विपक्ष लगातार यह आरोप लगा रहा है कि प्रवर्तन निदेशालय का केंद्र सरकार दुरुपयोग कर रही है। इस एजेंसी की कार्रवाई और नेताओं को एजेंसियों द्वारा भेजा जाने वाला समन भी राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। आखिर इस पर राजनीति क्यों हो रही है, विश्लेषकों से जानते हैं…
पिछले कुछ वर्षों में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की सक्रियता बढ़ी है। विपक्षी दल यह आरोप लगा रहे हैं कि जब-जब चुनाव नजदीक होते हैं, तब-तब ईडी नेताओं पर शिकंजा कसने लग जाती है। पिछले दिनों झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी ईडी ने नोटिस भेजे हैं। हालांकि, विश्लेषक यह भी कहते हैं कि मामलों को लंबित बनाए रखने के पीछे भी आरोपी नेता ही वजह हैं। इसी मुद्दे पर इस बार ‘खबरों के खिलाड़ी’ में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ विश्लेषक रामकृपाल सिंह, राहुल महाजन, अवधेश कुमार, समीर चौगांवकर और प्रेम कुमार मौजूद रहे। पढ़िए चर्चा के अंश…
ईडी पर उठते सवाल क्या जायज हैं?
राहुल महाजन: देश में तो हमेशा कोई न कोई चुनाव चल रहा होता है। अरविंद केजरीवाल कोर्ट में क्यों नहीं जा रहे? उनकी राजनीति जिस तरह की है, वे इसे मुद्दा बनाकर शायद सहानुभूति चाहते हैं। वे कार्यकर्ताओं को यह बताते हैं कि ईडी के समन उनके खिलाफ साजिश का हिस्सा हैं। जहां तक एजेंसियों का सवाल है, वे तभी किसी व्यक्ति या संस्था तक पहुंचती हैं, जब कुछ पुख्ता जानकारी होती है। जिन मामलों में ईडी अंतिम निष्कर्ष तक पहुंची है, वहां दोषसिद्धि भी हुई है।
ईडी को विपक्ष ‘एंड ऑफ डेमोक्रेसी’ करार देता है। क्या ऐसा बयान सही है?
प्रेम कुमार: देश में हमेशा कोई न कोई चुनाव जरूर होता है। भूपेश बघेल के पास ईडी तभी क्यों पहुंचती है, जब छत्तीसगढ़ में चुनाव हो रहे होते हैं। चुनाव खत्म होने के बाद ईडी उनके पीछे नहीं है। ईमानदार लोगों के पास ईडी जाने लगी है। स्थिति बदल गई है। ईडी को ऐसी शक्ति दी गई है कि वो जिस तक पहुंच जाएगी, उसके बाद उस व्यक्ति की यह जिम्मेदारी होगी कि वह खुद को बेगुनाह साबित करे। यह नैसर्गिक न्याय के खिलाफ है। ईडी ने जितने राजनीतिक मामलों को छुआ, उनमें से 96 फीसदी मामले विपक्षी नेताओं पर थे। ईडी का इस्तेमाल दहशत फैलाने के लिए हो रहा है। हेमंत सोरेन का मामला जमीन की खरीद-फरोख्त से जुड़ा है। इसकी जांच सीबीआई क्यों नहीं कर सकती थी? ईडी ही क्यों जांच कर रही है? यानी ईडी को भेजो और सरकार बदलो। महाराष्ट्र में तो एक मंत्री को भी जेल भेज दिया गया। सत्ता बदली तो क्या हुआ? लालू यादव के मामले में पूरा परिवार कैसे दोषी हो गया?
रामकृपाल सिंह: मामले दर्ज होना अलग बात है और दोषसिद्धि अलग बात है। ईडी के 23 मामलों को खत्म किया गया, इनमें से 90 फीसदी से ज्यादा मामलों में दोष साबित हुआ है। जयपुर में एक नेता ने 17 बार बीमारी का हवाला देते हुए हुए तारीखें आगे बढ़वाई हैं। मामलों को लंबा कौन खींच रहा है? अदालतों में विचाराधीन मामलों पर एक नजर डालिए, तब पता चलेगा कि कौन मामले को आगे बढ़ा रहा है। ईडी के मामलों में धनी लोग आरोपी होते हैं। उन्हें कानूनी-दांवपेंच पता होते हैं। वे 20-20 साल मामलों को क्यों लटकाए रखते हैं? दंड संहिता में कहीं भी राजनीतिक द्वेष का जिक्र नहीं है। लालू प्रसाद को तो सजा हो चुकी है। उनके परिवार के बाकी सदस्य आरोपी हैं, दोषी साबित नहीं हुए हैं।
ईडी की टाइमिंग पर लगातार क्यों सवाल उठते हैं?
अवधेश कुमार: 2022 में हेमंत सोरेन को नोटिस दिया गया था। अब 2024 चल रहा है। यूरोप में कभी होता था कि आप कुछ भी गुनाह कर लीजिए और आराधना स्थल पर जाकर जुर्म कबूल कर लीजिए तो सब माफ हो जाएगा। अगर हमारा देश शुद्धता की ओर आगे बढ़ रहा है तो लोगों को इस तरह की परेशानियां होंगी। बदलावों को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए। देश में साम्प्रदायिक और भ्रष्टाचारी तत्व हावी हो गए थे। नेताओं के रहन-सहन देखिए। चार्टर्ड प्लेन से चलते हैं। नेताओं के परिवार के सदस्य विदेशों में जाते हैं, वहीं पढ़ते हैं। यह सभी देख रहे हैं। ईडी के कुल मामलों में तीन फीसदी ही नेताओं से जुड़े हैं। हेमंत सोरेन को 10 बार ईडी ने नोटिस दिया था। झारखंड बनने के बाद का पूरा इतिहास देख लीजिए। मुकदमे नहीं थे, तब भी 12 मुख्यमंत्री बन गए। इस संकट के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस ही जिम्मेदार है। हेमंत सोरेन समन के खिलाफ कोर्ट क्यों नहीं गए? तेजस्वी यादव के खिलाफ कोई अभी मुकदमा नहीं हुआ। पहले से मामला चल रहा है।
क्या एजेंसियों की विश्वसनीयता खत्म हो रही है?
समीर चौगांवकर: विश्वसनीयता बनाए रखना एजेंसियों का दायित्व है। ईडी की कार्रवाई का स्वागत होना चाहिए। कोई भी जांच एजेंसी भ्रष्टाचार की तह तक पहुंच रही है तो इसकी तारीफ हो रही है, लेकिन जनता यह भी पूछेगी कि अजीत पवार की पत्नी और नारायण राणे को ईडी क्यों नहीं बुला रही? पांच साल पहले जिन नेताओं को ईडी ने बुलाया था, उन्हें सत्ता बदलने के बाद अब क्यों बुलाया जा रहा है? ये सवाल भी उठेंगे। धारणा यह बन रही है कि ईडी एकतरफा कार्रवाई कर रही है, लेकिन इस पर ईडी को ही स्थिति स्पष्ट करनी होगी।
एजेंसियों की कार्रवाई क्या सीधे व्यवस्थाओं पर सवाल है?
रामकृपाल सिंह: रघुवीर सहाय ने जनता पार्टी की शुरुआत के समय एक संपादकीय लिखा था, जो कहता था- व्यवस्थाजन्य स्थितियों से उत्पन्न राजनीतिक अनिवार्यताएं। …यानी कोई ऐसी व्यवस्था नहीं आएगी जो दूध की धुली हुई हो। मौजूदा दौर में कहा जा रहा है कि विपक्ष के ही खिलाफ मामले क्यों? बिहार में भाजपा कब पूरी तरह से सत्ता में रही? बिहार में जो नेता आरोपी हैं, वे हमेशा खुद या गठबंधन के सहयोगियों के साथ सत्ता में रहे हैं। जमीन के बदले नौकरी का मामला कितना पुराना है, यह भी तो देखिए। नेता ये क्यों कहते हैं कि बाकी भी भ्रष्टाचारी हैं, पहले उन्हें गिरफ्तार कीजिए। मुकदमा दर्ज पहले से ही जनता जानती है कि कौन नेता कैसा है। कभी साइकिल से चलने वाला गांव का प्रधान जब अचानक बड़ी गाड़ी से चलने लग जाता है तो जनता जान चुकी होती है कि क्या खेल हुआ है। गांव के लेखपाल से लेकर प्रधानमंत्री तक जनता जानती है कि कौन भ्रष्ट है और कौन ईमानदार है। क्या किसी आम आदमी में हिम्मत है कि ईडी के पांच समन को लौटा दे? इंदिरा गांधी के जमाने से अब तक फाइल तो सबकी बनती है, लेकिन कुछ नेताओं के लिए ‘ब्रीदिंग स्पेस’ रखा जाता था। 2014 में जब केंद्र में सत्ता बदली तो कई नेताओं के लिए ‘ब्रीदिंग स्पेस’ खत्म हो गया, इसलिए इतना हंगामा हो रहा है।