मूंछों पर ताव, घोड़े की सवारी या फिर डीजे संगीत बजाना – कुछ भी जातीय संघर्ष को जन्म दे सकता है। यह सब कुछ एक प्रदेश गुजरात के लिए आम बात है। देश में मॉडल के तौर पर बेचे गए इस सूबे में इस तरह की घटनाएं अक्सर घटती रहती हैं। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब यहां के एक गांव में “चश्मा और अच्छे कपड़े पहनने” के लिए एक युवा पर हमला कर दिया गया था।
आजादी के 70 साल के बाद आज भी यहां किसी दलित को खुल कर जीने या फिर कुछ करने कि आजादी नहीं है। इसी 30 मई को, 21 वर्षीय जिगरभाई पर उनके गांव के सात राजपूत लोगों द्वारा कथित तौर पर हमला किया गया था। कारण हैरान कर देने वाला है। मामले में दर्ज एफआईआर के मुताबिक युवक ने गांव छोड़ते समय “चश्मा और अच्छे कपड़े पहन रखे थे”। लेकिन सच्चाई ये है कि वो युवक दलित समुदाय का था और जैसा कि आपको हमने पहले बताया वहां दलितों के साथ भेदभाव आम बात है।
यही नहीं जिगरभाई के भाई और मां पर भी हमला किया गया जब उन्होंने युवक को हमलावरों से बचाने की कोशिश की। जिगरभाई पर हुए हमले के बाद जब उनके परिवार ने थाने में राजपूतों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया तो आरोपी सात राजपूतों में से एक की पत्नी ने भी एक जवाबी एफआईआर दर्ज कर दी। इसमें आरोप लगाया गया है कि जिगरभाई, भूपत भाई और दो अन्य लोगों ने “उनकी तरफ अश्लील निगाहों से देखा”।
राजपूतों के शेखलिया बंधु के खिलाफ जवाबी प्राथमिकी दर्ज करने के बाद जिगरभाई फरार हो जाने के लिए मजबूर हो गए। दरअसल जिगरभाई और उनके परिवार पर हमला करने के आरोपियों को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। और न ही पुलिस ने ऐसी कोई कोशिश की है। ये घटना बताती है कि गुजरात के गांव में जातिगत भेदभाव किस स्तर तक मौजूद है। और इसकी चपेट में न केवल समाज बल्कि पुलिस और प्रशासन तक हैं। और सवर्ण वर्चस्व वाले समाज में आम तौर पर पुलिस का समाज के ऊपरी हिस्से के साथ गठजोड़ रहता है।
दलितों ने लगायी न्याय की गुहार
मोटा गांव में, 2,000 से अधिक घर हैं, इनमें 100 दलित परिवार हैं, और बाकी राजपूत और ठाकुर हैं। गांव के तकरीबन हर दलित परिवार का एक सदस्य सरकारी नौकरी समेत सशस्त्र बलों में सूबेदार या हवलदार के रूप में देश की सेवा कर रहा है।
लेकिन इन चीजों के बावजूद दलितों को इसी तरह से अपमानित किया जाता रहा है, पिछले कुछ वर्षों में, गांव में दलितों के अपने किसी तरह के शौक या फिर पहनावे को लेकर तमाम मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। मूंछें रखना, धूप से बचने के लिए चश्मा और बढ़िया कपड़े पहनना, घोड़ा रखना या उसकी सवारी करना, यहां तक कि अपनी शादी में साफा पहनना भी उनके लिए गुनाह है। और ऐसा करने पर उनके ऊपर हिंसक हमले होते हैं। यहां तक कि आज के दौर में आम तौर पर बारात के दौरान डीजे के बजाने तक पर यहां सवर्णों की भौंहें फड़कने लगती हैं।
पिछले 20 सालों से गुजरात में भाजपा का राज्य चल रहा है, और मोदी दुनिया के सामने गुजरात को एक आदर्श राज्य के तौर पर पेश करते आये हैं। लेकिन गाहे-बगाहे हमारे सामने गुजरात कि सच्चाइयां आती रहती हैं, और ये समझना आसान हो जाता है कि गुजरात मॉडल किसी तरह का आदर्श नहीं बल्कि एक नाकाम मॉडल है। लोकतांत्रिक देश होने के तौर पर भारत के हर नागरिक के पास अपनी बात रखने का हक है। लेकिन दलितों के साथ होने वाला इस तरह का बर्ताव लोकतंत्र के दामन पर दाग है।
पीएम मोदी ने 20 सालों में यही गुजरात बनाया है। सरकार का काम है कि वह एक श्रेष्ठ समाज का निर्माण करे, जिसमें हर किसी को समान अधिकार हो और हर कोई एक-दूसरे का सम्मान करे। लेकिन इस तरह की घटना हमें साफ तौर पर बताती है कि भाजपा शासन के दौरान गुजरात और उसका समाज आगे बढ़ने की बजाय पीछे ही जा रहा है। भाजपा को एक बात समझना होगा कि राज्य में बड़ी-बड़ी उद्योग और सिर्फ अच्छी सड़कें बना देने से कोई भी राज्य एक आदर्श राज्य नहीं बन जाता है। राज्य की जनता और समाज की विचारधारा इस बात को तय करते हैं कि राज्य आदर्श है या नहीं?
दलितों के साथ जिस तरह का व्यवहार किया जा रहा है। और गांव में उनका स्वतंत्र और सम्मानजनक जीवन जीना भी दूभर है। इससे ऐसा लगता है कि गांव का अपना अलग संविधान है जिसमें सारे हक राजपूत और कथित ऊंची जाति के लोगों के पास हैं। अगर गुजरात में इस तरह की घटनायें हो रही हैं तो किसी और से पहले यह सरकार की नाकामी है। इससे यह साबित होता है कि पिछले 20 सालों से कार्य करने के बाद भी वह समाज और जनता को सही दिशा में लेकर आगे नहीं बढ़ सकी।