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नर्सिंग कॉलेजों की जांच:रिश्वत लेकर आंख मूंद ली गई

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सनत जैन

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआई द्वारा नर्सिंग कॉलेजों की जांच की जा रही थी। पिछले कई महीने से जांच चल रही थी। सीबीआई के अधिकारियों ने रिश्वत लेकर अपनी जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट को सोंपी। जांच करने के लिए सीबीआई की टीम प्रत्येक नर्सिंग कॉलेज तक गई और सीबीआई के अधिकारियों द्वारा जांच की गई। मान्यता देते समय नर्सिंग काउंसिल, मेडिकल विश्वविद्यालय और शासन द्वारा नियमों का पालन कराने के स्थान पर रिश्वत लेकर आंख मूंद ली गई।

छात्र संख्या के आधार पर रिश्वत लेकर हर कोई अनुमति दे रहा था। पिछले 4 वर्षों में लगभग 50000 से ज्यादा नर्सिंग कॉलेज के छात्र-छात्राओं का भविष्य बर्बाद है। 3 साल से मध्य प्रदेश में नर्सिंग की परीक्षाएं नहीं हो पा रही हैं। मामला हाई कोर्ट में पिछले 1 वर्ष से अधिक समय से चल रहा है। यह माना जा रहा था, हाईकोर्ट के आदेश पर देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई इस मामले में गंभीरता से जांच करके दोषियों को सामने लाएगी। जब सीबीआई की रिपोर्ट आई, जांच रिपोर्ट ओर वास्तविक स्थिति का चित्रण याचिकाकर्ताओं द्वारा तथ्यों के साथ हाईकोर्ट में पेश किया। उसके बाद हाईकोर्ट के आदेश पर एक बार फिर सीबीआई के अधिकारियों की जांच शुरू की गई। जांच में सीबीआई के अधिकारियों ने भी रिश्वत लेकर वही किया, जो पहले की एजेंसियों ने किया था।

सीबीआई के छापे में सीबीआई के अधिकारी ही रंगे हाथों न केवल रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार हुए बल्कि इनका एक तंत्र जो नीचे से ऊपर तक रिश्वत लेकर उन नर्सिंग कॉलेज को परमिशन दिलाने में मददगार हो रहा था। जिनके पास ना तो इंफ्रास्ट्रक्चर था। ना ही फैकल्टी थी और वह कागजों पर संचालित हो रहे थे। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस खुलासे के बाद सभी 169 नर्सिंग कॉलेज की जांच न्यायिक दंडाधिकारी की उपस्थिति में कराए जाने के आदेश जारी किए हैं। सीबीआई के अधिकारी एक बार फिर सभी 169 नर्सिंग कॉलेज की जांच करेंगे। जांच के समय न्यायिक अधिकारी भी उपस्थित रहेंगे। इसकी वीडियो भी बनाई जाएगी।

शासन और प्रशासन द्वारा बनाए गए नियमों और हाईकोर्ट के आदेशों का किस तरह से पालन किया जाता है। यह एक सच के रूप में, हम सभी के सामने हैं। नियम-कायदे, कानून और न्यायपालिका का उपयोग किस तरह से होता है। जिनके पास पैसा है, वह जो करना चाहते हैं वह कर लेते हैं। नियम-कायदे, कानून रिश्वत वसूली के साधन हैं। आम आदमी किस पर विश्वास करे, यह उसके समझ में नहीं आता है। उसके सामने रिश्वत देकर छुटकारा पाने के अलावा और अन्य कोई विकल्प नहीं होता है। मान्यता प्राप्त कॉलेजों में छात्र-छात्राओं ने एडमिशन लिया। लाखों रुपए प्रति छात्र-छात्रा खर्च हुए। सरकार ने भी स्कॉलरशिप में करोड़ों रुपए की राशि खर्च की। प्रदेश और देश में नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी है। विदेश में भी इन्हें नौकरी के अवसर मिलते हैं। 18 वर्ष से 21 वर्ष के युवा और युवती नर्सिंग कॉलेज की पढ़ाई इसलिए करना चाहते हैं।

सेवा के साथ इसमें रोजगार के अवसर भी बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। मध्य प्रदेश सरकार, नर्सिंग काउंसिल, मेडिकल विश्वविद्यालय जो कॉलेज को मान्यता देने के पूर्व उनके इंफ्रास्ट्रक्चर और फैकल्टी इत्यादि की जांच करते हैं। इतने सारे चेक पॉइंट होते हुए यदि इस तरीके की गड़बड़ी हुईं हैं। तो उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है। यही कहा जा सकता है, देश में कानून का शासन नहीं रहा। पिछले वर्षों में सीबीआई जैसी संस्था जिसका सभी विश्वास करते थे, आज वह कहां से कहां पहुंच गई है। हाईकोर्ट का आदेश भी उसके लिए कोई मायने नहीं रखता है। सीबीआई ने 356 नर्सिंग कॉलेजों की मौके पर जाकर जांच की थी। जांच के पहले ही रिश्वत वसूल करने के लिए सीबीआई के अधिकारियों ने एक गैंग बना ली। जिन नर्सिंग कॉलेज के पदाधिकारियों ने उन्हें उनके द्वारा निर्धारित रिश्वत पहुंचा दी, उसके बाद जांच दल में शामिल चाहे सीबीआई का अधिकारी हो, चाहे पटवारी हो, चाहे राजस्व विभाग का कोई अधिकारी कर्मचारी हो, सभी ने उसमें अपना-अपना ठप्पा लगाकर सभी ने अपना हिस्सा वसूल कर लिया। सीबीआई के अधिकारियों की जांच होने पर उनके द्वारा रिश्वत लिए जाने के मामले प्रमाणित होने पर उनमें से कुछ को निलंबित कर दिया गया है, कुछ की जांच चल रही है। पिछले 1 वर्ष से अधिक समय से हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। नर्सिंग कॉलेजों के सभी छात्र-छात्राएं पिछले तीन वर्ष से बिना परीक्षा के यहां से वहां भटक रहे हैं। नर्सिंग कॉलेजों में पढ़ाई नहीं हुई।

हाईकोर्ट के आदेश पर अब परीक्षाएं भी होंगी। बिना पढ़े परीक्षा में इनको पास भी कर दिया जाएगा। डिग्री या डिप्लोमा इन्हें भले मिल जाए। लेकिन जो थ्योरी और प्रैक्टिकल का ज्ञान हासिल करना था, वह संभव नहीं हो पाया। सब अपना अपना काम कर रहे हैं। दुर्गति तो उन बेचारे छात्र-छात्राओं की हो रही है, जो पिछले 3 साल का समय बर्बाद करके और मां-बाप के लाखों रुपया खर्च करके अपना भविष्य बनाना चाहते थे। नियम-कायदे और कानून के चक्रव्यूह में फंसकर उनका भविष्य बर्बाद हो गया है। सभी संस्थाएं एक दूसरे के ऊपर ठीकरा फोड़ रही हैं। नैतिकता और जिम्मेदारी किसी की भी नहीं है। इस मामले में यह भी कहा जा रहा है कि भ्रष्टाचार ऊपर से अब नीचे की ओर आ रहा है। मंत्री को परमिशन देते समय छात्र संख्या के आधार पर रिश्वत चाहिए होती थी। नर्सिंग काउंसिल और मेडिकल यूनिवर्सिटी में उन्हीं अधिकारियों की पोस्टिंग की जाती थी, जो नीचे से ऊपर तक निर्धारित राशि को पहुंचा सकें। सरकार के खजाने को भी चूना लग रहा था।

नर्सिंग कॉलेज में एडमिशन के बाद एसटी, एससी और ओबीसी वर्ग को शासन से स्कॉलरशिप मिलती है। परीक्षाएं नहीं होने से छात्रों को अभी तक स्कॉलरशिप भी नहीं मिली है। एडमिशन पहले शुरू हो जाते हैं। मेडिकल विश्वविद्यालय परमिशन बाद में देता है। रिश्वत के इस खेल में सभी शामिल हैं। किसी भी जांच एजेंसी, न्यायपालिका और शासन को तो दोषी माना नहीं जा सकता है। दोष तो उन छात्र-छात्राओं का है, जो ऐसा भाग्य लेकर पैदा हुए हैं। भाग्य को दोष देना भी ठीक नहीं है। क्योंकि अभी रामराज चल रहा है। इस बात पर संतोष जरूर किया जा सकता है। होइहि सोइ जो राम रचि राखा। पूंजीवादी युग में कोई भी काम तभी होगा, जब काम करने वाले को फायदा होगा। यही वर्तमान का सत्य है।

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