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मुद्दाविहीन राष्ट्र…!

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भानु प्रकाश रघुवंशी

मुद्दा यह नहीं कि अशोक स्तंभ के
बदले हुए रूप और दहाड़ से
भींगी बिल्ली बन गया है विपक्ष
और विपक्ष की भूमिका में खड़े हैं मुठ्ठी भर लोग
लेखक,चिंतक,आलोचक।
मुद्दा यह भी नहीं कि सरकारी तंत्र
अपने कांधों पर अतिरिक्त बोझ से
हांफ रहा है गुलामों की तरह

मुद्दा यह भी नहीं कि सियासतदानों की
खिलाफत करने वाला हर व्यक्ति
हिमायती मान लिया जाता है पड़ोसी मुल्क का
मुद्दा यह भी नहीं कि पड़ोसी मुल्क का
हिमायती कहलाने के डर से चुप रहना
इतना भारी पड़ा कि मुल्क लुटता रहा
और हम चोर-चोर भी न चिल्ला सके

मुद्दा यह भी नहीं कि अब नही होतीं
पत्रकारवार्ता
चाटुकार की भूमिका में है
सूचना और प्रसारण तंत्र

मुद्दा यह भी नहीं कि कीचड़ सने लोग
एक धारा में उतरते ही
डूबने और बहने से बच जाते हैं
और उजले-उजले दिखने लगते हैं
मुद्दा तो यह भी नहीं कि देश के सर्वोच्च
न्यायधीश को न्याय मिला
वह बलात्कारी कहलाने से बच गए

मुद्दा यह नहीं कि बुल्डोजर
निर्माण नहीं विध्वंस का प्रतीक बन गया
मुद्दा यह भी नहीं कि मॉब लिंचिंग
अपराधियों के हाथ का हथियार भर है
है सजा देने का नया तरीका

मुद्दा तो यह भी नहीं कि
भूख, बेकारी कम न हो सकी
बढ़ती जा रही है बेरोजगारी
मुद्दा यह भी नहीं कि घर बेचकर
घर बनाने का दावा किया गया है

मुद्दा यह भी नहीं कि
हम इतने मुद्दों के बाद भी
अघोषित मुद्दाविहीन राष्ट्र के नागरिक होने पर
गोरवान्वित हो रहे हैं

मुद्दा यह भी नहीं है कि हमने किस से
आजादी पाई है, कितनी आजादी पाई है?
मुद्दा तो यह भी नहीं है कि अगर पिछत्तर साल पहले
आजादी आई थी
तो वह किसी के चाल-चरित्र में
दिखती क्यों नहीं है

मुद्दा यह है कि हम
अघोषित मुद्दाविहीन राष्ट्र के नागरिक
आज भी निरुत्तर हैं
आजादी का अर्थ बता पाने में।

           -भानु प्रकाश रघुवंशी
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