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भारत की अच्छी क्रय-शक्ति वाली जनसंख्या सिर्फ पांच करोड़

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राकेश कायस्थ

देश की असली हालत समझनी हो तो व्यापार और उद्योग जगत के लोगों की बातें गौर से सुनिये और बिटवीन द लाइंस पढ़िये। अपने स्टार्ट अप जीरोधा से दुनिया भर में शोहरत बटोरने वाले नितिन कामथ ने एक इंटरव्यू में कहा “ विशाल युवा आबादी भारत की ताकत है। लेकिन अच्छी क्रय-शक्ति वाली जनसंख्या सिर्फ पांच करोड़ है। प्रभावी आर्थिक लेन-देन इन्हीं लोगों के बीच है। बाकी आबादी आर्थिक प्रक्रिया से  लगभग बाहर है। ”

नितिन और उनके भाई निखिल को सभी सरकारी और गैर सरकारी मंचों पर भरपूर अहमियत मिलती है। निखिल कामथ प्रधानमंत्री के अमेरिकी दौरे पर हुए भोज के दौरान भी नज़र आये थे। सरकार समर्थक उद्योगपति जब खुलेआम संसाधनों के असमान वितरण की बात स्वीकार करें तो फिर समझने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि इस देश में अमीर-गरीब की खाई इस तरह बढ़ी है। 

फुटवियर बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलैक्सो की पहचान सस्ते चप्पल बेचने के लिए रही है। कंपनी के इनेस्टर लगातार ये कह रहे है कि ग्रामीण और कस्बाई अर्थव्यवस्था की हालत इतनी खराब है कि रिलैक्सो को 110 रुपये वाले चप्पलों के लिए ग्राहक तक नहीं मिल रहे हैं।

बाजार भागीदारी बचाये रखने के लिए कंपनी को डिस्काउंट देना पड़ रहा है, जिसका बहुत बुरा असर उसकी लाभप्रदता पर पड़ रहा है।

दूसरी तरफ फाइव ट्रिलियिन डॉलर इकॉनमी की कहानियां लगातार बेची जा रही हैं और एप्पल स्टोर खुलने को भारत समृद्धि के प्रतीक के तौर पर जोर-शोर से प्रचारित किया जा रहा है। अर्थव्यवस्था को लेकर ढपोरशंखी दावों के साथ-साथ पूरा सरकारी तंत्र देश को इस बात का एहसास कराने में जुटा है कि हिंदू-मुसलमान से बड़ा कोई दूसरा मुद्दा है ही नहीं।

पिछले नौ साल की यात्रा देखकर इस बात में कोई शक नहीं रह जाता है कि नरेंद्र मोदी कुछ चुनींदा पूंजीपतियों द्वारा लांच किये गये एक ब्रांड हैं। जिन लोगों ने उन्हें खड़ा किया है कि उनके हितों की रक्षा के लिए मोदी किसी भी हद तक जा सकते हैं। चोर रास्ते से कृषि कानून लागू करने की नाकाम कोशिश इसका बड़ा उदाहरण है। 

ब्रांड मोदी को बचाये रखने के लिए कॉरपोरट तंत्र भी सबकुछ करने को तैयार है। अपने न्यूज़ चैनलों के ज़रिये बीजेपी के सांप्रादायिक एजेंडे को हवा देने से लेकर महामानव रूपी मोदी गुब्बारे को फुलाये रखना इसमें शामिल हैं।

आज़ाद भारत के इतिहास में राहुल गांधी पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जो सत्ता की राजनीति में केंद्रीय भूमिका निभाती आई पार्टी के नेता होकर भी कॉरपोरेट तंत्र के खिलाफ पूरी तरह से मुखर हैं। ज़ाहिर है, उनकी लड़ाई बेहद मुश्किल है। 

बेरोजगारी और कॉरपोरेट लूट के खिलाफ वो लंबे अरसे से बोलते आये हैं लेकिन मुद्दों को लेकर चुनावी हवा बना पाना भारत जैसे देश में आसान नहीं है। राहुल कहां पहुंचेंगे ये मालूम नहीं है लेकिन रास्ता उन्होंने बिल्कुल ठीक चुना है।

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