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पंजाब में कहीं राष्ट्रपति शासन की भूमिका तो नहीं बनाई जा रही

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विजय दलाल

सुरक्षा की चूक को बीजेपी और उसके समर्थकों द्वारा इतनी बड़ी बात बताई जा रही है।
प्रधानमन्त्री का इस तरह का बयान फिर अमरिंदर सिंह का पंजाब में राष्ट्रपति शासन की मांग । उसके बाद प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति से मुलाकात और फिर उनकी चिंता का बयान यह आशंका पैदा करता है कि कहीं पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू करने की भूमिका तो नहीं बनाई जा रही है ?
चूक के दो कारण तो स्पष्ट है पहला किसानों का गुस्सा – किसान आंदोलन एक वर्ष पुरा चलने के बाद जिस शांतिपूर्ण ढंग से चला है उसमें हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं था।
अभूतपूर्व शांतिपूर्ण आंदोलन था।
इस कारण से मोदीजी पर हमले की अंशभर भी शंका नहीं की जा सकती।
दूसरा बड़ा कारण मौसम खराब होने से यात्रा वाहन व रास्ता परिवर्तन ।
इस कारण से भी कोई पूर्व नियोजित षड़यंत्र और तात्कालिक हमले की योजना भी संभव नहीं ।
प्रधानमन्त्री के काफिले के साथ स्वयं का देश में उच्चतर गुणवत्ता श्रेणी वाला सिक्योरिटी पर्याप्त मात्रा में स्टाफ चलता है ।
स्पष्ट दिखाई देता है कि मसले को जानबूझकर जरुरत से ज्यादा राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।
यह बात करते वक्त भी पंजाब सरकार या पुलिस प्रशासन द्वारा चूक का बचाव कतई नहीं किया जा रहा है ।
लेकिन प्रधानमंत्री के ऐसे बयान को भी इतना गंभीर लेने की आवश्यकता है ।
इस बयान में कितनी सच्चाई है सम्पूर्ण प्रकरण की गहरी जांच होना चाहिए ।
मोदीजी के द्वारा इस पद की आड़ में सरकारी मशीनरी वह उस पर खर्च पर जिस तरीके से चुनाव प्रचार के दुरूपयोग के अनुभव हमारे सामने आते जा रहे हैं।
संविधान संशोधन के बारे में भी विचार होना जरूरी है कि देश का प्रधानमंत्री देश की समग्र जनता का प्रधानमंत्री है।
किसी भी दल का साधारण कार्यकर्ता नहीं है । इसलिए उसे पद पर रहते हुए चुनाव प्रचार के लिए नहीं जाना चाहिए ।
संविधान निर्माताओं ने कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी की इस पर पर बैठा हुआ कोई प्रधानमंत्री इस तरह का व्यवहार करेगा । अब इस तरह की आचार संहिता बहुत आवश्यक है ।
विजय दलाल

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