Site icon अग्नि आलोक

रसूखदारों को कानून का रत्ती भर भी भय नहीं…..!

Share

आशीष वशिष्ठ

इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रभावशाली लोग कानून को खिलौना समझ कर खेलते हैं। और व्यवस्था भी उनके इस काम में खूब मददगार साबित होती है। बरसों बरस से देश में ऐसा ही चलता आ रहा है। सख्त से सख्त कानून बनाने और तमाम दूसरे उपायों के बाद भी रसूखदार कानून का आए दिन मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते हैं। कानून को बौन साबित करने वाली इस जमात को राजनीतिक संरक्षण हासिल होता है। ऐसे में धनबल और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त ये लोग व्यवस्था की कमियों और छिद्रों के चलते नियम कानूनों को आसानी से गच्चा देते हैं।


आम आदमी की मामूली-सी गलती पर उसे पकड़ने में भरपूर तेजी दिखाने वाली पुलिस को प्रभावशाली और रसूखदार लोगों तक पहुंचने में वक्त लग ही जाता है। पश्चिम बंगाल में इसकी अवधि कुछ ज्यादा ही लंबी हो जाती है। संदेशखाली मामले से चौतरफा निंदा का पात्र बना तृणमूल कांग्रेस का नेता शाहजहां शेख 55 दिनों से फरार रहने के बाद पुलिस की गिरफ्त में आया है! लेकिन तब, जब कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ममता सरकार को फटकार लगाई। यदि फटकार नहीं लगी होती तो उसे छुपाए रखा गया होता। वह जिस हनक और रूआब से थाने और अदालत में दाखिल हुआ, उससे यही लगा कि वह कोई शहंशाह है।


पश्चिम बंगाल पुलिस उसके आगे दंडवत और सहमी सी दिखी। उसे सत्ता का संरक्षण प्राप्त था, यह सच्चाई तृणमूल कांग्रेस के इस कथन से छिपने वाली नहीं कि हमने उसे निलंबित कर दिया। यह राजधर्म नहीं, बेशर्मी है कि उसे गिरफ्तार न करने के लिए उच्च न्यायालय के आदेश की गलत व्याख्या तक की गई। यदि ईडी को शक है कि बंगाल पुलिस शाहजहां शेख की मदद कर सकती है तो यह स्वाभाविक है। बड़ी निर्लज्जता से तृणमूल कांग्रेस की सरकार अपने नेता का बचाव करती रही। संदेशखाली की महिलाओं ने जिन शब्दों में अपनी पीड़ा का बयान किया है, उससे किसी पत्थर दिल व्यक्ति का भी दिल पिघल सकता है। लेकिन पश्चिम बंगाल की महिला मुख्यमंत्री का दिल नहीं पसीजा। भारतीय जनता पार्टी के विरोध और हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणियों के बाद शाहजहां को गिरफ्तार किया गया।


दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल से प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी दिल्ली शराब घोटाले में पूछताछ के लिए अब तक आठ समन भेज चुका है। जांच एजेंसी के सामने पेश होने की बजाय केजरीवाल ईडी के समन को ही गैर कानूनी बता रहे हैं। वो कानूनी दांव पेंच से जांच से बच रहे हैं। और दिल्ली विधानसभा में खड़े होकर केंद्र की मोदी सरकार से लेकर अपने राजनीतिक विरोधियों पर जमकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। चूंकि विधानसभा में दिए बयान पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती। इसी के चलते केजरीवाल ने विधानसभा को अपनी भड़ास निकालने और राजनीतिक विरोधियों पर मनगंढ़त आरोप लगाने का मंच बना रखा है। देश की जनता उनका तमाशा देख रही है।
जिस शराब घोटाले में उनसे पूछताछ होनी है, उसी घोटाले में उनके सबसे खास साथी मनीष सिसोदिया और संजय सिंह तिहाड़ की रोटियां तोड़ रहे हैं। एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति किस तरह कानून और संविधान का उपहास उड़ा रहा है, उससे समाज में गलत उदाहण तो पेश हो ही रहा है। वहीं आम आदमी के मन में यह सवाल भी उठता है कि क्यों कानून रसूखदारों सामने कमजोर और असहाय दिखाई देता है? केजरीवाल की तरह तेंलगाना के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी ईडी के समन की अवमानना करते रहे, और खुद को बचाने के सारे यत्न उन्होने किये। बड़ी जदोजहद के बाद ईडी ने उन्हें अपने शिकंजे में लिया। फिलवक्त सोरेन जेल का भोजन पा रहे हैं।


पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने हत्या और बलात्कार के मामले में जेल में सजा काट रहे राम रहीम को बार-बार पैरोल दिये जाने पर सवाल उठाया। हाईकोर्ट ने कहा कि क्यों केवल राम रहीम को बार-बार पैरोल मिल रही है? बाकी कैदियों को क्यों नहीं लाभ दिया जाता? रेप के दोषी राम रहीम को इस साल जनवरी में 50 दिन की पैरोल दी गई थी। यह लगभग 10 महीने में उसकी 7वीं और पिछले चार वर्षों में 9वीं पैरोल थी। हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया है कि अब अदालत की अनुमति के बिना राम रहीम को पैरोल नहीं दी जाएगी। सत्ता, व्यवस्था, कानून के रक्षक और संरक्षक के गठजोड़ से ही राम रहीम जैसे रसूखदार कानून को फुटबाल बनाकर खेलते हैं।


जब तक सत्ता के गलियारों से आपराधिक लोगों को संरक्षण मिलता रहेगा, तब तक ये निर्लज्जता बनी रहेगी। हरेक घटना में किसी न किसी रसूखदार का, किसी न किसी सत्ताधारी का संरक्षण दिखता रहा है। हर बार सत्ता की तरफ से कठोर से कठोर कार्यवाही किये जाने की बात कही जाती है, कुछ दोषियों की गिरफ्तारी भी हो जाती है, जांच करवाए जाने की लीपापोती कर दी जाती है और उसके बाद सब कुछ भूल-भुला लिया जाता है।

संदेशखाली जैसी घटनाएं कुछ दिन चर्चा में रहती हैं फिर जनमानस की खोपड़ी से गायब हो जाते हैं. निठारी कांड कितनों को याद है? बिहार मुजफ्फरपुर शेल्टर होम रेप केस कितनों को याद है? कितनों को उसके दोषी की सजा याद है? कुछ दिन बाद ऐसा ही संदेशखाली में को भी लेकर होगा।


प्रभावशाली किस मामले में फंस भी जाते हैं तो उनके चेहरे, बाडी लैग्वेंज, चेहरे से टपकते घमंड और अहंकार को देखकर ऐसा नहीं लगता कि उनको कानून का रत्ती भर भी भय है। पुलिस प्रशासन को तो वो अपना चाकर समझते हैं। कहीं न कहीं व्यवस्था भी उनकी चाकरी करती दिखाई देती है। न्याय व्यवस्था भी ऐसी है कि प्रभावषाली लोगों को जमानत देने में देर नहीं करती। आधी रात को भी उनके मामले सुन लिए जाते हैं। हालांकि देश की अदालतों में करोड़ों मुकदमे लंबित हैं। और आम व्यक्ति को न्याय पाने के लिए वर्षों प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

भ्रष्टाचार व अन्य गंभीर मामलों में दर्जनों रसूखदार आसानी से जमानत पाकर आराम की जिंदगी बिता रहे हैं। चारा घोटाले में सजा पाए लालू प्रसाद यादव स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के चलते जमानत पर हैं। राजनीति में उनकी सक्रियता बताती है कि अब वो स्वस्थ हैं। और अगर वो स्वस्थ हैं तो वो जमानत पर क्यों हैं? अगर रसूखदारों को जेल जाना भी पड़ा तो वहां भी उनके मनमुताबिक ऐशो आराम जारी रहता है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण है। दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन के जेल की कोठरी में कथित तौर पर मालिश कराने का वीडियो देश ने देखा है। यूपी के चर्चित नेता और माफिया मुख्तार अंसारी की पंजाब की जेल में कांग्रेस की सरकार ने जो मेहमाननवाजी की उसे कौन भूल पाएगा।
देशवासी भूले नहीं होंगे जब एक रसूखदार दामाद ने मैंगो पीपल कहकर आम आदमी का जिस तरह मजाक उड़ाया था, बॉलीवुड के एक गायक ने फुटपाथ पर सोने वाले बेघर लोगों को कुत्ते कहकर उसी अहंकार का परिचय दिया था। किसी नेता या रसूखदार को जब जांच एजेंसी पकड़ती है तो वो विजय मुद्रा बनाकर हवा में हाथ लहराता है। मानो उसने कोई महान काम किया है। गिरफ्तारी के समय या जांच के लिए जाते वक्त नेताओं और रसूखदारों के हाव भाव ऐसे होते है मानो वो एहसान करने जा रहे हैं। और उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया, उनको तो राजनीति के चलते फंसाया गया है। जांच एजेंसी के आफिस के बाहर नेता के समर्थकों का धरना, प्रदर्शन अप्रत्यक्ष तौर पर जांच एजेंसी को डराने, धमकाने और प्रेशर डालने का कृत्य है।
वहीं किसी रसूखदार को सजा मिलने पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं, वे स्तब्ध करने वाली होती हैं। उनमें अपने विशिष्ट होने का अहंकार और न्यायालय की अवमानना के साथ-साथ संवेदनहीनता की पराकाष्ठा भी सुनाई पड़ती है। खुद को कानून से ऊपर समझने वाले किसी रसूखदार ने अगर कोई गैर कानूनी काम किया है तो देर सबेर कानून उनके किए की सजा देगा ही, लेकिन उस उच्चवर्गीय अहंकार पर अंकुश लगाने की भी जरूरत है, जो अपने गलत कामों को सही सिद्ध करने के हठ में अमानवीय हो जाता है।

Exit mobile version