अग्नि आलोक

मधु लिमये का भारतीय राजनीति  मैं कोई सानी नहीं

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रामस्वरूप मंत्री 
भारतीय लोकतंत्र का जिस्म तो बुलंद है, पर इसकी रूह रुग्ण हो चली है, ऐसे में जोड़, जुगत, जु गाड़ या तिकड़म से सियासत को सा धने वाले दौर में मधु लिमये की ब रबस याद आती है।  मधु लि मये जिनकी  1मई 2022 को 100वी  जंयती है  ,यह उनका जन् मशति वर्ष  भी  है 
लिमये  के व्यक्तिव की विशेषता उनका शत प्रतिशत सिद्धान्तिक पक्ष था जिससे उन्होंने कभी भी किसी भी लाभ के लिए समझौता नहीं किया। वे सादगी से रहने वाले नेता थे। आज के समय के नौजवानों के लिए यह विस्मयकारी होगा कि अन्तराष्ट्रीय ख्याति के नेता व चार बार के लोक सभा सदस्य का जीवन खांटी समाजवादी व सुख साधन सुविधाविहिन था।  राजनीति के चरमो त्कर्ष पर हमें सन्नाटे में से  ध्वनि, शोर में से संगीत और अं धकार में से प्रकाश किरण ढूँढ ले ने की प्रवीणता हासिल करने का कौ शल मधु लिमये में दिखता है।
मधु लिमये सचमुच विचारवेत्ता भी  थे, और ब्रह्मास्त्र को आमने सा मने झेलने वाले योद्धा भी मुट् ठी भर  योद्धाओं में अपने दुबले  पतले लेकिन तेजस्वी मधु लिमए स च्चे अगली पंक्ति के चिंतक योद् धधा थे।कभी भी ना थकने वाले, को ई भी समझौता न करने वाले, बड़े  से बड़े झूठ के खिलाफ तन कर सच  बोलने की अदम्य निष्ठा वाले, सं कटों के भंवर जाल में बेहद बेचै न लेकिन अंदर कहीं बेहद धीर गं भीर मधु लिमये का भारतीय राजनीति  मैं कोई सानी नहीं ।
स्वाधीनता संग्राम में तक़रीबन  4 साल (40-45 के बीच), गोवा मु क्ति संग्राम में पुर्तगालियों  के अधीन 19 महीने (1955 में 12  साल की सज़ा सुना दी गई), और आपा तकाल के दौरान 19 महीने मीसा के  तहत (जुलाई 75 – फरवरी 77) वे मध्यप्रदेश की क ई जेलों में रहे। लिमये तीसरी,  चौथी, पाँचवीं व छठी लोकसभा के  सदस्य रहे, पर इंदिरा जी द्वारा  अनैतिक तरीक़े से पाँचवीं लो कसभा का कार्यकाल बढ़ाए जाने के  विरोध में इन्होंने अपनी सदस् यता से इस्तीफ़ा दे दिया था।
ख़बरपालिका की मानिंद आज विधायि का भी सूचना तथा मनोरंजन का सा धन मात्र हो गयी है। यह व्यक्ति , समाज तथा अन्य संस्था के बीच  बढ़ती संवादहीनता की खाई को पा टने में यह कोई भूमिका निभाने की बजाय गैरज़िम्मेदार लोगों के झुं ड से घिरी हुई है। लिमये की कु शाग्र बहस को याद करते हुए संसद  से यह सहज अपेक्षा बंधने लगती  है कि यह सामूहिक संवाद के स्तर  को ऊँचा करे, राष्ट्र-निर्माण  की प्रक्रिया को तेज़ करे, यथा स्थिति को तोड़े, मज़बूत लोगों  का बयान होने की बजाय बेज़बानों  की ज़बान बनी रहे एवं लोकतंत्र  की जड़ें मज़बूत करे।
संसदीय प्रणाली के नियमों के तह त जन आकांक्षाओं के अनुरूप मुद् दों को इतने सशक्त रूप से रखा या उठाया जा सकता है, वास्तव में  देश को इसका ज्ञान मधु जी के सं सद के कार्यों के द्वारा ही हो  सका था। उन्होंने भी शायद विशे षाधिकार नियमों का उपयोग कर देश  को चमत्कृत किया था।
सोशलिस्ट पार्टी के उस समय संसद  में बहुत कम सदस्य थे, इसके बा वजूद उस दौरान मधु जी ने तत्का लीन सरकार को अनेक बार कटघरे में खड़ा किया और निरुत्तर किया।लो हिया जी के निधन के बाद मधु जी  प्रथम पंक्ति के समाजवादी नेता ओं में अग्रणी थे। कहना चाहिए कि समाजवादी सिद्धांतों और कार् यक्रमों के वो ही मुख्य व्याख् याता थे। सिद्धांत, नीति, कार् यक्रम, रणनीति आदि के विषय में  मधु जी का भाषण स्पष्ट और सटीक  होता था। 1977 में गैर–कांग्रेस  वाद को रणनीति के अंतर्गत कें द्र में गैर कांग्रेसी सरकार बन वाने की मुहिम में मधु जी की भू मिका अग्रणी रही थी, किंतु 1977  में बनी गैर कांग्रेसी सरकार में उन्होंने मंत्रिपरिषद में शामि ल होना स्वीकार नहीं किया। सत् ता से अलग रहकर संगठन में अधिक  महत्वपूर्ण और ज्यादा लोकोपयोगी  कार्यों का वर्णन उनको अधिक श् रेयस्कर लगता था। साथ ही यह उनकी पदों से दूर सादगी के जीवन के  गति का घोतक भी था।
लिमये सोशलिस्ट पार्टी के संयु क्त सचिव (1949-52), प्रजा सो शलिस्ट पार्टी के संयुक्त सचिव  (1953 के इलाहाबाद सम्मेलन में  निर्वाचित), सोशलिस्ट पार्टी के  अध्यक्ष (58-59), संयुक्त सो शलिस्ट पार्टी के संसदीय बोर्ड  के अध्यक्ष (67-68), चौथी लो कसभा में सोशलिस्ट ग्रुप के ने ता (67), जनता पार्टी के महासचि व (1 मई 77-79), जनता पार्टी (ए स) एवं लोकदल के महासचिव (79- 82) रहे। लोकदल (के) के गठन के  बाद सक्रिय राजनीति को अलविदा क हा।
दो बार बंबई से चुनाव हारने के  बाद लोगों के आग्रह पर वे 64 के  उपचुनाव में मुंगेर से लड़े व  अपने मज़दूर नेता की सच्ची छवि  के बल पर जीते, दोबारा 67 के आम  चुनाव में प्रचार के दौरान तौ फीक दियारा में उन्हें पीट पीट  कर बुरी तरह से घायल कर दिया गया, वो सदर अस्पताल में भर्ती हुए  जहां भेंट करने वालों का तांता  लगा हुआ था। सहानुभूति की लहर  व अपने व्यक्तित्व के बूते वे फि र जीते। पर, तीसरी दफे वे कॉलेज  में डिमोंस्ट्रेटर रहे कांग्रे स प्रत्याशी डी पी यादव से त्रि कोणीय मुक़ाबले में हार गये।
यह भी चकित करने वाला ही है कि  तमाम प्रमुख नाम मोरारजी की कै बिनेट में थे, पर मधु लिमये का  नाम नदारद था। मोरारजी चाहते थे  कि आला दर्जे के तीनों बहसबाज  जार्ज, मधु व राज नारायण कैबिने ट में शामिल हों। वो अपने वित्त  मंत्री के कार्यकाल में लिमये  के सवालों से छलनी होने का दर्द  भोग चुके थे पर, लिमये ने रा यपुर से सांसद और मध्य प्रदेश के वरिष्ठ समाजवादी नेता पुरुषोत् तम कौशिक को मंत्री बनवाया।
 संसोपा के संसदीय दल के नेता का पद छोड़ा
1967 में राममनोहर लोहिया की मृ त्यु के बाद मधु लिमये संसोपा सं सदीय दल के नेता चुने गए. लेकिन  तब तक संसोपा पर पिछड़ावाद हा वी हो चुका था. पार्टी के कई लो गों को मलाल था कि जो पार्टी ‘सं सोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पा वें सौ में साठ’ का नारा देती है, उस पार्टी और उसके वर्चस्व वा ली सरकारों में महत्वपूर्ण पदों  पर अगड़े वर्ग के लोग क्यों का बिज हैं. इसी विवाद में 1968 में बिहार की महामाया प्रसाद सिन् हा की सरकार चली गई थी. 1969 में यही सवाल संसोपा संसदी य दल की बैठक में भी उठा कि पि छड़ों की पार्टी के संसदीय दल के नेता पद पर ब्राह्मण समुदाय के  मधु लिमये क्यों काबिज हैं? ले किन सवाल उठने के बाद मधु लिमये  ने एक मिनट की भी देर नहीं लगा ई. अपने पद से इस्तीफा दे दिया.  इसके बाद पार्टी के कई नेताओं  ने उनको मनाने की कोशिश की, ले किन वह नहीं माने. आखिरकार उनकी  जगह उत्तर प्रदेश के सोशलिस्ट  नेता और बाराबंकी के सांसद रा मसेवक यादव को संसोपा संसदीय दल  का नेता चुना गया.
 उनके बारे में एक तथ्य और बता ते चलें कि 1990 में मंडल कमीशन  का बवाल खड़ा होने के बाद जब सु प्रीम कोर्ट में इस विवाद पर इं द्रा साहनी बनाम यूनियन ऑफ इंडि या केस की सुनवाई शुरू हुई, तब  क्रीमी लेयर का मामला लेकर मधु  लिमये भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच ग ए थे और खुद इस केस में एक पार् टी बन गए. सुप्रीम कोर्ट ने भी  अपने जजमेंट में उनके इस तर्क को माना कि पिछड़े वर्ग में क्री मी लेयर यानी संपन्न तबकों को आ रक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए
आज उसी मर्यादा, सलीक़े व सदा शयी लोकव्यवहार का संसदीय राजनी ति में सर्वथा अभाव दिखता है। ह म अगर विचार विनिमय, बहस व वि मर्श की चिरस्थापित स्वस्थ परं परा को फिर से ज़िंदा कर पाए, तो जम्हूरियत की नासाज रूह की थो ड़ी तीमारदारी हो जाएगी और यही  होगी लिमये जी के प्रति सच्ची भा वांजलि।
रामस्वरूप मंत्री
( लेखक इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार  एवं सोशलिस्ट पार्टी मध्य प् रदेश के अध्यक्ष हैं)

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