मुनेश त्यागी
जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को दिल्ली पुलिस ने यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार किया था। वह पिछले 1500 दिन से ज्यादा समय से जेल में है। सत्र न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय उसकी जमानत खरीद कर चुके हैं और भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 14 बार सुनवाई के बाद भी उसे जमानत नहीं दी गई है। पिछले काफी समय से केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारें अपने विरोधियों को जनविरोधी और संविधान विरोधी यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार करके जेल में बंद करती आ रही है। खालिद उमर भी इसी सरकारी साजिश का शिकार बना हुआ है।
उमर खालिद पर चार साल पहले दिल्ली दंगे भड़काने के आरोप हैं। दिल्ली पुलिस द्वारा उसका दिल्ली दंगों में शामिल होना बताया गया था। इन दंगों में 53 आदमी मारे गए थे जिनमें से अधिकांश मुसलमान थे। इन दंगों के कई अपराधियों को पहले ही जमानत मिल चुकी हैं मगर चार साल बाद भी उमर खालिद को जमानत नहीं मिल पाई है। दिल्ली पुलिस का कहना है कि वह मुख्य आरोपी था और उसने जान पूछकर दंगे भड़काए थे। वह पिछले चार साल से बिना सुनवाई के और बिना जमानत के जेल में बंद है।
यहीं पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है कि उमर खालिद को आखिर जेल में क्यों रखा जा रहा है? अपने भाषण में उसने कहा था कि “हमें नफरत का मुकाबला नफरत और हिंसा से नहीं, बल्कि शांति से करना है।” इस ब्यान के आधार पर तो उसे किसी भी दशा में जेल की सींकचों के पीछे नही रखा जा सकता है। हकीकत यह है कि उमर खालिद को बिना किसी अपराध के, मनगढ़ंत, झूठे और बेबुनियाद मामले और दूसरे लोगों द्वारा बनाए गए वीडियो के आधार पर उसे गिरफ्तार किया गया और अब उसे दिल्ली पुलिस जान पूछ कर जेल में सड़ाया रहा है। उसका गुनाह बस यह है कि वह मुसलमान है।
उमर खालिद का केस भारतीय न्याय व्यवस्था की पूरी दुनिया में खिल्ली उड़ा रहा है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने अनेक मुकदमों में पिछले पचास सालों में हजारों बार कहा है कि “जमानत नियम है और जेल अपवाद है, बिना किसी आधार पर किसी भी अभियुक्त को जेल में नहीं रखा जा सकता।” यहीं पर सवाल उठता है, तो फिर खालिद उमर के केस में ऐसा क्यों किया जा रहा है? उसे जमानत क्यों नहीं दी जा रही है? उसके केस में ट्रायल क्यों शुरू नहीं हुई है? यहां पर कानून के शासन और सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के नियम और सिद्धांत कहां चले गए हैं?
उमर खालिद ने अपने भाषण में कहा था कि हमें नफरत का मुकाबला नफरत और हिंसा से नहीं, बल्कि शांति से करना है।” उसने कभी भी दंगें भड़काने की बात नही कही। उमर खालिद एक राजनैतिक कार्यकर्ता है। वह एक पढ़ा लिखा विद्वान है। वह हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिकता के खिलाफ बोलता है, वह गांधी और भगत सिंह के विचारों का प्रचार प्रसार करता है। वह जनतंत्र, संविधान, धर्मनिरपेक्षता, क्रांति और समाजवादी व्यवस्था में विचार रखता है, उनका प्रचार प्रसार करता है। उसके इन्हीं गुणों के कारण जानबूझकर दिल्ली पुलिस द्वारा जेल में रखा जा रहा है।
अब यह बात खुलकर सामने आ गई है कि उमर खालिद ने कोई गुनाह किया ही नहीं है बल्कि उसे दिल्ली पुलिस द्वारा जान पूछ कर झूठे केस में फंसाया गया है, इसलिए अगर उसे जमानत दी गई तो दिल्ली पुलिस की तमाम संविधान विरोधी और कानून विरोधी हरकतें देश और दुनिया के सामने आ जाएंगी, इसलिए एक सोची समझी साजिश के तहत उसे जमानत नहीं दी जा रही है। दिल्ली पुलिस की यह हरकत बता रही है कि भारत में पुलिस राज शुरू हो गया है। अब वह जो कुछ चाहे कर सकती है, उसका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है।
अब तो यह तथ्य बिना किसी शक के स्थापित होता जा रहा है कि दिल्ली उच्च न्यायालय और भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी उमर खालिद के मामले में दिल्ली पुलिस की मनमानी, गैरकानूनी और असंवैधानिक गतिविधियों की खुलकर मदद कर रहे हैं, इसीलिए एक साजिश के तहत खालिद उमर को बिना सुनवाई के और बिना जमानत के जेल में रखा जा रहा है। आखिर 1500 दिन से ज्यादा समय से खालिद उमर को जेल में क्यों रखा जा रहा है? इसको कोई बताने को तैयार नहीं है और इस पर भारत की पूरी न्याय व्यवस्था भी अंधी, गूंगी और बहरी हो गई है। आखिर उमर खालिद को बिना गुनाहगार ठहराये ही किस जुर्म की सजा काटने को मजबूर किया जा रहा है? उमर खालिद का यह मामला भारतीय न्याय व्यवस्था की पूरी दुनिया में खिल्ली उड़ा रहा है और जनता का न्याय-व्यवस्था से विश्वास उठता जा रहा है।
भारत के संविधान, कानून के शासन और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की यह सबसे बड़ी मांग है कि अब उमर खालिद के केस की तुरंत सुनवाई शुरू की जाए और और दिल्ली पुलिस की मनमानी और कानून विरोधी साजिशों की परवाह किए बिना, दिल्ली उच्च न्यायालय या भारत के सर्वोच्च न्यायालय को बिना देरी किए उमर खालिद को जमानत पर रिहा कर देना चाहिए और उमर खालिद को बिना किसी आधार के गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारियों पर तुरंत सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ तुरंत कानूनी कार्रवाई करते हुए, उमर खालिद को आर्थिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए और उमर खालिद की जिंदगी को बर्बाद होने से बचाना चाहिए, तभी जाकर पूरी दुनिया में हो रही भारतीय न्याय पालिका की फजीहत होने से बचेगी और भारतीय कानून व्यवस्था में जनता का विश्वास कायम हो सकेगा।