-सुसंस्कृति परिहार
अगस्त माह के प्रथम सप्ताह में बांग्लादेश में जो कुछ हुआ वहीं भारत में होने जा रहा है इस बात से मोदीजी इतने डरे हुए हैं कि उन्होंने अपने एक भाषण में यह कह दिया कि देश में रक्त पात होने को है कुछ ताकतें देश को एक हजार साल पीछे ले जाना चाहती है इससे निपटने उन्होंने मोहल्ला कमेटियां बनाने की बात कही है जबकि देश में ऐसा माहौल नहीं है जब से मोदी सरकार अल्पमत के साथ सत्ता में आई है तब से आमजन अब ज़्यादा चिंतित नहीं हैं। यदि सरकार सत्ता में नहीं आती तो ज़रूर रक्त क्रांति के हालात भाजपा बनाती।
लेकिन जब 400पार का तिलिस्म जनता ने बुरी तरह तोड़ा और एक सशक्त प्रतिपक्ष इंडिया गठबंधन ने दिया जिसके नेता राहुल गांधी हैं वे कांग्रेस से आते हैं जिसे नेस्तनाबूद करने मोदीजी ने कांग्रेस मुक्त भारत करने हेतु पूरे दस साल झूठे इल्ज़ाम लगाए। किंतु वे उनका बाल बांका नहीं कर पाए।आज़ रक्तपात की बात कर रहे हैं जबकि संजय राऊत पहले ही इस बात के संकेत दे चुके हैं कि भाजपा और संघ के तमाम विरोधियों को जान से मारा जा सकता है सबसे बड़े विरोधी राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन के नेता हैं। कथित सूत्र यह बता रहे हैं कि राहुल गांधी के जीवन को खतरा है और उन्हें समाप्त करने की विदेश संभवतः इज़राइल या पाकिस्तान में तैयारी चल रही है।
जिस रक्त क्रांति की बात मोदीजी कह रहे हैं वह उनके खिलाफ नहीं बल्कि विपक्ष के ख़िलाफ़ की जा रही है क्योंकि मोदीजी हमेशा बात उल्टी ही कहते आए हैं और जिसे लोग जानने और समझने लगे हैं।इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि राहुल गांधी में जनता की बढ़ती आस्था को वे यह भय दिखाकर डराना चाहते हैं ताकि दहशत का माहौल कायम रहे जिसके वजूद को राहुल ने ‘डरो मत’ कहकर तोड़ा है।
ये सच है कि मोदी जी श्रीलंका और बांग्लादेश में हुई तख्तापलट क्रांतियों से डरें हुए हैं और इस तरह की बेसिर पैर की बात कर रहे हैं तथा डरे सहमे अपने कार्यकर्ताओं में जोश वापस लाने ही शायद मोहल्ला कमेटियां बनाने का ज़िक्र रक्तपात क्रांति ना होने देने के लिए कर रहे हैं।जबकि हमारे देश में इस तरह के तख़्तापलट की संभावनाएं शून्य हैं।
कहा जाता है कि जब घटनाओं की साम्यता बढ़ती है तो इतिहास अपने को दोहराता है।दूसरे शब्दों में कहें कि जब जब धरा पर संकट आया है तो उसका तारणहार भी सामने आया है।हमारे वेद भी इस बात की पुष्टि करते हैं और पुरानी पीढ़ी तो अक्सर यह दुहराती ही है। इसे समय का पहिया घूमने की भी संज्ञा दी जाती है। भाग्यशाली लोग तो इसी आस में बैठे रह जाते हैं लेकिन जीवन और कालक्रम में जो फासला है वह अहम होता है परिवर्तन होता तब ,जब परिस्थितियां निर्मित होती हैं। इसमें वक्त लगता है क्योंकि समाज में जागरूकता की अलख जगाना सहज काम नहीं ख़ासकर भाग्यवादी और अंधविश्वासी देश में। जहां आस्था ज़रुरत से ज़्यादा पीड़ाओं पर हावी होती है।यही वजह है मुगलकाल में तुलसी,कबीर , रैदास और रहीम को सोए समाज को जगाने में काफी वक्त लगा। इसी तरह अंग्रेजों को हटाने में 1842 और 1857 की क्रांति से प्रारंभ संग्राम को भगतसिंह से लेकर सुभाषचन्द्र बोस तक अनगिनत लोगों ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया लेकिन इन सब पर गांधी जी अहिंसात्मक आंदोलन भारी रहा लेकिन बुनियाद तो बहुत पहले रखी गई।
वस्तुत:1942 अगस्त माह में क्रांति का जो आव्हान गांधी जी ने किया उसी की बदौलत अंग्रेजों की सत्ता ध्वस्त हुई उन्हें हमारे देश से जाना पड़ा इसलिए इसे अगस्त क्रांति कहा जाता है ।इस दिन से अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन’ का आरंभ हुआ। जिसका लक्ष्य भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराना था। ये आंदोलन देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ओर से चलाया गया था। बापू ने इस आंदोलन की शुरूआत अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन से की थी। इस मौके पर महात्मा गांधी ने ऐतिहासिक ग्वालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) से देश को ‘करो या मरो’ का नारा दिया था।
‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के शुरुआत की खबर से ही अंग्रेजों की नींद उड़ गई थी। गांधी जी और उनके समर्थकों ने स्पष्ट कर दिया कि वह युद्ध के प्रयासों का समर्थन तब तक नहीं करने देंगे जब तक कि भारत को आजादी न दे दी जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस बार यह आंदोलन बंद नहीं होगा। उन्होंने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को अहिंसा के साथ ‘करो या मरो’ के जरिए अंतिम आजादी के लिए अनुशासन बनाए रखने को कहा। लेकिन जैसे ही इस आंदोलन की शुरूआत हुई, 9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया था, यही नहीं अंग्रेजों ने गांधी जी को अहमदनगर किले में नजरबंद कर दिया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 940 लोग मारे गए थे और 1630 घायल हुए थे जबकि 60229 लोगों ने गिरफ्तारी दी थी।
आज देश भर में वर्तमान सरकार के प्रति तिरस्कार का भाव है।अवाम परेशान हैं।उसकी सुनवाई नहीं। लोकतंत्र के कदम लड़खड़ा रहे हैं। जनतंत्र पर चंद लोग हावी है। झूठे आश्वासनों ने जनता को झकझोर दिया है सच का हर जगह अपमान हो रहा है।स्वायत्त संस्थाओं को धीरे-धीरे लीलने का उपक्रम जारी है।भारत बचाओ का आव्हान तमाम कामगारों के संगठन कर रहे हैं। बेरोजगारी और मंहगाई चरम पर है। ग़रीब जनता को राशन का प्रलोभन देकर उनकी लूट चल रही है। गरीब निरंतर गरीब और चंद अमीर निरंतर अमीरी का रिकार्ड बनाकर दुनिया के अमीरों की सूची में आगे आने उद्यत हैं। शिक्षा,स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण विभाग अपना महत्व को रहे हैं। महिलाओं की हालत बदतर है। तानाशाही की पहलकदमी तेजतर हो रही है
ऐसी स्थितियां तो लोग कहते हैं अंग्रेजी शासन काल में नहीं थीं। विरोध और सत्य की अंग्रेज कद्र करते थे। अंग्रेजों की लूट के किस्से सुनाए जाते रहे उन्हें हम कोसते थे पर जब अपनों द्वारा लूट हो और लूट का फायदा विदेशों को मिल रहा हो तो ऐसे गद्दारों को उखाड़ फेंकना हमारा आपात धर्म है। गांधी आज नहीं हैं लेकिन उनके बताए रास्ते हमारे सामने हैं। लोग जुट रहे हैं।अगस्त माह हलचल लेकर आया है ।आज अगस्त क्रांति प्रासंगिक है और इसकी अहम ज़रुरत भी महसूस की जा रही है।
यह क्रांति रक्तपात से नहीं लोगों की वैचारिक क्रांति से होगा ये साफ़ नज़र आने लगा है। भारत ने वैसे भी शांति का पैगाम दिया है आज नफ़रत के विरुद्ध मोहब्बत का पैगाम भी भली-भांति कामयाब हुआ है इसलिए बदलाव की पहल शांति पूर्वक और शालीन तरीके से होगी।हम गांधी के अनुयायी है।अगस्त क्रांति हमें ये संदेश देती रहेगी।