों लोग और बेरोजगार हो गए हैं, उनको अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है। सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण रुपया डोलर के मुकाबले मजबूत होने की जगह आज तक के  निम्नतम स्तर पर पहुंच गया है। लगातार बेरोकटोक बढ़ती महंगाई ने जनता की कमर तोड़ दी है। विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार भारत में कोरोना काल में पिछले दो साल में 47 लाख आदमी मर गए और सरकार अभी भी सही आंकड़े जानबूझकर नहीं बता रही है, सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए और अपनी लापरवाही और अपनी गैरजिम्मेदारी को छुपाने के लिए भारत में कोरोनावायरस से हुई मौतों का आंकड़ा केवल केवल पांच लाख बता रही है। वह कोरोना से हुई मौतों के सही आंकड़े जनता और दुनिया से छुपा रही है।

    भ्रष्टाचार हमारे देश में पिछले नौ सालों में चरम पर है और पहले के मुकाबले  दो तीन गुना बढ़ गया है और इस पर रोक लगाने की कोई भी कोशिश सरकार की तरफ से नहीं हो रही है। कचहरी, तहसील, मेडिकल, नगर निगम, पुलिस थाने और सरकार के अधिकांश विभाग जैसे भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए हैं। विदेश नीति में भारत को गुटनिरपेक्ष आंदोलन को आगे बढ़ाना था मगर उसे छोड़कर मोदी सरकार पूरी दुनिया पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहे  दुनिया के लुटेरे अमेरिका और विदेशी पूंजीपति लुटेरों के चंगुल में फंस गई है जो देश के हितों के बिलकुल खिलाफ है।

     सरकार ने चार श्रम कानून लाकर पूरे देश के मजदूर वर्ग को पूंजीपतियों का आधुनिक गुलाम बना दिया है। मोदी सरकार ने मजदूरों द्वारा आजादी के बाद बनवाये गए तमाम कानूनों को वापस ले लिया है। स्थाई नौकरी खत्म कर दी है, पुरानी पेंशन बहाल नहीं की है, नौकरियों में ठेका भर्ती शुरू कर दी है, जो श्रम कानूनों का सबसे बड़ा उल्लंघन है और आधुनिक गुलामी का सबसे बड़ा नमूना है। मजदूर यूनियन बनाने की आजादी को लगभग छीन लिया गया है और आज यूनियन बनाना लगभग असंभव कर दिया गया है। बिना वेतन बढ़ाए, काम के घंटों में चार घंटों की वृद्धि कर दी गई है और ओवरटाइम वेतन का खात्मा कर दिया गया है। ये चारों श्रम कानून देश दुनिया के पूंजिपतियों, धन्ना सेठों और पैसे वालों को अनाप-शनाप लाभ पहुंचाने के लिए लाए गए हैं। और बेहद आश्चर्य की बात है कि सरकार ने इन श्रम कानूनों को लाने से पहले मजदूर वर्ग के प्रतिनिधियों, किसी फेडरेशन या किसी यूनियन से सलाह मशविरा नहीं किया है और ना ही उन्हें  विश्वास में लिया है।

     और मोदी सरकार के आगमन के बाद सबसे ज्यादा जिस क्षेत्र में प्रगति हुई है वह इस देश की सरकारी संपत्ति को, जनता के खून पसीने के पैसे के द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय संपत्ति को, इस देश के अपने चंद पूंजीपतियों को कोडियों के दाम बेचने में लगी हुई है। सरकार बेखौफ तरीके से देश की सरकारी संपत्तियों को अपने चंद मित्रों को कोडियों के दाम पर बेच रही है। इसको लेकर जनता में सबसे ज्यादा  हताशा और निराशा है और वह सोच रही है कि आखिर मोदी सरकार क्या करना चाहती है? यह कौन सा विकास है?  ये कैसे, कौन से और किसके अच्छे दिन हैं?

      मोदी सरकार ने आज तक जो कुछ किया है वह धन्ना सेठों और पैसे वालों की आय, मुनाफे और तिजोरियां भरने के लिए किया है, जिस कारण आज हमारे देश में दुनिया में सबसे ज्यादा आर्थिक समानता बढ़ गई है। अडानी और अंबानी की संपत्ति दिन दूनी, रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रही है। अडानी दुनिया के 5 सबसे बड़े अमीरों में शामिल हो गया है। यह सब सरकार की नीतियों के कारण हुआ है और ऐसे ही इसी प्रकार दूसरे पूंजी पतियों की संपत्तियां भी अनाप-शनाप बुक से कई गुना बढ़ गई हैं। आर्थिक असमानता की भयभीत करने वाली बात यह है कि आज देश के 10% लोगों के पास राष्ट्रीय आय का 78% धन दौलत है और नीचे के 60% लोगों के पास केवल 4 पॉइंट 7% धन है और इसी काल में भारतीय जनता के रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुढ़ापे की सुरक्षा पर सरकार के हमले बढ़े हैं। उनका बजट कम कर दिया गया है जिससे जनता को अभूतपूर्व संकट और समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

     आज भारतीय समाज में आजादी मिलने के बाद समाज में सबसे ज्यादा हिंदू मुस्लिम के तनाव, हिंसा और नफरत का माहौल है। हिंदू मुस्लिम के नाम पर लोग साझी संस्कृति, सामाजिक एकता, गंगा जमुनी तहजीब और आपसी भाईचारे को भूल कर, एक दूसरे के दुश्मन बना दिए गए हैं। तथाकथित धर्म संसद में मुस्लिम महिलाओं का बलात्कार करने का सरेआम आह्वान किया जा रहा है। भारतीय संविधान को केसरिया संविधान बनाने की खुलेआम घोषणाएं हो रही हैं। यह सारा काम खुले तौर पर हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों द्वारा किया जा रहा है और सरकार इन देश विरोधी, समाज विरोधी और भारत विरोधी तत्वों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा रही है जिस कारण इन समाज तोड़ने वालों को, देश की एकता तोड़ने वालों को, कानून के शिकंजे से कोई डर नहीं लगता और अब ये ताकतें बैखौफ होकर और इस प्रकार की हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने और हिंसा फैलाने की गतिविधियां जारी रखे हुए हैं।

     अब तो आश्चर्य होने लगा है कि ये वे अच्छे दिन नहीं हैं, जिनका वादा किया गया था। हाल फिलहाल के दिनों में न्यायपालिका में एक ट्रेंड देखा जा रहा है कि जो लोग सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध करते हैं, जो लोग मानवाधिकारों की रक्षा के लिए, दंगा पीड़ितों की मदद करते हैं, कानूनी क्षेत्र में उनकी सहायता करते हैं, उनका समर्थन करते हैं, तो अब तो उन्हीं लोगों को और ज्यादा परेशान किया जाने लगा है। भारत के जनतंत्र के लिए ये बहुत खतरनाक दिन चल रहे हैं। अब तो ऐसा लगने लगा है कि जो लोग सरकारी जुल्मो सितम का विरोध कर रहे थे, सरकारी जुल्मों सितम की पोल खोल रहे थे, उनको डरा धमका कर, उन्हीं का मुंह बंद किया जाने लगा है।

     सच में अब तो ऐसे अच्छे दिनों से डर लगने लगा है।  देखते ही देखते, ये तो विकास के नहीं, विनाश के दिन आ गए हैं। हम तो यहां यही कहेंगे,,,,

ये दाग दाग उजाला 

ये डसी डसी सी सहर,

वो इंतजार था जिसका, 

ये वो सुबह तो नहीं।

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