पुष्पा गुप्ता
किसलिए प्रधानमंत्री मोदी बजरंग दल को प्रोमोट कर रहे हैं? दशकों से चुनावी रणनीति तय करता रहा है, आरएसएस। 2014 के बाद सरकार के काम करने के तौर-तरीक़े पर निगरानी के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हर शोबे में अपने लोगों को लगा रखा है। बड़े फ़ैसले उनकी हामी के बाद लिये जाते हैं। कर्नाटक चुनाव क्या उसकी प्रयोगशाला है, जहां बजरंग दल को फ्रंट लाइन पर रखकर रण जीतने का प्रयास स्वयं प्रधानमंत्री कर रहे हैं?
यदि इस प्रयोगशाला में पीएम मोदी को सफलता हाथ लगती है, तो यक़ीन मानिये 2024 वाली चुनावी ज़मीन पर बजरंग दल और आक्रामक रूप से उतरेगा। लेकिन क्यों? क्या पीएम मोदी मोहन भागवत को यह बताना चाहते हैं कि आप ही आज के महाभारत के मास्टर प्लानर नहीं हो?
विश्व हिंदू परिषद अकेला संगठन है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बराबर विदेशों में सक्रिय है। विहिप के पास अथाह पैसा है. उसी के गर्भ से निकला है बजरंग दल, जो कर्नाटक में कमाल कर रहा है. मोदी उसे संघ के बराबर खड़ा करने की कवायद में हैं.
कर्नाटक की प्रयोगशाला में सफल हुए, तो बजरंग दल को आगामी चुनावों में ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल करेंगे.
इसमें कोई संदेह नहीं कि लगभग 50 लाख एक्टिव मेंबर और देशभर में 50 हज़ार से अधिक शाखाओं का संचालन करने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ऐसे विराट वट वृक्ष की तरह खड़ा है, जिसके नीचे किसी दूसरे पेड़ का पनपना कोई मज़ाक नहीं है। आरएसएस से अभिभूत लोग सवाल कर सकते हैं कि संघ के आगे विश्व हिंदू परिषद से जुड़ा बजरंग दल है क्या?
11-12 लाख के लगभग एक्टिव मेंबर। मगर इतना ज़रूर है, कि देशभर के सभी 938 ज़िलों में बजरंग दल ने अपनी पहचान बना ली है। उस आधार पर बजरंग दल ने संघ के विकल्प के रूप में आगे आने का सपना संजो लिया है। यों, जोखिम लेना मोदी के स्वभाव में है। ‘लिव डेंजरसली‘, नीत्से ने ‘जोखिम के साथ जीयो‘ का जो मंत्र दिया था, उसे दुनिया के कुछ अधिनायक समय-समय पर आत्मसात करते रहे हैं।
कर्नाटक चुनाव में बाहर से तो यही लगता है कि कांग्रेस ने बजरंग दल और पीएफआई को बैन करने वाला जो बॉल फेंका है, उसे मोदी ने कैच कर लिया, और उससे ही आखि़री समय तक खेलेंगे। लेकिन इस खेल का साइड इफेक्ट क्या आरएसएस पर नहीं पड़ेगा?
इसपर भी विचार कीजिए। यह संघ की ही योजना थी कि कर्नाटक चुनाव में इसबार पन्ना प्रमुख नहीं, बीजेपी कार्यकर्ताओं के 6500 शक्तिकेंद्र बनाये जाएं। पांच बूथों पर एक शक्तिकेंद्र, और 10 शक्तिकेंद्रों को नियंत्रित करने के वास्ते एक ‘महाशक्ति केंद्र‘। संघ के कार्यकर्ताओं को इन शक्ति केंद्रों से समन्वय स्थापित करके चुनाव लड़ना था।
इस बीच चुनाव प्रचार को उन्माद में बदल देने की समरनीति को मोदी ने जिस तरह से पलटा है, उससे संघ के द्रोणाचार्य असहज महसूस करने लगे हैं।
‘प्लान ए‘ में पहले यह तय हुआ था कि कर्नाटक चुनाव की ‘कवर फायरिंग‘ तेजस्वी सूर्या जैसे फायर ब्रांड नेता से कराई जाएगी। माहौल उन्मादी बनेगा, उससे शक्ति केंद्रों को मदद मिलेगी। मगर, अंतिम समय सबकुछ बदल गया। बंगलुरू साउथ से बीजेपी सांसद, भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अघ्यक्ष तेजस्वी सूर्या को सीन से बाहर कर देने का निर्णय किसके इशारे पर हुआ है?
संघ के रणनीतिकार इस सवाल पर चुप हैं। 16 नवंबर 2023 को तेजस्वी सूर्या 33 साल के हो जाएंगे। उनकी ग्रुमिंग आरएसएस का अनुषंगी संगठन, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की गोद में हुई थी।
9 दिसंबर 2022 को तेजस्वी सूर्या ने बयान दिया था कि सिर्फ़ आरएसएस ही है, जो भारतीय विचारघारा की बुनियाद पर खड़ा दीखता है। इसका मतलब यही बताना था कि कर्नाटक क्या, देश में हिन्दुत्व वाला चुनावी माहौल संघ के कार्यकर्ताओं के कारण है।
भारतीय विचारधारा और हिन्दुत्व के रक्षक हम ही है, बाक़ी लोग दूसरी पांत वाले हैं। तेजस्वी सूर्या के माध्यम से ‘एको अहम् द्वितीय नास्ति‘, का संदेश बजरंग दल के लोगों को दिया जा रहा था। लेकिन दो-तीन माह के अंदर सूर्या चुनावी सीन से ग़ायब थे। तेजस्वी सूर्या के मुक़ाबले इस बार विश्व हिंदू परिषद ने बजरंग दल के नेता शरण पंपवेल को खड़ा कर दिया, जिससे चुनावी चक्रव्यूह की व्याख्या करने वाले भी चौंक गये थे।
सेवा, सुरक्षा और संस्कार का स्लोगन देने वाले बजरंग दल को शरण पंपवेल में ऐसा क्या ख़ास दिखा कि उसे कर्नाटक के चुनाव में हीरो जैसा प्रोजेक्ट किया जा रहा है? यह पहेली जैसा है। मंगलुरू, शरण पंपवेल का कार्यक्षेत्र रहा है।
2011 में पंपवेल समेत 23 लोगों को पुलिस एक बर्थ डे पार्टी में मारपीट करने, पैसे छीनने व डकैती के आरोप में उठा ले गई थी। कुछ दिन जेल रहकर जब वह निकला, हिदू नेताओं से संपर्क प्रगाढ़ करने लगा। पहले पंपवेल दुकानदारों पर हमले करवाता था, फिर उन्हें सुरक्षा देने के नाम पर अपने गार्ड तैनात करवाता था।
2014 आते-आते शरण पंपवेल ने ‘ईश्वरी मैन पावर सोल्यूशन लिमिटेड‘ नामक एक कंपनी खोल ली, और उसी के माध्यम से वहां उद्योग जगत के लोगों को सुरक्षा गार्ड मुहैया कराने लगा।
दक्षिण कर्नाटक का मंगलुरू बंदरगाह शहर है। बंगलुरू के बाद दूसरा बिजनेस हब। कॉफी, टिंबर, काजू निर्यात के लिए मशहूर मंगलुरू, पेट्रो केमिकल उद्योग की वजह से भी आर्थिक अधिकेंद्र है। बजरंग दल के नेता शरण पंपवेल ने 2016 में दिये एक इंटरव्यू में जानकारी दी थी कि उसकी कंपनी, ‘ईश्वरी मैन पावर सोल्यूशन लिमिटेड‘ की सर्विस मंगलुरू के तीन मॉल, के.एस. राव रोड स्थित ‘सिटी सेंटर‘, पंडेश्वर स्थित ‘फोरम फिज़ा‘, और लाल बाग़ एरिया का ‘बिग बाज़ार‘ में है।
इन तीनों बड़े माल में तैनात सिक्योरिटी गार्ड्स शरण पंपवेल के हैं। बजरंग दल मंगलुरू डिवीजन का कन्वेनर बनाये जाने के बाद शरण पंपवेल की कंपनी के क्लाइंट बढ़ते चले गये, यह भी उसने साक्षात्कार में स्वीकारा था। 2014 में दक्षिणी कर्नाटक का चार्ज धीरे-धीरे शरण पंपवेल के हाथ में आ गया।
मंगलुरू का मुस्लिम बहुल इलाका है, पंडेश्वर और केएस राव रोड। वहां की दुकानों में ‘ईश्वरी मैन पावर सोल्यूशन लिमिटेड‘ के सुरक्षाकर्मी लगाये गये हैं। दिलचस्प है कि ये गार्ड्स मुस्लिम समाज से हैं, जिन्हें शरण पंपवेल ने अपनी कंपनी में बहाल किया हुआ है। मुस्लिम समाज के इन गार्डों को बजरंग दल से कोई समस्या नहीं है।
अल्पसंख्यक समाज के बिजनेसमैन इनके क्लाइंट हैं, सुरक्षा बजरंग दल से। धर्म और धंधा आराम से चल रहा है, ये है इस इलाक़े का अर्थशास्त्र।
बजरंग दल नेता शरण पंपवेल ने सात साल पहले एक साक्षात्कार में कहा था कि मुस्लिम दुकानदार और मॉल मालिकों का सबसे अधिक भरोसा हम पर है। अर्थात, ‘ईश्वरी मैन पावर सोल्यूशन लिमिटेड‘ की सेवाएं यदि दुकानदार नहीं लेते, तो उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है।
‘सेवा, सुरक्षा और संस्कार‘ का स्लोगन देने वाले बजरंग दल को सही से समझना हो, तो मंगलुरू चले जाइये। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को दक्षिणी कर्नाटक में बढ़त मिली, तो उसका श्रेय बजरंग दल को देते हैं। दक्षिणी कर्नाटक में विधानसभा की 51 सीटें हैं।
2008 और 2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को बहुमत तो नहीं मिल पाया था, मगर उसे कर्नाटक में सिंगल लार्जेस्ट पार्टी की हैसियत प्राप्त हो गई थी।
प्रधानमंत्री मोदी ने शरण पंपवेल की ‘प्रतिभा‘ को 2014 में ही पहचान लिया था। मगर, पंपवेल और मज़बूत हुआ 28 जनवरी 2023 को कर्नाटक के तुमकुर शौर्य यात्रा के दौरान। उन दिनों पीएम मोदी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की वजह से विवादित हो चुके थे। शरण पंपवेल ने तुमकुर की ‘शौर्य यात्रा‘ में 2002 के गुजरात दंगे के हवाले से ऐसी आग उगली कि कर्नाटक में बीबीसी डाक्यूमेंट्री का आफ्टर इफेक्ट कम होता नज़र आने लगा।
शरण पंपवेल ने कहा कि 26 जुलाई 2022 को मंगलुरू में प्रवीण नेत्तारू को मारने वाले मुस्लिम जिहादियों को सूरतकल बाज़ार में अब्दुल जलील की सरेआम हत्या से जवाब मिल गया।
24 दिसंबर 2023 को सूरतकल हत्याकांड में सविन कंचन, शैलू और पंचू नामक तीन लोग गिरफ्तार किये गये थे। उस शौर्य यात्रा से शरण पंपवेल, तेजस्वी सूर्या से ज़्यादा मारक लगा। पीएम मोदी को लगा कि कर्नाटक में 40 फीसद कमीशन कांड को यह शख्स अपने नफरतिया भाषणों से नेपथ्य में ला सकने की क्षमता रखता है। कर्नाटक में यों भी बजरंग दल ने बड़े-बड़े कारनामें किये।
विश्व हिंदू परिषद, जिसके गर्भ से बजरंग दल की उत्पत्ति 8 अक्टूबर 1984 को अयोध्या में हुई थी, वह आज की राजनीति का ब्रह्मास्त्र है। 1992 में बाबरी विध्वंस व कारसेवा की सफलता के बाद, 1993 में बजरंग दल के अखिल भारतीय स्वरूप को विस्तार देना तय हुआ था। बजरंग दल की संगठनात्मक गतिविधियों में साप्ताहिक मिलन केन्द्र, बलोपसना केन्द्र, हिन्दू उत्सव, चेतावनी दिवस, बलिदानी दिवस, महापुरूषों की जयन्ती और शौर्य प्रशिक्षण वर्ग को समाहित किया गया।
बजरंग दल के दीक्षा समारोहों में त्रिशूल बँटते हैं। शस्त्र प्रशिक्षण नियमित रूप से होता है। मंदिरों की सुरक्षा, गौ रक्षा, आंतरिक सुरक्षा, हिंदू मान बिंदू पर आक्रमण अपमान, बांग्लादेशी घुसपैठ व सांस्कृतिक प्रदूषण को रोकना ये प्रमुख लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं।
26 मार्च 1985 को बजरंग दल ने राम भक्त बलिदानी स्क्वाड बनाना तय किया था। तब इस ‘आत्मघाती जत्थे‘ के लिए देशभर में पांच लाख युवाओं को रजिस्टर्ड करने का लक्ष्य रखा गया था। 8 अक्टूबर 2008 को बजरंग दल ने 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर संकल्प लिया कि हम पांच साल के भीतर देश के 938 ज़िलों में 25 लाख समर्थक तैयार कर लेंगे। 15 वर्षों में बजरंग दल अपने लक्ष्यों से कितना आगे है, इसकी समीक्षा करने का समय आ गया है।
विश्व हिंदू परिषद अकेला संगठन है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बराबर विदेशों में सक्रिय है। हिंदू स्वयंसेवक संघ की तरह विहिप की शाखाएं अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अमेरिका-कैरेबियन, यूरोप-स्कैंडेनिविया, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया-न्यूज़ीलैंड से लेकर एशियाई-अफ्रीकी देशों तक विस्तार ले चुका है।
विहिप के पास जब अथाह पैसा है, तो बजरंग दल को संसाधन की चिंता किसलिए? उसे तो एक ही चिंता करनी है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बराबर खड़ा होना। मोदी ‘सबका साथ-सबका विकास‘ चाहते हैं। बस, समय की प्रतीक्षा कीजिए!