अग्नि आलोक

नई दिल्ली में नरबलि बनाम बलि की भारतीय मानसिकता !

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-निर्मल कुमार शर्मा

इस देश की राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में अभी भी नरबलि की परंपरा जारी है ! मिडिया में आ रही खबरों के अनुसार नई दिल्ली के लोधी कालोनी थाना क्षेत्र स्थित सीबीआई की इमारत के पास सीजीओ काम्पलेक्स में निर्माणाधीन स्थल पर छ: साल के एक बच्चे की कथित भोले शंकर को खुश करने के लिए दो नरपिशाचों और धार्मिक कूपमंडूकों ने उसकी एक तेज धार वाली चाकू से गला रेत कर हत्या कर दी ! 

               मिडिया में आ रही खबरों के अनुसार आरोपियों ने पुलिस को बताया कि ‘उनके सपने में भोले बाबा आए थे,सपने में भोले बाबा मतलब शंकर भगवान ने हमसे कहा कि बच्चे का गला काट दो तो हम प्रसन्न हो जाएंगे और तुम्हारी समृद्धि भी आ जाएगी ! रात करीब साढ़े 10 बजे जब बच्चा अपनी झुग्गी में जा रहा था तो हमने उसे खाना बनाने की जगह पर बुलाया,चूंकि वह बच्चा हमें जानता था तो वह बड़ी आसानी से हमारे पास आ गया ! …और इसके बाद हमने उस बच्चे को एक तेज धार वाले चाकू से उसके गले को काटकर उसका सिर  धड़ से अलग कर दिया ! मृतक बच्चे के परिवार से हमारी कोई दुश्मनी भी नहीं थी। ‘ 

            अब आइए इसका भारतीय समाज और इस देश में आखिर बलि चढ़ाने के लिए सपने क्यों आते हैं ? इसके बारे में मनोवैज्ञानिकों की राय जानते हैं,मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हमें नींद में भी वही सपने आते हैं,जो हम वास्तविक जीवन में हम सोचते और करते हैं ! 

भारत में बलि प्रथा क्यों ?

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             भारतीय समाज में ओझा,गुनी,कथित धार्मिक प्रवचनकर्ता और धार्मिक पुस्तकें भी धार्मिक तौर पर मूर्ख जाहिलों और पाखंडियों के दिमाग में यह ठूस-ठूसकर भरते रहते हैं कि हमारे हिन्दू धर्म के सभी देवी और देवता आदि तभी अति प्रसन्न,संतुष्ट और खुश होते हैं जब उनकी बनाई गई मूर्तियों के चरणों में कबूतर,बत्तख,मुर्गा, बकरा और भैंसा आदि निरीह और कमजोर प्राणियों को निर्ममता पूर्वक हत्या कर के उनके चरणों में चढ़ा दिया जाता है ! हिन्दू धर्म में खासकर कथित मां काली और काल भैरव को तो अपने उन पशु -पक्षी बच्चों की हत्या करके बलि चढ़ा देने से ही अत्यंत खुशी मिलती है !     

बलि की बीभत्स परंपरा भारत के अलावा धार्मिक रूप से जाहिल समाजों में पैलियोलिथिक युग से होता आया है ! 

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             सुप्रसिद्ध पश्चिमी सामाजिक वैज्ञानिक वॉल्टर बरकार्ट या Walter Burkart के अनुसार पैलियोलिथिक युग या Paleolithic Era  जो इस धरती पर लगभग 50,000 वर्ष पूर्व था,में भी व्यवहारिक आधुनिकता के प्रारंभ में शिकार की अवधारणा को पशु तथा मानव बलि के ज़रिये मौलिक पहचान दिलाने के प्रयास को दर्शाता है !  मानव बलि के विचार की जड़ें गहरे प्रागैतिहासिक काल या Prehistoric Era में ही हैं,नरबलि मूलरूप से यह पशु बलि से निकट का सम्बन्ध रखती है,अथवा मूलरूप से ये दोनों एक समान ही हैं। 

 चीन,जापान और स्लोवाकिया जैसे देशों में भी नरबलि प्रचलित थी ! 

          _____________आदिम युग में बर्बर और धार्मिक तौर पर अंधकार युग या  The Barbaric and Religiously Dark Age in the Primitive Age में कई अलग -अलग समाजों संस्कृतियों और देशों में विभिन्न अवसरों पर मानव बलि की प्रथा रही है। मानव बलि के पीछे के तर्क सामान्य रूप से धार्मिक बलिदान के जैसे ही हैं। मानव बलि का अभीष्ट उद्देश्य अच्छी किस्मत लाना और देवताओं को शांत करना होता है,उदाहरणार्थ  एक मंदिर या पुल की तरह किसी भवन के समर्पण का सन्दर्भ में इसे ले सकते हैं,एक चीनी पौराणिक कथा है कि चीन की महान दीवार के नीचे हजारों लोग दफ़न हैं। प्राचीन जापान में,हीतोबशीरा या मानवीय स्तम्भ के विषय में किवदंतियां हैं कि इसके नींव में किसी कुंवारी स्त्री को जीवित ही दफ़न कर दिया जाता था जिससे कि इमारत को किसी आपदा अथवा शत्रु-आक्रमण से सुरक्षित बनाया जा सके !

 मिश्र के पिरामिड के निर्माण के समय और बाद में भी हजारों गरीबों और गुलामों की बलि चढ़ाई गई थी !

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           सन् 1487में टेनोक्टिटलान के महान पिरामिड या Great Pyramid of Tenoctitlan के पुनर्निर्माण के लिए,एज्टेकों या Aztecs ने चार दिनों के अन्दर लगभग 80400 बंदियों की बलि दे दिए ! रॉस हास्सिग,जो कि एज्टेक वॉरफेयर के लेखक हैं या Ross Hassig,Author of Aztec Warfare के अनुसार उस समारोह में 10,000 से लेकर 80,400के बीच गुलामों की बलि दी गयी थी ! 

              मंगोलिया,स्काइथिया,प्रारंभिक मिश्र तथा कई दक्षिण अमेरिकी देशों यथा पेरू,चिली आदि देशों के शासक  अपने साथ अपना घरेलू सामान,जिसमें उनके नौकर तथा रखैलें शामिल होतीं थीं,अपने पुनर्जन्म के बाद कथित अपनी अगली दुनिया के लिए ले जाते थे। इसके लिए मृतक शासक के शव के साथ उक्त वर्णित सभी सेवकों,नौकरों, नौकरानियों और रखैलों की भी बलि चढ़कर इनके शव को शासक के साथ ही दफना दिया जाता था इन हत्याओं को ‘सेवक बलि ‘कहा जाता है,क्योंकि इन शासकों के साथ इनके सेवक अपने स्वामियों के साथ ही बलिदान दे देते थे,जिससे कि वे अगले कथित जन्मों में भी उनकी सेवा कर सकें !एक अन्य सामाजिक विज्ञानीस्ट्रैबो या  Social Scientist Straboके अनुसार, आधुनिक स्लोवाकिया के पूर्वज सेल्ट लोग तलवार से किसी पीड़ित या कमजोर गुलाम या विरोधी व्यक्ति को मौत के घाट उतार कर उसकी मृत्यु की पीड़ा व ऐंठन से भविष्य जानने की कोशिश करते थे ! प्राचीनकाल के आदिवासी समाज में अपने दुश्मन या

 विरोधी की हत्या करने के बाद उसका सिर काट कर समारोहों अथवा जादू के लिए अथवा सिर्फ प्रतिष्ठा हेतु लगाने की भी बीभत्स प्रथा थी। 

गिनीज़ बुक ऑफ रेकॉर्ड्स के अनुसार ब्रिटिशकालीन भारत में ठगी या पंडारी पंथ के नरपिशाचों द्वारा लगभग 20 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था ! आपको यह भी जानकारी रहनी चाहिए कि ठगी या पंडारी पंथ के हिन्दू या मुस्लिम सभी कातिल कथित काली मां के अनन्य उपासक और भक्त रहे थे ! मध्य भारत में इन ठगों और पिंडारियों का इतना आतंक था कि लोग रात में घर से नहीं निकलते थे !  

 मानव सभ्यता के हित में ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंन्टिक का अमूल्य योगदान

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               इस बेहद घिनौने व हिंसक कुप्रथा का कठोरता से दमन करके इसका अंत ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैन्टिक ने वर्ष 1830 में कर दिया था ! ये वही लार्ड विलियम बैंन्टिक हैं,जो तत्कालीन असभ्य और धार्मिक तौर पर पाखंडी और क्रूर भारतीयों द्वारा पति के मरने के बाद उसी की चिता पर बैठाकर उसकी विधवा को कथित सती प्रथा के नाम पर बहुत ही बर्बर और बीभत्स तरीके से उस महिला की बलि चढ़ा दिया करते थे !

 यूरोपियन विच – हंट या चुड़ैलों का शिकार प्रथा भी नरबलि का एक अत्यंत घिनौना रूप !

              ____________________इसी प्रकार की एक बहुत ही क्रूर परंपरा वर्ष 1450 से 1750 के मध्य यूरोपियन विच-हंट यानी चुड़ैलों का शिकार की प्रथा के नाम पर या फ्रांसीसी क्रन्तिकारी आतंक के साम्राज्य के दौरान भी समस्त यूरोप में मृत्यु-दंड की बाढ़-सी आ गयी थी ! इसमें किसी भी निर्दोष स्त्री-पुरूष की चुड़ैल घोषित कर हत्या कर उनकी हत्या कर दिया जाता था ! ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार इस नरबलि कुप्रथा में 35000 से लेकर 50000 निर्दोष स्त्री-पुरूषों की निर्ममता से हत्या कर दी गई थी !

 पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बिहार में अभी भी नरबलि की बाढ़ !

           ____________भारत में नरबलि पूर्णतः अवैधानिक और गैरकानूनी है,लेकिन देश के सुदूर,अशिक्षित अविकसित कबीलाई या अर्ध-कबीलाई समूह अभी भी उन असभ्य व अति घिनौने व बीभत्स सांस्कृतिक परम्पराओं का पालन करते रहते हैं जिनका पालन वे सस्राब्दियों से करते चले आ रहे हैं। इन

 इलाकों में अभी भी नरबलि के कुछ मामले सामने आते ही रहते हैं,सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार,पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2003 में मानव बलि की एक घटना हुई थी।इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के खुर्जा की पुलिस ने यह जानकारी दी है कि वर्ष 2006 में केवल डेढ़ वर्ष की अवधि में बलि के नाम पर उस क्षेत्र में दर्जनों गरीब और कमजोर समाज के बच्चों,स्त्रियों और अन्य लोगों की जघन्यतम् हत्याएं कर दीं गईं !         

भारत जैसे देश में कथित देवियों और देवताओं को खुश करने के लिए बलि चढ़ाई जाती है !

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          बेहद दु:ख और अफसोसजनक यह बात है कि उक्त वर्णित जघन्यतम् हत्याओं वाली बीभत्सतम् प्रथाओं का दुनिया के अधिकतर विकसित राष्ट्रों में समूल नाश किया जा चुका है, क्योंकि नरबलि जैसी क्रूरतम् घटनाओं की खबरें उन देशों से कभी भी प्रकाश में नहीं आतीं,लेकिन भारत जैसे लगभग तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं वाले इस देश में आज भी यहां के हिदू-मुस्लिम सहित विभिन्न समाजों और धर्मों में आज भी तमाम त्योहारों पर तमाम बेजुबान और नीरीह पशु-पक्षियों की कथित देवियों और देवताओं को प्रसन्न करने तथा अपनी कथित मनौती पूरी करने के लालच में निर्मम हत्या कर दी जाती है ! इसी के साथ इस देश में गरीब और दलित समुदाय के कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोगों के बच्चों, स्त्रियों आदि की भी बलि के नाम पर क्रूर हत्या कर दी जा रही है ! भारत में कम से कम 10ऐसे मंदिर हैं, जहां पशु-पक्षियों की बलि के नाम पर प्रतिदिन हत्या करके उनके मांस को प्रसाद के रूप में कथित ईश्वर के परम् भक्त लोग खाते हैं !

भारत जैसे देश में पशुबलि या नरबलि अधिकांशतः कथित धार्मिक, आस्तिक और ईश्वर व खुदा के परम् भक्त गणों द्वारा ही की जाती है !

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              इस देश में उक्त वर्णित अत्यंत घिनौनी,क्रूर व नरपैशाचिक कुकर्म कथित धार्मिक,आस्तिक और ईश्वर को मानने वाले परम् पूज्य भक्तों की तरफ से ही किया जाता है ! जाहिर है ये तथाकथित धार्मिक, आस्तिक और ईश्वर के परम् भक्त लोगों में उक्त वर्णित क्रूरतम् घटनाओं को अंजाम देते हुए उनकी आंखों में एक बूंद दया और करुणा के अश्रु नहीं बहते ! न उनके हृदय में सहानुभूति और इंसानियत की लंच मात्र भी अंश रहता है ! 

               इससे यह साबित होता है कि कथित धार्मिक,आस्तिक और ईश्वर के भक्तों में इंसानियत,करूणा,दया,सहिष्णुता और जीवों सहित गरीबों पर रहम नामक मानवीय गुणों का सिरे से अभाव है ! जब तक इस देश से क्रूर धर्मों और मजहबों का पूर्णतः सफाया नहीं होगा ये महाबीभत्स बलि प्रथा चाहे पशु-पक्षियों का हो या गरीबों के बच्चों का हो,सदा होता रहेगा,क्योंकि यहां के विभिन्न धर्मों के ठेकेदारों या मठाधीशों ने ही सभी भारतीयों के अवचेतन मन-मस्तिक में यह गहरे तक बैठा दिया है कि देवियों और देवताओं की मूर्तियों के चरणों में या खुदा के नामक बेजुबान और बेबस बकरों,भैंसों और ऊंटों की बलि चढ़ा देने से हमारी मनोकामना पूरी हो जाता करतीं हैं !

-निर्मल कुमार शर्मा ‘गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक,सामाजिक, राजनैतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर स्वतंत्र,निष्पक्ष,बेखौफ,आमजनहितैषी,न्यायोचित व समसामयिक लेखन,संपर्क-9910629632, ईमेल – nirmalkumarsharma3@gmail.com

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