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*क्या आपका सबकुछ बासी, उबाऊ, नीरस, रुके हुए सड़ते पानी-सा निगेटिव है?*

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      डॉ. विकास मानव

     एकाध फीसदी को अपवाद मान लें तो हर संस्थान के संचालक का रोना है  : “मुझे अपेक्षित आसमान नहीं मिल पा रहा है. प्रबंधकीय और नेतृत्व की प्रभावी क्षमता से योग्य मैनपॉवर का आभाव है. ऐसे में अपना प्रतिनिधित्व भी मैं किसी से नहीं करा सकता/सकती.” 

     इसी तरह का रोना घर- परिवार- कमर्शियल प्रतिष्ठान मैनेज करने वाली फीमेल्स पर्सन भी रोती रहती हैं.

  साथियों!

_इम्प्रूवमेंट और डेवलपमेंट से उपजी गुडविल क्वालिटी+क्वांटिटीबेस वर्क के रिजल्ट से बनती है, सर्वेन्टबेस्ड व्यक्ति या भीड़ से नहीं._

   हम बातें नहीं करते, उपदेश नहीं देते, काम करते हैं और सौ फीसदी परिणाम देते हैं. आपको सिर्फ हमें आज़मा कर देखने भर की क्षमता दिखानी होती है. आप किसी भी तरह के संस्थान के संचालक हैं और आपको प्रभावी मैनपॉवर चाहिए तो~

    _अपने यहाँ के कार्य का व्योरा और शेलरी देने की क्षमता ओपन करते हुए हमें लिखें. आपकी रिक्ति की पूर्ति की जाएगी, आपका केंद्र कहीं भी हो._

     अगर आप फीमेल हैं और आपको अपने घर-परिवार का डेवलपमेंट चाहिए या आपके खुद के लिए इंटर्नल- आउटर दोनों लेबलों पर रेगुलर “सुपर हैपिनेश” प्रोवाइडर पर्सन चाहिए तो भी योग्यतम मैनपॉवर हम देंगे. 

     सुपर सत्ता की सृष्टि में कुछ भी रहस्यमय, दुर्लभ और असंभव नहीं है. स्वयं सुपर सत्ता भी रहस्यमय, दुर्लभ, असंभव नहीं है. बस भ्रामक- घातक कन्फर्ट जोन से बाहर आने की हिम्मत भर दिखानी है.

  इंसान अपने बनाये दायरे में दुबके रहकर; सबकुछ महज पढ़-सुनकर, सोचकर या दुराचार-भ्रष्टाचार से पा लेना चाहता है. उसके सारे रोगों की जड़, महारोग यही है.

     _यथास्थिति में बने रहना और बदलाव भी चाहना अल्कोहलिक विक्षिप्तता है._

    आप जो और जैसे अब तक किए, वही और वैसे ही करते रहेंगे तो वही मिलेगा जो अब तक मिला. जो अब तक नहीं मिला, उसको अर्जित करने के लिए वो करना होगा जो अब तक नहीं किए. आप केवल निर्णय लेकर ऐक्टिव मोड पर आएं, बाकी सब हम पर छोडें.

       *चेतना विकास मिशन*.

_(वास्तविक मानव निर्माण की पौधशाला)_

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