*सुसंस्कृति परिहार
वाकई हमारे साहिब जी के रौब और रुतबा को देखकर ऐसा अहसास हो रहा है जैसे हम अब राजतंत्रात्मक शासन में आ चुके हैं ।राजा जी जहां से निकलते ।सबके सब काम धंधे छोड़ राजा को जुहार करने इतना झुकते वे राजा का दर्शन भी नहीं कर पाते थे इतनी हिम्मत किसी में नहीं होती थी सीधे खड़े हों प्रणाम करें और उनकी आंखों में आंखें डाल सकें या यूं कहें वे उन्हें एक टक देख सकें ।यह राजा का अपमान होता था। इसलिए भले राजापुत्र हो उनके भाई बंद हों उनके सिपहसालार हों सबको यह सम्मान मिल जाता था।अंधी प्रजा हो तो सब चलता है।आज भी भूले-बिसरे राजाओं के खानदान को इसी अंदाज़ में कहीं कहीं सलामी दी जाती है तो लगता है कि हम अभी भी सामंतवादी की ज़द में है।लगता है यह आचरण सदियों से हमारी रगों में दौड़ रहा है। प्रजातंत्र का मंत्र अभी तक यहां नहीं पहुंच सका है।
सबसे कष्टप्रद तो तब लगता है जब जनता के चुने नुमाइंदे लोकसभा से मनोनीत प्रधान जी अपने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ राजसी शान-शौकत से परिपूर्ण ऐसा दुर्व्यवहार करते हैं जो अशोभनीय ही नहीं अलोकतांत्रिक है। पिछले दिनों माननीय साहिब जी के भोपाल आगमन पर फुर्तीले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान उनके साथ कदमताल करते चल रहे थे लेकिन आदत के मुताबिक वे थोड़ा सा साहिब के कदमों से आगे क्या निकले उनके पीछे चल रहे अधिकारी ने उनका कंधा पकड़ कर उन्हें पीछे चलने बाध्य किया ।यह प्रोटोकाल हो सकता है पर एक मुख्यमंत्री के साथ उसी के प्रदेश में इस तरह रोकना जनता को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। शिवराज चार बार से प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं वे आगे प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं। यह भी सोचा जाना चाहिए था।इस रोक को साहिब ने कनखियों से देखा भी और शायद ख़ुश भी हुए होंगे।इसे क्या लोकतांत्रिक व्यवहार कहा जा सकता है?
दूसरे मुख्यमंत्री का कद तो गोरखनाथ के पीठाधीश्वर होने के देशभर के नाथपंथियों में सबसे ऊंचा है।जिस पर इस समय भाजपा को संचालित करने वाले रिमोट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महापुरुष मोहन भागवत का वरदान हस्त हो ।उनको साहिब जी ने खुद गाड़ी में बैठकर जिस तरह दौड़ाया वह दृश्य तो साहिब जी के प्रति घृणा भाव जगाता है। मीडिया भी ख़ूब यह दौड़ दिखादिखा कर योगी जी को अपमानित करते रहे।अफ़सोस इस बात का दोनों घटनाओं की प्रतिक्रिया कहीं मीडिया में नज़र नहीं आई।
इन दो घटनाओं के बावजूद कहीं आक्रोश और रोष सड़कों पर नज़र नहीं आया।भले अंदर अंदर तकलीफ पहुंची हो। सार्वजनिक तौर पर इसलिए यह माना जा रहा है कि शायद ये दोनों मुख्यमंत्री अब जनता में लोकप्रिय नहीं रहे। साहिब ही सर्वेसर्वा हैं।राजन हैं जो चाहेंगे वैसा ही होगा ।यह प्रजातांत्रिक दौर में हास्यास्पद घटनाएं तो है ही साथ ही यह भी जतलाती हैं कि पद के लालच में आज नेता किस बुरी तरह घिर चुके हैं।मान सम्मान रहन रख दिया गया है।जनमत आपके साथ है तो डर कैसा ?यह डर इस बात को भी उजागर करता है कि जनादेश आपको नहीं मिला।येन केन जुगतबंदी की वजह से मिली सत्ता पर बने रहने के वशीभूत यह सब बर्दाश्त किया जा रहा है।
ऐसे मुख्यमंत्रियों और साहिबान जी को यह समझना चाहिए कि वे राजतंत्रात्मक शासन नहीं चला रहे हैं जनता के मत से यहां पहुंचे हैं और उस मत का सम्मान होना चाहिए।