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आजादी के बाद भारत सबसे घनघोर अंधेरे में

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मुनेश त्यागी

     भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में करोड़ों लोगों ने भाग लिया था और लाखों लोगों ने अंग्रेजों की गुलामी खत्म करने और भारत को आजाद कराने के लिए अपना जीवन कुर्बान किया था, लाखों लोग जेल गए थे और हजारों स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेज़ों द्वारा मौत के घाट उतारा गया था। इस लंबे संघर्ष और बलिदान के बाद 1947 में हमारा देश आजाद हुआ और उसके बाद हमारे देश में संविधान लागू हुआ जिसमें हजारों साल पुराने शोषण जुल्म अन्याय भेदभाव और सभी प्रकार की गैर बराबरियों को खत्म करने के प्रावधान किए गए और संविधान में प्रावधान किया गया कि भारत के समस्त लोगों को शिक्षा मिलेगी, स्वास्थ्य मिलेगा, रोजगार मिलेगा, सब तरह के शोषण जुल्म अन्याय भेदभाव और भ्रष्टाचार खत्म कर दिए जाएंगे और भारत में एक ऐसा समाज बनाया जाएगा की जिसमें भारत के लोग समानता के साथ, बराबरी के साथ और एक दूसरे को भाई समझ कर जियेंगे और देश के समस्त प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल पूरे देश की जनता की भलाई और कल्याण के लिए किया जायेगा।

     आजादी के बीस साल तक, कुछ हद तक इन विचारों और इन नीतियों को लागू किया गया, जमीन पर उतारा गया। मगर उसके बाद धीरे-धीरे ये नियम और नीतियां कमजोर होती चली गईं और भारत में शोषण और अन्याय के शिकार करोड़ों किसानों, खेतिहर मजदूरों और औद्योगिक मजदूरों को उनके हक़ और अधिकार उन्हें नहीं दिए गए, जिनकी संविधान में घोषणा की गई थी।

      आज आजादी के 77 साल के बाद हालात बहुत खराब हो गए हैं और भारत लगभग आजादी के पहले की स्थिति में पहुंचा दिया गया है। हमने उन्नति तो की है मगर इस उन्नति और विकास का फायदा हमारे देश की अधिकांश जनता अधिकांश किसानों, मजदूरों, खेतिहर मजदूरों, नौजवानों, महिलाओं और छात्रों को नहीं मिला है। आज हमारे देश में दुनिया में सबसे ज्यादा गरीबी है, सबसे ज्यादा भुखमरी है, सबसे ज्यादा बेरोजगारी है, सबसे ज्यादा अशिक्षा और कूशिक्षा है, सबसे ज्यादा अंधविश्वास का आलम है।

      लुटेरे और शोषक वर्गों की राजसत्ता और सरकार में बने रहने की हवस ने और जनता को न्याय और शोषण से मुक्त करने के अभियान की हत्या कर दी गई है और आज भारत का लुटेरा, शोषणकारी और अन्यायी वर्ग, किसानों, मजदूरों, नौजवानों और छात्रों से उनकी सभी स्वतंत्रताओं को छीनकर, उन्हें हजारों साल पुराने शोषण, जुल्म, अन्याय, भेदभाव और पिछड़ेपन की अवस्था में ले जाना चाहता है।

     यह जनविरोधी शासक वर्ग, आज विज्ञान की उपलब्धियों, सोच-विचार, मानसिकता और विरासत को मिट्टी में मिलाने पर आमादा है। आज हम देख रहे हैं कि हमारे अधिकांश अखबार, रेडियो, टेलीविजन, फेसबुक और व्हाट्सेप, दिन-रात अंधविश्वासों और अवैज्ञानिक सोच विचार और मानसिकता को जनता के बीच परोस रहे हैं। वे जनता की समस्याओं का समुचित और वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं और उन्होंने तमाम शोषण, जुर्म और अन्याय की पीड़ित जनता को अवैज्ञानिक सोच और अंधविश्वासों के गड्ढे में डाल दिया है।

    आज हालात ये हैं कि हमारी जनता का बहुत बड़ा हिस्सा अपनी गरीबी, भुखमरी, शोषण, जुल्म, अन्याय, बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार का वैज्ञानिक तरीके से विश्लेषण करने को ना तो तैयार है, ना वह कुछ सुनना और सीखना चाहता है और वह इन सब समस्याओं का निराकरण और समाधान तरह-तरह के अंधविश्वासों, धर्मांधताओं और काल्पनिक देवी देवताओं में ही ढूंढ रहा है।

      और यहीं पर बेहद अफसोस की बात है कि हमारी साम्प्रदायिक केंद्र सरकार और जातिवादी और अंधविश्वासों में यकीन रखने वाली अधिकांश राज्यों की सरकारें, इस अंधविश्वासी और अवैज्ञानिक मुहिम में सबसे बढ़कर हिस्सा ले रही हैं। इन सबने तो जैसे कसम ही खा रखी है कि वे भारत की जनता को ज्ञान-विज्ञान, विवेक, तर्क और वैज्ञानिक संस्कृति की विरासत से कोसों दूर ले जाएगी ताकि बुनियादी सुविधाएं और समस्याओं से पीड़ित जनता अंधविश्वासों, धर्मांधताओं, पाखंडों और अंध-भक्ति के जंजाल में ही फंसी रहे।

      हमारे संविधान में एक ऐसी सरकार की कामना की गई थी कि जो देश की सारी जनता की समस्याओं का हल करेगी, उसे रोजगार और विकास के मार्ग पर आगे ले जाएगी और सारी जनता में समता, समानता, आपसी भाईचारे और आपसी सामंजस्य के मार्ग पर आगे बढ़ाएगी और पूरे समाज से लिंग, जातिवाद, धर्म, क्षेत्रीयता और भाषा के आधार पर वर्षों से चले आ रहे मतभेदों का पूरी तरह से खात्मा करेगी। 

     हमारे संविधान में इस बात की कामना भी की गई थी कि हमारी सरकार भारत की तमाम जनता और भारतीय राज्य को जनतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, और गणतांत्रिक आधार पर मजबूत करेगी और पूरे देश में सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक न्याय का साम्राज्य कायम कर देगी मगर आज का सरकारी वातावरण बता रहा है कि सरकार का ऐसा कुछ करने का इरादा नहीं है और वह अब कुछ चंद मुट्ठीभर धन्ना सेठों और पूंजीपतियों का ही विकास करने तक ही सीमित होकर रह गई है।आम जनता का विकास उसके एजेंडे में ही नहीं है।

      भारत के संविधान में प्रावधान किया गया था कि भारत की जनता को सस्ता और सुलभ न्याय मिलेगा और यहां पर एक स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की गई थी। आज हम देख रहे हैं की यह कामना भी गलत सिद्ध हो रही है। सरकार ने जैसे स्वतंत्र न्यायपालिका के खात्मे की कसम खाली है और वह एक पिछलगू न्यायपालिका बनाना चाहती है। वह किसी भी हालत में स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना नहीं करना चाहती है।

     आजादी की लड़ाई में भारत के वकीलों ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। अनेक वकील जेलों में गए थे, शहीद हुए थे, लड़े थे और उन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया गया था। मगर कल हमने देखा कि आज भारत के वकीलों का एक हिस्सा सांप्रदायिक और जातिवादी संकीर्णता की भेंट चढ़ गया है। वह जैसे सरकार, पूंजीपतियों और संप्रदायिक ताकतों का दलाल और पिछलगू बन गया है और वह आजाद न्यायपालिका की के रास्ते में रोड़े अटका रहा है। हालात यहां तक खराब हुई की कल सुप्रीम कोर्ट को इन धन्ना सेठों के वकीलों को धमकाना पड़ा और उन्हें अदालत की अवमानना करने की धमकी तक देने को मजबूर होना पड़ा।

      यही हालत हमारे अधिकांश किसानों और मजदूरों की है। आज भारत का किसान अपनी फसलों का वाजिब दाम देने के लिए सड़कों पर जीने मरने को मजबूर है। सरकार वायदा करने के बाद भी उनको फसलों का वाजिब दाम देने को तैयार नहीं है और वह उन्हें आतंकवादी, देशद्रोही, पाकिस्तानी, खालिस्तानी, मार्क्सवादी और कम्युनिस्ट बता रही है।

      यही हाल हमारे मजदूर वर्ग का है। आज हमारे देश के 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है। उनके हितों की रक्षा के लिए बनाए गए श्रम कानूनों को लागू नहीं किया जा रहा है, उनसे यूनियन बनाने का अधिकार छीन लिया गया है और जो लोग अपना रोजगार दांव पर लगा कर, यूनियन बनाकर अपने अधिकारों की मांग करते हैं, उन्हें तत्काल गैरक़ानूनी रुप से नौकरी से निकलकर भूखे मरने को मजबूर कर दिया जाता है।

      आजाद भारत में एक स्वतंत्र मीडिया की कामना की गई थी जिसे जनतंत्र का “चौथाखम्बा” की संज्ञा दी गई थी। आज इस चौथे खंबे का सबसे तेज गति से विनाश और पराभव हुआ है। आज मीडिया के बड़े हिस्से पर चंद पूंजीपतियों और संप्रदायिक ताकतों का कब्जा हो गया है। उसने सच, तथ्यों और हकीकत की बातें करना छोड़ दिया है और वह सिर्फ और सिर्फ पूंजीपतियों, जनविरोधी सरकार और साम्प्रदायिक ताकतों के हितों को आगे बढ़ाने के लिए उनका पिछलगू बने रहने की भूमिका में आ गया है और उसने आम जनता को इतिहास और ज्ञान विज्ञान की उपलब्धियों से अवगत कराने का रास्ता बिल्कुल त्याग दिया है।

      वर्तमान हालात में भारतीय व्यवस्था को भ्रष्टाचार की लगातार बढ़ती चुनौतियों से दो चार होना पड़ रहा है। वैसे तो भ्रष्टाचार भारतीय समाज में पहले से ही मौजूद चला आ रहा था, आजादी मिलने के बाद भी इसका समाज हित में खात्मा नहीं किया जा सका था, मगर अब तो भ्रष्टाचार की यह सबसे बड़ी बीमारी सर पर चढ़कर बोल रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बांड के मामले में किये गये खुलासे ने साबित कर दिया है कि आज भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ी समस्या बनकर भारतीय राज्य और जनता के सामने है। यह आजाद भारत का सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी घोटाला है। इसने भ्रष्टाचार की सभी सीमाएं तोड़ दी हैं । इसने तो भारतीय जनतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा कर दिया है और इसमें भारत के जनतंत्र को लगभग खत्म करके इसे धनतंत्र में तब्दील कर दिया है। अब तो यहां जैसे सब कुछ चंद धनपतियों के हितों को ही आगे बढ़ाया जा रहा है और जनता के तमाम हित गौण होकर रह गए हैं।

     बहुत लंबे काल से भारत में एक निष्पक्ष, पार्दर्शी और ईमानदार चुनाव आयोग की बातें होती रही हैं। कुछ साल पहले टी एन सेशन को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया था जिन्होंने भारत में अब तक के सबसे निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराए थे। इसके बाद से चुनाव आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता और ईमानदारी को लेकर यह मामला चर्चा में रहा है।पिछले दस साल से हम देख रहे हैं कि भारत में चुनाव आयोग के निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं और चुनाव आयोग सरकार की कठपुतली बनकर रह गया है। हद तो तब हो गई जब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद भी पारदर्शी निष्पक्ष और ईमानदार चुनाव आयोग के विचार को भी खारिज कर दिया और अब सरकार ने चुनाव आयोग को अपना मातहत, पिछलग्गू और गुलाम बना लिया है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी धता बता दिया और अपनी मनमर्जी का मनमाना चुनाव आयोग और चुनाव आयुक्त नियुक्त कर लिए। निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव आयोग के बिना भारत का जनतंत्र जिंदा नहीं रह सकता और आज यह बहुत बड़ी चुनौती बनकर हमारे सामने है।

      आजादी के आंदोलन के बाद मिली स्वतंत्रता के बाद एक ऐसे भारतीय नागरिक की कामना की गई थी कि वह जाति धर्म लिंग ऊंच नीच और छोटे-बड़े की मानसिकता से मुक्त होगा। उसमें सच्चे मानव के तमाम गुण मौजूद होंगे और वह एक जनवादी, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, विवेकवान तर्कवान और वैज्ञानिक संस्कृति से लबरेज आधुनिक भारतीय नागरिक बनेगा और भारत की जनता से हमदर्दी रखेगा, आपसी भाईचारे की भावना से ओत-प्रोत होगा। मगर अफसोस थी उसमें यह सब जरूरी गुण पैदा ना किया जा सके।

     ये बेहद अफसोसजनक हालात हैं जिनके दौर से हमारा समाज गुजर रहा है। आज भारत के तमाम जागरूक लोगों को अपने सारे मतभेद भुलाकर और मिलजुल कर उपरोक्त गम्भीर हालतों पर विचार करना होगा और एक ऐसे भारत, ऐसे समाज और ऐसा मानव बनने पर गम्भीर विचार करना पड़ेगा जिसकी भारत के संविधान में कामना की गई थी, केवल तभी जाकर, हमारा देश और समाज अमानवीयता के घनघोर अंधकार के गर्त में जाने से बच सकेगा।

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