(उनसे सीखो, जिनका पीएम सिर्फ़ एक CEO है)
~ पुष्पा गुप्ता
_दुनियाँ पर राज कर चुकी कौम के लिए अगला प्रधानमंत्री महज एक नया सीईओ है। फेल हुआ, तो तुरंत बदल दिया जाएगा। क्योकि वहां मुखिया, घर चलाने को चुना जाता है।_
सीधा हिसाब है, कि आपकी कमाई से आपके खर्च पूरे होने चाहिए। अगर कमाई बढ़ी, तो खर्च बढ़ा सकते हैं नहीं तो खर्च में कटौती कीजिए।
लिज ट्रस ने एक तरफ खर्चे बढ़ाने का वादा किया और दूसरी कमाई घटाने का भी, यानि टैक्स कट का। छह हफ्ते में अपनी बेवकूफी समझ में आ गयी और शरमा कर चलती बनी।
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अब ब्रिटेन रेडी फ़ॉर ऋषि है। “रेडी फ़ॉर टैक्स इनक्रीज” भी है, “रेडी फ़ॉर कंजूसी” भी है। याने अलोकप्रियता के रिस्क के बावजूद सरकारी खर्चे घटेंगे, औऱ अमीरों पर टैक्स बढ़ेंगे।
ये किसी लोकतांत्रिक सरकार के लिए दुःस्वप्न है पर ऋषि सुनक को यह करना पड़ेगा, जब तक खजाना दबावमुक्त न हो जाये।
ऋषि की राह कठिन है। ब्रिटेन के हालात शीघ्र सुधरने की गुंजाइश नहीं । ब्रेग्जिट का झटका तगड़ा था, अब युद्ध और मंदी मुंह बाये खड़ी है।
ऋषि क्या करेंगे, देखना दिलचस्प होगा।
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दिलचस्प मामला भारत में भी है। हमारे यहां 2018 से यही हालात हैं। बिना युद्ध, बिना मंदी, बिना कोरोनॉ हमने अपना पैर, कुल्हाड़ी (नोटबंदी)पर मारकर काट लिया था।
फिर टैक्स कट, बैंक फ्रॉड, सम्पत्तियों की सस्ती बिकवाली, रिजर्व बैंक की जमा पूंजी साफ, व्यापार घाटा, गिरता विदेशी मुद्रा भंडार, घटता निवेश…जहां नजर फिराओ, सब खण्डहर होता दिखता है।
लेकिन जनता, और मुखिया.. दोनों की बेफिकरी काबिले तारीफ़ है। अयोध्या, केदारनाथ, हिन्दू, मुस्लिम, नेहरू, 62, 84, भक्त, चमचा, पाकिस्तान, में ही जमकर उलझे हुए हैं।
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मूल काम, याने घर चलाना, कमाई और खर्च का नियोजन, आम बातचीत का विषय ही नहीं है। सामाजिक सेवाओं.. शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क ,बिजली, पानी सब निजी हाथों में ठेलकर जिम्मेदारी झाड़ ली गयी है।
आर्थिक चर्चा 100 लाख करोड़ इंफ्रास्ट्रक्चर, 20 लाख करोड़ पैकेज, पांच लाख करोड़ लोन जैसे भारी भरकम शब्दों में खत्म है। रोज बहस का मुद्दा बदल जाता है, नया टास्क मिल जाता है।
परम् च्यूटियापे से अगर कोई देश चलाया जा सकता है, तो इसकी केस स्टडी भारत है। असल डिलीवरी की जगह, सिर्फ बातें करके कैसे देश नियंत्रण में रखा जाए, इसकी केस स्टडी भारत है।
एक तीव्रगामी देश का भविष्य अकारण कैसे चौपट किया जाये, इसकी केस स्टडी भारत है।
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आने वाली पीढ़ियाँ आश्चर्य करेंगी कि एक शिक्षित देश कैसे एक नॉन परफॉर्मर, झूठे , आत्ममुग्ध शासक को झेलता रहा,जाने किस सनक में उसे ही बार बार चुनता रहा, मौके देता रहा।
क्योंकि इस दौर की आंच कुछ पीढ़ियों तक जाएगी। उधर ब्रिटेन उबर जाएगा। वह मूर्खों का देश नहीं है,फेलियर को माफ नहीं करता, ढोता नहीं,बहस और डाइवर्जन में नहीं उलझता। ©