-निर्मल कुमार शर्मा
अभी पिछले दिनों बगैर समुचित बहस के आनन-फानन में धोखे-धड़ी से लाए गए तीनों काले कृषि कानूनों को मोदी जी ने अपने उसी चिरपरिचित नाटकीय अंदाज में इस देश के खुदकुशी करते,दिल्ली की सीमा पर एक साल से ज्यादे समय तक जबरन और हर तरह से प्रताड़ित,अपमानित,ठंड में ठिठुरते,लू में झुलसते,बारिस और ओलों में बैठे मरते किसानों से कथित माफी मांगते हुए,उन्हें तुरंत वापस करने का भी काम कर दिया ! वे अचानक टेलीविजन पर प्रकट होकर इस देश के अन्नदाताओं से उपदेशक जैसे व्यवहार करते हुए बोले कि ‘हमारी नीयत साफ थी,पवित्र थी,हम कुछ किसानों को समझा नहीं पाए,हमारी तपस्या में कमी रह गई, उनकी सरकार ने कृषि और किसानों की भलाई के लिए तमाम बड़े फैसले लिए।
तपस्या हिन्दी के शब्द तपस् से बना है,जिसका आशय सूर्य या अग्नि से उत्सर्जित तेजोमय प्रकाश से है लेकिन बाद में तपस्या शब्द का भावार्थ इस आशय में विकसित हो गया जिसमें अपने लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध किसी महान व्यक्ति द्वारा किसी आमजनहितैषी,लोककल्याण कारी उद्देश्य हेतु स्वयं के आत्मिक,शारीरिक अनुशासन के लिए उठाए जाने वाले अपार शारीरिक या मानसिक कष्ट को ही तपस्या कहा जाने लगा।
तपस्या के संबंध में उक्त परिभाषा के अंतर्गत तपस्या के लिए पवित्र कार्यों के लिए अपने शरीर को अपार कष्ट देने की बात कही गई है,इस कसौटी पर मोदीजी का अतिसुख संपन्न जीवन किसी भी दृष्टिकोण से फिट नहीं बैठता उदाहरणार्थ उनकी जीवनशैली पुराने राजे-रजवाड़ों-महाराजाओं जैसे पूरे ठाट-बाट और पूर्ण ऐश्वर्यशाली तथा विलासिता के उपभोग सहित हर सुख-साधन से संपन्न है ! जो व्यक्ति लाखों की कीमत के कपड़े को कभी दोबारा नहीं पहनता हो,60 हजार रूपयों का चश्मा लगाता हो,लाखों रूपयों की घड़ी पहनता हो,1 लाख 30 हजार रुपये की महंगी पेन का इस्तेमाल करता हो,लाखों रूपये कीमत का एप्पल ब्रांड का मोबाइल फोन का धड़ल्ले से इस्तेमाल करता हो,85अरब रूपयों की हर विलासिता की चीजों से संपन्न हवाई जहाज में बैठकर देश-विदेश की सैर करता हो,जो व्यक्ति भारत के उन गरीब किसानों की इस मांग पर कि उन्हें कम से कम उनके उपजाए फसलों की न्यूनतम् कीमत उतनी तो दी ही दी जाए,जिससे कि उनके घर का खर्च मसलन उनके बच्चों की पढ़ाई,उनकी शादी और उनकी ठीक से परिवरिश की जा सके,लेकिन उस व्यक्ति द्वारा उन किसानों की इस विनम्र विनती तक को भी वर्षों तक अनसुनी करके अपनी जिंदगी पूर्ण विलासिता और आरामदायक जिंदगी तथा सैरसपाटे में निर्ल्लजतापूर्वक व्यतीत करता रहा हो,उन अभागे किसानों को हर तरह से जलील करता रहा हो उनकी राहों में खाइयाँ खोदने,तेज नुकीले कीलें ठुकवाने,फर्जी मुकदमें करने,बदनाम करने आदि कुकृत्य कर रहा हो,उस बर्बर,असहिष्णु ,क्रूर व्यक्ति के मुख से ये तपस्या जैसे शब्द बोलना कतई शोभा नहीं देता !
प्रधानमंत्री के इस कथन की कि ‘हमारी नीयत साफ थी,पवित्र थी,हम कुछ किसानों को समझा नहीं पाए,हमारी तपस्या में कमी रह गई, उनकी सरकार ने कृषि और किसानों की भलाई के लिए तमाम बड़े फैसले लिए। ‘ आदि वक्तव्यों की कलई अब उनका ही कृषि मंत्री यह कहकर खुद ही खोल देता है कि ‘कृषि कानूनों के बारे में हम एक कदम पीछे हटे हैं,फिर आगे बढ़ेंगे, कुछ लोगों को ये कृषि कानून पसंद नहीं आए ,हम निराश नहीं हुए हैं,इससे आगे के बारे में सोच रहे हैं ‘ इससे ये साफ और स्पष्ट परिलक्षित होता है कि इस देश के किसानों,मजदूरों और आमजन के प्रति मोदीजी और उनके कृषिमंत्री की नीयत अभी भी बिल्कुल साफ और पवित्र नहीं है ! कितने दुःख की बात है कि मोदीजी इस देश के 70 करोड़ किसानों से अभी भी झूठ और असत्य बोल रहे हैं !
यह पहले से ही शक था कि आखिर 11 दौर की वार्ता में किसानों को न समझा पा सकने वाली मोदीसरकार की ज्ञान की दिव्यचक्षु आखिर उत्तर प्रदेश चुनावों से ठीक पहले ही अचानक कैसे खुल गई ! वास्तविकता यह है कि खुद मोदीजी और मोदी ऐंड कंपनी के सिपहसालारों को यह भ्रम और बदनीयतभरी सोच थी कि किसानों के आंदोलन को यूँ ही छोड़ देने से उसके लम्बे समय तक खिंच जाने से वे खुद थक-हारकर अपने घरों को लौट जाने को मजबूर हो जाएंगे, परन्तु हर विपरीत परिस्थितियों और मौसम में धरती का सीना चीर कर अन्न उपजा देने वाले इस देश के किसानों ने मर जाना पसंद किया परन्तु अपने कदम पीछे हटाना और हार मानना सीखा ही नहीं है ! वास्तविकता यह भी है कि अब तक 750 से अधिक किसानों की आंदोलन के दौरान मृत्यु से देश भर के किसानों,दूसरे देशों के किसान संगठनों,वैज्ञानिक विरादरी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित लोगों की भी आंदोलनरत किसानों के प्रति सहानुभूति,समर्थन और मनोबल बढ़ाने वाले बयान कुछ मुट्ठीभर मोदी के सलाहकारों व गीदड़नुमा केवल शोर मचाने वाले अंधभक्तों और झूठों के सरदार मोदी को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया !
अगर आप भटके हुए कुछ किसानों को समझा नहीं पाए तो आपके कथित समझदार और असली किसान अब किस बिल में छिपे बैठे है ! अब तो इन भटके हुए कुछ किसानों के घर लौटने के बाद मोदीजी द्वारा लाए गये तीनों काले कृषि कानूनों को सही समझनेवाले मोदीभक्त उन करोड़ों किसानों को मोदीजी के तीनों काले कृषि कानूनों के समर्थन में दिल्ली की चारों सीमाओं पर अपने तंबू गाड़कर बैठ जाना चाहिए था !
सच्चाई यह है कि अब उत्तर प्रदेश में आसन्न चुनावों के मद्देनजर वजह से अखिलेश और जयंत चौधरी की रैलियों में उमड़ी लाखों की भीड़ और अपनी रैलियों में मंदिर मुद्दे,हिन्दू-मुस्लिम घृणा भरे जुमलेबाजी के लाख प्रयास के बावजूद मोदी,शाह और कथित योगी की सभाओं और रैलियों में जनता की भीड़ का टोटा पड़ा हुआ है फलस्वरूप मोदी ऐंड कंपनी के हाथ-पैर फूलने लगा है, इसलिए मोदी ऐंड कंपनी हर हाल में उत्तर प्रदेश चुनाव को टालने के कुप्रयास में लगी हुई है, मसलन इलाहाबाद हाईकोर्ट के अपनी सत्ता के एक दुमहिलाऊ जज से बेवजह यह फर्मान जारी करवा दिया है कि ओमिक्रॉन वायरस की वजह से उत्तर प्रदेश में होनेवाले चुनाव को टाल दिया जाना चाहिए या हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए बीजेपी,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,बजरंग दल और हिन्दू विश्व परिषद के चिर-परिचित फार्मूले हिन्दू-मुस्लिम दंगे कराने के लिए बिष बुझे भड़काऊ भाषण या बयान वगैरह देने के लिए हरिद्वार में प्रयोग जारी है !
अब भविष्य में बीजेपी जैसे फॉसिस्ट और धार्मिक वैमनस्यता फैलाने वाले इस देश में हर हाल में हिंदू वोटों की खातिर दंगे कराने से भी परहेज़ नहीं करेंगे ! लेकिन कुछ भी हो भारतीय किसानों ने मोदी के कथित अपराजेय होने के दंभी मुखौटे को पूरी तरह धूल-धूसरित करके रख ही दिया है ! अब इस देश को लोगों को अगले चुनाव में यह तय करना है कि इस देश की सत्ता की बागडोर मोदी जैसे अहंकारी व पूँजीपतियों के हित में काम करने वाले,पूरे देश की परिसंपत्ति को अपने यारों को लुटा देनेवाले व्यक्ति को देना है या ऐसे व्यक्ति को सौंपना है जो आमजन,मजदूरों, किसानों आदि का हित सोचकर उसको कार्यान्वित करने वाले किसी सज्जन व्यक्ति को सौपना है !
-निर्मल कुमार शर्मा ‘स्वतंत्र व बेखौफ लेखन ‘ ,गाजियाबाद, उप्र,सं