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क्या इस बार कुछ डरी-सहमी है भाजपा…?

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-ओमप्रकाश मेहता

विश्व के देशों के लिए ‘आदर्श’ माना गया भारतीय लोकतंत्र आखिर एक दशक के एक पार्टी के शासन के बाद अगले चुनाव में डरा-सहमा सा नजर क्यों आता है? यह सवाल प्रधानमंत्री मोदी के पार्टीजनों के नाम लिखे ताजा पत्र में एक बार फिर उभरकर सामने आया है, मोदी जी ने पार्टी कार्याकर्ताओं के नाम लिखे अपने ताजा पत्र में इस चुनाव को ‘असामान्य’ बताया है तथा उम्मीदवारों से सचेत रहने की अपील की है।

वैसे भारतीय राजनीति के लिए यह घटना कोई अजूबा या असामान्य नही है यहां का इतिहास रहा है कि आजादी के बाद शासन के दस साल पूरे करने वाले हर प्रधानमंत्री के मन में अपने शासन को लेकर इस तरह के सवाल पैदा हुए है और उन्होंने उन्हें हल करने का प्रयास भी किया है, फिर चाहे नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री हो या स्वयं भाजपा के मोदी जी। आजादी के बाद से अब तक पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उनके बाद उनकी बेटी इंदिरा जी और उनके बाद डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने शासन के दस साल पूरे किये, नेहरू और इंदिरा जी तो डेढ़ दशक से भी अधिक समय तक प्रधानमंत्री रहे और वे भी अपने शासन के दौरान उठाये गये कदमों के प्रति आशंकित रहे, नेहरू के सामने जहां अंग्रेजोें के शासन के फैसलों को देशहित में संशोधित करने की चुनौती थी वहीं इंदिरा जी के सामने अपनी गिरती साख की चुनौती थी, जिसका उन्होनंे देश में आपातकाल लागू कर निपटने का प्रयास किया, जहां तक तीसरे कांग्रेस प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का सवाल है, उनके हाथों से तो एक दशक के बाद सत्ता ही फिसल गई और वे मोदी जी की झोली में आ गिरी, अब मोदी जी का सत्ता का दशक पूरा हो रहा है और अब उनके सामने सत्ता की अहम चुनौती है, इसलिए यह लोकसभा चुनाव उनके लिए किसी ‘अग्निपरीक्षा’ से कम नही है, यद्पि इस बार कांग्रेस की चमक कम हो जाने के कारण उनके सामने क्षेत्रिय दलों की विशेष चुनौती नही है, क्योंकि देश में सिर्फ कांग्रेस और भाजपा को ही ‘राष्ट्रªीय दल’ का दर्जा प्राप्त है, शेष सभी क्षेत्रिय दल है,

फिर भी मोदी द्वारा चिंतित होकर पार्टी उम्मीदवारों और सामान्य सदस्यों को इस तरह का पत्र लिखा जाना हर राजनीतिक चिंतक के लिए सोचने-विचारने को मजबूर तो करता ही है और फिर मोदी द्वारा इन चुनावों को ‘असामान्य’ बताना इस बार की भावी चुनौतियों को स्पष्ट करता है यही आज विशेष चर्चा का विषय है। भाजपा और एनडीए की उम्मीदवारों को चुनावों की अंतिम घड़ी में प्रधानमंत्री द्वारा ऐसा पत्र लिखना उनकी किन आशंकाओं को उजागर करता है? एक तो इस चुनाव को ‘असामान्य’ बताया और दुसरे सचेत रहने की अपील की, इन दोनों उनकी धारणाओं के पीछे आखिर कारण क्या है? फिर उनका अपनो को कांग्रेस के पांच दशक की राज की याद दिलाना उसकी मुश्किलें गिनवाना, आखिर भारतीय मौजूदा राजनीति में क्या स्पष्ट करता है? फिर स्वयं की तारीफ में यह कहना कि पिछले दश वर्षों के उनके शासन में कई परेशानियां दूर हुई किंतु फिर भी अभी बहुत कुछ काम बाकी है यह कहकर उन्होंने स्वयं अपने लिए एक ओर शासनकाल की अपील की है, साथ ही भाजपा के सभी सदस्यों व उम्मीदवारों को ‘साथी-कार्यकर्ता’ सम्बोधित कर उन्होंने आत्मीयता का परिचय देने का प्रयास भी किया है।

वे अपने इस पत्र को देश के सभी हिस्सों की क्षेत्रिय भाषा में जन-जन तक पहुंचाना चाहते है। इस प्रकार इस चुनावी बेल में मोदी जी का यह पत्र न सिर्फ अपनी पार्टी बल्कि भारतीय राजनीति में भी अहम स्थान रखता है। जिसें कई अर्थों में देखा-परखा जा सकता है।

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